05-09-2019, 01:08 PM
Update 11
सुबह कुच्छ शोर सुनकर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो अब भी अपने ससुर के बिस्तर पर ही थी. उठकर बैठी तो एहसास हुआ के वो पूरी तरह से नंगी पड़ी, थी. जिस्म पर कोई कपड़ा नही था और ना ही चादर भी ओढ़ रखी थी. कमरे के बीचो बीच रखे बड़े से बिस्तर पे पूरी तरह से खुली हुई नंगी सो रही थी. रात की सारी कहानी एक झटके में उसके ज़हेन में दौड़ गयी और उसने जल्दी से चादर खींचकर अपने चारो तरफ लपेट ली.उसे कपड़े बिस्तर के पास नीचे पड़े हुए थे. रूपाली बिस्तर पे बैठे बैठे ही झुकी और अपने कपड़े उठाए तो टाँगो में हल्का सा दर्द महसूस हुआ. ठाकुर ने उसे कल रात 3 बार चोदा था. जब भी बीच में उनकी आँख खुलती वो रूपाली पे चढ़कर चूत में लंड घुसा देते. रूपाली की आँख भी चूत में लंड के घुसने से ही खुलती थी. उसकी चूत में अभी भी हल्का हल्का सा दर्द हो रहा था. चूचियाँ अभी भी हल्की हल्की सी लाल थी और गले पे ठाकुर के दांतो के हल्के से निशान बने हुए थे. वो शरम से दोहरी हो गयी पर ये भी सच था के कल रात उसे अपने औरत होने का पहली बार एहसास हुआ था. जिस्म से जो आनंद मिलता है उसका पता उसे कल रात चला था. अपने पति से चुदवाते वक़्त तो उसे बस इस बात का इंतेज़ार होता था के कब वो ख़तम करके उसके उपर से उतर पर अपने ससुर के साथ उसने जवानी के मज़े पूरी तरह लूटे. पहली बार सिर्फ़ टांगे खोलकर चुदवाया नही बल्कि कई पोज़िशन्स में अपनी चूत ठाकुर के सामने पेश करी. पहली बार गांद मरवाने की भी कोशिश की. उसे खुशी भी हुई और गम भी के ये सुख उसने अपने पति को कभी नही दिया.
बाहर अब भी कोई ऊँची आवाज़ में बोल रहा था. रूपाली जल्दी से उठकर खड़ी हुई और अपने जिस्म पे कपड़े डालकर बाहर आने को हुई थी के दरवाज़े पे रुक गयी. बाहर जो कोई भी था अगर रूपाली को ठाकुर के कमरे से सुबह सुबह इस हालत में बाहर आता देखता तो सब समझ जाता. वो दरवाज़े के पास ही कान लगाकर सुनने लगी और जल्दी ही समझ आ गया के आवाज़ किसकी थी. वो ठाकुर का अपना भतीजा जय था जो ठाकुर साहब से किसी बात पे बहेस कर रहा था.
"चाचा जी आप सोच लीजिए. मैं आपको जीतने पैसे आप चाहें देने को तैय्यार हूँ पर ये हवेली मुझको चाहिए" जय कह रहा था
"कौन से पैसो की बात कर रहे हो जय" ठाकुर की आवाज़ आई " वो पैसे जो मेरे ही हैं और जो तुमने मुझसे चुराए हैं?"
"वो सब अब मेरा है चाचा जी. और क्या चुराया मैने? आप और मेरे पिताजी इस जयदाद में बराबर के हिस्सेदार थे पर आपने उनको क्या दिया? मैने वही वापिस लिया है जो मेरा अपना था और अब इस हवेली को हासिल करके रहूँगा" जय चिल्ला रहा था और रूपाली को यकीन नही हो रहा था के ठाकुर उसकी बात सुन रहे हैं. एक वक़्त था के अपने सामने आवाज़ ऊँची करने वाले की वो गर्दन काट दिया करते थे.
बहेस कुच्छ देर और चलती रही थोड़ी देर बाद जय धमकी देकर चला गया. रूपाली बाहर निकालने की सोच ही रही थी के दरवाज़ा खुला और ठाकुर अंदर आए. उसे देखकर रुक गये और मुस्कुराते हुए बोले
"तुम कब उठी बेटी?"
"बस अभी थोड़ी देर पहले. ये आदमी कौन था पिताजी?" रूपाली ने पुछा जबकि वो अच्छी तरह से जानती थी के बाहर कौन आया था. ये कहानी वो भूषण से सुन चुकी थी.
"कोई नही. तुम छ्चोड़ो इस बात को. भूषण अपने कमरे में गया हुआ है. इससे पहले के वो वापिस आए तुम अपने कमरे में चली जाओ."
रूपाली ने ठाकुर से इस वक़्त कुच्छ पुच्छना मुनासिब नही समझा. उसने अपनी सारी का पल्लू ठीक किया और अपने कमरे में आ गयी. कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे और बात टब में जाके बैठ गयी. कल रात की सारी कहानी फिर उसके दिमाग़ में चलने लगी और वो सोचने लगी के आगे क्या करे. ठाकुर में आया बदलाव वो देख चुकी थी. ठाकुर ने शराब को हाथ भी नही लगाया था और अब ज़िंदगी की और लौट रहे थे. शायद उनके अंदर वही मर्द लौट आया था जो पहली कहीं सो गया था. रूपाली को अपना ये मकसद तो पूरा होता दिख रहा था पर दूसरा मक़सद अभी भी अधूरा था. वो अब तक ऐसी कोई जानकारी हासिल नही कर सकी थी जिससे ये पता चल सके के उसके पति के खून की वजह क्या थी.
उसका ध्यान जय पे गया. अगर पुरुषोत्तम ज़िंदा होता तो कभी जय को वो ना करना देता जो उसके मरने के बाद जय ने किया. सारे ज़मीन जायदाद पुरुषोत्तम ही देखता था और हर चीज़ पे उसकी पकड़ थी. उसकी मौत का सबसे ज़्यादा फयडा जय को हुआ जिसने उसके जाते ही ठाकुर की पूरी जायदाद हड़प ली. वही एक शख्स था जो पुरुषोत्तम के मरने का एक कारण अपने पास रखता था. उसने मॅन ही मॅन जय से मिलने का इरादा कर लिया पर मुसीबत ये थी के उससे मिले कैसे? ठाकुर अपने घर की बहू को इस बात की इजाज़त कभी नही देंगे. और वो जय से मिलके क्या करे? कैसे इस बात का पता लगाए के जय ने उसके पति को क्यूँ मारा?
यही सोचती रूपाली बाथरूम से बाहर निकली. कपड़े पहनकर नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा चुके थे. भूषण घर की सफाई में लगा हुआ था.
वो नीचे आई तो भूषण ने उसपे एक नज़र डाली और फिर काम में लग गया. भूषण को देखते ही रूपाली को चाभी वाली बात याद आई.
"वो चाबी कहाँ है काका?" उसने भूषण से पुचछा
"कौन सी चाभी?" भूषण उसकी तरफ देखने लगा
"बनो मत काका. वही चाबी जो आपने बगीचे से उठाई थी. वही चाभी जो आपको लगता है के उस आदमी ने गिराई थी जो रात को हवेली में आया था" रूपाली ने आवाज़ थोड़ी ऊँची करते हुए कहा
"वो मेरे कमरे में है" भूषण उसकी और देखते हुए बोला. रूपाली ने महसूस किया के वो उसके गले पे बने हुए निशान की तरफ देख रहा था
"लेकर आइए. मैं देखना चाहती हूँ" रूपाली ने निशान को ढकने की कोई कोशिश नही की.
"अभी लता हूँ" भूषण बाहर चला गया.
उसके जाने के बाद रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी. उसके दिमाग़ में दो बातें आई. एक तो ये के एक भूषण ही था जो जय से मिलने में उसकी मदद कर सकता था और दूसरे ये के उसने अब तक सिर्फ़ कामिनी का कमरा देखा था. घर के बाकी कमरो में तलाशी अभी बाकी थी. उसका ध्यान सरिता देवी यानी अपनी सास की तरफ गया. बीमारी के वक़्त उनका कमरा अलग कर दिया था. वो अपने पति के साथ नही सोती थी. भूषण ने कहा था के हवेली में आने वाले अजनबी को उन्होने भी देखा था तो किसी से कुच्छ कहा क्यूँ नही? रूपाली ने उनके कमरे की तलाशी लेने का इरादा किया.
तभी भूषण वापिस हवेली में आता दिखाई दिया.
भूषण ने लाकर चाबी रूपाली के हाथ में थमा दी. रूपाली ने गौर से देखा तो चाभी किसी आम से ताले में लगने वाली चाभी थी.
"ये चाभी बनवाई गयी है बेटी" भूषण ने कहा
"क्या मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के जिस ताले को ये खोलती होगी, ये उसकी असली चाभी नही है. ये किसी ने असली चाभी की नकल बनवाई है. ये देखो घिसने के निशान" भूषण ने चाभी के आगे की तरफ इशारा किया
रूपाली ने ध्यान दिया. भूषण सच कह रहा था. चाभी बनवाई गयी थी. सामने के तरफ घिसने के निशान सॉफ देखे जा सकते थे
"हवेली में कहीं इस तरह का कोई ताला नही है" भूषण ने कहा " तो ज़ाहिर के ये चाभी इस हवेली की नही है"
"ये चाभी मैं रख रही हूँ काका" कहते हुए रूपाली ने चाभी अपनी मुट्ठी में बंद कर ली
"तुम इसका क्या करोगी?" भूषण ने पुचछा
"वही जो आपने नही किया" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. पीछे हैरान परेशान खड़े भूषण को छ्चोड़कर
"जाने ये क्या करना चाहती है पर वो जो भी है, अच्छा नही है" सोचते हुए भूषण भी हवेली के बाहर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
अपने कमरे में आकर रूपाली ने कपड़े बदलकर शलवार कमीज़ पहन ली और अपने बिस्तर पर गिर पड़ी. उसके दिमाग़ में चल रहे सवालो में से एक का भी जवाब उसे नही मिला था बल्कि और काई सवाल खड़े हो गये थे. कौन था जो हवेली में रात को आता जाता था? कामिनी के पास सिगेरेत्टेस कहाँ से आती थी? चाबी की तरफ उसका कोई ख़ास ध्यान नही था पर फिर भी उसने रख ली थी. ये कोई आम सी चाभी भी हो सकती थी. जो आदमी रात को हवेली में आता था उसके घर या अलमारी की चाबी. बस एक ही बात थी चाभी के बारे में जो सोचने लायक थी और वो ये के ये असली चाभी नही थी. जो भी ताला था ये उसकी एक नकल थी. और सबसे ज़्यादा बात जो रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के रात को कोई हवेली में आया था इस बात का ज़िक्र उसकी सास ने किसी से क्यूँ नही किया? कौन सी बात थी जिसे वो च्छूपा रही थी?
सरिता देवी की तरफ ध्यान गया तो रूपाली को उनके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल आया. हवेली की चाबियाँ अब भी उसके पास ही थी. सरिता देवी का कमरा बीमारी के वक़्त अलग कर दिया गया था डॉक्टर के कहने पे. डॉक्टर ने कहा था के जब तक सरिता देवी ठीक हों उनका ठाकुर से दूर रहना बेहतर होगा. पर सरिता देवी कभी ठीक नही हुई. लंबी बीमारी के बाद चल बसी.
रूपाली सरिता देवी के कमरे के आगे पहुँची और ताला खोलकर अंदर दाखिल हुई. अंदर कमरे में घुसकर ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के यहाँ किसी की मौत हुई थी. अजीब मनहूसियत सी थी कमरे के अंदर. दवाई की महेक कमरे में अब भी मौजूद थी. रूपाली कमरे में आकर थोड़ी देर खड़ी यही सोचती रही के कहाँ से शुरू करे.कमरे में ज़्यादा समान नही था. बस एक अलमारी जिसमें सरिता देवी के कुच्छ कपड़े रखे थे और एक टेबल जिसपे उनकी दवाइयाँ रखी होती थी. रूपाली कमरे में टहलती खिड़की तक पहुँची और खोलकर बाहर देखने लगी. सामने झाड़ियों का एक जंगल उगा हुआ था. कभी यहाँ पर फूलों का एक खूबसूरत बगीचा होता था. रूपाली को फ़ौरन एहसास हुआ के इस जगग पे खड़े होकर पुर बगीचे का नज़ारा उपेर से मिलता था. अगर कोई बगीचे में था तो रात के अंधेरे में भी सॉफ नज़र आता तो अगर भूषण जो कह रहा है वो सच है, तो सरिता देवी ने उस रात उस आदमी को ज़रूर देखा होगा पर किसी से कुच्छ कहा नही.
रूपाली पलटकर फिर कमरे में आई और सरिता देवी के कपड़े उठाकर बिस्तर पर रखने लगी. अलमारी पूरी खाली कर दी पर कुच्छ हाथ ना आया. उसने कमरे में रखे सोफे के गद्दे हटाए पर वहाँ भी कुच्छ ना मिला. बिस्तर की चादर हटाकर एक तरफ कर दी. थोड़ी देर में पूरा कमरा उथल पुथल हो चुका था पर रूपाली के हाथ सिर्फ़ निराशा ही लगी.
तक कर रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी और दरवाज़े की तरफ नज़र की तो उसके होश उड़ गये. वहाँ खड़ा भूषण आँखें फाडे उसे देख रहा था. वो समझ चुका था के रूपाली कमरे की तलाशी ले रही है रूपाली झटके से उठकर खड़ी हो गयी और भूषण की तरफ देखने लगी. उसका दिल काँप उठा था. अगर भूषण ने जाकर ठाकुर को बता दिया तो रूपाली क्या कहेगी के वो क्या कर रही थी और क्यूँ कर रही थी? उसका सारा प्लान बिगड़ जाएगा.
उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और तेज़ कदमो से भूषण की तरफ बढ़ी. भूषण ने उसे पास आता देखा तो दो कदम पिछे हटा. रूपाली एक ही पल में उसके करीब पहुँची और उसे धक्का देकर दीवार से लगा दिया. इससे पहले के भूषण कुच्छ समझ पता रूपाली उससे सॅट गयी और अगले ही पल दोनो के होंठ मिल चुके थी. रूपाली ने भूखी शेरनी की तरफ भूषण के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, अपनी चूचियाँ भूषण की छ्चाटी से चिपका दी और नीचे अपने हाथ से भूषण का लंड पकड़ लिया. उसे सॉफ महसूस हो रहा था के भूषण का पूरा जिस्म काँपने लगा था. आख़िर 70 साल का बुद्धा था बेचारा. रूपाली ने एक हाथ से भूषण का पाजामा खोला और उसे नीचे सरका दिया. अगले ही पल भूषण के लंड उसके हाथ में था जिसने उसे हिलाना शुरू कर दिया. भूषण काँप ज़रूर रहा था पर पिछे हटने की कोई कोशिश नही कर रहा था. उल्टे उसका एक हाथ रूपाली की कमर से घूमकर उसकी गांद पे आ गया था. रूपाली अब भी उसे होंठ चूस रही थी और उसके लंड पे मूठ मार रही थी. वो इस कोशिश में थी के शायद बुढहा लंड खड़ा हो जाए पर ऐसा हुआ नही. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाके भी जब उसे कुच्छ होता नज़र ना आया तो उसने भूषण के लंड से हाथ हटाया और अपनी शलवार का नाडा खोल दिया. सलवार एक पल में सरक कर नीचे जा गिरी.पॅंटी रूपाली ने अंदर पहन नही रखी थी. भूषण ने फिर से हाथ उसकी गांद पे रख दिया पर अब शलवार बीच में नही थी. कमीज़ के अंदर से होता हाथ सीधा रूपाली की नंगी गांद पे आ लगा.
सुबह कुच्छ शोर सुनकर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो अब भी अपने ससुर के बिस्तर पर ही थी. उठकर बैठी तो एहसास हुआ के वो पूरी तरह से नंगी पड़ी, थी. जिस्म पर कोई कपड़ा नही था और ना ही चादर भी ओढ़ रखी थी. कमरे के बीचो बीच रखे बड़े से बिस्तर पे पूरी तरह से खुली हुई नंगी सो रही थी. रात की सारी कहानी एक झटके में उसके ज़हेन में दौड़ गयी और उसने जल्दी से चादर खींचकर अपने चारो तरफ लपेट ली.उसे कपड़े बिस्तर के पास नीचे पड़े हुए थे. रूपाली बिस्तर पे बैठे बैठे ही झुकी और अपने कपड़े उठाए तो टाँगो में हल्का सा दर्द महसूस हुआ. ठाकुर ने उसे कल रात 3 बार चोदा था. जब भी बीच में उनकी आँख खुलती वो रूपाली पे चढ़कर चूत में लंड घुसा देते. रूपाली की आँख भी चूत में लंड के घुसने से ही खुलती थी. उसकी चूत में अभी भी हल्का हल्का सा दर्द हो रहा था. चूचियाँ अभी भी हल्की हल्की सी लाल थी और गले पे ठाकुर के दांतो के हल्के से निशान बने हुए थे. वो शरम से दोहरी हो गयी पर ये भी सच था के कल रात उसे अपने औरत होने का पहली बार एहसास हुआ था. जिस्म से जो आनंद मिलता है उसका पता उसे कल रात चला था. अपने पति से चुदवाते वक़्त तो उसे बस इस बात का इंतेज़ार होता था के कब वो ख़तम करके उसके उपर से उतर पर अपने ससुर के साथ उसने जवानी के मज़े पूरी तरह लूटे. पहली बार सिर्फ़ टांगे खोलकर चुदवाया नही बल्कि कई पोज़िशन्स में अपनी चूत ठाकुर के सामने पेश करी. पहली बार गांद मरवाने की भी कोशिश की. उसे खुशी भी हुई और गम भी के ये सुख उसने अपने पति को कभी नही दिया.
बाहर अब भी कोई ऊँची आवाज़ में बोल रहा था. रूपाली जल्दी से उठकर खड़ी हुई और अपने जिस्म पे कपड़े डालकर बाहर आने को हुई थी के दरवाज़े पे रुक गयी. बाहर जो कोई भी था अगर रूपाली को ठाकुर के कमरे से सुबह सुबह इस हालत में बाहर आता देखता तो सब समझ जाता. वो दरवाज़े के पास ही कान लगाकर सुनने लगी और जल्दी ही समझ आ गया के आवाज़ किसकी थी. वो ठाकुर का अपना भतीजा जय था जो ठाकुर साहब से किसी बात पे बहेस कर रहा था.
"चाचा जी आप सोच लीजिए. मैं आपको जीतने पैसे आप चाहें देने को तैय्यार हूँ पर ये हवेली मुझको चाहिए" जय कह रहा था
"कौन से पैसो की बात कर रहे हो जय" ठाकुर की आवाज़ आई " वो पैसे जो मेरे ही हैं और जो तुमने मुझसे चुराए हैं?"
"वो सब अब मेरा है चाचा जी. और क्या चुराया मैने? आप और मेरे पिताजी इस जयदाद में बराबर के हिस्सेदार थे पर आपने उनको क्या दिया? मैने वही वापिस लिया है जो मेरा अपना था और अब इस हवेली को हासिल करके रहूँगा" जय चिल्ला रहा था और रूपाली को यकीन नही हो रहा था के ठाकुर उसकी बात सुन रहे हैं. एक वक़्त था के अपने सामने आवाज़ ऊँची करने वाले की वो गर्दन काट दिया करते थे.
बहेस कुच्छ देर और चलती रही थोड़ी देर बाद जय धमकी देकर चला गया. रूपाली बाहर निकालने की सोच ही रही थी के दरवाज़ा खुला और ठाकुर अंदर आए. उसे देखकर रुक गये और मुस्कुराते हुए बोले
"तुम कब उठी बेटी?"
"बस अभी थोड़ी देर पहले. ये आदमी कौन था पिताजी?" रूपाली ने पुछा जबकि वो अच्छी तरह से जानती थी के बाहर कौन आया था. ये कहानी वो भूषण से सुन चुकी थी.
"कोई नही. तुम छ्चोड़ो इस बात को. भूषण अपने कमरे में गया हुआ है. इससे पहले के वो वापिस आए तुम अपने कमरे में चली जाओ."
रूपाली ने ठाकुर से इस वक़्त कुच्छ पुच्छना मुनासिब नही समझा. उसने अपनी सारी का पल्लू ठीक किया और अपने कमरे में आ गयी. कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे और बात टब में जाके बैठ गयी. कल रात की सारी कहानी फिर उसके दिमाग़ में चलने लगी और वो सोचने लगी के आगे क्या करे. ठाकुर में आया बदलाव वो देख चुकी थी. ठाकुर ने शराब को हाथ भी नही लगाया था और अब ज़िंदगी की और लौट रहे थे. शायद उनके अंदर वही मर्द लौट आया था जो पहली कहीं सो गया था. रूपाली को अपना ये मकसद तो पूरा होता दिख रहा था पर दूसरा मक़सद अभी भी अधूरा था. वो अब तक ऐसी कोई जानकारी हासिल नही कर सकी थी जिससे ये पता चल सके के उसके पति के खून की वजह क्या थी.
उसका ध्यान जय पे गया. अगर पुरुषोत्तम ज़िंदा होता तो कभी जय को वो ना करना देता जो उसके मरने के बाद जय ने किया. सारे ज़मीन जायदाद पुरुषोत्तम ही देखता था और हर चीज़ पे उसकी पकड़ थी. उसकी मौत का सबसे ज़्यादा फयडा जय को हुआ जिसने उसके जाते ही ठाकुर की पूरी जायदाद हड़प ली. वही एक शख्स था जो पुरुषोत्तम के मरने का एक कारण अपने पास रखता था. उसने मॅन ही मॅन जय से मिलने का इरादा कर लिया पर मुसीबत ये थी के उससे मिले कैसे? ठाकुर अपने घर की बहू को इस बात की इजाज़त कभी नही देंगे. और वो जय से मिलके क्या करे? कैसे इस बात का पता लगाए के जय ने उसके पति को क्यूँ मारा?
यही सोचती रूपाली बाथरूम से बाहर निकली. कपड़े पहनकर नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा चुके थे. भूषण घर की सफाई में लगा हुआ था.
वो नीचे आई तो भूषण ने उसपे एक नज़र डाली और फिर काम में लग गया. भूषण को देखते ही रूपाली को चाभी वाली बात याद आई.
"वो चाबी कहाँ है काका?" उसने भूषण से पुचछा
"कौन सी चाभी?" भूषण उसकी तरफ देखने लगा
"बनो मत काका. वही चाबी जो आपने बगीचे से उठाई थी. वही चाभी जो आपको लगता है के उस आदमी ने गिराई थी जो रात को हवेली में आया था" रूपाली ने आवाज़ थोड़ी ऊँची करते हुए कहा
"वो मेरे कमरे में है" भूषण उसकी और देखते हुए बोला. रूपाली ने महसूस किया के वो उसके गले पे बने हुए निशान की तरफ देख रहा था
"लेकर आइए. मैं देखना चाहती हूँ" रूपाली ने निशान को ढकने की कोई कोशिश नही की.
"अभी लता हूँ" भूषण बाहर चला गया.
उसके जाने के बाद रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी. उसके दिमाग़ में दो बातें आई. एक तो ये के एक भूषण ही था जो जय से मिलने में उसकी मदद कर सकता था और दूसरे ये के उसने अब तक सिर्फ़ कामिनी का कमरा देखा था. घर के बाकी कमरो में तलाशी अभी बाकी थी. उसका ध्यान सरिता देवी यानी अपनी सास की तरफ गया. बीमारी के वक़्त उनका कमरा अलग कर दिया था. वो अपने पति के साथ नही सोती थी. भूषण ने कहा था के हवेली में आने वाले अजनबी को उन्होने भी देखा था तो किसी से कुच्छ कहा क्यूँ नही? रूपाली ने उनके कमरे की तलाशी लेने का इरादा किया.
तभी भूषण वापिस हवेली में आता दिखाई दिया.
भूषण ने लाकर चाबी रूपाली के हाथ में थमा दी. रूपाली ने गौर से देखा तो चाभी किसी आम से ताले में लगने वाली चाभी थी.
"ये चाभी बनवाई गयी है बेटी" भूषण ने कहा
"क्या मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के जिस ताले को ये खोलती होगी, ये उसकी असली चाभी नही है. ये किसी ने असली चाभी की नकल बनवाई है. ये देखो घिसने के निशान" भूषण ने चाभी के आगे की तरफ इशारा किया
रूपाली ने ध्यान दिया. भूषण सच कह रहा था. चाभी बनवाई गयी थी. सामने के तरफ घिसने के निशान सॉफ देखे जा सकते थे
"हवेली में कहीं इस तरह का कोई ताला नही है" भूषण ने कहा " तो ज़ाहिर के ये चाभी इस हवेली की नही है"
"ये चाभी मैं रख रही हूँ काका" कहते हुए रूपाली ने चाभी अपनी मुट्ठी में बंद कर ली
"तुम इसका क्या करोगी?" भूषण ने पुचछा
"वही जो आपने नही किया" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. पीछे हैरान परेशान खड़े भूषण को छ्चोड़कर
"जाने ये क्या करना चाहती है पर वो जो भी है, अच्छा नही है" सोचते हुए भूषण भी हवेली के बाहर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
अपने कमरे में आकर रूपाली ने कपड़े बदलकर शलवार कमीज़ पहन ली और अपने बिस्तर पर गिर पड़ी. उसके दिमाग़ में चल रहे सवालो में से एक का भी जवाब उसे नही मिला था बल्कि और काई सवाल खड़े हो गये थे. कौन था जो हवेली में रात को आता जाता था? कामिनी के पास सिगेरेत्टेस कहाँ से आती थी? चाबी की तरफ उसका कोई ख़ास ध्यान नही था पर फिर भी उसने रख ली थी. ये कोई आम सी चाभी भी हो सकती थी. जो आदमी रात को हवेली में आता था उसके घर या अलमारी की चाबी. बस एक ही बात थी चाभी के बारे में जो सोचने लायक थी और वो ये के ये असली चाभी नही थी. जो भी ताला था ये उसकी एक नकल थी. और सबसे ज़्यादा बात जो रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के रात को कोई हवेली में आया था इस बात का ज़िक्र उसकी सास ने किसी से क्यूँ नही किया? कौन सी बात थी जिसे वो च्छूपा रही थी?
सरिता देवी की तरफ ध्यान गया तो रूपाली को उनके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल आया. हवेली की चाबियाँ अब भी उसके पास ही थी. सरिता देवी का कमरा बीमारी के वक़्त अलग कर दिया गया था डॉक्टर के कहने पे. डॉक्टर ने कहा था के जब तक सरिता देवी ठीक हों उनका ठाकुर से दूर रहना बेहतर होगा. पर सरिता देवी कभी ठीक नही हुई. लंबी बीमारी के बाद चल बसी.
रूपाली सरिता देवी के कमरे के आगे पहुँची और ताला खोलकर अंदर दाखिल हुई. अंदर कमरे में घुसकर ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के यहाँ किसी की मौत हुई थी. अजीब मनहूसियत सी थी कमरे के अंदर. दवाई की महेक कमरे में अब भी मौजूद थी. रूपाली कमरे में आकर थोड़ी देर खड़ी यही सोचती रही के कहाँ से शुरू करे.कमरे में ज़्यादा समान नही था. बस एक अलमारी जिसमें सरिता देवी के कुच्छ कपड़े रखे थे और एक टेबल जिसपे उनकी दवाइयाँ रखी होती थी. रूपाली कमरे में टहलती खिड़की तक पहुँची और खोलकर बाहर देखने लगी. सामने झाड़ियों का एक जंगल उगा हुआ था. कभी यहाँ पर फूलों का एक खूबसूरत बगीचा होता था. रूपाली को फ़ौरन एहसास हुआ के इस जगग पे खड़े होकर पुर बगीचे का नज़ारा उपेर से मिलता था. अगर कोई बगीचे में था तो रात के अंधेरे में भी सॉफ नज़र आता तो अगर भूषण जो कह रहा है वो सच है, तो सरिता देवी ने उस रात उस आदमी को ज़रूर देखा होगा पर किसी से कुच्छ कहा नही.
रूपाली पलटकर फिर कमरे में आई और सरिता देवी के कपड़े उठाकर बिस्तर पर रखने लगी. अलमारी पूरी खाली कर दी पर कुच्छ हाथ ना आया. उसने कमरे में रखे सोफे के गद्दे हटाए पर वहाँ भी कुच्छ ना मिला. बिस्तर की चादर हटाकर एक तरफ कर दी. थोड़ी देर में पूरा कमरा उथल पुथल हो चुका था पर रूपाली के हाथ सिर्फ़ निराशा ही लगी.
तक कर रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी और दरवाज़े की तरफ नज़र की तो उसके होश उड़ गये. वहाँ खड़ा भूषण आँखें फाडे उसे देख रहा था. वो समझ चुका था के रूपाली कमरे की तलाशी ले रही है रूपाली झटके से उठकर खड़ी हो गयी और भूषण की तरफ देखने लगी. उसका दिल काँप उठा था. अगर भूषण ने जाकर ठाकुर को बता दिया तो रूपाली क्या कहेगी के वो क्या कर रही थी और क्यूँ कर रही थी? उसका सारा प्लान बिगड़ जाएगा.
उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और तेज़ कदमो से भूषण की तरफ बढ़ी. भूषण ने उसे पास आता देखा तो दो कदम पिछे हटा. रूपाली एक ही पल में उसके करीब पहुँची और उसे धक्का देकर दीवार से लगा दिया. इससे पहले के भूषण कुच्छ समझ पता रूपाली उससे सॅट गयी और अगले ही पल दोनो के होंठ मिल चुके थी. रूपाली ने भूखी शेरनी की तरफ भूषण के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, अपनी चूचियाँ भूषण की छ्चाटी से चिपका दी और नीचे अपने हाथ से भूषण का लंड पकड़ लिया. उसे सॉफ महसूस हो रहा था के भूषण का पूरा जिस्म काँपने लगा था. आख़िर 70 साल का बुद्धा था बेचारा. रूपाली ने एक हाथ से भूषण का पाजामा खोला और उसे नीचे सरका दिया. अगले ही पल भूषण के लंड उसके हाथ में था जिसने उसे हिलाना शुरू कर दिया. भूषण काँप ज़रूर रहा था पर पिछे हटने की कोई कोशिश नही कर रहा था. उल्टे उसका एक हाथ रूपाली की कमर से घूमकर उसकी गांद पे आ गया था. रूपाली अब भी उसे होंठ चूस रही थी और उसके लंड पे मूठ मार रही थी. वो इस कोशिश में थी के शायद बुढहा लंड खड़ा हो जाए पर ऐसा हुआ नही. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाके भी जब उसे कुच्छ होता नज़र ना आया तो उसने भूषण के लंड से हाथ हटाया और अपनी शलवार का नाडा खोल दिया. सलवार एक पल में सरक कर नीचे जा गिरी.पॅंटी रूपाली ने अंदर पहन नही रखी थी. भूषण ने फिर से हाथ उसकी गांद पे रख दिया पर अब शलवार बीच में नही थी. कमीज़ के अंदर से होता हाथ सीधा रूपाली की नंगी गांद पे आ लगा.