16-08-2019, 02:56 PM
हुआ यूं कि मैं अपनी दादाजी की मृत्यु पर गाँव में गया था। हमें 3-4 दिन तक वहाँ रुकना था। वहाँ मेरे बड़े अंकल रहते हैं, जिनकी लड़की प्रीति मेरी उम्र की ही है। हम दोनों में काफ़ी दोस्ती थी और वो मुझे पसंद भी करती थी।
गाँव पहुँचने पर वहाँ मेरी मुलाकात प्रीति से हुई। मैं उसे देख रहा था.. वो भी मेरे चेहरे को देखते हुए मेरे पास आई और मेरे करीब बैठ कर बात करने लगी।
शाम को मेरे चाचा का लड़का प्रतीक, जो मेरे उम्र का ही है, मुझे बुलाने आया, वो बोला- चल प्रीति के साथ खेलते हैं।
मैं छत पर चला गया.. मैंने पूछा- क्या हो रहा है?
उसने बताया कि वे लोग ‘घर-घर’ खेल रहे हैं और प्रीति उसकी बीवी बनी है। प्रीति फ्रॉक पहने हुई थी। हम तीनों खेलने लगे और फिर प्रतीक ने खेल को आगे बढ़ाते हुए कहा- यार समझो कि रात हो गई है.. सो जाओ!
हम तीनों सो गए.. प्रतीक ने प्रीति की फ्रॉक को ऊंचा किया और उसकी चड्डी निकालने का इशारा किया। प्रीति ने तुरंत चड्डी उतार दी। वो उसकी चूत में अपना लंड रगड़ने लगा.. मैं ये देख कर तो दंग रह गया।
मैंने उन दोनों को अलग किया और पूछा- ये क्या कर रहे हो??
प्रतीक बोला- सब मर्द अपनी बीवी के साथ करते हैं। हम पिछले 2 दिन से ऐसे खेल रहे है। प्रीति चाहती है कि तू उसका हज़्बेंड बने और ऐसा करे, इसीलिए तुझे बुलाया है।
मैंने उसकी तरफ देखा, वो मुस्कुराई.. तो मैं भी मचल गया और अपनी चड्डी उतारने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी चुत के ऊपर रखा और रगड़ने लगा। हम दोनों को मजा आ रहा था।
फिर रात को हमने साथ में खाना खाया और सो गए। पापा ने बताया कि कल शाम को वापस शहर जाना है, मुझे लगा अब प्रीति प्रतीक की बीवी बनेगी।
मैंने उससे बात की और मेरे साथ शहर आने के लिए मना लिया।
वो अब मेरे घर पर आ गई.. हम शाम को छत पर घर-घर खेलते और मैं उसको नंगी करके मजा लेता।
दूसरे दिन मैंने उसको बोला- तुम उल्टी लेट जाओ, मुझे तेरी गांड देखनी है।
वो शरमाई.. पर एक-दो बार बोलने पर पलट गई। मैं उसकी गांड की दरारों में लंड फंसा कर हिलाने लगा, बड़ा मजा आया।
अब मैं रोज उसको नंगी करके चूमता और लंड रगड़ता। फिर उसकी गांड को भी खुद दबाया और छेद पर लंड रगड़ा।
कुछ ही दिनों में छुट्टियाँ खत्म हो गईं और वो गाँव चली गई। लेकिन जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया कि वो अब ये घर-घर नहीं खेलेगी और किसी और की बीवी नहीं बनेगी।
उसने भी बोला कि मैं तुम्हारी हूँ।
फिर पापा का तबादला दिल्ली हो गया और हम वहाँ चले गए।
गाँव पहुँचने पर वहाँ मेरी मुलाकात प्रीति से हुई। मैं उसे देख रहा था.. वो भी मेरे चेहरे को देखते हुए मेरे पास आई और मेरे करीब बैठ कर बात करने लगी।
शाम को मेरे चाचा का लड़का प्रतीक, जो मेरे उम्र का ही है, मुझे बुलाने आया, वो बोला- चल प्रीति के साथ खेलते हैं।
मैं छत पर चला गया.. मैंने पूछा- क्या हो रहा है?
उसने बताया कि वे लोग ‘घर-घर’ खेल रहे हैं और प्रीति उसकी बीवी बनी है। प्रीति फ्रॉक पहने हुई थी। हम तीनों खेलने लगे और फिर प्रतीक ने खेल को आगे बढ़ाते हुए कहा- यार समझो कि रात हो गई है.. सो जाओ!
हम तीनों सो गए.. प्रतीक ने प्रीति की फ्रॉक को ऊंचा किया और उसकी चड्डी निकालने का इशारा किया। प्रीति ने तुरंत चड्डी उतार दी। वो उसकी चूत में अपना लंड रगड़ने लगा.. मैं ये देख कर तो दंग रह गया।
मैंने उन दोनों को अलग किया और पूछा- ये क्या कर रहे हो??
प्रतीक बोला- सब मर्द अपनी बीवी के साथ करते हैं। हम पिछले 2 दिन से ऐसे खेल रहे है। प्रीति चाहती है कि तू उसका हज़्बेंड बने और ऐसा करे, इसीलिए तुझे बुलाया है।
मैंने उसकी तरफ देखा, वो मुस्कुराई.. तो मैं भी मचल गया और अपनी चड्डी उतारने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी चुत के ऊपर रखा और रगड़ने लगा। हम दोनों को मजा आ रहा था।
फिर रात को हमने साथ में खाना खाया और सो गए। पापा ने बताया कि कल शाम को वापस शहर जाना है, मुझे लगा अब प्रीति प्रतीक की बीवी बनेगी।
मैंने उससे बात की और मेरे साथ शहर आने के लिए मना लिया।
वो अब मेरे घर पर आ गई.. हम शाम को छत पर घर-घर खेलते और मैं उसको नंगी करके मजा लेता।
दूसरे दिन मैंने उसको बोला- तुम उल्टी लेट जाओ, मुझे तेरी गांड देखनी है।
वो शरमाई.. पर एक-दो बार बोलने पर पलट गई। मैं उसकी गांड की दरारों में लंड फंसा कर हिलाने लगा, बड़ा मजा आया।
अब मैं रोज उसको नंगी करके चूमता और लंड रगड़ता। फिर उसकी गांड को भी खुद दबाया और छेद पर लंड रगड़ा।
कुछ ही दिनों में छुट्टियाँ खत्म हो गईं और वो गाँव चली गई। लेकिन जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया कि वो अब ये घर-घर नहीं खेलेगी और किसी और की बीवी नहीं बनेगी।
उसने भी बोला कि मैं तुम्हारी हूँ।
फिर पापा का तबादला दिल्ली हो गया और हम वहाँ चले गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.