24-08-2019, 09:57 AM
(04-08-2019, 09:23 AM)komaalrani Wrote: धन्यवाद , लेकिन इन गानों में नया कुछ भी नहीं है , ये वही लोकगीत हैं जिन्हे मैंने कैशोर्य से आज तक बार बार सुना है , कई बार मेरा नाम ले ले कर भी ये मेरी भाभियों ने गाये हैं , और कई मैंने भी ,... आगे की पोस्ट्स में भी और ऐसे ढेर सारे गाने आएंगे। हाँ ये बात जरूर है , ऐसे मस्त गाने , खुलकर चिढ़ाने छेड़ने वाले तभी होते हैं जब घर के मर्द वहां कहीं आस पास भी नहीं होते हैं।सही कहा आपने लोक संस्कृति की बात ही कुछ और है , हां मेरी उम्र ज्यादा नही है लेकिन कह सकता हूँ कि मैं भी अपना बचपन गाँव मे हो व्यतीत किया है वो लोकगीत तो मैथिली में मैने भी सुनी है और वो गारी भी, लेकिन अब गाँव गाँव न रहा वँहा भी लोगों के सोच में बदलाव आने लगे हैं और संस्कृति पीछे छुटती जा रही है। सब नये तौर तरीके अपना रहे हैं कोई अपने ग्रामीण संस्कृति को अनपे आने वाले पीढ़ी में संचित नही कर पा रहा हैं यह बहुत ही निराशाजनक है।
लेकिन अब अच्छी बात है , कई लोगों ने अब ( कई बार उनका थोड़ा सेंसर्ड वर्ज़न ) यू ट्यूब पर प्रस्तुत किया है , आप गारी के नाम से ढूंढ सकते है , और सिर्फ भोजपुरी ही नहीं , बघेली , बुंदेली और पूरे उत्तर भारत में ,... ( दक्षिण का मुझे ज्ञान नहीं है ) , मुझे कहानियों में लोक संस्कृति के इन पहलुओं को उजागर करने का भी मौका मिल जाता है , ज्यादातर महिलायें जिनकी जड़ें ग्रामीण संस्कृति में होती हैं , इन गानों से बचपन से ही परिचित होती हैं।
मेरी बाकी कहानियों में भी लोक गीत का तड़का मिलता है , मौके के हिसाब से।
मेरी एक और कहानी सोलहवां सावन ( जो इस फोरम पर भी चल रही है ) की शुरुआत सोहर ( पुत्र जन्म पर गाये जाने वाले गीत ) से होती है।
एक बार फिर आप को धन्यवाद कहानी से जुड़ने के लिए।
और हां कहानी बहुत अच्छी जा रही है पति पत्नी के बीच की एक जाड़ें की गर्माहट बहुत ही उत्तेजित करने वाले हैं,
बस अब आपकी ही स्टोरी इससे फ़ोरम पे रह गयी है जिसे पढ़ने की ललक अब लगी रहती है नही तो कुछ समाप्त हो गयी नही तो लेखक अपनी लेखिनी छोड़ दिये, बस आपसे ही उम्मीद हैं।