16-08-2019, 02:38 PM
उस दिन लिफ्ट से तो मैंने भाग निकली, परन्तु अगले कुछ दिनों में सारी कहानी अचानक पलट ही गयी। मुझे कई लोगों ने योगराज की बीमार मानसिकता के बारे में बताया। उन्होंने बताया की योगराज बड़ा ही घमंडी और अहंकारी था। वह सफल प्रोफेशनल काबिल महिलाओं से नफरत करता था। उसका मानना था की महिलाओं का स्थान या तो मर्दों की सेज सजाने के लिए है या फिर रसोई घर में। यदि कोई महिला को उसकी व्यावसायिक काबिलियत के लिए कोई सम्मान या प्रमोशन मिलता है तो उसका कारण उसकी काबिलियत नहीं बल्कि उस महिला की उच्च मैनेजमेंट को अपनी सुंदरता एवं सेक्स द्वारा खुश करने की क्षमता के कारण ही मिलता है। वह बार बार सबको यह कहते थे, की काबिल महिआएं रईस और पूंजी पति बॉस के लिए चुदाईके साधन मात्र थे। महिलायें बच्चों को पैदा करने के लिए और मर्दों के सेक्स की भूख को मिटाने के लिए ही होती हैं. उनमें बौद्धिक क्षमता की कमी होती है।
जब मैंने यह सूना तो पहले तो मैं विश्वास नहीं कर पायी, पर जब मैंने बार बार कई लोगों से सूना तो मैं हैरान रह गयी। आज के आधुनिक जमाने में भला एक पढ़ा लिखा इंसान ऐसा कैसे सोच सकता है? मैं भी तो एक सफल बुद्धि जीवी व्यावसायिक काबिल व्यक्ति थी। अगर मुझे कोई ऐसा कहे की मैं मंद बुद्धि औरत हूँ और मेरी सफलता का कारण यह था की मैं बॉस लोगों से सेक्स करने से परहेज नहीं रखती थी तो मुझे कैसा लगेगा? यदि कोई यह कहे की मैं मर्दों की चुदाई के लिए एक साधन मात्र हूँ तो मैं भला उसे कैसे बर्दाश्त करुँगी? मेरे मन में योगराज के प्रति जो कामुकता के भाव थे, उसकी जगह नफरत ने लेली। अगर योगराज का ऐसा सोचना था तो फिर मैंने तय किया की मैं उसे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की जिंदगी भर वह औरतों को इतनी घटिया नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं उन्हें यह बताउंगी की महिलायें सेक्स के खिलौने नहीं है। उनमें भी खूब क्षमता है और कई क्षेत्रों में तो वह मर्दों से भी आगे है। जैसे जैसे मैं योगराज के बारे में सोचती गयी उनके प्रति मेरी घृणा बढ़ती गयी। मैं मौक़ा ढूंढती थी की कब मुझे योगराज को खरी खोटी सुनाने का मौक़ा मिले और मैं उसे अच्छा पाठ पढ़ाऊँ। और मुझे वह मौका जल्द ही मिल भी गया।
मैं मेरी टीम की एक सदस्यके साथ हमारे ऑफिस के ही बगल के कॉफ़ी शॉप में कॉफ़ी पी रही थी। मुझे साथ वाली कैबिन में से योगराज की आवाज़ सुनाई पड़ी। योगराज भी अपने कुछ साथीदारों से कुछ बात कर रहे थे। हमें उनकी आवाजें स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं। योगराज की एक महिला साथीदार ने योगराज से हमारी ही ऑफिस की एक और टीम की बड़ी सफलता के बारे में कहा।उसने कहा की वह सफलता में एक महिला का बड़ा योगदान था और उसके योगदान के लिए वह महिला को कंपनी ने बड़ा सराहा और एक प्रमोशन और बढ़ावा भी दिया। यह सुनकर योगराज तिलमिला उठे और जोर से बोलने लगे, "बकवास है। उस महिला का क्या योगदान था? क्या उसे अपनी काबिलियत के लिए वह प्रशंशा, प्रमोशन और बढ़ावा मिला था या फिर उस महिला को अपनी खूब सूरत जाँघों को प्रदर्शित करने के लिए मिला था?" योगराज के जोर से बोले हुए यह वचन सुनकर कमरे में बैठे हुए सारे लोग सकते में आ गये। योगराज हमारी कंपनी का एक जिम्मेवार एवं सीनियर लीडर था। उसके वाक्य कंपनी के कर्मचारियों के लिए मायने रखते थे। मेरे लिए इतना सुनना ही काफी था। मैं मारे गुस्से के लाल हो गयी और अपने दोनों हाथों को मोड़ कर अपनी कमर पर दोनों हाथोंकी हथेलियों को टिकाकर आग बबूला हो कर योगराज के सामने आ खड़ी हुई।
मैं गुस्से भरी नजर से योगराज की और देखते हुए कहा, "अच्छा! तो आप कहते हो की उस महिला को अपनी काबिलियत के लिए नहीं बल्कि उसकी खूबसूरत जाँघों के लिए वह सब प्रशंशा, प्रमोशन और दूसरे पारितोषिक मिले ठीक है? क्या इसका मतलब यह हुआ की आप उन सब लोगों से ज्यादा अक्लमंद हो जिन्होंने उस महिला की कार्य क्षमता को परखा?" शायद मेरे शब्दों से कहीं ज्यादा मेरी धमकी भरी अंगभंगिमा देख कर योगराज कुछ देर तक मुझे स्तब्ध हो कर ताकते ही रहे। उन्हें पता नहीं था की मैं भी वहाँ उनकी बातें सुन रही थी। उन्होंने फिर मुझे ऊपर से निचे आँखे घुमाकर प्रशंशा भरी नजर से देखा और फिर थोड़ा मुस्कुराकर वही लोलुप नज़रों से देखते हुए बोले, "बापरे! माफ़ करना श्रीमती जी, मैं किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा था। भाई अब मैं मानता हूँ की निर्णायकों का कोई भी दोष नहीं है। अगर मैं भी उनकी जगह होता और मुझे भी तुम्हारी जैसी सुन्दर फिगर वाली सेक्सी महिला की कार्यदक्षता का मूल्यांकन करना होता तो मैं भी वही करता जो उन्होंने किया।" योगराज की बातें सुनकर मुझे सारे कमरे के लोगो के चेहरे पर कटाक्ष भरी हंसी दिखाई दी। यह तो उलटा हो गया। मैं योग की बात काटने चली थी और इधर मेरी ही फिरकी उड़ गयी। मैं सब को हँसते देख कर खिसिया गयी और गुस्से में कॉफ़ी शॉप से उँफ की आवाज़ कर के बाहर निकल गयी।
जब मैंने यह सूना तो पहले तो मैं विश्वास नहीं कर पायी, पर जब मैंने बार बार कई लोगों से सूना तो मैं हैरान रह गयी। आज के आधुनिक जमाने में भला एक पढ़ा लिखा इंसान ऐसा कैसे सोच सकता है? मैं भी तो एक सफल बुद्धि जीवी व्यावसायिक काबिल व्यक्ति थी। अगर मुझे कोई ऐसा कहे की मैं मंद बुद्धि औरत हूँ और मेरी सफलता का कारण यह था की मैं बॉस लोगों से सेक्स करने से परहेज नहीं रखती थी तो मुझे कैसा लगेगा? यदि कोई यह कहे की मैं मर्दों की चुदाई के लिए एक साधन मात्र हूँ तो मैं भला उसे कैसे बर्दाश्त करुँगी? मेरे मन में योगराज के प्रति जो कामुकता के भाव थे, उसकी जगह नफरत ने लेली। अगर योगराज का ऐसा सोचना था तो फिर मैंने तय किया की मैं उसे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की जिंदगी भर वह औरतों को इतनी घटिया नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं उन्हें यह बताउंगी की महिलायें सेक्स के खिलौने नहीं है। उनमें भी खूब क्षमता है और कई क्षेत्रों में तो वह मर्दों से भी आगे है। जैसे जैसे मैं योगराज के बारे में सोचती गयी उनके प्रति मेरी घृणा बढ़ती गयी। मैं मौक़ा ढूंढती थी की कब मुझे योगराज को खरी खोटी सुनाने का मौक़ा मिले और मैं उसे अच्छा पाठ पढ़ाऊँ। और मुझे वह मौका जल्द ही मिल भी गया।
मैं मेरी टीम की एक सदस्यके साथ हमारे ऑफिस के ही बगल के कॉफ़ी शॉप में कॉफ़ी पी रही थी। मुझे साथ वाली कैबिन में से योगराज की आवाज़ सुनाई पड़ी। योगराज भी अपने कुछ साथीदारों से कुछ बात कर रहे थे। हमें उनकी आवाजें स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं। योगराज की एक महिला साथीदार ने योगराज से हमारी ही ऑफिस की एक और टीम की बड़ी सफलता के बारे में कहा।उसने कहा की वह सफलता में एक महिला का बड़ा योगदान था और उसके योगदान के लिए वह महिला को कंपनी ने बड़ा सराहा और एक प्रमोशन और बढ़ावा भी दिया। यह सुनकर योगराज तिलमिला उठे और जोर से बोलने लगे, "बकवास है। उस महिला का क्या योगदान था? क्या उसे अपनी काबिलियत के लिए वह प्रशंशा, प्रमोशन और बढ़ावा मिला था या फिर उस महिला को अपनी खूब सूरत जाँघों को प्रदर्शित करने के लिए मिला था?" योगराज के जोर से बोले हुए यह वचन सुनकर कमरे में बैठे हुए सारे लोग सकते में आ गये। योगराज हमारी कंपनी का एक जिम्मेवार एवं सीनियर लीडर था। उसके वाक्य कंपनी के कर्मचारियों के लिए मायने रखते थे। मेरे लिए इतना सुनना ही काफी था। मैं मारे गुस्से के लाल हो गयी और अपने दोनों हाथों को मोड़ कर अपनी कमर पर दोनों हाथोंकी हथेलियों को टिकाकर आग बबूला हो कर योगराज के सामने आ खड़ी हुई।
मैं गुस्से भरी नजर से योगराज की और देखते हुए कहा, "अच्छा! तो आप कहते हो की उस महिला को अपनी काबिलियत के लिए नहीं बल्कि उसकी खूबसूरत जाँघों के लिए वह सब प्रशंशा, प्रमोशन और दूसरे पारितोषिक मिले ठीक है? क्या इसका मतलब यह हुआ की आप उन सब लोगों से ज्यादा अक्लमंद हो जिन्होंने उस महिला की कार्य क्षमता को परखा?" शायद मेरे शब्दों से कहीं ज्यादा मेरी धमकी भरी अंगभंगिमा देख कर योगराज कुछ देर तक मुझे स्तब्ध हो कर ताकते ही रहे। उन्हें पता नहीं था की मैं भी वहाँ उनकी बातें सुन रही थी। उन्होंने फिर मुझे ऊपर से निचे आँखे घुमाकर प्रशंशा भरी नजर से देखा और फिर थोड़ा मुस्कुराकर वही लोलुप नज़रों से देखते हुए बोले, "बापरे! माफ़ करना श्रीमती जी, मैं किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा था। भाई अब मैं मानता हूँ की निर्णायकों का कोई भी दोष नहीं है। अगर मैं भी उनकी जगह होता और मुझे भी तुम्हारी जैसी सुन्दर फिगर वाली सेक्सी महिला की कार्यदक्षता का मूल्यांकन करना होता तो मैं भी वही करता जो उन्होंने किया।" योगराज की बातें सुनकर मुझे सारे कमरे के लोगो के चेहरे पर कटाक्ष भरी हंसी दिखाई दी। यह तो उलटा हो गया। मैं योग की बात काटने चली थी और इधर मेरी ही फिरकी उड़ गयी। मैं सब को हँसते देख कर खिसिया गयी और गुस्से में कॉफ़ी शॉप से उँफ की आवाज़ कर के बाहर निकल गयी।