05-09-2019, 01:14 PM
Update 14
अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा
"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"
"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.
शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.
"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा
"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा
"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.
"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया
पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी
"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"
"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"
पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो
"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा
"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.
रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.
"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा
कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को
"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"
"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की
"क्या?"रूपाली ने पुचछा
"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली
"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"
"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली
"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो
"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया
"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा
पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया
"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा
"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं
"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"
पायन ने इनकार में सर हिला दिया.
रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी
रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.
"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा
"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया
रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.
"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"
पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.
"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.
वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया
"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"
"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा
"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"
"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"
"कोई बात नही" रूपाली ने कहा
:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ
"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी
थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.
"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"
रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.
पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा
रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी
"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए
पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.
"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"
"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो
"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा
पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई
"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.
रूपाली ने ठंडी साँस ली
"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.
"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा
"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"
"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा
"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा
पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो
"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब
"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया
पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए
"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.
"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई
"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"
पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा
"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा
"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"
"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी
"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."
रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया
चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी
"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा
"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया
"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.
"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी
"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.
"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली
"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी
"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी
"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"
"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"
"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया
अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा
"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"
"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.
शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.
"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा
"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा
"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.
"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया
पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी
"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"
"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"
पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो
"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा
"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.
रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.
"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा
कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को
"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"
"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की
"क्या?"रूपाली ने पुचछा
"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली
"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"
"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली
"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो
"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया
"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा
पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया
"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा
"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं
"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"
पायन ने इनकार में सर हिला दिया.
रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी
रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.
"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा
"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया
रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.
"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"
पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.
"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.
वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया
"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"
"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा
"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"
"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"
"कोई बात नही" रूपाली ने कहा
:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ
"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी
थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.
"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"
रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.
पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे
"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा
रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी
"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए
पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.
"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"
"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो
"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा
पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई
"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.
रूपाली ने ठंडी साँस ली
"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.
"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा
"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"
"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा
"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा
पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो
"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब
"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया
पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए
"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.
"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई
"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"
पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा
"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा
"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा
"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"
"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी
"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."
रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया
चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी
"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा
"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया
"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.
"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी
"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.
"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली
"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी
"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी
"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"
"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"
"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया