05-09-2019, 12:41 PM
Update 6
भूषण का छ्होटा सा लंड रूपाली के मुँह पे पूरा समा गया. उसने ज़िंदगी में पहली बार कोई लंड अपने मुँह में लिया था, वो भी घर के बूढ़े नौकर का. मुँह में एक अजीब सा स्वाद भर गया. नाक में पसीने की बदबू चढ़ गयी. एक पल को रूपाली का दिल किया के मूह से निकाल दे पर उसने ऐसा किया नही और अपना मुँह आगे पिछे करने लगी. उसने महसूस किया के भूषण का लंड अब तक बैठा हुआ था. ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. पर भूषण के जिस्म से उठ रही हरकत को वो सॉफ तौर पर महसूस कर सकती थी. जैसे ही उसने उसका लंड अपने मुँह में लिया था वो काँप उठा था. पता नही मज़े की वजह से या किसी और कारण पर उसका जिस्म थर्रा गया था. और जब रूपाली ने लंड मुँह में आगे पिछे करना शुरू किया तो भूषण के दोनो हाथ पिछे की और हो गये और उसने अपने पिछे पेड़ को पकड़ लिया था. रूपाली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था उसके लंड को अपने मुँह में रख पाना. एक तो बैठा हुआ लंड, वो भी छ्होटा सा और उपेर से रूपाली का पहली बार. पर वो फिर भी लगी रही. उसने लंड एक पल के लिए मुँह से निकाला और अपना सवाल दोहराया.
"वो आदमी कौन था भूषण काका"
भूषण ने एक नज़र उसके चेहरे पे डाली. उसके मुँह से बोल नही फूट रहे पर जैसे तैसे बोला.
"ठाकुर साहब का भतीजा. उनके एकलौते भाई का एकलौता बेटा. ठाकुर साहब के अपने परिवार के सिवा और उनके खानदान में बस एक यही है" भूषण ने जवाब दिया.
रूपाली ने लंड मुँह से निकाला " मुझे नही पता था के ससुर जी का कोई भाई भी है" बोलकर उसने लंड फिर मुँह में ले लिया
"है नही था. बरसो पहले वो और उनकी पत्नी एक कार दुर्घटना में मर गये थे. ठाकुर साहब ने ही उसे पाल पोस्के बड़ा किया था" भूषण बोला
"फिर?" रूपाली ने लंड मुँह में लिए लिए ही कहा.
"फिर वो ज़मीन की देखबाल और घर के बिज़्नेस में हाथ बटाने लगा. ज़्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ ही रहता था और फिर पुरुषोत्तम की मौत के बाद सारा काम वो खुद ही देखने लगा. ठाकुर साहब और आपके देवर तेज तो बस पुरुषोत्तम के हत्यारे को ढूँढने में ही रह गये. काम काज से उनका ध्यान ही हट गया"
"ह्म्म्म्म" रूपाली लंड चूस्ते चूस्ते बोली
"इसका नाम जावर्धन सिंग है. जाई ही घर के सारे बिज़्नेस संभलता रहा और इसी में उसने कब धीरे धीरे सब कुच्छ अपने काबू में कर लिया इसका पता ही नही चला. धीरे धीरे ठाकुर साहब की सब ज़मीन जयदाद उसने अपने नाम पे कर ली और किसी को इस बात की भनक तक नही पड़ी. जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी."
रूपाली के लिए अब लंड चूसना मुश्किल हो रहा था. उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी लंड को मुँह में रखने के लिए क्यूंकी भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था जिस वजह से उसका रूपाली का मुँह दुखने लगा था. और फिर वो लंड चूस भी तो पहली बार रही थी. लंड खड़ा नही था पर रूपाली जानती थी के फिर भी भूषण को मज़ा ज़रूर आ रहा है. जाने कब आखरी बार किसी औरत के करीब गया होगा ये, सोचते हुए रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. अब वो भूषण के बिल्कुल सामने खड़ी थी. भूषण ने उसे सवालिया नज़रों से देखा जैसे कहना चाह रहा हो के लंड चूसना बंद क्यूँ कर दिया.
"फिर क्या हुआ?" रूपाली ने कहा और धीरे से भूषण के और नज़दीक आ गयी. उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिए और ठीक सारी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. भूषण और रूपाली दोनो के जिस्म काँप उठे. रूपाली ने अपने हाथ को थोड़ा सा सख़्त किया और ज़ोर लगाकर भूषण का हाथ अपनी टाँगो के बीच तक दबा दिया. अब उसकी चूत भूषण की मुट्ठी में थी.
"बस अब एक ये हवेली ही है जो अभी भी ठाकुर साहब के पास है और कुच्छ ज़मीन जो कामिनी के पास है. वरना और कुच्छ भी नही" कहते हुए भूष्ण ने धीरे से उसकी चूत को टटोलना शुरू किया. रूपाली के मुँह से आह निकल गयी और वो भूषण से सटकार खड़ी हो गयी. उसकी दोनो छातियाँ भूषण के जिस्म से सिर्फ़ 1 इंच की दूरी पे थी.
"अब वो ये हवेली खरीदना चाहता है. कह रहा था के ठाकुर साहब ये हवेली छ्चोड़कर कहीं और चले जाएँ और वो मुँह माँगी रकम देने को तैय्यार है" भूषण ये कहते हुए सारी के उपेर से रूपाली की टाँगो में ऐसे हाथ चला रहा था जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो के चूत कैसी होती है.रूपाली के टांगे खुद ही खुलती जा रही थी ताकि भूषण आराम से जो चाहे कर सके.
"ठाकुर साहब बेचने को तैय्यार नही हैं. उसी बात पे झगड़ा हो रहा था" भूषण ने कहा और अपने हाथ को रूपाली की चूत पे उपेर से नीचे तक सहलाया तो रूपाली जैसे मस्ती में पागल होने लगी. जाने कितने अरसे बाद उसके अपने हाथ के सिवा किसी और का हाथ उसकी चूत की मालिश कर रहा था. वो भूषण से तकरीबन सटी खड़ी थी. जब वासना का ज़ोर जिस्म में और बढ़ गया तो वो अपने हाथ नीचे ले गयी और धीरे धीरे अपनी सारी को उपेर सरकाना शुरू किया.
"क्या तेज को इस बात का पता है?" रूपाली ने भूषण से पुछा. उसकी सारी खींचकर उसकी जाँघो के उपेर आ चुकी थी.
"तेज को अय्याशि से फ़ुर्सत ही कहाँ है के उसे ये पता होगा"भूषण ने रूपाली की और देखते हुए कहा. दोनो के जिस्म गरम हो चुके थे पर बात बराबर कर रहे थे.भूषण ने रूपाली की टाँगो को अपने हाथ से थोड़ा और खोलना चाहा तो उसका हाथ पे रूपाली की नंगी टाँग महसूस हुई. उसे पता ही ना चला था के कब रूपाली ने अपनी सारी उपेर खींच ली थी.
रूपाली भूषण के इतने करीब खड़ी थी के वो नीचे देख नही सकता था पर हां वो नीचे से सारी उपेर उठाके नंगी हो चुकी है इस बात का एहसास उसे हो गया था. धीरे धीरे भूषण का हाथ रूपाली की नंगी जाँघो पे सरकाने लगा. रूपाली को जैसे रात के अंधेरे में भी सूरज दिखने लगा था. उसने भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी टाँगो के बीच खींचा और ठीक अपनी पॅंटी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. वो जानती थी के भूषण भले एक 70 साल का बुद्धा नौकर ही सही पर मर्द तो है और वो भी गरम हो चुका है इस बात का अंदाज़ा उसे हो गया था. अगले ही पल रूपाली की सोच सही निकली. भूषण ने उसकी पॅंटी को एक तरफ सरकया और हाथ सीधा उसकी नंगी चूत पे रख दिया.
रूपाली की साँस रुक गयी. उसे लगा जैसे वो अभी मरने वाली है. इतना मज़ा उसे ज़िंदगी में कभी नही आया था. भूषण उसकी नंगी चूत पे हाथ ऐसे रगड़ रहा था जैसे चिंगारी उठाने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली अब भी उसे सटके खड़ी थी इसलिए वो देख अब भी कुच्छ नही सकता था जिसकी कमी वो अपने हाथ से पूरी कर रहा था. जैसे अपने हाथ से उसकी चूत देखना चाह रहा हो, अंदाज़ा लगाना चाह रहा हो. रूपाली ने अपनी बंद आँखें खोली और सीधे भूषण को देखा. वो उसकी साँस के साथ उठती और गिरती चुचियों को देख रहा था. रूपाली जानती थी के वो नौकर है और आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रहा है. उसने भूषण का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी एक छाती पे रखके दबा दिया. इस के साथ ही जैसे आसमान फॅट पड़ा. हाथ छाति पे रखते ही भूषण ने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में घुसा दी और छाति को ऐसे कासके पकड़ लिया जैसे दबाके कुच्छ निकालने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली का पूरा बदन काँप उठा. उसकी साँस रुक गयी. दिमाग़ में बम फॅट पड़े और चूत से नदी सी बह निकली. उसने एक हाथ से कस्के भूषण का लंड पकड़ लिया और दूसरे हाथ से भूषण के चूत पे रखे हाथ को दबा दिया. और इसके साथ ही उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो समझ गयी के वो झाड़ चुकी है.
रूपाली ने अपनी सारी को नीचे गिराया और भूषण से दूर हटके खड़ी हो गयी. उसने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया और अपनी साँस पे काबू करने लगी. उसने देखा भी नही के भूषण क्या कर रहा है. जब पलटी तो वो अपने कमरे की तरफ जा रहा था.
"भूषण काका." उसकी आवाज़ सुनकर भूषण पलटा
"मेरे पति को किसने मारा? क्या जाई ने?" भूषण ने अपने दोनो कंधे झटकाए जैसे कहना चाह रहा हो के पता नही और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
सुबह रूपाली देर तक सोती रही. आज भूषण ने भी उसे आकर नही जगाया. शायद कल रात की बात पे हिचकिचा रहा है.सोचते हुए रूपाली उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गयी.
नाहकार जब वो नीचे उतरी तो ठाकुर शौर्या सिंग फिर कहीं बाहर गये हुए थे. वो किचन में पहुँची तो भूषण दोपहर का खाना बनाने की तैय्यरी कर रहा था.
"आपने आज मुझे जगाया नही?" उसने भूषण से पुचछा पर भूषण ने जवाब ना दिया. जब रूपाली ने देखा के भूषण उसकी तरफ नज़र नही उठा रहा है तो वो बाहर आकर सोफे पे बैठ गयी.
थोड़ी देर बाद भूषण किचन से बाहर आया.
"बहूरानी आपसे एक बात कहनी थी."उसने रूपाली की और देखते हुए कहा.
"मैं जानती हूँ आप क्या कहना चाह रहे हैं काका. कल रात........" रूपाली बोलना ही चाह रही थी के भूषण ने उसकी बात को काट दिया
"मैं समझ सकता हूँ. आप जवान हैं और 10 साल से इस हवेली में क़ैद हैं. मुझसे आपसे कोई शिकायत नही बहूरानी. मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा था के अगर किसी को इस बात की भनक भी पड़ गयी तो...."भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
"किसी को कुच्छ पता नही चलेगा काका. और वैसे भी इस हवेली में अब आता जाता कौन है" रूपाली ने जैसे मज़ाक सा बनाते हुए हासकर कहा.
भूषण की समझ में नही आया के वो क्या कहे. वो थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर वापिस किचन में जाने के लिए मुड़ा.
"भूषण काका" रूपाली ने कहा. भूसान फिर पलटा.
"आपने आखरी बार एक किसी औरत को नंगी कब देखा था" रूपाली ने सीधा उसकी आँखो में देखते हुए पुचछा.
भूषण हड़बड़ा गया. इस सीधे हमले के लिए वो तैय्यार नही था. इस तरह का सवाल और वो भी हवेली की मालकिन से. उसके मुँह से बोल ना फूटा.
"बताइए काका. आखरी बार किसी औरत के साथ कब थे आप. कल रात से पहले" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया.
"मेरी बीवी के गुज़रने से पहले." भूषण ने धीमी आवाज़ में कहा" कोई 25 साल पहले"
"25 साल?" रूपाली ने हैरत से कहा"आपका कभी दिल नही किया?"
भूषण कुच्छ ना बोला तो उसने सवाल फिर दोहराया.
"दिल करता भी तो क्या करता बहूरानी? कहाँ जाता?" भूषण ने अपनी नज़र नीचे झुका रखी थी. जैसे शरम से गढ़ा जा रहा हो.
"अब दिल करता है?" रूपाली ने फिर सीधा सवाल दागा.
भूषण कुच्छ ना बोला. रूपाली ने सवाल फिर पुचछा पर भूषण से जवाब देते ना बना.
रूपाली उठकर फिर भूषण के करीब आ गयी. उसने भूषना का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लाकर बिठाया.
"मुझे आपकी मदद चाहिए काका" भूषण अब उसकी तरफ ही देख रहा था.
"मुझे अपनी पति के हत्यारे का पता लगाना है. मैं आपकी मदद चाहती हूँ. बदले में आप जो कहें मैं करने को तैय्यार हूँ" रूपाली जैसे एक सौदा कर रही थी.
"पर कैसे?"भूषण की कुच्छ समझ नही आया.
"वो आप मुझपे छ्चोड़ दीजिए. बस आपको मेरे साथ रहना होगा. जो मैं कहूँ वो करना होगा."
भूषण की अब भी कुच्छ समझ में नही आ रहा था.
"ज़्यादा सोचिए मत काका. बस आप मेरे कहे अनुसार चलते रहिए. मेरी खातिर. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ"रूपाली की आँख में पानी भर आया"मैं अब और इस हवेली में एक मूर्ति बनकर नही रह सकती"
भूषण ने फ़ौरन उसके सामने हाथ जोड़ लिए
"आप जैसा कहें मैं वैसा ही करूँगा मालकिन. आप रोइए मत. आपको इस हालत में देखकर मुझे भी बुरा लगता है. आपको जो ठीक लगे मुझे बता दीजिएगा और मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा."
रूपाली धीरे से मुस्कुराइ. दोनो थोड़ी देर ऐसे ही खामोश बैठे रहे.
"मैं खाना बना लेता हूँ" कहते हुए भूषण उठा और किचन की तरफ बढ़ चला.
"पिताजी कहाँ हैं?"रूपाली ने पुचछा
"वो तो सुबह से ही बाहर गये हुए हैं."भूषण ने कहा और फिर कुच्छ सोचकर फिर रूपाली से पुचछा
"कल रात ठाकुर साहब के कमरे में आप और ठाकुर साहब दोनो....."भूषण हिचकिचा कर बोला
"नही वो नशे में सो रहे थे. उन्हें कुच्छ पता नही था."रूपाली ने कहा" सब बता दूँगी काका. आपको सब समझ आ जाएगा धीरे धीरे"
भूषण ने अपना सर हिलाकर उसकी हां में हां मिलाई और किचन की तरफ बढ़ गया. दरवाज़े पर पहुँच कर वो फिर पलटा और रूपाली से कहा
"एक बात कौन बहूरानी?"
रूपाली ने सवालिया नज़र से भूषण की तरफ देखा.
"आपके पति के खून का राज़ इसी हवेली में कहीं है. इन दीवारो में क़ैद है कहीं जो 10 साल से नज़र नही आया. इस वीरान पड़ी हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपकी पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है. अगर आप अपने पति की हत्या का राज़ मालूम करना चाहती हो तो इस हवेली से पुच्छना होगा. यहीं कहीं दफ़न है सारी कहानी" कहते हुए भूषण फिर किचन में चला गया
भूषण के जाने के बाद रूपाली थोड़ी देर वहीं बड़े कमरे में बैठी रही और फिर उठकर अपने कमरे में आ गयी.भूषण के कहे शब्द उसके कान में गूँज रहे थे. "इस हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपके पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है" उसे ये बात हमेशा से महसूस होती थी के काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो वो जानती नही और उसने कभी पता करने की कोशिश भी नही की. उसकी दुनिया तो सिर्फ़ उसके कमरे में बसे मंदिर तक थी. शादी से पहले भी, शादी के बाद भी और विधवा हो जाने के बाद भी. उसे अपने उपेर हैरत हो रही थी के कैसे उसने 10 साल गुज़र दिए, खामोशी से. शायद सामने रखी मूर्ति को पूजते पूजते वो खुद भी एक मूरत ही हो गयी थी. खामोश, चुप चाप रहने वाली एक गुड़िया जिसे किसी चीज़ से कोई मतलब नही था. जिसे जो कह दिया जाता वो कर देती. उसे हैरत थी के कैसे उसने 10 साल से अपने पति के बारे में जानने की कोई कोशिश नही की. कैसे सब चुप हो गये थे कुच्छ अरसे के बाद और वो भी उन चुप लोगों में से एक थी.खामोशी से सब पुरुषोत्तम को भूल गये थे. वो सिर्फ़ सामने लगी एक तस्वीर में सिमट गया था और इसमें सबसे ज़्यादा कसूर शायद उसकी अपनी बीवी का था जिसने ना उसके जीते जी कभी उसे कोई सुख दिया और ना ही उसके मरने के बाद उसकी बीवी होने का फ़र्ज़ अदा किया.
पर अब ऐसा नही होगा, सोचते हुए रूपाली उठी और फिर शीशे के सामने जा खड़ी हुई.
"मैं अब अपनी ज़िंदगी इस तरह से बेकार नही होने दूँगी"जैसे वो अपने आप से ही कह रही हो. वो अब भी सफेद सारी में ही थी.
"वक़्त आ गया है के इसे हमेशा के लिए अपने जिस्म से हटाया जाए" कहते हुए रूपाली ने अपनी सारी उतरनी शुरू की और सामने रखी उसकी ससुर की लाल रंग की सारी की तरफ देखा.
अचानक उसे वो शाम याद गयी जब वो आखरी बार अपने पति से मिली थी. उसे चोदने के लिए बेताब पुरुषोत्तम अपनी माँ की आवाज़ सुनकर ऐसे ही रह गया था. सामने चूत खोले हुए झुकी खड़ी बीवी को उसी हालत में छ्चोड़कर उसे बाहर जाना पड़ा था.
रूपाली की आँखों के सामने वो गुज़री शाम फिर से घूमने लगी. सावित्री देवी यानी उसकी मर चुकी सास को मंदिर जाना था जिसके लिए उन्होने पुरुषोत्तम को बुलाया. उस वक़्त शाम के लगभग 5 बज रहे थे. पुरुषोत्तम तैय्यार होकर नीचे पहुँचा और अपनी माँ को कार में बैठाकर मंदिर की तरफ निकल गया. उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़कर कहीं काम से जाना था और आते हुए फिर मंदिर से सावित्री देवी को लेते हुए आना था. उनके जाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. पुरुषोत्तम के जाने के कोई 4 घंटे बाद नीचे उठा शोर सुनकर वो भागती हुई नीचे आई. उस वक़्त हवेली में रौनक हुआ करती थी. शौर्या सिंग का पूरा खानदान यहीं था. घर में नौकरों की लाइन हुआ करती थी इसलिए शोर भी काफ़ी तेज़ी से उठा था. रूपाली भागती हुई नीचे आई तो बड़े रूम का नज़ारा देखकर उसकी आँखें खुली रह गयी. पुरुषोत्तम सिंग खून से सना हुआ सोफे पे पड़ा था. रूपाली को उस वक़्त उस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था के वो मर चुका है. उसे लगा के शायद घायल है. और ना ही शायद कोई और ये बात मान लेने को तैय्यार था के पुरुषोत्तम के जिस्म में अब जान बाकी नही रही. ठाकुर शौर्या सिंग अपने बेटे की लाश के पास खड़े जाने नौकरों से क्या कुच्छ नही लाने को कह रहे थे. कभी पानी, तो कभी कोई दवाई. तेज डॉक्टर को लेने के लिए पहले से ही जा चुका था. कामिनी अपने भाई के चेहरे पे हल्के हल्के थप्पड़ मार रही थी, जैसे एक मुर्दे को जगाने की कोशिश कर रही हो. वो नज़ारा देखकर रूपाली तो जैसे वहीं खड़ी ही रह गयी थी और अगले ही पल चक्कर खाकर गिर पड़ी. फिर क्या हुआ उसे कुच्छ याद नही.
जब होश आया तो हवेली में मरघाट सन्नाटा था. हर तरफ खामोशी थी. उसे याद नही किसने पर किसी ने धीरे से उसके कान में कहा था के पुरुषोत्तम अब नही रहा. उसके बाद कुच्छ दिन तक क्या हुआ उसका रूपाली को कोई अंदाज़ा नही रहा. वो होश में होते भी होश में नही थी. कब पुरुषोत्तम का संस्कार किया गया, कब उसे सफेद सारी में लपेट दिया गया रूपाली कोई कुच्छ याद नही था. वो जैसे एक सपने में थी और उसी सपने में उसने अगले 10 साल गुज़र दिए. पति की मौत के बाद जैसे उसे किसी से कोई सरोकार ना रहा.वो और भगवान में विलीन हो गयी. घंटो मूर्ति के सामने बैठी पूजा करती रहती. उसके अपने मायके से उसके माँ बाप उसे मिलने आए, उसका एकलौता भाई आया, उसे साथ ले जाने के लिए पर वो कहीं नही गयी. जैसे ये हवेली एक ही जगह पे खड़ी थी वैसे भी रूपाली भी वहीं अपने कमरे में ही क़ैद रही. 10 साल तक.
रूपाली ने अपना सर झटका और ये सारे ख्याल दिमाग़ से हटाए.आज 10 साल बाद उसकी नींद खुली थी. पूरी तरह. और अब वो सब कुच्छ अपने हाथ में कर लेना चाहती थी. अपने पति के हत्यारे को अंजाम तक पहुँचना चाहती थी, इस हवेली की खुशी को लौटना चाहती थी. इस हवेली में फिर से वही रौनक देखना चाहती थी.
रूपाली ने शीशे में अपने आपको देखा. वो सफेद सारी उतारकर एक बार फिर नंगी खड़ी अपना जिस्म देख रही थी. पिच्छले दो दिन में कितना कुच्छ बदल गया था. उसने अपने आपको इतनी बार नंगी कभी नही देखा था जितना इन 2 दिन में देख लिया था. टांगे थोड़ी फेलाकर उसने अपनी चूत पे एक नज़र डाली जहाँ भूषण की उंगलियाँ कल रात घुसी हुई थी. रूपाली पलटी और लाल सारी उठाकर पहेन्ने लगी.
उसके पति की मौत से जुड़े कई सवाल थे जो उसे 2 दिन से परेशान कर रहे थे. हवेली जिस जगह पर थी वो गाओं से काफ़ी बाहर थी. मंदिर गाओं के दूसरी तरफ था. फिर भी कार से मंदिर जाने तक 20 मिनट से ज़्यादा समय नही लगता था. उसके सिवा पुरुषोत्तम को कहाँ जाना था ये बात कोई नही जानता था जबकि वो हमेशा घर में बताके जाता था के उसने कहाँ जाना है. पर उस शाम इस बात का उसने किसी से कोई ज़िक्र नही किया था. उसने कहीं जाना था ये उसने सावित्री देवी को मंदिर छ्चोड़ने के बाद उनसे कही थी पर तब भी उन्हें नही बताया था के वो कहाँ जा रहा है. उसकी लाश हवेली से मुश्किल से 10 कदम की दूरी पे मिली थी. वो सावित्री देवी को छ्चोड़कर वापिस हवेली की तरफ क्यूँ आया था. उसपर 2 गोलियाँ चलाई गयी और लाश रात के 9 बजे के आस पास मिली थी. लाश जिस हालत में मिली थी उसे देखकर यही लगता था के उसे गोली मुस्किल से 15 मिनट पहले मारी गयी थी मतलब के उस रात ढल चुकी थी तो रात के सन्नाटे में हवेली में किसी ने गोली की आवाज़ क्यूँ नही सुनी. वो हवेली से शाम के 5 बजे निकला था, मतलब के 5.30 तक उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़ दिया होगा. तो फिर अगले 3 घंटे तक वो कहाँ था? उसकी लाश उसकी बहेन कामिनी को मिली थी जो उस रात गाओं में अपनी किसी सहेली के घर से आ रही थी. रास्ते में पुरुषोत्तम की गाड़ी खड़ी देखकर उसने गाड़ी रोकी तो गाड़ी में कोई नही था. खून के निशान का पिच्छा किया तो भाई की लाश मिली. पर उससे 10 मिनट पहले ही शौर्या सिंग हवेली में आए थे. तो उस वक़्त गाड़ी वहाँ क्यूँ नही थी? हवेली से गाओं तक का पूरा रास्ते पर ठाकुर ने लॅंप पोस्ट्स लगवा रखे थे और तकरीबन उसी वक़्त घर के सारे नौकर वापिस गाओं जाते थे फिर उनमें से किसी ने कुच्छ होते क्यूँ नही देखा? पुरुषोत्तम के 2 आदमी हमेशा उसके साथ होते थे, हथ्यार के साथ पर उस शाम वो अकेला क्यूँ गया? कामिनी भी उस शाम अकेली गयी थी. हिफ़ाज़त के लिए रखे गये हत्यारबंद आदमी उस शाम कहाँ थे? सोच सोचकर रूपाली का सर फटने लगा तो उसे भूषण की कही बात फिर याद आने लगी " आपके पति की हत्या का राज़ इसी हवेली में बंद है. दफ़न है यहीं कहीं"
रूपाली लाल सारी पेहेन्के नीचे आई तो भूषण खाना बनाकर बड़े घर की सफाई में लगा हुआ था. रूपाली को देखा तो देखता ही रह गया. 10 साल से जिसे सफेद सारी में देखा था उसे लाल सारी में एक पल के लिए तो पहचान ही नही पाया.
भूषण का छ्होटा सा लंड रूपाली के मुँह पे पूरा समा गया. उसने ज़िंदगी में पहली बार कोई लंड अपने मुँह में लिया था, वो भी घर के बूढ़े नौकर का. मुँह में एक अजीब सा स्वाद भर गया. नाक में पसीने की बदबू चढ़ गयी. एक पल को रूपाली का दिल किया के मूह से निकाल दे पर उसने ऐसा किया नही और अपना मुँह आगे पिछे करने लगी. उसने महसूस किया के भूषण का लंड अब तक बैठा हुआ था. ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. पर भूषण के जिस्म से उठ रही हरकत को वो सॉफ तौर पर महसूस कर सकती थी. जैसे ही उसने उसका लंड अपने मुँह में लिया था वो काँप उठा था. पता नही मज़े की वजह से या किसी और कारण पर उसका जिस्म थर्रा गया था. और जब रूपाली ने लंड मुँह में आगे पिछे करना शुरू किया तो भूषण के दोनो हाथ पिछे की और हो गये और उसने अपने पिछे पेड़ को पकड़ लिया था. रूपाली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था उसके लंड को अपने मुँह में रख पाना. एक तो बैठा हुआ लंड, वो भी छ्होटा सा और उपेर से रूपाली का पहली बार. पर वो फिर भी लगी रही. उसने लंड एक पल के लिए मुँह से निकाला और अपना सवाल दोहराया.
"वो आदमी कौन था भूषण काका"
भूषण ने एक नज़र उसके चेहरे पे डाली. उसके मुँह से बोल नही फूट रहे पर जैसे तैसे बोला.
"ठाकुर साहब का भतीजा. उनके एकलौते भाई का एकलौता बेटा. ठाकुर साहब के अपने परिवार के सिवा और उनके खानदान में बस एक यही है" भूषण ने जवाब दिया.
रूपाली ने लंड मुँह से निकाला " मुझे नही पता था के ससुर जी का कोई भाई भी है" बोलकर उसने लंड फिर मुँह में ले लिया
"है नही था. बरसो पहले वो और उनकी पत्नी एक कार दुर्घटना में मर गये थे. ठाकुर साहब ने ही उसे पाल पोस्के बड़ा किया था" भूषण बोला
"फिर?" रूपाली ने लंड मुँह में लिए लिए ही कहा.
"फिर वो ज़मीन की देखबाल और घर के बिज़्नेस में हाथ बटाने लगा. ज़्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ ही रहता था और फिर पुरुषोत्तम की मौत के बाद सारा काम वो खुद ही देखने लगा. ठाकुर साहब और आपके देवर तेज तो बस पुरुषोत्तम के हत्यारे को ढूँढने में ही रह गये. काम काज से उनका ध्यान ही हट गया"
"ह्म्म्म्म" रूपाली लंड चूस्ते चूस्ते बोली
"इसका नाम जावर्धन सिंग है. जाई ही घर के सारे बिज़्नेस संभलता रहा और इसी में उसने कब धीरे धीरे सब कुच्छ अपने काबू में कर लिया इसका पता ही नही चला. धीरे धीरे ठाकुर साहब की सब ज़मीन जयदाद उसने अपने नाम पे कर ली और किसी को इस बात की भनक तक नही पड़ी. जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी."
रूपाली के लिए अब लंड चूसना मुश्किल हो रहा था. उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी लंड को मुँह में रखने के लिए क्यूंकी भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था जिस वजह से उसका रूपाली का मुँह दुखने लगा था. और फिर वो लंड चूस भी तो पहली बार रही थी. लंड खड़ा नही था पर रूपाली जानती थी के फिर भी भूषण को मज़ा ज़रूर आ रहा है. जाने कब आखरी बार किसी औरत के करीब गया होगा ये, सोचते हुए रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. अब वो भूषण के बिल्कुल सामने खड़ी थी. भूषण ने उसे सवालिया नज़रों से देखा जैसे कहना चाह रहा हो के लंड चूसना बंद क्यूँ कर दिया.
"फिर क्या हुआ?" रूपाली ने कहा और धीरे से भूषण के और नज़दीक आ गयी. उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिए और ठीक सारी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. भूषण और रूपाली दोनो के जिस्म काँप उठे. रूपाली ने अपने हाथ को थोड़ा सा सख़्त किया और ज़ोर लगाकर भूषण का हाथ अपनी टाँगो के बीच तक दबा दिया. अब उसकी चूत भूषण की मुट्ठी में थी.
"बस अब एक ये हवेली ही है जो अभी भी ठाकुर साहब के पास है और कुच्छ ज़मीन जो कामिनी के पास है. वरना और कुच्छ भी नही" कहते हुए भूष्ण ने धीरे से उसकी चूत को टटोलना शुरू किया. रूपाली के मुँह से आह निकल गयी और वो भूषण से सटकार खड़ी हो गयी. उसकी दोनो छातियाँ भूषण के जिस्म से सिर्फ़ 1 इंच की दूरी पे थी.
"अब वो ये हवेली खरीदना चाहता है. कह रहा था के ठाकुर साहब ये हवेली छ्चोड़कर कहीं और चले जाएँ और वो मुँह माँगी रकम देने को तैय्यार है" भूषण ये कहते हुए सारी के उपेर से रूपाली की टाँगो में ऐसे हाथ चला रहा था जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो के चूत कैसी होती है.रूपाली के टांगे खुद ही खुलती जा रही थी ताकि भूषण आराम से जो चाहे कर सके.
"ठाकुर साहब बेचने को तैय्यार नही हैं. उसी बात पे झगड़ा हो रहा था" भूषण ने कहा और अपने हाथ को रूपाली की चूत पे उपेर से नीचे तक सहलाया तो रूपाली जैसे मस्ती में पागल होने लगी. जाने कितने अरसे बाद उसके अपने हाथ के सिवा किसी और का हाथ उसकी चूत की मालिश कर रहा था. वो भूषण से तकरीबन सटी खड़ी थी. जब वासना का ज़ोर जिस्म में और बढ़ गया तो वो अपने हाथ नीचे ले गयी और धीरे धीरे अपनी सारी को उपेर सरकाना शुरू किया.
"क्या तेज को इस बात का पता है?" रूपाली ने भूषण से पुछा. उसकी सारी खींचकर उसकी जाँघो के उपेर आ चुकी थी.
"तेज को अय्याशि से फ़ुर्सत ही कहाँ है के उसे ये पता होगा"भूषण ने रूपाली की और देखते हुए कहा. दोनो के जिस्म गरम हो चुके थे पर बात बराबर कर रहे थे.भूषण ने रूपाली की टाँगो को अपने हाथ से थोड़ा और खोलना चाहा तो उसका हाथ पे रूपाली की नंगी टाँग महसूस हुई. उसे पता ही ना चला था के कब रूपाली ने अपनी सारी उपेर खींच ली थी.
रूपाली भूषण के इतने करीब खड़ी थी के वो नीचे देख नही सकता था पर हां वो नीचे से सारी उपेर उठाके नंगी हो चुकी है इस बात का एहसास उसे हो गया था. धीरे धीरे भूषण का हाथ रूपाली की नंगी जाँघो पे सरकाने लगा. रूपाली को जैसे रात के अंधेरे में भी सूरज दिखने लगा था. उसने भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी टाँगो के बीच खींचा और ठीक अपनी पॅंटी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. वो जानती थी के भूषण भले एक 70 साल का बुद्धा नौकर ही सही पर मर्द तो है और वो भी गरम हो चुका है इस बात का अंदाज़ा उसे हो गया था. अगले ही पल रूपाली की सोच सही निकली. भूषण ने उसकी पॅंटी को एक तरफ सरकया और हाथ सीधा उसकी नंगी चूत पे रख दिया.
रूपाली की साँस रुक गयी. उसे लगा जैसे वो अभी मरने वाली है. इतना मज़ा उसे ज़िंदगी में कभी नही आया था. भूषण उसकी नंगी चूत पे हाथ ऐसे रगड़ रहा था जैसे चिंगारी उठाने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली अब भी उसे सटके खड़ी थी इसलिए वो देख अब भी कुच्छ नही सकता था जिसकी कमी वो अपने हाथ से पूरी कर रहा था. जैसे अपने हाथ से उसकी चूत देखना चाह रहा हो, अंदाज़ा लगाना चाह रहा हो. रूपाली ने अपनी बंद आँखें खोली और सीधे भूषण को देखा. वो उसकी साँस के साथ उठती और गिरती चुचियों को देख रहा था. रूपाली जानती थी के वो नौकर है और आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रहा है. उसने भूषण का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी एक छाती पे रखके दबा दिया. इस के साथ ही जैसे आसमान फॅट पड़ा. हाथ छाति पे रखते ही भूषण ने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में घुसा दी और छाति को ऐसे कासके पकड़ लिया जैसे दबाके कुच्छ निकालने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली का पूरा बदन काँप उठा. उसकी साँस रुक गयी. दिमाग़ में बम फॅट पड़े और चूत से नदी सी बह निकली. उसने एक हाथ से कस्के भूषण का लंड पकड़ लिया और दूसरे हाथ से भूषण के चूत पे रखे हाथ को दबा दिया. और इसके साथ ही उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो समझ गयी के वो झाड़ चुकी है.
रूपाली ने अपनी सारी को नीचे गिराया और भूषण से दूर हटके खड़ी हो गयी. उसने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया और अपनी साँस पे काबू करने लगी. उसने देखा भी नही के भूषण क्या कर रहा है. जब पलटी तो वो अपने कमरे की तरफ जा रहा था.
"भूषण काका." उसकी आवाज़ सुनकर भूषण पलटा
"मेरे पति को किसने मारा? क्या जाई ने?" भूषण ने अपने दोनो कंधे झटकाए जैसे कहना चाह रहा हो के पता नही और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
सुबह रूपाली देर तक सोती रही. आज भूषण ने भी उसे आकर नही जगाया. शायद कल रात की बात पे हिचकिचा रहा है.सोचते हुए रूपाली उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गयी.
नाहकार जब वो नीचे उतरी तो ठाकुर शौर्या सिंग फिर कहीं बाहर गये हुए थे. वो किचन में पहुँची तो भूषण दोपहर का खाना बनाने की तैय्यरी कर रहा था.
"आपने आज मुझे जगाया नही?" उसने भूषण से पुचछा पर भूषण ने जवाब ना दिया. जब रूपाली ने देखा के भूषण उसकी तरफ नज़र नही उठा रहा है तो वो बाहर आकर सोफे पे बैठ गयी.
थोड़ी देर बाद भूषण किचन से बाहर आया.
"बहूरानी आपसे एक बात कहनी थी."उसने रूपाली की और देखते हुए कहा.
"मैं जानती हूँ आप क्या कहना चाह रहे हैं काका. कल रात........" रूपाली बोलना ही चाह रही थी के भूषण ने उसकी बात को काट दिया
"मैं समझ सकता हूँ. आप जवान हैं और 10 साल से इस हवेली में क़ैद हैं. मुझसे आपसे कोई शिकायत नही बहूरानी. मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा था के अगर किसी को इस बात की भनक भी पड़ गयी तो...."भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
"किसी को कुच्छ पता नही चलेगा काका. और वैसे भी इस हवेली में अब आता जाता कौन है" रूपाली ने जैसे मज़ाक सा बनाते हुए हासकर कहा.
भूषण की समझ में नही आया के वो क्या कहे. वो थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर वापिस किचन में जाने के लिए मुड़ा.
"भूषण काका" रूपाली ने कहा. भूसान फिर पलटा.
"आपने आखरी बार एक किसी औरत को नंगी कब देखा था" रूपाली ने सीधा उसकी आँखो में देखते हुए पुचछा.
भूषण हड़बड़ा गया. इस सीधे हमले के लिए वो तैय्यार नही था. इस तरह का सवाल और वो भी हवेली की मालकिन से. उसके मुँह से बोल ना फूटा.
"बताइए काका. आखरी बार किसी औरत के साथ कब थे आप. कल रात से पहले" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया.
"मेरी बीवी के गुज़रने से पहले." भूषण ने धीमी आवाज़ में कहा" कोई 25 साल पहले"
"25 साल?" रूपाली ने हैरत से कहा"आपका कभी दिल नही किया?"
भूषण कुच्छ ना बोला तो उसने सवाल फिर दोहराया.
"दिल करता भी तो क्या करता बहूरानी? कहाँ जाता?" भूषण ने अपनी नज़र नीचे झुका रखी थी. जैसे शरम से गढ़ा जा रहा हो.
"अब दिल करता है?" रूपाली ने फिर सीधा सवाल दागा.
भूषण कुच्छ ना बोला. रूपाली ने सवाल फिर पुचछा पर भूषण से जवाब देते ना बना.
रूपाली उठकर फिर भूषण के करीब आ गयी. उसने भूषना का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लाकर बिठाया.
"मुझे आपकी मदद चाहिए काका" भूषण अब उसकी तरफ ही देख रहा था.
"मुझे अपनी पति के हत्यारे का पता लगाना है. मैं आपकी मदद चाहती हूँ. बदले में आप जो कहें मैं करने को तैय्यार हूँ" रूपाली जैसे एक सौदा कर रही थी.
"पर कैसे?"भूषण की कुच्छ समझ नही आया.
"वो आप मुझपे छ्चोड़ दीजिए. बस आपको मेरे साथ रहना होगा. जो मैं कहूँ वो करना होगा."
भूषण की अब भी कुच्छ समझ में नही आ रहा था.
"ज़्यादा सोचिए मत काका. बस आप मेरे कहे अनुसार चलते रहिए. मेरी खातिर. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ"रूपाली की आँख में पानी भर आया"मैं अब और इस हवेली में एक मूर्ति बनकर नही रह सकती"
भूषण ने फ़ौरन उसके सामने हाथ जोड़ लिए
"आप जैसा कहें मैं वैसा ही करूँगा मालकिन. आप रोइए मत. आपको इस हालत में देखकर मुझे भी बुरा लगता है. आपको जो ठीक लगे मुझे बता दीजिएगा और मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा."
रूपाली धीरे से मुस्कुराइ. दोनो थोड़ी देर ऐसे ही खामोश बैठे रहे.
"मैं खाना बना लेता हूँ" कहते हुए भूषण उठा और किचन की तरफ बढ़ चला.
"पिताजी कहाँ हैं?"रूपाली ने पुचछा
"वो तो सुबह से ही बाहर गये हुए हैं."भूषण ने कहा और फिर कुच्छ सोचकर फिर रूपाली से पुचछा
"कल रात ठाकुर साहब के कमरे में आप और ठाकुर साहब दोनो....."भूषण हिचकिचा कर बोला
"नही वो नशे में सो रहे थे. उन्हें कुच्छ पता नही था."रूपाली ने कहा" सब बता दूँगी काका. आपको सब समझ आ जाएगा धीरे धीरे"
भूषण ने अपना सर हिलाकर उसकी हां में हां मिलाई और किचन की तरफ बढ़ गया. दरवाज़े पर पहुँच कर वो फिर पलटा और रूपाली से कहा
"एक बात कौन बहूरानी?"
रूपाली ने सवालिया नज़र से भूषण की तरफ देखा.
"आपके पति के खून का राज़ इसी हवेली में कहीं है. इन दीवारो में क़ैद है कहीं जो 10 साल से नज़र नही आया. इस वीरान पड़ी हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपकी पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है. अगर आप अपने पति की हत्या का राज़ मालूम करना चाहती हो तो इस हवेली से पुच्छना होगा. यहीं कहीं दफ़न है सारी कहानी" कहते हुए भूषण फिर किचन में चला गया
भूषण के जाने के बाद रूपाली थोड़ी देर वहीं बड़े कमरे में बैठी रही और फिर उठकर अपने कमरे में आ गयी.भूषण के कहे शब्द उसके कान में गूँज रहे थे. "इस हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपके पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है" उसे ये बात हमेशा से महसूस होती थी के काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो वो जानती नही और उसने कभी पता करने की कोशिश भी नही की. उसकी दुनिया तो सिर्फ़ उसके कमरे में बसे मंदिर तक थी. शादी से पहले भी, शादी के बाद भी और विधवा हो जाने के बाद भी. उसे अपने उपेर हैरत हो रही थी के कैसे उसने 10 साल गुज़र दिए, खामोशी से. शायद सामने रखी मूर्ति को पूजते पूजते वो खुद भी एक मूरत ही हो गयी थी. खामोश, चुप चाप रहने वाली एक गुड़िया जिसे किसी चीज़ से कोई मतलब नही था. जिसे जो कह दिया जाता वो कर देती. उसे हैरत थी के कैसे उसने 10 साल से अपने पति के बारे में जानने की कोई कोशिश नही की. कैसे सब चुप हो गये थे कुच्छ अरसे के बाद और वो भी उन चुप लोगों में से एक थी.खामोशी से सब पुरुषोत्तम को भूल गये थे. वो सिर्फ़ सामने लगी एक तस्वीर में सिमट गया था और इसमें सबसे ज़्यादा कसूर शायद उसकी अपनी बीवी का था जिसने ना उसके जीते जी कभी उसे कोई सुख दिया और ना ही उसके मरने के बाद उसकी बीवी होने का फ़र्ज़ अदा किया.
पर अब ऐसा नही होगा, सोचते हुए रूपाली उठी और फिर शीशे के सामने जा खड़ी हुई.
"मैं अब अपनी ज़िंदगी इस तरह से बेकार नही होने दूँगी"जैसे वो अपने आप से ही कह रही हो. वो अब भी सफेद सारी में ही थी.
"वक़्त आ गया है के इसे हमेशा के लिए अपने जिस्म से हटाया जाए" कहते हुए रूपाली ने अपनी सारी उतरनी शुरू की और सामने रखी उसकी ससुर की लाल रंग की सारी की तरफ देखा.
अचानक उसे वो शाम याद गयी जब वो आखरी बार अपने पति से मिली थी. उसे चोदने के लिए बेताब पुरुषोत्तम अपनी माँ की आवाज़ सुनकर ऐसे ही रह गया था. सामने चूत खोले हुए झुकी खड़ी बीवी को उसी हालत में छ्चोड़कर उसे बाहर जाना पड़ा था.
रूपाली की आँखों के सामने वो गुज़री शाम फिर से घूमने लगी. सावित्री देवी यानी उसकी मर चुकी सास को मंदिर जाना था जिसके लिए उन्होने पुरुषोत्तम को बुलाया. उस वक़्त शाम के लगभग 5 बज रहे थे. पुरुषोत्तम तैय्यार होकर नीचे पहुँचा और अपनी माँ को कार में बैठाकर मंदिर की तरफ निकल गया. उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़कर कहीं काम से जाना था और आते हुए फिर मंदिर से सावित्री देवी को लेते हुए आना था. उनके जाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. पुरुषोत्तम के जाने के कोई 4 घंटे बाद नीचे उठा शोर सुनकर वो भागती हुई नीचे आई. उस वक़्त हवेली में रौनक हुआ करती थी. शौर्या सिंग का पूरा खानदान यहीं था. घर में नौकरों की लाइन हुआ करती थी इसलिए शोर भी काफ़ी तेज़ी से उठा था. रूपाली भागती हुई नीचे आई तो बड़े रूम का नज़ारा देखकर उसकी आँखें खुली रह गयी. पुरुषोत्तम सिंग खून से सना हुआ सोफे पे पड़ा था. रूपाली को उस वक़्त उस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था के वो मर चुका है. उसे लगा के शायद घायल है. और ना ही शायद कोई और ये बात मान लेने को तैय्यार था के पुरुषोत्तम के जिस्म में अब जान बाकी नही रही. ठाकुर शौर्या सिंग अपने बेटे की लाश के पास खड़े जाने नौकरों से क्या कुच्छ नही लाने को कह रहे थे. कभी पानी, तो कभी कोई दवाई. तेज डॉक्टर को लेने के लिए पहले से ही जा चुका था. कामिनी अपने भाई के चेहरे पे हल्के हल्के थप्पड़ मार रही थी, जैसे एक मुर्दे को जगाने की कोशिश कर रही हो. वो नज़ारा देखकर रूपाली तो जैसे वहीं खड़ी ही रह गयी थी और अगले ही पल चक्कर खाकर गिर पड़ी. फिर क्या हुआ उसे कुच्छ याद नही.
जब होश आया तो हवेली में मरघाट सन्नाटा था. हर तरफ खामोशी थी. उसे याद नही किसने पर किसी ने धीरे से उसके कान में कहा था के पुरुषोत्तम अब नही रहा. उसके बाद कुच्छ दिन तक क्या हुआ उसका रूपाली को कोई अंदाज़ा नही रहा. वो होश में होते भी होश में नही थी. कब पुरुषोत्तम का संस्कार किया गया, कब उसे सफेद सारी में लपेट दिया गया रूपाली कोई कुच्छ याद नही था. वो जैसे एक सपने में थी और उसी सपने में उसने अगले 10 साल गुज़र दिए. पति की मौत के बाद जैसे उसे किसी से कोई सरोकार ना रहा.वो और भगवान में विलीन हो गयी. घंटो मूर्ति के सामने बैठी पूजा करती रहती. उसके अपने मायके से उसके माँ बाप उसे मिलने आए, उसका एकलौता भाई आया, उसे साथ ले जाने के लिए पर वो कहीं नही गयी. जैसे ये हवेली एक ही जगह पे खड़ी थी वैसे भी रूपाली भी वहीं अपने कमरे में ही क़ैद रही. 10 साल तक.
रूपाली ने अपना सर झटका और ये सारे ख्याल दिमाग़ से हटाए.आज 10 साल बाद उसकी नींद खुली थी. पूरी तरह. और अब वो सब कुच्छ अपने हाथ में कर लेना चाहती थी. अपने पति के हत्यारे को अंजाम तक पहुँचना चाहती थी, इस हवेली की खुशी को लौटना चाहती थी. इस हवेली में फिर से वही रौनक देखना चाहती थी.
रूपाली ने शीशे में अपने आपको देखा. वो सफेद सारी उतारकर एक बार फिर नंगी खड़ी अपना जिस्म देख रही थी. पिच्छले दो दिन में कितना कुच्छ बदल गया था. उसने अपने आपको इतनी बार नंगी कभी नही देखा था जितना इन 2 दिन में देख लिया था. टांगे थोड़ी फेलाकर उसने अपनी चूत पे एक नज़र डाली जहाँ भूषण की उंगलियाँ कल रात घुसी हुई थी. रूपाली पलटी और लाल सारी उठाकर पहेन्ने लगी.
उसके पति की मौत से जुड़े कई सवाल थे जो उसे 2 दिन से परेशान कर रहे थे. हवेली जिस जगह पर थी वो गाओं से काफ़ी बाहर थी. मंदिर गाओं के दूसरी तरफ था. फिर भी कार से मंदिर जाने तक 20 मिनट से ज़्यादा समय नही लगता था. उसके सिवा पुरुषोत्तम को कहाँ जाना था ये बात कोई नही जानता था जबकि वो हमेशा घर में बताके जाता था के उसने कहाँ जाना है. पर उस शाम इस बात का उसने किसी से कोई ज़िक्र नही किया था. उसने कहीं जाना था ये उसने सावित्री देवी को मंदिर छ्चोड़ने के बाद उनसे कही थी पर तब भी उन्हें नही बताया था के वो कहाँ जा रहा है. उसकी लाश हवेली से मुश्किल से 10 कदम की दूरी पे मिली थी. वो सावित्री देवी को छ्चोड़कर वापिस हवेली की तरफ क्यूँ आया था. उसपर 2 गोलियाँ चलाई गयी और लाश रात के 9 बजे के आस पास मिली थी. लाश जिस हालत में मिली थी उसे देखकर यही लगता था के उसे गोली मुस्किल से 15 मिनट पहले मारी गयी थी मतलब के उस रात ढल चुकी थी तो रात के सन्नाटे में हवेली में किसी ने गोली की आवाज़ क्यूँ नही सुनी. वो हवेली से शाम के 5 बजे निकला था, मतलब के 5.30 तक उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़ दिया होगा. तो फिर अगले 3 घंटे तक वो कहाँ था? उसकी लाश उसकी बहेन कामिनी को मिली थी जो उस रात गाओं में अपनी किसी सहेली के घर से आ रही थी. रास्ते में पुरुषोत्तम की गाड़ी खड़ी देखकर उसने गाड़ी रोकी तो गाड़ी में कोई नही था. खून के निशान का पिच्छा किया तो भाई की लाश मिली. पर उससे 10 मिनट पहले ही शौर्या सिंग हवेली में आए थे. तो उस वक़्त गाड़ी वहाँ क्यूँ नही थी? हवेली से गाओं तक का पूरा रास्ते पर ठाकुर ने लॅंप पोस्ट्स लगवा रखे थे और तकरीबन उसी वक़्त घर के सारे नौकर वापिस गाओं जाते थे फिर उनमें से किसी ने कुच्छ होते क्यूँ नही देखा? पुरुषोत्तम के 2 आदमी हमेशा उसके साथ होते थे, हथ्यार के साथ पर उस शाम वो अकेला क्यूँ गया? कामिनी भी उस शाम अकेली गयी थी. हिफ़ाज़त के लिए रखे गये हत्यारबंद आदमी उस शाम कहाँ थे? सोच सोचकर रूपाली का सर फटने लगा तो उसे भूषण की कही बात फिर याद आने लगी " आपके पति की हत्या का राज़ इसी हवेली में बंद है. दफ़न है यहीं कहीं"
रूपाली लाल सारी पेहेन्के नीचे आई तो भूषण खाना बनाकर बड़े घर की सफाई में लगा हुआ था. रूपाली को देखा तो देखता ही रह गया. 10 साल से जिसे सफेद सारी में देखा था उसे लाल सारी में एक पल के लिए तो पहचान ही नही पाया.