16-08-2019, 06:51 PM
यह सूना तो मैं बेहोश सी हो गयी। मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। मैंने योग सर की और आश्चर्य और अविश्वास भरी नज़रों से देखा। मुझे समझ में नहीं आया की उन्होंने वाकई में क्या कहा। मुझे लगा की वह मेरे साथ कोई भद्दा मज़ाक कर रहे थे। एक उच्च कक्षा के प्रोफेशनल प्रोग्रामर से ऐसी भूरी भूरी प्रशंशा की मैंने कोई उम्मीद नहीं राखी थी। जो उन्होंने कहा था वह मुझे हजम नहीं हो रहा था। मुझे लगा की शायद मैंने सही नहीं सूना।
मैंने कुछ आशंका भरे स्वर में योग से पूछा, "सर, आप ने क्या कहा?"
योग ने दुबारा वही कहा जो उन्होंने पहले कहा था। मुझे फिर भी मेरे कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। हां यह सही है की मुझे अपने काम पर विश्वास था। और वास्तव में जो शब्द योग सर ने कहे थे वह सही थे। मैंने और मेरी टीम ने जो महेनत की थी यह उसका सफल परिणाम था। मैं जानती थी की प्रोग्राम वाकई में वाणिज्य के हिसाब से उच्च कक्षा का था उसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं थी l धीरे धीरे जो योग सर ने कहा वह दिमाग में घुसने लगा। वास्तव में तो वह एकदम सही कह रहे थे। मैं अत्याधिक भावावेश में सराबोर हुई थी। मेरी जिंदगी का और मेरी टीम एवं मेरे अपने प्रोफेशनलिजम का यह सबसे मूल्यवान प्रमाणपत्र था। मैं योग के पास गयी और मैं वही भावावेश में उनके सामने प्रस्तुत हुई। उन्होंने अपनी बाहें फैलायीं और मैं उनमें समा गयी। मैंने उनको बड़ा ही गाढ़ आलिंगन करते हुए कहा, "योग सर, आपकी यह मेरे काम की प्रशंशा मेरे लिए मेरी जिन्दगी की सर्व श्रेष्ठ और सबसे मूलयवान भेंट है।" योग सर मेरे भाव पूर्ण आलिंगन से कुछ ख़ास चलित नहीं हुए, बल्कि अपने ही प्रवाह में वह उसी भावावेश में बोले, "मैंने एक एक लिंक (जोड़ी), हर एक डेटा सेट को इतनी शूक्ष्मता और कठोरता से तराशा। कहीं कोई कमी, कोई गलती ढूंढने की बड़ी कोशिश की। पर यह प्रोग्राम इतना स्मूथ है की मुझे कुछ नहीं मिला। मैं अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ की यह प्रोग्राम तुमने बनाया...
मैं तुम्हारा और उन सब महिलाओं का गुनेहगार हूँ की जिनकी काबिलियत के बारे में मैंने आजतक उलटी पुलटि बातें की। मैंने आपकी और उन महिलाओं की काबिलियत के बारे में मेरे कटु वचनों द्वारा दिल दुखाया इस लिए मैं बहुत ही शर्मिन्दा हूँ और उन सब से माफ़ी माँगता हूँ।" तब तक मैं उस अजीबो गरीब उलझन से बाहर आ चुकी थी। मैं नार्मल हो चुकी थी। मैं योग सर की और आगे बढ़ी और उनका हाथ मेरे हाथों में लेकर बोली, "जिसका अंत सही हो वह सही है। मैंने भी आपका एप्प देखा है। आपका एप्प मेरे प्रोग्राम से कोई भी कंप्यूटर पर सहज रूप से ही लिंक हो जाएगा। क्या हम कोशिश करें?" पर तब मैंने योग सर की थकी हुई आँखों को देखा। वह थके हुए दीखते थे। मुझे लगा उनको कुछ सहज एवं तनाव मुक्त माहौल चाहिए।
मैंने कहा, "योग सर, काम को छोड़ते हैं। मैं समझती हूँ अब सफलता मनाने का, सेलिब्रेट करने का समय है। क्या आपके पास शैम्पेन है? मेरा मन करता है की सेलिब्रेट किया जाय।"
योग ने मुझे अपनी हाजरी में इतना आरामदायक स्थिति में पहली बार पाया। वह आश्चर्य से मुझे देखते रहे। योग हमेशा मेरा मन भांप लेते थे। उन्होंने मुझे पहले अपनी हाजरी में हमेशा बेचैन पाया था। अब मुझे तनाव मुक्त पाकर वह खुश नजर आ रहे थे। उन्हें मेरा यह परिवर्तन अच्छा लगा ऐसा मैंने महसूस किया।
उन्होंने जवाब में कहा, "क्यों नहीं डार्लिंग? शैम्पेन की कोई कमी नहीं है। चलिए"
हम चल कर उनके ड्राइंग रूम में पहुंचे। फिर उन्होंने कहा, "आप बैठिये। मैं बस थड़ी ही देर में नहा कर आता हूँ।"
मैंने अपने कंधे हिलाकर मुस्करा कर कहा, "जरूर शौक से जाइये। इसे आप अपना ही घर समझिये।"
योग जैसे ही बाथरूम गए तो मैं उठकर उनके घर की बालकॉनी में गयी जहां से सारा शहर रौशनी के गहनों में लदी हुई दुल्हन की तरह सजा हुआ नजर आ रहा था। निचे मुख्य रस्ते पर सरपट दौड़ती गाड़ियां अत्यंत आकर्षक लग रहीं थीं। वहां से इंसान छोटे से कीड़े मकोड़े की तरह दिख रहे थे। दूर समंदर की लहरें दिख रही थीं।
मैंने कुछ आशंका भरे स्वर में योग से पूछा, "सर, आप ने क्या कहा?"
योग ने दुबारा वही कहा जो उन्होंने पहले कहा था। मुझे फिर भी मेरे कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। हां यह सही है की मुझे अपने काम पर विश्वास था। और वास्तव में जो शब्द योग सर ने कहे थे वह सही थे। मैंने और मेरी टीम ने जो महेनत की थी यह उसका सफल परिणाम था। मैं जानती थी की प्रोग्राम वाकई में वाणिज्य के हिसाब से उच्च कक्षा का था उसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं थी l धीरे धीरे जो योग सर ने कहा वह दिमाग में घुसने लगा। वास्तव में तो वह एकदम सही कह रहे थे। मैं अत्याधिक भावावेश में सराबोर हुई थी। मेरी जिंदगी का और मेरी टीम एवं मेरे अपने प्रोफेशनलिजम का यह सबसे मूल्यवान प्रमाणपत्र था। मैं योग के पास गयी और मैं वही भावावेश में उनके सामने प्रस्तुत हुई। उन्होंने अपनी बाहें फैलायीं और मैं उनमें समा गयी। मैंने उनको बड़ा ही गाढ़ आलिंगन करते हुए कहा, "योग सर, आपकी यह मेरे काम की प्रशंशा मेरे लिए मेरी जिन्दगी की सर्व श्रेष्ठ और सबसे मूलयवान भेंट है।" योग सर मेरे भाव पूर्ण आलिंगन से कुछ ख़ास चलित नहीं हुए, बल्कि अपने ही प्रवाह में वह उसी भावावेश में बोले, "मैंने एक एक लिंक (जोड़ी), हर एक डेटा सेट को इतनी शूक्ष्मता और कठोरता से तराशा। कहीं कोई कमी, कोई गलती ढूंढने की बड़ी कोशिश की। पर यह प्रोग्राम इतना स्मूथ है की मुझे कुछ नहीं मिला। मैं अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ की यह प्रोग्राम तुमने बनाया...
मैं तुम्हारा और उन सब महिलाओं का गुनेहगार हूँ की जिनकी काबिलियत के बारे में मैंने आजतक उलटी पुलटि बातें की। मैंने आपकी और उन महिलाओं की काबिलियत के बारे में मेरे कटु वचनों द्वारा दिल दुखाया इस लिए मैं बहुत ही शर्मिन्दा हूँ और उन सब से माफ़ी माँगता हूँ।" तब तक मैं उस अजीबो गरीब उलझन से बाहर आ चुकी थी। मैं नार्मल हो चुकी थी। मैं योग सर की और आगे बढ़ी और उनका हाथ मेरे हाथों में लेकर बोली, "जिसका अंत सही हो वह सही है। मैंने भी आपका एप्प देखा है। आपका एप्प मेरे प्रोग्राम से कोई भी कंप्यूटर पर सहज रूप से ही लिंक हो जाएगा। क्या हम कोशिश करें?" पर तब मैंने योग सर की थकी हुई आँखों को देखा। वह थके हुए दीखते थे। मुझे लगा उनको कुछ सहज एवं तनाव मुक्त माहौल चाहिए।
मैंने कहा, "योग सर, काम को छोड़ते हैं। मैं समझती हूँ अब सफलता मनाने का, सेलिब्रेट करने का समय है। क्या आपके पास शैम्पेन है? मेरा मन करता है की सेलिब्रेट किया जाय।"
योग ने मुझे अपनी हाजरी में इतना आरामदायक स्थिति में पहली बार पाया। वह आश्चर्य से मुझे देखते रहे। योग हमेशा मेरा मन भांप लेते थे। उन्होंने मुझे पहले अपनी हाजरी में हमेशा बेचैन पाया था। अब मुझे तनाव मुक्त पाकर वह खुश नजर आ रहे थे। उन्हें मेरा यह परिवर्तन अच्छा लगा ऐसा मैंने महसूस किया।
उन्होंने जवाब में कहा, "क्यों नहीं डार्लिंग? शैम्पेन की कोई कमी नहीं है। चलिए"
हम चल कर उनके ड्राइंग रूम में पहुंचे। फिर उन्होंने कहा, "आप बैठिये। मैं बस थड़ी ही देर में नहा कर आता हूँ।"
मैंने अपने कंधे हिलाकर मुस्करा कर कहा, "जरूर शौक से जाइये। इसे आप अपना ही घर समझिये।"
योग जैसे ही बाथरूम गए तो मैं उठकर उनके घर की बालकॉनी में गयी जहां से सारा शहर रौशनी के गहनों में लदी हुई दुल्हन की तरह सजा हुआ नजर आ रहा था। निचे मुख्य रस्ते पर सरपट दौड़ती गाड़ियां अत्यंत आकर्षक लग रहीं थीं। वहां से इंसान छोटे से कीड़े मकोड़े की तरह दिख रहे थे। दूर समंदर की लहरें दिख रही थीं।