16-08-2019, 02:32 PM
मेरे पति को मेरी खुली चुनौती
Ch. 03 - योगराज
मैं अब अपने पति की और से निश्चिंत हो चुकी थी। बल्कि मुझे उनसे बदला लेना था। मेरे पति को मुझ में कोई रस नहीं रहा था। मेरी चूत में बड़ी मचलन हो रही थी। मुझे किसी मोटे लण्ड से चुदवाने की ललक बढ़ गयी थी। जाते आते और ऑफिस में भी मुझे कई वीर्य वान और सुन्दर बदन वाले पुरुष हर रोज ताड़ते रहते थे। शायद उनके मन में भी मुझे चोदने की इच्छा जरूर छिपी हुई होगी। यह सोच कर मेरी दबी हुई सम्भोग की इच्छा भड़क उठी। मैं रोज रात को किसी ना किसी पुरुष से सम्भोग के सपने देखने लगी। पर सपने भला सच्चाई की जगह थोड़े ही ले सकते हैं? जाते आते मैं अब पुरुषों को ज्यादा पैनी नजर से देखने लगी। पर मेरी नजर में मुझे मेरे काबिल कोई भी पुरुष नहीं लगा।
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हाँ एक योगराज थे जो मुझे मेर काबिल लगे। वह मुझसे थोड़ा सीनियर थे। एकदम आकर्षक व्यक्तित्व, लंबा, गठा हुआ सुडौल कसरती बदन, भरी हुई मांसल भुजाएं, घने बाल, चौड़ा सीना और न जाने क्यों पर चेहरे पर एक अजीब सा खोया खोया सा भाव मेरे मन को छू गया। उसे देखते ही जैसे मेरे पाँव के बीच में से कुछ कुछ होने लगता। शायद मेरे मन में एक गुप्त भाव हुआ की वह जरूर मेरे बदन की गर्मी और भूख को शांत करने की क्षमता रखते थे। वह पहले व्यक्ति थे जिसको मैंने ध्यान से देखा था जब मैंने पहली बार मेरी कंपनी ज्वाइन की थी। पर उस समय मैं अपने पति के रंग में रंगी हुई थी। फिर भी जब पहली बार उनसे मिलने उनके कमरे में गयी तब उन्हें देख कर मैं देखती ही रह गयी। और आश्चर्य मुझे तब हुआ जब वह भी मुझे कितने लम्बे समय तक ताकते ही रहे। साधारणतः आपकी महिला साथीदार कितनी ही सुन्दर क्यों ना हो, पर आप उसे ताक कर देख नहीं सकते। यह असभ्य माना जाता है। पर योगराज मुझे ना सिर्फ ताकते रहे बल्कि मुझे देखकर उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया। यह तो एक बड़ी अजीब बात थी।
मैंने गला खूंखार कर जब उन्हें इशारा किया तब उन्होंने अचानक अपने आपको सम्हाला और बोलै, " प्रिया, प्लीज आप को इस तरह ताकने के लिये मुझे माफ़ करें। आपकी शक्ल देख कर मैं थोड़ी देर के लिए धोका सा खा गया। आप कितनी खूब सूरत हो।" फिर एक गहरी साँस लेकर वह वहाँ से हट गए। शर्म के मारे मैं पानी पानी हो रही थी। सामान्यतः ऐसे प्रशंशा से भरे हुए वचन सुनकर मैं खुश हो जाती। पर उस दिन मुझे उनका यह वर्तन कुछ अजीब सा लगा। खैर वह समा चला गया और योगराज ने मुझे अपना परिचय दिया और उनकी टीम से मिलाया l शुरुआत के वह अजीब लम्हें को नजर अंदाज करें तो वह मीटिंग यादगार रही। मैं योगराज के बरबस आकर्षित करने वाले व्यक्तित्व से काफी प्रभावित या कहूं की आकर्षित हुई तो वह गलत नहीं होगा। वह हमेशा छोटी सी कटी हुई दाढ़ी रखते थे जो उनके आकर्षक व्यक्तित्व को कामुकता प्रदान करती थी।
पहले ही दिन से मैं महसूस कर रही थी की जब भी मौक़ा मिलता, योगराज मुझे ताकते ही रहते थे। जब हमारी नजरें मिलतीं तो वह शर्मिन्दा होकर अपनी नजर हटा दिया करते। उनकी नज़रों में मैं एक गहरा अजीब भाव देख रही थी। उन्होंने कभी भी मुझसे किसी तरह की कोई गलत हरकत नहीं की। समय के बीतते योगराज नजरें भी मेरे पुरे बदन पर घूमने लगीं। अब वह पहले वाला अजीब सा भाव जाता रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे से नजरे मिलने पर जैसे कोई गुप्त सन्देश दे रहे थे। उनकी नजर इतनी शुक्ष्म और गुह्य थी की हमारे पुरे ऑफिस में कोई भी हमारी नज़रों का आदान प्रदान के बारे में समझ ही नहीं सका। शुरू से ही मैं भी उनकी नजरों का मेरी पैनी नजर से जवाब देना चाहती थी, पर चूँकि मैं शादी शुदा थी और उस समय शादी के कस्मे वादे बगैरह में मेरा अंध विश्वास था, मैं उनके इशारों को उपेक्षित करती रही। पर अजित से नाता तोड़ने के कुछ हफ़्तों के बाद से मैंने योग (योगराज) की नज़रों का मीठी सी मुस्कान देकर जवाब देना शुरू किया। जैसे ही मैंने योग को मीठी नजर से जवाब देना शुरू किया, की हम दोनों के बीच की आँखों आँखों की मस्ती बढ़ती गयी।
Ch. 03 - योगराज
मैं अब अपने पति की और से निश्चिंत हो चुकी थी। बल्कि मुझे उनसे बदला लेना था। मेरे पति को मुझ में कोई रस नहीं रहा था। मेरी चूत में बड़ी मचलन हो रही थी। मुझे किसी मोटे लण्ड से चुदवाने की ललक बढ़ गयी थी। जाते आते और ऑफिस में भी मुझे कई वीर्य वान और सुन्दर बदन वाले पुरुष हर रोज ताड़ते रहते थे। शायद उनके मन में भी मुझे चोदने की इच्छा जरूर छिपी हुई होगी। यह सोच कर मेरी दबी हुई सम्भोग की इच्छा भड़क उठी। मैं रोज रात को किसी ना किसी पुरुष से सम्भोग के सपने देखने लगी। पर सपने भला सच्चाई की जगह थोड़े ही ले सकते हैं? जाते आते मैं अब पुरुषों को ज्यादा पैनी नजर से देखने लगी। पर मेरी नजर में मुझे मेरे काबिल कोई भी पुरुष नहीं लगा।
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हाँ एक योगराज थे जो मुझे मेर काबिल लगे। वह मुझसे थोड़ा सीनियर थे। एकदम आकर्षक व्यक्तित्व, लंबा, गठा हुआ सुडौल कसरती बदन, भरी हुई मांसल भुजाएं, घने बाल, चौड़ा सीना और न जाने क्यों पर चेहरे पर एक अजीब सा खोया खोया सा भाव मेरे मन को छू गया। उसे देखते ही जैसे मेरे पाँव के बीच में से कुछ कुछ होने लगता। शायद मेरे मन में एक गुप्त भाव हुआ की वह जरूर मेरे बदन की गर्मी और भूख को शांत करने की क्षमता रखते थे। वह पहले व्यक्ति थे जिसको मैंने ध्यान से देखा था जब मैंने पहली बार मेरी कंपनी ज्वाइन की थी। पर उस समय मैं अपने पति के रंग में रंगी हुई थी। फिर भी जब पहली बार उनसे मिलने उनके कमरे में गयी तब उन्हें देख कर मैं देखती ही रह गयी। और आश्चर्य मुझे तब हुआ जब वह भी मुझे कितने लम्बे समय तक ताकते ही रहे। साधारणतः आपकी महिला साथीदार कितनी ही सुन्दर क्यों ना हो, पर आप उसे ताक कर देख नहीं सकते। यह असभ्य माना जाता है। पर योगराज मुझे ना सिर्फ ताकते रहे बल्कि मुझे देखकर उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया। यह तो एक बड़ी अजीब बात थी।
मैंने गला खूंखार कर जब उन्हें इशारा किया तब उन्होंने अचानक अपने आपको सम्हाला और बोलै, " प्रिया, प्लीज आप को इस तरह ताकने के लिये मुझे माफ़ करें। आपकी शक्ल देख कर मैं थोड़ी देर के लिए धोका सा खा गया। आप कितनी खूब सूरत हो।" फिर एक गहरी साँस लेकर वह वहाँ से हट गए। शर्म के मारे मैं पानी पानी हो रही थी। सामान्यतः ऐसे प्रशंशा से भरे हुए वचन सुनकर मैं खुश हो जाती। पर उस दिन मुझे उनका यह वर्तन कुछ अजीब सा लगा। खैर वह समा चला गया और योगराज ने मुझे अपना परिचय दिया और उनकी टीम से मिलाया l शुरुआत के वह अजीब लम्हें को नजर अंदाज करें तो वह मीटिंग यादगार रही। मैं योगराज के बरबस आकर्षित करने वाले व्यक्तित्व से काफी प्रभावित या कहूं की आकर्षित हुई तो वह गलत नहीं होगा। वह हमेशा छोटी सी कटी हुई दाढ़ी रखते थे जो उनके आकर्षक व्यक्तित्व को कामुकता प्रदान करती थी।
पहले ही दिन से मैं महसूस कर रही थी की जब भी मौक़ा मिलता, योगराज मुझे ताकते ही रहते थे। जब हमारी नजरें मिलतीं तो वह शर्मिन्दा होकर अपनी नजर हटा दिया करते। उनकी नज़रों में मैं एक गहरा अजीब भाव देख रही थी। उन्होंने कभी भी मुझसे किसी तरह की कोई गलत हरकत नहीं की। समय के बीतते योगराज नजरें भी मेरे पुरे बदन पर घूमने लगीं। अब वह पहले वाला अजीब सा भाव जाता रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे से नजरे मिलने पर जैसे कोई गुप्त सन्देश दे रहे थे। उनकी नजर इतनी शुक्ष्म और गुह्य थी की हमारे पुरे ऑफिस में कोई भी हमारी नज़रों का आदान प्रदान के बारे में समझ ही नहीं सका। शुरू से ही मैं भी उनकी नजरों का मेरी पैनी नजर से जवाब देना चाहती थी, पर चूँकि मैं शादी शुदा थी और उस समय शादी के कस्मे वादे बगैरह में मेरा अंध विश्वास था, मैं उनके इशारों को उपेक्षित करती रही। पर अजित से नाता तोड़ने के कुछ हफ़्तों के बाद से मैंने योग (योगराज) की नज़रों का मीठी सी मुस्कान देकर जवाब देना शुरू किया। जैसे ही मैंने योग को मीठी नजर से जवाब देना शुरू किया, की हम दोनों के बीच की आँखों आँखों की मस्ती बढ़ती गयी।