16-08-2019, 02:44 PM
मैंने जोर से चिल्लाते हुए योग को कहा, "योग अब बहुत हो चुका। आप मेरे सीनियर हो और मैं आपका लिहाज करती हूँ इस लिए मैंने अब तक आपसे ज्यादा झिक झिक नहीं की। पर अब हद हो चुकी है। मैं आपको साफ़ साफ़ बता देना चाहती हूँ की मैं आपको चाहना तो दूर, देखना भी नहीं चाहती। मैं आपसे नफ़रत करती हूँ। मैं आपका करियर बर्बाद करना नहीं चाहती इस लिए मैं आपको पहले से चेतावनी देती हूँ की अगर आपने आगे से कोई ऐसी वैसी हरकत की तो मैं आपके विरुद्ध मुझे छेड़ने की और परेशान करने की उच्च स्तर पर शिकायत करुँगी। और हाँ, आप इसे खोखली गीदड़ भभकी समझ ने की गलती मत करियेगा।" मैंने पहेली बार योग के चेहरे पर निराशा, गंभीरता और दुःख के स्पष्ट भाव देखे। शायद उन्हें मुझसे यह उम्मीद नहीं थी। उन्होंने शायद यह सोचा होगा की उन की करतूतों से प्रभावित होकर मैं उनसे कहूँगी, "ठीक है, चलो बोलो कहाँ चलें? आप के घर या मेरे?" शायद न का यह फार्मूला दूसरी लड़कियों के साथ चला होगा। उन्हें दूसरी लड़कियों या महिलाओं से सकारात्मक जवाब मिला होगा। पर मैं दूसरी काठी की औरत थी।
पर फिर मेरे मन ने मुझसे कहा, "अरे बेवकूफ, क्यों अपने आपको धोखा दे रही हो? वाकई मैं तो अंदर से तुम भी तो उनकी बाहों में जाने के लिए मचल रही हो।" मैंने योग के सामने देखा। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे मैंने सब के सामने ही उसे एक थप्पड़ मारा हो। वह बहुत दुखी और निराश लग रहे थे। शायद मैंने उनका दिल तोड़ दिया था। मुझे भी बुरा लगा। मुझे लगा की मुझे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। योग को उस हाल में देख कर मैं भी बहुत दुखी हो गयी। मेरा मन किया की मैं दौड़कर उनकी बाँहों में चली जाऊं और उन्हें अपने बाहु पाश में जकड कर कहूं, "मेरे प्राण, मुझे पागल मत बनाओ। मुझे भी तुमसे चिपक कर पूरी रात भर प्यारसे चुदवाने का बहुत मन है।" यह सोचते ही मेरी जाँघों के बिच में से मेरे प्यार का रस रिसना शुरू हो गया। मेरी टाँगें कमजोर पड़ने लगीं। योग ने मेरी और देखा। उन्होंने मेर चेरे के भाव देखे। शायद योग मेरे मन के भाव पढ़ने में माहिर थे। वह उनकी वही लोलुपता भरी मुस्कान से मुस्करा दिया। पर उस बार मैंने महसूस कियाकी उनमें पहले जितना आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा था। मैं वहाँ से चुपचाप योग की और देखे बिना बाहर निकल गयी और योग वहीँ मेरे पीछे देखते रहे। मेरे योग के प्रति ऐसे आक्रामक वर्ताव से मैं अपने आप पर नाराज हो गयी। मैंने सोचा, अच्छा होता की मैं योग की मुझे उकसाने वाली बातों का कोई जवाब ना देती और चुप ही रहती।
योग तो ऐसे ही थे। मेरे कुछ कहने या करनेसे वह सुधरने वाले नहीं थे। आखिर वह मेरे सीनियर और बड़े ही काबिल साथीदार थे। क्या पता आज नहीं तो कल अगर मुझे उनसे कोई मदद चाहिए तो मुझे उनके पास जाना ही पडेगा। उनके साथ सम्बन्ध बिगाड़ने में मुझे कोई फायदा नज़र नहीं आया। पर तीर कमान से निकल चुका था। मैं मन ही मन प्रभु से प्राथना कर रही थी की ऐसा ना हो की मुझे उनके पास कोई मदद मांगने जाना पड़े। पर कहते हैं ना की आप जिससे डरते हो वह समस्या आपके सामने जरूर जल्द आ खड़ी होती ही है। हुआ कुछ ऐसा की मैं और मेरी टीम ने एक व्यावसायिक औद्योगिक सॉफ्टवेयर प्रोगैम डिज़ाइन किया हुआ था जो टेस्ट पास हो चुका था। हमारी कंपनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट ने उसे सफल होने योग्य करार भी दे दिया था। उनका मानना था की यह प्रोग्राम जब मार्किट में रिलीज़ होगा तो उसे जबरदस्त रिस्पांस मिलेगा और कंपनी को वह अच्छी खासी आमदन प्राप्त करा सकता था। उस प्रोगैम को मुझे तुरंत ही लॉंच करना था। पर एक समस्या थी। उस प्रोग्राम का कंप्यूटर के साथ कॉन्फ़िगर करने के लिए जो एप्प चाहिए था वह हमारी कंपनी में ही योग ने डेवेलोप किया था। तो मुझे योग के पास जाकर उसे वह एप्प मुझे मुहैया कराने के लिए बिनती करने के लिए जाना पडेगा ऐसी स्थिति आ गयी। चाहती तो वह एप्प मैं भी डेवेलोप कर सकती थी। पर मेरे पास समय नहीं था। कंपनी चाहती थी की मेरा प्रोग्राम उसी महीनेमें लॉन्च हो। इसके लिए उन्होंने विज्ञापन आदि की भी व्यवस्था कर रखी थी। जब हमारी ही कंपनी में वह एप्प तैयार था तो भला मैं उसे दुबारा बनाने की जहमत क्यों करूँ? उसमें समय भी लगेगा और कंपनी का पैसा भी खर्च होगा। चूँकि मैं योग पास सीधा जाने में झिझक रही थी, इसलिए मैंने हमारे ग्रुप वाइस प्रेजिडेंट से कहा की वह योग को कहे की जो एप्प मुझे चाहिए उसे मुझे मुहैय्या कराए।
पर फिर मेरे मन ने मुझसे कहा, "अरे बेवकूफ, क्यों अपने आपको धोखा दे रही हो? वाकई मैं तो अंदर से तुम भी तो उनकी बाहों में जाने के लिए मचल रही हो।" मैंने योग के सामने देखा। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे मैंने सब के सामने ही उसे एक थप्पड़ मारा हो। वह बहुत दुखी और निराश लग रहे थे। शायद मैंने उनका दिल तोड़ दिया था। मुझे भी बुरा लगा। मुझे लगा की मुझे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। योग को उस हाल में देख कर मैं भी बहुत दुखी हो गयी। मेरा मन किया की मैं दौड़कर उनकी बाँहों में चली जाऊं और उन्हें अपने बाहु पाश में जकड कर कहूं, "मेरे प्राण, मुझे पागल मत बनाओ। मुझे भी तुमसे चिपक कर पूरी रात भर प्यारसे चुदवाने का बहुत मन है।" यह सोचते ही मेरी जाँघों के बिच में से मेरे प्यार का रस रिसना शुरू हो गया। मेरी टाँगें कमजोर पड़ने लगीं। योग ने मेरी और देखा। उन्होंने मेर चेरे के भाव देखे। शायद योग मेरे मन के भाव पढ़ने में माहिर थे। वह उनकी वही लोलुपता भरी मुस्कान से मुस्करा दिया। पर उस बार मैंने महसूस कियाकी उनमें पहले जितना आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा था। मैं वहाँ से चुपचाप योग की और देखे बिना बाहर निकल गयी और योग वहीँ मेरे पीछे देखते रहे। मेरे योग के प्रति ऐसे आक्रामक वर्ताव से मैं अपने आप पर नाराज हो गयी। मैंने सोचा, अच्छा होता की मैं योग की मुझे उकसाने वाली बातों का कोई जवाब ना देती और चुप ही रहती।
योग तो ऐसे ही थे। मेरे कुछ कहने या करनेसे वह सुधरने वाले नहीं थे। आखिर वह मेरे सीनियर और बड़े ही काबिल साथीदार थे। क्या पता आज नहीं तो कल अगर मुझे उनसे कोई मदद चाहिए तो मुझे उनके पास जाना ही पडेगा। उनके साथ सम्बन्ध बिगाड़ने में मुझे कोई फायदा नज़र नहीं आया। पर तीर कमान से निकल चुका था। मैं मन ही मन प्रभु से प्राथना कर रही थी की ऐसा ना हो की मुझे उनके पास कोई मदद मांगने जाना पड़े। पर कहते हैं ना की आप जिससे डरते हो वह समस्या आपके सामने जरूर जल्द आ खड़ी होती ही है। हुआ कुछ ऐसा की मैं और मेरी टीम ने एक व्यावसायिक औद्योगिक सॉफ्टवेयर प्रोगैम डिज़ाइन किया हुआ था जो टेस्ट पास हो चुका था। हमारी कंपनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट ने उसे सफल होने योग्य करार भी दे दिया था। उनका मानना था की यह प्रोग्राम जब मार्किट में रिलीज़ होगा तो उसे जबरदस्त रिस्पांस मिलेगा और कंपनी को वह अच्छी खासी आमदन प्राप्त करा सकता था। उस प्रोगैम को मुझे तुरंत ही लॉंच करना था। पर एक समस्या थी। उस प्रोग्राम का कंप्यूटर के साथ कॉन्फ़िगर करने के लिए जो एप्प चाहिए था वह हमारी कंपनी में ही योग ने डेवेलोप किया था। तो मुझे योग के पास जाकर उसे वह एप्प मुझे मुहैया कराने के लिए बिनती करने के लिए जाना पडेगा ऐसी स्थिति आ गयी। चाहती तो वह एप्प मैं भी डेवेलोप कर सकती थी। पर मेरे पास समय नहीं था। कंपनी चाहती थी की मेरा प्रोग्राम उसी महीनेमें लॉन्च हो। इसके लिए उन्होंने विज्ञापन आदि की भी व्यवस्था कर रखी थी। जब हमारी ही कंपनी में वह एप्प तैयार था तो भला मैं उसे दुबारा बनाने की जहमत क्यों करूँ? उसमें समय भी लगेगा और कंपनी का पैसा भी खर्च होगा। चूँकि मैं योग पास सीधा जाने में झिझक रही थी, इसलिए मैंने हमारे ग्रुप वाइस प्रेजिडेंट से कहा की वह योग को कहे की जो एप्प मुझे चाहिए उसे मुझे मुहैय्या कराए।