10-01-2019, 08:51 PM
काजल : "प्लान....? कैसा प्लान...और किसलिए.."
केशव : "देखो दीदी...आजकल दीवाली का टाइम है..और इस टाइम सभी लोग जुआ खेलते हैं...वैसे जुआ खेलने वाले तो पूरा साल खेलते हैं पर इन दिनों और भी ज़्यादा और बड़ी-2 गेम्स होती है ...और इसलिए वो कल में इतने पैसे जीत कर लाया था...''
काजल : "हाँ ...तो ..? "
केशव : "तो अगर हम लोग ये जुआ खेले...मेरा मतलब है की तुम...तो शायद काफ़ी पैसे आ सकते हैं...मेरे जितने भी दोस्त है वो सब खेलने वाले हैं...उनके साथ खेलेंगे..और मुझे पूरा विश्वास है की आप ही जीतोगे ..आप देख रहे हो ना, किस तरह के पत्ते आते हैं हर बार आपके पास...''
काजल का तो दिमाग़ ही घूम गया उसकी बात सुनकर..
काजल : "तू पागल हो गया है....तू चाहता है की में तेरी तरह जुआ खेलूं ..और वो भी तेरे उन आवारा दोस्तों के साथ...तुझे शर्म नही आएगी की तेरी बहन बाहर जाकर जुआ खेले...कभी सुना है तूने की कोई लड़की जुआ खेलती है...तुझे पता भी है की कितनी बदनामी होगी हमारी...''
बोलते-2 उसकी आवाज़ काफ़ी तेज हो गयी थी गुस्से की वजह से.
केशव आराम से सब सुनता रहा और आख़िर मे बोला : "दीदी....सबसे पहले तो ये ख्याल मन से निकाल दो की लड़कियाँ ये काम नही करती...ये दीवाली के दिन है...और इन दिनों लड़कियाँ और औरतें ही सबसे ज़्यादा खेलती हैं...चाहे शगुन के लिए ही सही पर इन दिवाली के दिनों में जुआ खेलना शुभ माना जाता है..और आपको कहीं बाहर नही जाना है खेलने, मैं उन्हे यहीं बुला लूँगा...अपने घर पर..और आपको मेरे होते हुए किसी से भी डरने की जरुरत नही है...आप शायद नही जानती की मेरा कितना दबदबा है इस मोहल्ले में...कोई आपकी तरफ आँख उठा कर भी नही देख सकता...''
काजल उसकी बात सुनती रही..शायद उसको वो सब सही लग रहा था अब..
काजल (थोड़े नरम स्वर मे) : "पर...माँ हॉस्पिटल में है और हम लोग ऐसे घर मे बैठकर जुआ खेलेंगे...माना की तेरे दोस्त तेरे सामने नही बोलेंगे...पर पीछे से तो हर कोई यही कहेगा ना की माँ हॉस्पिटल मे है और इन्हे जुआ खेलने की पड़ी है..''
केशव : "ये सब मै माँ के लिए ही कर रहा हू...कल मेरी डॉक्टर् से बात हुई थी..उन्हे घर लाने के लिए..तो उन्होने कहा था की या तो 10 दिन तक उनका हॉस्पिटल मे रहकर इलाज करवा लो...या फिर घर लेजाकर एक इंजेक्शन रोज लगवाना, 5 दीनो तक..जो करीब 3000 का एक है..हम उन्हे कल ही घर ले आएँगे...और इन पैसों से उनका घर पर ही इलाज करवाएँगे..''
काजल को उसकी बात मे तर्क नज़र आया...क्योंकि ये बात डॉक्टर ने उसे भी कही थी...पर इतने पैसे कहाँ से लाती वो, यही सोचकर उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नही दिया था..कहने को तो ये सरकारी हॉस्पिटल था पर उसमे भी उनके पैसे लग ही रहे थे....और रोज -2 आने-जाने की मशक्कत भी अलग से करनी पड़ती थी.अगर माँ को घर ले आएँ तो ये सारी चिंता और परेशानी ख़त्म हो जाएगी.
काजल : "पर असली में खेलते हुए अगर मैं हार गयी तो, मेरा मतलब है की अगर खेलते हुए लक्क ने मेरा साथ नही दिया तो ??"
केशव : "आप उसकी चिंता मत करो , मै सब संभाल लूंगा "
काजल चुप हो गयी....केशव समझ गया की वो उसकी बातों पर विचार कर रही है.
केशव : "दीदी...आप इतना मत सोचो...आजकल तो सभी के घर पर जुआ चलता है...कल भी मै अपने दोस्त गुल्लू के घर पर ही खेल रहा था...और उसकी बीबी को तो आप जानती ही हो, रूबी, वो भी खेल रही थी उसके साथ...अब ऐसा त्योहार का माहोल हो तो घर की औरतों का भी थोड़ा बहुत एंटरटेनमेंट हो जाता है...''
काजल तो पहले ही मान चुकी थी...केशव बेकार मे अभी तक उसे मनाने के लिए इधर-उधर की बातें कर रहा था..
वो जैसे ही बोला 'और वो जो मेरा दोस्त है ना.....'
काजल : "ओके ..बाबा ...समझ गयी....अब चुप कर जा....समझ गयी मैं...''
काजल ने हंसते हुए कहा तो केशव भी खुशी के मारे उछल पड़ा...और प्रेम भाव मे आकर वो काजल से लिपट गया..
केशव : "ओह ...दीदी ....मुझे पता था की आप ज़रूर समझोगी...भले ही ये ग़लत तरीका है पैसे कमाने का..पर हमें इस समय इन पैसो की बहुत ज़रूरत है...''
केशव : "देखो दीदी...आजकल दीवाली का टाइम है..और इस टाइम सभी लोग जुआ खेलते हैं...वैसे जुआ खेलने वाले तो पूरा साल खेलते हैं पर इन दिनों और भी ज़्यादा और बड़ी-2 गेम्स होती है ...और इसलिए वो कल में इतने पैसे जीत कर लाया था...''
काजल : "हाँ ...तो ..? "
केशव : "तो अगर हम लोग ये जुआ खेले...मेरा मतलब है की तुम...तो शायद काफ़ी पैसे आ सकते हैं...मेरे जितने भी दोस्त है वो सब खेलने वाले हैं...उनके साथ खेलेंगे..और मुझे पूरा विश्वास है की आप ही जीतोगे ..आप देख रहे हो ना, किस तरह के पत्ते आते हैं हर बार आपके पास...''
काजल का तो दिमाग़ ही घूम गया उसकी बात सुनकर..
काजल : "तू पागल हो गया है....तू चाहता है की में तेरी तरह जुआ खेलूं ..और वो भी तेरे उन आवारा दोस्तों के साथ...तुझे शर्म नही आएगी की तेरी बहन बाहर जाकर जुआ खेले...कभी सुना है तूने की कोई लड़की जुआ खेलती है...तुझे पता भी है की कितनी बदनामी होगी हमारी...''
बोलते-2 उसकी आवाज़ काफ़ी तेज हो गयी थी गुस्से की वजह से.
केशव आराम से सब सुनता रहा और आख़िर मे बोला : "दीदी....सबसे पहले तो ये ख्याल मन से निकाल दो की लड़कियाँ ये काम नही करती...ये दीवाली के दिन है...और इन दिनों लड़कियाँ और औरतें ही सबसे ज़्यादा खेलती हैं...चाहे शगुन के लिए ही सही पर इन दिवाली के दिनों में जुआ खेलना शुभ माना जाता है..और आपको कहीं बाहर नही जाना है खेलने, मैं उन्हे यहीं बुला लूँगा...अपने घर पर..और आपको मेरे होते हुए किसी से भी डरने की जरुरत नही है...आप शायद नही जानती की मेरा कितना दबदबा है इस मोहल्ले में...कोई आपकी तरफ आँख उठा कर भी नही देख सकता...''
काजल उसकी बात सुनती रही..शायद उसको वो सब सही लग रहा था अब..
काजल (थोड़े नरम स्वर मे) : "पर...माँ हॉस्पिटल में है और हम लोग ऐसे घर मे बैठकर जुआ खेलेंगे...माना की तेरे दोस्त तेरे सामने नही बोलेंगे...पर पीछे से तो हर कोई यही कहेगा ना की माँ हॉस्पिटल मे है और इन्हे जुआ खेलने की पड़ी है..''
केशव : "ये सब मै माँ के लिए ही कर रहा हू...कल मेरी डॉक्टर् से बात हुई थी..उन्हे घर लाने के लिए..तो उन्होने कहा था की या तो 10 दिन तक उनका हॉस्पिटल मे रहकर इलाज करवा लो...या फिर घर लेजाकर एक इंजेक्शन रोज लगवाना, 5 दीनो तक..जो करीब 3000 का एक है..हम उन्हे कल ही घर ले आएँगे...और इन पैसों से उनका घर पर ही इलाज करवाएँगे..''
काजल को उसकी बात मे तर्क नज़र आया...क्योंकि ये बात डॉक्टर ने उसे भी कही थी...पर इतने पैसे कहाँ से लाती वो, यही सोचकर उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नही दिया था..कहने को तो ये सरकारी हॉस्पिटल था पर उसमे भी उनके पैसे लग ही रहे थे....और रोज -2 आने-जाने की मशक्कत भी अलग से करनी पड़ती थी.अगर माँ को घर ले आएँ तो ये सारी चिंता और परेशानी ख़त्म हो जाएगी.
काजल : "पर असली में खेलते हुए अगर मैं हार गयी तो, मेरा मतलब है की अगर खेलते हुए लक्क ने मेरा साथ नही दिया तो ??"
केशव : "आप उसकी चिंता मत करो , मै सब संभाल लूंगा "
काजल चुप हो गयी....केशव समझ गया की वो उसकी बातों पर विचार कर रही है.
केशव : "दीदी...आप इतना मत सोचो...आजकल तो सभी के घर पर जुआ चलता है...कल भी मै अपने दोस्त गुल्लू के घर पर ही खेल रहा था...और उसकी बीबी को तो आप जानती ही हो, रूबी, वो भी खेल रही थी उसके साथ...अब ऐसा त्योहार का माहोल हो तो घर की औरतों का भी थोड़ा बहुत एंटरटेनमेंट हो जाता है...''
काजल तो पहले ही मान चुकी थी...केशव बेकार मे अभी तक उसे मनाने के लिए इधर-उधर की बातें कर रहा था..
वो जैसे ही बोला 'और वो जो मेरा दोस्त है ना.....'
काजल : "ओके ..बाबा ...समझ गयी....अब चुप कर जा....समझ गयी मैं...''
काजल ने हंसते हुए कहा तो केशव भी खुशी के मारे उछल पड़ा...और प्रेम भाव मे आकर वो काजल से लिपट गया..
केशव : "ओह ...दीदी ....मुझे पता था की आप ज़रूर समझोगी...भले ही ये ग़लत तरीका है पैसे कमाने का..पर हमें इस समय इन पैसो की बहुत ज़रूरत है...''