10-01-2019, 02:54 PM
(This post was last modified: 10-01-2019, 02:57 PM by komaalrani.)
जोरू का गुलाम पोस्ट २
कच्चे टिकोरे और आम रस
[i]...जिस पेज पर थे , वहां गुड्डी की फोटोग्राफ्स थे ,शादी में डांस करते।
मैंने उन्हें इतना गुस्सा और दुखी कभी नहीं देखा था। वो वैसे भी कैंसरियन थे , राशि के हिसाब से , और गुस्सा होने पे या अकसर वैसे भी अपने शेल में घुस जाते थे।
उन्होंने कंडोम उठाकर झटक कर फर्श पर फ़ेंक दिया जैसे मैंने कैसी गन्दी चीज गुड्डी की तस्वीर के साथ रख दी हो। और फिर सम्हाल कर उस की फोटो को पोंछा और अपने हाथ से नीचे वाले ड्राअर में एलबम को रख के बंद किया। और बिना मुझसे कुछ बोले , मेरी ओर पीठ कर के सो गए.
जैसा मैंने पहले ही कहा था मेरे उनको फल एकदम पसंद नहीं है लेकिन आम से तो या ऐसी चिढ , बल्कि फोबिया।
[/i][/i]
एकदम तगड़ा फोबिया। और वो भी एकदम बचपन से ,उनके मायेकवाली किसी ने बताया था की ,क्लास में एक बार टीचर ने सिखाने की कोशिश की , एम फॉर मैंगो , लेकिन वो बोले नहीं। लाख टीचर ने कोशिश की ,मुरगा बना दिया , … लेकिन नहीं।
और जब वो खाना खा रहे हों तो ,अगर टेबल पर आम तो छोड़िये ,टिकोरे की चटनी भी आ जाय , तो एकदम अलप्फ ,मेज से उठ जाएंगे। छूना तो छोड़िये नाम नहीं ले सकते। और सब उनको चिढ़ाते थे।
एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।
[i]हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे ) और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी। [/i]
[i][/i]
[i][i]" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"
[/i][/i]
मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली
,मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"
" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते " चिढ़ाते हुए मैं बोली।
जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।
" अरे ये , "
और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।
ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "
मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।
[i][i]और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"[/i][/i]
[i][i][i]और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।
[/i][/i][/i]
थे भी बहुत रसीले वो।
लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,
पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "
उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।
मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
[i][i][i]मैंने दांव फ़ेंक दिया। [/i][/i][/i]
कच्चे टिकोरे और आम रस
[i]...जिस पेज पर थे , वहां गुड्डी की फोटोग्राफ्स थे ,शादी में डांस करते।
मैंने उन्हें इतना गुस्सा और दुखी कभी नहीं देखा था। वो वैसे भी कैंसरियन थे , राशि के हिसाब से , और गुस्सा होने पे या अकसर वैसे भी अपने शेल में घुस जाते थे।
उन्होंने कंडोम उठाकर झटक कर फर्श पर फ़ेंक दिया जैसे मैंने कैसी गन्दी चीज गुड्डी की तस्वीर के साथ रख दी हो। और फिर सम्हाल कर उस की फोटो को पोंछा और अपने हाथ से नीचे वाले ड्राअर में एलबम को रख के बंद किया। और बिना मुझसे कुछ बोले , मेरी ओर पीठ कर के सो गए.
जैसा मैंने पहले ही कहा था मेरे उनको फल एकदम पसंद नहीं है लेकिन आम से तो या ऐसी चिढ , बल्कि फोबिया।
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एकदम तगड़ा फोबिया। और वो भी एकदम बचपन से ,उनके मायेकवाली किसी ने बताया था की ,क्लास में एक बार टीचर ने सिखाने की कोशिश की , एम फॉर मैंगो , लेकिन वो बोले नहीं। लाख टीचर ने कोशिश की ,मुरगा बना दिया , … लेकिन नहीं।
और जब वो खाना खा रहे हों तो ,अगर टेबल पर आम तो छोड़िये ,टिकोरे की चटनी भी आ जाय , तो एकदम अलप्फ ,मेज से उठ जाएंगे। छूना तो छोड़िये नाम नहीं ले सकते। और सब उनको चिढ़ाते थे।
एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।
[i]हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे ) और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी। [/i]
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[i][i]" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"
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मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली
,मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"
" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते " चिढ़ाते हुए मैं बोली।
जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।
" अरे ये , "
और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।
ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "
मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।
[i][i]और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"[/i][/i]
[i][i][i]और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।
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थे भी बहुत रसीले वो।
लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,
पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "
उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।
मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
[i][i][i]मैंने दांव फ़ेंक दिया। [/i][/i][/i]