16-08-2019, 07:21 PM
जो प्यार, जो प्यार भरा सम्मान और जो पूरा समर्पण का भाव मेरे मनमें योग के प्रति था, वह मेरे पति को भी मैं नहीं दे पायी थी क्यूंकि मुझे ऐसा भाव उनकी और से कभी महसूस ही नहीं हुआ था। मेरा दिल और दिमाग किसी धमाकेदार उत्तेजित ऊँचाइयों पर पहुँच चुका था। मैं जल्द ही झड़ने वाली थी। पर योग तो मेरी चूत में अपना लण्ड पेले ही जा रहे थे। शायद उस रात पहली बार वह अपने लण्ड में हो रहे उन्माद का भली भांति अनुभव कर रहे थे। उनका ध्यान उनके लण्ड के इर्दगिर्द हो रही मेरी चूत की फड़कन पर केंद्रित था। जैसे जैसे योग मुझे चोदते गए, मेरा उन्माद बढ़ता गया। साथ साथ मेरी चूत की फड़कन भी बढ़ती गयी। अब दर्द के उस पार उसकी जगह उत्तेजना के नशे ने ले ली थी। जैसे ही मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुंची मेरे दिमाग में एक धमाका सा हुआ और मेरी चूत में कुछ ऐसे अजीबो गरीब मचलन होने लगी की मैं अपने बदन पर भी नियत्रण नहीं रख पा रही थी।
स्त्री सहज लज्जा के कारण मैं अपना उन्माद जाहिर करने में शर्मा रही थी। मेरी उत्तेजना ऐसी थी की मुझे चिल्ला चिल्ला कर अपना उन्माद जाहिर करना चाहिए था। पर मैं एक गहरी साँस लेकर मेरे दिल और दिमाग में उठे हुए बिजली के झटके की तरह लगे धक्के को झेल कर हलकी सी आवाज में कराह उठी, "योग, मैं झड़ रही हूँ। पता नहीं तुमने मुझे आज इसी दुनिया में जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने आजतक ऐसा अनुभव नहीं किया। आज तो गज़ब हो गया।"
मेरा हाल देख योग थोड़ी देर थम गए। उन्हों मेरे स्तनो को जोर से दबाते हुए मेरी और देखा और फिर वही प्यार भरी मंद मंद मुस्कराहट, योग तब तक झड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उनके टिकने की क्षमता काफी थी। मैं भी तो और बहुत अधिक चुदाई करवाना चाहती थी। फिर मेरी गाँड़ को ऊपर उठाकर मैंने उन्हें चोदना जारी रखने का इशारा किया। योग मेरी चूत की गहराईयों का अपने लण्ड द्वारा अनुभव कर रहे थे। साथ में वह मेरे चेहरे के भाव से मेरा उन्माद और मेरे प्यार की भी अनुभूति कर रहे थे। शायद उन्हें उस रात अपनी प्यारी पत्नी कनिका की कमी नहीं खली। उन्हें शायद कनिका के जैसी ही या फिर उससे भी ज्यादा उत्तेजक कामुकता भरी स्त्री साथीदार उस रात मिली थी। मैं उनके चेहरे के भाव पढ़ रही थी और वह मेरे।
मुझे लगा यही मेरे सच्चे पति होने के लायक हैं। मेरे असली पति भी मुझे प्यार करते थे, पर उनका प्यार मेरे बदन के कारण ज्यादा था। मैंने महसूस किया की योग मेरे बदन से कहीं ज्यादा मेरे दिल की गहराइयों में झाँक कर मुझे टटोल कर अपना साथी ढूँढ रहे थे, और शायद उन्हें मुझमें वह साथी नजर आरहा था, जो उनके दिल को समझ सके और उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके और उन्हें भावात्मक ढंग से वह शारीरिक और आत्मिक प्यार दे सके जिसकी हर मर्द और औरत को तलाश होती है। योग भी अब अपनी उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच रहे थे। मुझे धक्का लगा कर चोदते हुए बार बार वह मुझे, "मेरी प्यारी प्रिया, मेरी जान, मुझे छोड़ के मत जाना। तू मेरी है और मेरी ही रहना।" इत्यादि कहते रहते थे। उनकी भौंहें सिकुड़ने लगीं, अब वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहे थे। वह चरम पर पहुँचने वाले ही थे। मैं भी उनके चेहरे का भाव देख कर फिर से उत्तेजित हो उठी, मेरी चूत में फिर वही फड़कन बढ़नी शुरू हो गयी। मैंने योगके धक्के के मुकाबले सामने से मेरी गाँड़ बार बार उठाकर उनकी चुदाई का पूरा साथ देते हुए गर्मजोशी दिखाई और उसके कारण मैं भी फिर से वही उन्मादित बिजली के झटके समान सुनामी के मौजों सी लहार पर सवार होते अनुभव कर रही थी। मैंने योग से कहा, "मेरे प्यारे, तुम जरा भी सोचे बगैर अपना सारा वीर्य मेरी चूत में उँडेल दो। बिलकुल निश्चिन्त रहो। मैंने इसके बारे में काफी सोचा है। तुम्हारे माल को रोकना मत।"
योग ने अपने लण्ड को एक और धक्का देते हुए मेरी चूत में एक जोरदार गरमा गरम फव्वारा छोड़ा। मैंने उसके गर्म और बहुत ज्यादा मात्रा में छोड़े गए वीर्य को मेरी चूत की पूरी सुरंग को लबालब भर देते हुए महसूस किया। देखते ही दखते हम दोनों ही एक साथ झाड़ गए। हम दोनों के एकसाथ झड़ते ही योग के इर्द गिर्द अपनी बाँहों को फैला कर मैंने योग को मेरे नंगे बदन के साथ चिपका दिया और योग के बदन के निचले हिस्से को अपनी जांघों में लपेट कर उनके लण्ड को मेरी चूत में ही रखे हुए मैंने उनको मेरे पर ही रहने दिया और उनकी पीठ और सुआकार गाँड़ को मैं बड़े प्यार से सहलाने लगी। काफी देर तक ऐसे पड़े रहने के बाद धीरे से अपना लण्ड मेरी चूत में से निकाल कर योग मेरे ऊपर से निचे उतरे और मेरे साथ में ही लेट गए। मेरी आँखें नींद से गहरा रहीं थीं। पर मुझे एक बहुत जरुरी काम करना था। मैं बिस्तर में से नंगी ही खड़ी हुई।
स्त्री सहज लज्जा के कारण मैं अपना उन्माद जाहिर करने में शर्मा रही थी। मेरी उत्तेजना ऐसी थी की मुझे चिल्ला चिल्ला कर अपना उन्माद जाहिर करना चाहिए था। पर मैं एक गहरी साँस लेकर मेरे दिल और दिमाग में उठे हुए बिजली के झटके की तरह लगे धक्के को झेल कर हलकी सी आवाज में कराह उठी, "योग, मैं झड़ रही हूँ। पता नहीं तुमने मुझे आज इसी दुनिया में जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने आजतक ऐसा अनुभव नहीं किया। आज तो गज़ब हो गया।"
मेरा हाल देख योग थोड़ी देर थम गए। उन्हों मेरे स्तनो को जोर से दबाते हुए मेरी और देखा और फिर वही प्यार भरी मंद मंद मुस्कराहट, योग तब तक झड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उनके टिकने की क्षमता काफी थी। मैं भी तो और बहुत अधिक चुदाई करवाना चाहती थी। फिर मेरी गाँड़ को ऊपर उठाकर मैंने उन्हें चोदना जारी रखने का इशारा किया। योग मेरी चूत की गहराईयों का अपने लण्ड द्वारा अनुभव कर रहे थे। साथ में वह मेरे चेहरे के भाव से मेरा उन्माद और मेरे प्यार की भी अनुभूति कर रहे थे। शायद उन्हें उस रात अपनी प्यारी पत्नी कनिका की कमी नहीं खली। उन्हें शायद कनिका के जैसी ही या फिर उससे भी ज्यादा उत्तेजक कामुकता भरी स्त्री साथीदार उस रात मिली थी। मैं उनके चेहरे के भाव पढ़ रही थी और वह मेरे।
मुझे लगा यही मेरे सच्चे पति होने के लायक हैं। मेरे असली पति भी मुझे प्यार करते थे, पर उनका प्यार मेरे बदन के कारण ज्यादा था। मैंने महसूस किया की योग मेरे बदन से कहीं ज्यादा मेरे दिल की गहराइयों में झाँक कर मुझे टटोल कर अपना साथी ढूँढ रहे थे, और शायद उन्हें मुझमें वह साथी नजर आरहा था, जो उनके दिल को समझ सके और उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके और उन्हें भावात्मक ढंग से वह शारीरिक और आत्मिक प्यार दे सके जिसकी हर मर्द और औरत को तलाश होती है। योग भी अब अपनी उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच रहे थे। मुझे धक्का लगा कर चोदते हुए बार बार वह मुझे, "मेरी प्यारी प्रिया, मेरी जान, मुझे छोड़ के मत जाना। तू मेरी है और मेरी ही रहना।" इत्यादि कहते रहते थे। उनकी भौंहें सिकुड़ने लगीं, अब वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहे थे। वह चरम पर पहुँचने वाले ही थे। मैं भी उनके चेहरे का भाव देख कर फिर से उत्तेजित हो उठी, मेरी चूत में फिर वही फड़कन बढ़नी शुरू हो गयी। मैंने योगके धक्के के मुकाबले सामने से मेरी गाँड़ बार बार उठाकर उनकी चुदाई का पूरा साथ देते हुए गर्मजोशी दिखाई और उसके कारण मैं भी फिर से वही उन्मादित बिजली के झटके समान सुनामी के मौजों सी लहार पर सवार होते अनुभव कर रही थी। मैंने योग से कहा, "मेरे प्यारे, तुम जरा भी सोचे बगैर अपना सारा वीर्य मेरी चूत में उँडेल दो। बिलकुल निश्चिन्त रहो। मैंने इसके बारे में काफी सोचा है। तुम्हारे माल को रोकना मत।"
योग ने अपने लण्ड को एक और धक्का देते हुए मेरी चूत में एक जोरदार गरमा गरम फव्वारा छोड़ा। मैंने उसके गर्म और बहुत ज्यादा मात्रा में छोड़े गए वीर्य को मेरी चूत की पूरी सुरंग को लबालब भर देते हुए महसूस किया। देखते ही दखते हम दोनों ही एक साथ झाड़ गए। हम दोनों के एकसाथ झड़ते ही योग के इर्द गिर्द अपनी बाँहों को फैला कर मैंने योग को मेरे नंगे बदन के साथ चिपका दिया और योग के बदन के निचले हिस्से को अपनी जांघों में लपेट कर उनके लण्ड को मेरी चूत में ही रखे हुए मैंने उनको मेरे पर ही रहने दिया और उनकी पीठ और सुआकार गाँड़ को मैं बड़े प्यार से सहलाने लगी। काफी देर तक ऐसे पड़े रहने के बाद धीरे से अपना लण्ड मेरी चूत में से निकाल कर योग मेरे ऊपर से निचे उतरे और मेरे साथ में ही लेट गए। मेरी आँखें नींद से गहरा रहीं थीं। पर मुझे एक बहुत जरुरी काम करना था। मैं बिस्तर में से नंगी ही खड़ी हुई।