05-09-2019, 12:28 PM
Update 3
“माफ़ कीजिएगा पिताजी. पेर फिसल गया था” कहते हुए तो खड़ी हुई और पानी डालकल साबुन धोने लगी.
अचानक उसकी नज़र बैठे हुए ठाकुर की टाँगो की तरफ पड़ी और उसकी आँखें खुली रह गयी. उसके ससुर का लंड खड़ा हुआ था ये धोती में भी सॉफ देखा जा सकता था. सॉफ पता चलता था के लंड कितना लंबा और मोटा है. रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के लंड इतना लंबा और मोटा भी हो सकता है. उसके पति का तो शायद इसका आधा भी नही था. एक बार को तो उसे ऐसा लगा के हाथ आगे बढ़के पकड़ ले.अपने दिल पे काबू करके रूपाली ने नहलाने का काम ख़तम किया और मुड़कर बाथरूम से बाहर निकल गयी.
शौर्या सिंग की नज़र तो जैसे बहू की छातियों से हटी ही नही. जब वो नहलाकर जाने के लिए मूडी तो उनका कलेजा जैसे फिर उनके मुँह को आ गया. सारी भीग जाने की वजह से रूपाली की गांद से चिपक गयी थी और गांद के बीच की दरार में जा फासी थी. उसकी उठी हुई गांद की गोलैईयों को देखकर ठाकुर के दिल में बस एक ही बात आई.
“बहुत सही नाम रखा इसके माँ बाप ने इसका. रूपाली”
पानी में भीगी रूपाली जैसे भागती हुई अपने कमरे में पहुँची. इस सारे कार्यक्रम में उसका खुद का जिस्म जैसे दहक उठा था. अगर वो 2 मिनट और बाथरूम में रुक जाती तो उसे पता था के वो खुद अपने ससुर का लंड अपने हाथ में ले लेती. कमरे में घुसते ही उसे अपने जिस्म से भीगे कपड़े उतार के फेकने शुरू किए. नंगी होकर वो बिस्तर पे जा गिरी और एक बार फिर उसकी उंगलियो की चूत से जुंग शुरू हो गयी.
उधेर रूपाली के जाते ही शौर्या सिंग का हाथ अपनी धोती तक पहुँच गया. उन्हें याद भी ना था के आखरी बार अपने हाथ से कब काम चलाया था उन्होने. शायद बचपन में कभी. और आज बहू ने उनसे ये काम बुढ़ापे में करवा दिया. लंड को हाथ से हिलाते शौर्या सिंग ने जैसे ही बहू के नंगे जिस्म की कल्पना अपने नीचे की तो पुर शरीर में जैसे रोमांच की एक ल़हेर सर से पावं तक दौड़ गयी.
चूत में लगी आग ठंडी होकर जब उंगलियों पे बहने लगी तो रूपाली ने उठकर अपने कपड़े समेटे. दिल तो चाह रहा था के अभी ससुर जी के सामने जाके टांगे खोल दे पर उसने अपने उपेर काबू रखा. पहेल उसने शौर्या सिंग से ही करनी थी वरना सारा खेल बिगड़ सकता था. उसे ऐसी बनना था के शौर्या सिंग लट्तू की तरह उसी की आगे पिछे घूमता रहे. कपड़े बदलकर भीगे हुए कपड़ो को सूखने के लए वो अपने कमरे की बाल्कनी में आई तो उसे अपना पहले देवर तएजवीर सिंग की गाड़ी आती दिखाई दी.
तएजवीर सिंग को ज़्यादातर लोग कुल का कलंक कहते थे. वजह थी उसकी अययाशी की आदत. औरतों के बाज़ार में उसका आना जाना था, नशे की उसे लत थी. अक्सर हफ्तों तक घर वापिस नही आता था पर किसी की हिम्मत कभी नही हुई के उसे पलटके कुच्छ कहे. ऐसा रौब था उसका. उसका बाप तक उसके आगे कुच्छ नही कहता था. तेज अपनी मर्ज़ी का आदमी था. जो चाहा करता. आज भी वो 2 हफ्ते बाद घर वापिस आया था.
तेज का कमरा जहाँ था वहाँ तक जाने के लिए उसे रूपाली के कमरे की आगे से होके गुज़रना पड़ता था. वो हमेशा रुक कर पहले अपनी भाभी का हाल पुछ्ता था और फिर अपने कमरे तक जाता था. आज भी ऐसा ही होगा ये बात रूपाली जानती थी. वो पलटकर अपने कमरे तक वापिस पहुँची और कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. कार पार्क करके यहाँ तक पहुँचने में तेज को कम से कम 5 मिनट्स का टाइम लगेगा. ये सोचे हुए वो बाथरूम में पहुँची. अपने सारे बाल गीले किए और अपनी सारी और ब्लाउस उतार दिया. अब सिर्फ़ एक काले रंग के पेटिकोट और उसी रंग के ब्रा में वो शीशे के सामने आके खड़ी हो गयी, जैसे अभी नहा के निकली हो. दरवाज़ा उसके पिछे था और वो शीशे में देख सकती थी. थोड़ी देर वक़्त गुज़रा और उसे तेज के कदमो के आवाज़ आई. जैसे जैसे कदम रखने की आवाज़ नज़दीक आती रही वैसे वैसे रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ती रही. उसके जिस्म में शरम, वासना और दार की अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और उसे तेज का चेहरा नज़र आया.
तेजविंदर सिंग 2 हफ्ते बाद घर कुच्छ पैसे लेने के लिए लौटा था. जो पैसे वो लेके गया था वो रंडी चोदने और शराब पीने में उड़ा चुक्का था. उसने गाड़ी हवेली के सामने रोकी और अंदर दाखिल हुआ. सामने ही उसके बाप का कमरा था पर उसने वहाँ जाना ज़रूरी नही समझा. वैसे भी वो सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए आया था. पैसे लेके उसने वापिस चले जाना था. वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. रास्ते में भाभी का कमरा पड़ता था. उनका हाल वो हमेशा पुछ्ता था. रूपाली पे उसे दया आती थी. बेचारी भारी जवानी में इस वीरान हवेली में क़ैद होके रह गयी थी. वो रूपाली के कमरे के सामने रुका और दरवाज़ा हल्का सा खोला ही था के उसका गला सूखने लगा.
रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नाहके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांद से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.
रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जान भूझ कर अपनी गांद को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहेनटे हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.
बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.
“भूषण आ गया क्या?” शौर्या ने पुचछा
“जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली
“आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्या ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्या सिंग के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.
“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्या सिंग बाहर निकल गये
रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्या सिंग ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.
यही सोचती हुई वो शौर्या सिंग के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.
“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.
ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया.
“लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.
रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी
पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.
“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.
“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.
“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.
“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.
“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.
रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.
रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.
“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा
“नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.
“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.
“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया. उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.
“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.
“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”
पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नाहकार पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.
तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.
“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.
“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”
रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.
“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.
“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो”
रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.
“बहू” दरवाज़े फिर से खाटकाया गया और फिर से आवाज़ आई
“बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.
“माफ़ कीजिएगा पिताजी. पेर फिसल गया था” कहते हुए तो खड़ी हुई और पानी डालकल साबुन धोने लगी.
अचानक उसकी नज़र बैठे हुए ठाकुर की टाँगो की तरफ पड़ी और उसकी आँखें खुली रह गयी. उसके ससुर का लंड खड़ा हुआ था ये धोती में भी सॉफ देखा जा सकता था. सॉफ पता चलता था के लंड कितना लंबा और मोटा है. रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के लंड इतना लंबा और मोटा भी हो सकता है. उसके पति का तो शायद इसका आधा भी नही था. एक बार को तो उसे ऐसा लगा के हाथ आगे बढ़के पकड़ ले.अपने दिल पे काबू करके रूपाली ने नहलाने का काम ख़तम किया और मुड़कर बाथरूम से बाहर निकल गयी.
शौर्या सिंग की नज़र तो जैसे बहू की छातियों से हटी ही नही. जब वो नहलाकर जाने के लिए मूडी तो उनका कलेजा जैसे फिर उनके मुँह को आ गया. सारी भीग जाने की वजह से रूपाली की गांद से चिपक गयी थी और गांद के बीच की दरार में जा फासी थी. उसकी उठी हुई गांद की गोलैईयों को देखकर ठाकुर के दिल में बस एक ही बात आई.
“बहुत सही नाम रखा इसके माँ बाप ने इसका. रूपाली”
पानी में भीगी रूपाली जैसे भागती हुई अपने कमरे में पहुँची. इस सारे कार्यक्रम में उसका खुद का जिस्म जैसे दहक उठा था. अगर वो 2 मिनट और बाथरूम में रुक जाती तो उसे पता था के वो खुद अपने ससुर का लंड अपने हाथ में ले लेती. कमरे में घुसते ही उसे अपने जिस्म से भीगे कपड़े उतार के फेकने शुरू किए. नंगी होकर वो बिस्तर पे जा गिरी और एक बार फिर उसकी उंगलियो की चूत से जुंग शुरू हो गयी.
उधेर रूपाली के जाते ही शौर्या सिंग का हाथ अपनी धोती तक पहुँच गया. उन्हें याद भी ना था के आखरी बार अपने हाथ से कब काम चलाया था उन्होने. शायद बचपन में कभी. और आज बहू ने उनसे ये काम बुढ़ापे में करवा दिया. लंड को हाथ से हिलाते शौर्या सिंग ने जैसे ही बहू के नंगे जिस्म की कल्पना अपने नीचे की तो पुर शरीर में जैसे रोमांच की एक ल़हेर सर से पावं तक दौड़ गयी.
चूत में लगी आग ठंडी होकर जब उंगलियों पे बहने लगी तो रूपाली ने उठकर अपने कपड़े समेटे. दिल तो चाह रहा था के अभी ससुर जी के सामने जाके टांगे खोल दे पर उसने अपने उपेर काबू रखा. पहेल उसने शौर्या सिंग से ही करनी थी वरना सारा खेल बिगड़ सकता था. उसे ऐसी बनना था के शौर्या सिंग लट्तू की तरह उसी की आगे पिछे घूमता रहे. कपड़े बदलकर भीगे हुए कपड़ो को सूखने के लए वो अपने कमरे की बाल्कनी में आई तो उसे अपना पहले देवर तएजवीर सिंग की गाड़ी आती दिखाई दी.
तएजवीर सिंग को ज़्यादातर लोग कुल का कलंक कहते थे. वजह थी उसकी अययाशी की आदत. औरतों के बाज़ार में उसका आना जाना था, नशे की उसे लत थी. अक्सर हफ्तों तक घर वापिस नही आता था पर किसी की हिम्मत कभी नही हुई के उसे पलटके कुच्छ कहे. ऐसा रौब था उसका. उसका बाप तक उसके आगे कुच्छ नही कहता था. तेज अपनी मर्ज़ी का आदमी था. जो चाहा करता. आज भी वो 2 हफ्ते बाद घर वापिस आया था.
तेज का कमरा जहाँ था वहाँ तक जाने के लिए उसे रूपाली के कमरे की आगे से होके गुज़रना पड़ता था. वो हमेशा रुक कर पहले अपनी भाभी का हाल पुछ्ता था और फिर अपने कमरे तक जाता था. आज भी ऐसा ही होगा ये बात रूपाली जानती थी. वो पलटकर अपने कमरे तक वापिस पहुँची और कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. कार पार्क करके यहाँ तक पहुँचने में तेज को कम से कम 5 मिनट्स का टाइम लगेगा. ये सोचे हुए वो बाथरूम में पहुँची. अपने सारे बाल गीले किए और अपनी सारी और ब्लाउस उतार दिया. अब सिर्फ़ एक काले रंग के पेटिकोट और उसी रंग के ब्रा में वो शीशे के सामने आके खड़ी हो गयी, जैसे अभी नहा के निकली हो. दरवाज़ा उसके पिछे था और वो शीशे में देख सकती थी. थोड़ी देर वक़्त गुज़रा और उसे तेज के कदमो के आवाज़ आई. जैसे जैसे कदम रखने की आवाज़ नज़दीक आती रही वैसे वैसे रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ती रही. उसके जिस्म में शरम, वासना और दार की अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और उसे तेज का चेहरा नज़र आया.
तेजविंदर सिंग 2 हफ्ते बाद घर कुच्छ पैसे लेने के लिए लौटा था. जो पैसे वो लेके गया था वो रंडी चोदने और शराब पीने में उड़ा चुक्का था. उसने गाड़ी हवेली के सामने रोकी और अंदर दाखिल हुआ. सामने ही उसके बाप का कमरा था पर उसने वहाँ जाना ज़रूरी नही समझा. वैसे भी वो सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए आया था. पैसे लेके उसने वापिस चले जाना था. वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. रास्ते में भाभी का कमरा पड़ता था. उनका हाल वो हमेशा पुछ्ता था. रूपाली पे उसे दया आती थी. बेचारी भारी जवानी में इस वीरान हवेली में क़ैद होके रह गयी थी. वो रूपाली के कमरे के सामने रुका और दरवाज़ा हल्का सा खोला ही था के उसका गला सूखने लगा.
रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नाहके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांद से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.
रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जान भूझ कर अपनी गांद को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहेनटे हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.
बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.
“भूषण आ गया क्या?” शौर्या ने पुचछा
“जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली
“आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्या ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्या सिंग के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.
“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्या सिंग बाहर निकल गये
रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्या सिंग ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.
यही सोचती हुई वो शौर्या सिंग के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.
“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.
ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया.
“लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.
रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी
पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.
“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.
“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.
“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.
“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.
“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.
रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.
रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.
“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा
“नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.
“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.
“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया. उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.
“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.
“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”
पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नाहकार पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.
तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.
“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.
“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”
रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.
“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.
“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो”
रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.
“बहू” दरवाज़े फिर से खाटकाया गया और फिर से आवाज़ आई
“बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.