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Adultery HAWELI By The Vampire
#13
Update 9

रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.

उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.

"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?

रूपाली हैरानी से सिगेरेत्टेस की और देखती रही. शायद रूपाली किसी और से ये सिगेरेत्टे मँगवाती थी पर किससे? घर में कौन ऐसा था जो ये ख़तरा उठा सकता था क्यूंकी अगर किसी को पता चल जाता तो कामिनी को तो कोई कुच्छ ना कहता पर उस इंसान का गला ज़रूर कट जाता जो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाके देता था.

रूपाली फिर परेशान होकर कमरे में ही बैठ गयी. ये सच था के कामिनी हमेशा उसे परेशानी में डाल देती थी. उसे देखकर ही रूपाली को लगता था के वो जो दिखती है वैसी है नही. लगता था जैसे पता नही कितने राज़ उसने अपने दिल में दफ़न कर रखे थे. रूपाली ने जब भी उससे बात करने की कोशिश की थी, कामिनी हर बार दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती थी जैसे उससे नज़र मिलाने से घबरा रही हो. अचानक रूपाली को कुच्छ ध्यान आया और उसे एक सवाल का जवाब मिल गया. घर में उसके देवर तेज के अलावा सिगेरेत्टे सिर्फ़ भूषण पिया करता था. बाद में डॉक्टर के मना करने पे छ्चोड़ दी थी पर जब कामिनी यहाँ थी तो वो सिगेरेत्टे रखा करता था अपने पास. और वही एक ऐसा था जो एक बार ठाकुर के गुस्से का सामना कर सकता था क्यूंकी वो इस घर के सबसे पुराना नौकर था. रूपाली ने सोच लिया के वो भूषण से इस बारे में बात करेगी.

सिगेरेत्टेस वापिस बिस्तर के नीचे सरका कर रूपाली उठी और कामिनी की डायरी उठाकर कमरे से बाहर निकली. कमरे पे फिर से उसने लॉक लगाया और डायरी पढ़ती हुई नीचे की और चल दी. डायरी में हर शायरी ऐसी थी जिसे पढ़कर सिर्फ़ लिखने वाले के दर्द का अंदाज़ा लगाया जा सकता था. हर शायरी में मौत का ज़िक्र था. हर पेज में लिखने वाले ने अपनी मर जाने की ख्वाहिश का ज़िक्र किया था. डायरी पढ़ती हुई रूपाली अपने कमरे में पहुँची और डायरी को सामने रखी टेबल की तरफ उच्छाल दिया. डायरी थोड़ी सी खुली और एक पेज उसमें से निकल कर बाहर गिर पड़ा. रूपाली ने झुक कर काग़ज़ का वो टुकड़ा उठाया और पढ़ने लगी

तूने मयखाना निगाहों में च्छूपा रखा है

होशवालो को भी दीवाना बना रखा है

नाज़ कैसे ना करूँ बंदा नवाज़ी पे तेरी

मुझसे नाचीज़ को जब अपना बना रखा है

हर कदम सजदे बशौक किया करता हूँ

मैने काबा तेरे कूचे में बना रखा है

जो भी गम मिलता है सीने से लगा लेता हूँ

मैने हर दर्द को तक़दीर बना रखा है

बख़्श कर आपने एहसास की दौलत मुझको

ये भी क्या कम है के इंसान बना रखा है

आए मेरे परदा नशीन तेरी तवज्जो के निसार

मैने इश्क़ तेरा दुनिया से च्छूपा रखा है

काग़ज़ के टुकड़े पे लिखी ग़ज़ल को पढ़कर रूपाली ने जल्दी से कामिनी की डायरी खोली और पेजस पलटने लगी. कुच्छ बातों पे फ़ौरन उसका ध्यान गया. पहली तो ये के ये काग़ज़ इस डायरी का हिस्सा नही था. सिर्फ़ डायरी के अंदर कुच्छ इस अंदाज़ से रखा गया था के डायरी उठाने पर बाहर निकलकर ना गिरे. कामिनी की डायरी इंपोर्टेड थी जो उसके सबसे छ्होटे भाई ने विदेश से भेजी थी इसलिए पेपर्स की क्वालिटी काफ़ी अच्छी थी जबकि जो काग़ज़ उसमें रखा गया था वो एक सादा पेपर था जो किसी कॉलेज के बच्चे की नोटबुक से फाडा हुआ लगता था. ऐसी नोटबुक जो गाओं में कहीं भी आसानी से मिल सकती थी. दूसरी और सबसे ज़रूरी चीज़ ये थी के ये लाइन्स कामिनी ने नही लिखी थी. हॅंडराइटिंग बिल्कुल अलग थी. रूपाली की हॅंडराइटिंग बहुत सॉफ थी और काग़ज़ पे लिखी हुई लाइन्स को देखके तो लगता था जैसे किसी ने काग़ज़ पे कीड़े मार दिए हों. तीसरी बात ये थी की कामिनी की डायरी में लिखी हुई सब लाइन्स एक लड़की की तरफ से कही गयी शायरी थी और काग़ज़ पे लिखी हुई ग़ज़ल एक लड़के की तरफ से कही गयी थी. चौथी बात ये के डायरी में कामिनी ने जो भी लिखा था सब इंग्लीश में था. लाइन्स तो सब उर्दू या हिन्दी में थी पर स्क्रिप्ट इंग्लीश उसे की थी. रूपाली जानती थी के कामिनी हिन्दी अच्छी तरह से लिख नही सकती थी इसलिए स्क्रिप्ट वो हमेशा इंग्लीश ही उसे करती थी पर काग़ज़ में स्क्रिप्ट भी हिन्दी ही थी.

रूपाली फिर सोच में पड़ गयी. क्या सच में कामिनी का कोई प्रेमी था? शायरी को पढ़कर तो यही लगता था के वो जो कोई भी था, कामिनी को बहुत चाहता था पर इश्क़ मजबूरी ज़ाहिर नही कर सकता था. रूपाली का सर जैसे दर्द की वजह से फटने लगा. वो उठी और डायरी को उठाकर अपनी अलमारी में रख दिया.

खिड़की पे नज़र पड़ी तो बाहर अंधेरा हो चुका था. वो जानती थी के आज रात वो अपने कमरे में नही सोने वाली है. आज की रात तो उसने ठाकुर के कमरे में सोना है, उनकी बीवी की तरह. रात भर अपने ससुर से चुदवा है. यही सोचते हुए वो शीसे के सामने पहुँची और मुस्कुराते हुए जैसे एक नयी दुल्हन की तरह सजकर तैय्यार होने लगी. उसने सोच लिया था के बिस्तर पे ठाकुर से बात करेगी और हवेली के बारे में वो सब मालूम करेगी जो वो जानती नही. जो उसके इस घर में आने से पहले हुआ था.

त्य्यार होकर रूपाली बाहर आई तो भूषण किचन में था.

"पिताजी जाग गये?" रूपाली ने भूषण से पुचछा

"नही अभी सो ही रहे हैं. मैं जगा दूं?" भूषण ने जवाब दिया

"नही मैं ही उठा देती हूँ. आप खाना लगाने की तैय्यार कीजिए" कहते हुए रूपाली किचन से बाहर जाने लगी पर फिर रुक गयी और भूषण की तरफ पलटी

"काका आप सिगेरेत्टे पीते हैं क्या"

भूषण हैरानी से रूपाली की और देखने लगा

"नही अब नही पीता. पहले पीता था पर फिर डॉक्टर ने मना किया तो छ्चोड़ दी. क्यूँ?" उसे रूपाली के बात का जवाब देते हुए पुचछा

"नही ऐसे ही पुच्छ रही थी. घर में और कोई भी सिगेरेत्टे पीता था? मेरे यहाँ आने से पहले?" रूपाली फिर भूषण के पास वापिस आकर खड़ी हो गयी

"सिर्फ़ एक छ्होटे ठाकुर पीते हैं. आपके देवर तेज सिंग" भूषण ने जवाब दिया

"पहले तो घर में इतने नौकर होते थे. कोई नौकर वगेरह?" रूपाली ने फिर पुचछा

"नही बेटी. नौकरों की कहाँ इतनी हिम्मत के हवेली में सिगेरेत्टे या बीड़ी पिएं. अपनी नौकरी सबको प्यारी होती है" भूषण बोला

"पर आप तो पीते थे ना काका. आपको नौकरी प्यारी नही थी?" रूपाली ने सीधे भूषण की आँखों में देखते हुए कहा

भूषण से इस बात का जवाब देते ना बना.

"चलिए छ्चोड़िए. एक बात और बताइए. इस हवेली में आपने आज तक सबसे अजीब क्या देखा है जो आज तक आपकी समझ में नही आया और जिस बात ने आज तक आपको परेशान किया है" रूपाली ने पुचछा

भूषण परेशान होकर इधर उधर देखने लगा. उससे रूपाली के इस सवाल का जवाब भी नही दिया जा रहा था. रूपाली समझ गयी के वो परेशान क्यूँ है और बोल क्यूँ नही रहा. उसका इशारा खुद रूपाली की हरकतों की तरफ था.

"नही काका. जो मैं कर रही हूँ उसके अलावा" रूपाली ने कहा

भूषण ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी और वहीं किचन में दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया

"देखो बेटी. कभी कभी ये ज़रूरी हो जाता है के जो गुज़र चुका है उसे गुज़रने दिया जाए. पुरानी बातों को जानकार क्या करोगी. क्यूँ अचानक गढ़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रही हो तुम?" उसे रूपाली से कहा

"आप मेरी बात का जवाब दीजिए काका. जिन गढ़े मुर्दों की आप बात कर रहे हैं उनमें एक मेरा पति भी है" रूपाली की आवाज़ ठंडी हो चली थी

भूषण ने जब देखा के वो नही मानेगी तो उसने हथ्यार डाल दिए

"ठीक है तो सुनो. मैने इस हवेली में अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी. यहाँ जो होता था एक तरीके से होता था. बड़े ठाकुर की मर्ज़ी से होता था. उनके गुस्से के सामने कोई मुँह नही खोलता था और ना ही किसी की हिम्मत होती थी के उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुच्छ कर सके. पर एक किस्सा ऐसा है जो आज तक मुझे समझ नही आया."

"क्या काका" रूपाली ने कहा

"तुमने हवेली के पिछे वाला हिस्सा देखा है? जहाँ अब पूरा बबूल की झाड़ियों का जंगल उग चुका है?" भूषण ने पुचछा

"हां देखा है. क्यूँ?" रूपाली अब गौर से सुन रही थी

"कभी उस जगह पे फूलों का एक बगीचा होता था. ठाकुर साहब को फूल बहुत पसंद थे. जब तुम आई थी तब भी तो था. याद है?" भूषण ने 10 साल पहले की बात की तरफ इशारा किया

रूपाली ने दिमाग़ पे ज़ोर डाला तो ध्यान आया के भूषण सच कह रहा था. वहाँ एक बगीचा हुआ करता था. बहुत खूबसूरत. वो खुद भी अक्सर वहाँ जाकर बैठा करती थी अकेले. उसके पति के मरने के बाद किसी ने हवेली के उस हिस्से की तरफ ध्यान नही दिया और बगीचा सूख कर झाड़ियों में तब्दील हो गया.

"हां याद है." रूपाली ने कहा

"उस बगीचे में कयि फूल ऐसे थे जो विदेश से मँगवाए गये थे. उनको पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती थी. हर 2 घंटे में पानी डालना होता था तो मैं अक्सर रात को उठकर उस तरफ जाया करता था पानी डालने के लिए." कहकर भूषण चुप हो गया जैसे आगे की बात कहना ना चाह रहा हो

"आगे बोलिए काका" रूपाली ने कहा

भूषण रुक रुक कर फिर बोला, जैसे शब्द ढूँढ रहा हो

"हवेली में रात को कोई आया करता था बेटी. उस बगीचे में मैने कई बार महसूस किया के जैसे मैने एक साया देखा हो जो मेरा आने पे च्छूप गया. मैने काई बार कोशिश की पर मिला नही कोई पर मुझे महसूस होता रहता था के जो कोई भी है, वो मुझे च्छूप कर देख रहा है. मेरे वापिस जाने का इंतेज़ार कर रहा है"

भूषण बोलकर चुप हो गया और रूपाली एक पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही. थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वो बोली

"मैं कुच्छ समझी नही काका"

"हवेली में रात को कोई चुपके से दाखिल होता था. मैं नही जानता के वो कौन था और क्या करने आता था पर फूलों के बगीचे के आस पास ही मुझे ऐसा लगता था के कोई मेरे अलावा भी मौजूद है वहाँ" भूषण ने कहा

"पर कोई हवेली में कैसे आ सकता था? बाहर दरवाज़े पे उन दीनो 3 गार्ड्स होते थे, घर के कुत्ते खुले होते थे और हवेली के चारो तरफ ऊँची दीवार है जिसे चढ़ा नही जा सकता" रूपाली एक साँस में बोल गयी

"मैं नही जनता बेटी के वो कैसे आता था पर आता ज़रूर था. शायद हर रात" भूषण की आवाज़ में यकीन सॉफ झलक रहा था

"आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं काका? अभी तो आपने कहा के आपको बस ऐसा महसूस होता था. आपका भरम भी तो हो सकता है. इतने यकीन क्यूँ है आपको?" रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने जवाब नही दिया. रूपाली ने उसकी आँखों में देखा तो अगले ही पल अपने सवाल का जवाब आप मिल गया

"आपने देखा था उसे है ना काका? कौन था?" रूपाली ने कहा. अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो चली थी. उतावलापन आवाज़ में भर गया था.

"मैं ये नही जनता के वो कौन था बेटी" भूषण ने अपनी बात फिर दोहराई"और ना ही मैने उसे देखा था. मुझे बस उसकी भागती हुई एक झलक मिली थी वो भी पिछे से"

"मैं सुन रही हूं" कहकर रूपाली खामोश हो गयी

"उस रात मैने अपने दिल में ठान रखी थी की इस खेल को ख़तम करके रहूँगा. मैं अपने कमरे में आने के बजाय शाम को ही बगीचे की तरफ चला गया और वहीं च्छूप कर बैठ गया. जाने कब तक मैं यूँ ही बैठा रहा और फिर मुझे धीरे से आहट महसूस हुई. मुझे लगा के आज मैं राज़ से परदा हटा दूँगा पर तभी कुच्छ ऐसा हुआ के मेरा सारा खेल बिगड़ गया"

"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा

"उपेर हवेली के एक कमरे में अचानक किसी ने लाइट ऑन कर दी. मैं हिफ़ाज़त के लिए अपने साथ एक कुत्ते को लिए बैठा था. लाइट ऑन होते ही उस कुत्ते ने भौकना शुरू कर दिया और शायद वो इंसान समझ गया के उसके अलावा भी यहाँ कोई और है. मैं फ़ौरन अपने च्चिपने की जगह से बाहर आया और उस शक्श को भागकर अंधेरे हिस्से की तरफ जाते देखा. बस पिछे से हल्की सी एक झलक मिली जो मेरे साथ खड़े कुत्ते ने भी देख ली. कुत्ता उस साए के पिछे भागा और कुत्ते के पिछे पिछे मैं भी" भूषण ने कहा

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"पर वो साया तो जैसे हवा हो गया था. ना मुझे उसका कोई निशान मिला और ना ही कुत्ते को. मैं 3 घंटे तक पूरी हवेली के आस पास चक्कर लगाता रहा पर कहीं कोई निशान नही मिला. हवेली और दीवार के बीच में काफ़ी फासला है. अब तो जैसे पूरा जंगल उग गया है पर उस वक़्त सॉफ सुथरा हुआ करता था फिर भी ना तो मैं कुच्छ ढूँढ सका और ना ही मेरे साथ के कुत्ते"

भूषण बोलकर चुप हो गया तो रूपाली भी थोड़ी देर तक नही बोली. आख़िर में भूषण ने ही बात आगे बढ़ाई.

इसके बाद एक हफ्ते तक मैने एक दो बार और कोशिश की पर शायद उस आदमी को भी पता लग गया था के उसका आना अब च्छूपा नही है इसलिए उसके बाद वो नही आया. और उसके ठीक एक हफ्ते बाद आपके पति पुरुषोत्तम की हत्या कर दी गयी थी. फिर क्या हुआ ये तो आप जानती ही हो"

रूपाली ये सुनकर हैरत से भूषण की और देखने लगी

"कितने वक़्त तक चला ये किस्सा? मेरा मतलब काब्से आपको ऐसा लगता था के कोई है जो आता जाता है रात को?" रूपाली ने पुचछा

"आपके पति के मरने से एक साल पहले से. एक साल तक तकरीबन हर रात यही किस्सा दोहराया जाता था" भूषण अलमारी से प्लेट्स निकालते हुए बोला

"आपने किसी से कहा क्यूँ नही काका?" रूपाली उसकी कोई मदद नही कर रही थी. वो तो बस खड़ी हुई आँखें फाडे भूषण की बातें सुन रही थी

"मैं क्या कहता बेटी? सब कहते के मेरा भरम है और मज़ाक उड़ाते. आखरी हवेली में रात को घुसने की हिम्मत कर भी कौन सकता था वो भी गार्ड्स और कुत्तो के रहते" भूषण प्लेट्स कपड़े से सॉफ करने लगा

"पर मेरे पति के मरने के बाद तो कह सकते थे. आप जानते हैं के आपने क्या च्छूपा रखा था? हो सकता है मेरे पति की जान उसी आदमी ने ली हो"रूपाली लगभग चीख पड़ी

"मैं अपना मुँह कैसे खोल सकता था बेटी?" भूषण ने नज़र झुका ली " मैं तो एक मामूली नौकर था. किसी से क्या कहता के मैने क्या देखा है जबकि ....... " भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

"जबकि क्या?" रूपाली से भूषण की खामोशी बर्दाश्त नही हो रही थी.

जब भूषण ने जवाब नही दिया तो रूपाली ने फिर वही सवाल दोहराया

"उस रात ये सब मैने अकेले नही देखा था. कोई और भी था जो ये सब देख रहा था" भूषण अटकते हुए बोला

"कौन?" रूपाली ने पुचछा

"आपकी सास" भूषण ने नज़र उठाकर कहा " घर की मालकिन श्रीमती सरिता देवी"
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HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 12:15 PM
HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 12:16 PM
RE: HAWELI By The Vampire : dont comment till posting complete story - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:00 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:08 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:10 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:12 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:14 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:40 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:47 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:48 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 01:50 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 02:27 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:45 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:51 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:52 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:53 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:55 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:58 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 07:59 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 08:01 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by Calypso25 - 05-09-2019, 08:57 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 05-09-2019, 10:34 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 08:47 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 02:02 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 02:04 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 02:05 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 02:07 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-09-2019, 02:10 PM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 07-09-2019, 10:50 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 07-09-2019, 10:51 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 07-09-2019, 10:52 AM
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RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 08-09-2019, 11:24 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by Rumana - 19-09-2019, 07:01 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 20-09-2019, 09:23 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 20-09-2019, 07:49 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 24-09-2019, 01:52 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 19-10-2019, 01:29 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 06-11-2019, 08:27 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by Mafiadon - 07-11-2019, 10:01 AM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 07-11-2019, 11:56 PM
RE: HAWELI By The Vampire - by thepirate18 - 17-02-2020, 09:45 AM



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