16-08-2019, 12:45 PM
हर औरत उँगलियों की चुदाई से बहुत ज्यादा उत्तेजित होती है यह मर्दों को पता होता है। उँगलियों से अगर अच्छी तरह आप किसी औरत को चोदते हो तो वह बेचारी आपके लण्ड से चुदवाने के लिए बेबाक हो जायेगी। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। जैसे जैसे अजित ने उँगलियों से चोदने की रफ़्तार बढ़ाई, मैं उसे लण्ड से चोदने के लिए मिन्नतें करने लगी।
मैंने उसे कहा, "अजित अब सब हो गया, अब मैं तुम्हारा यह लंबा लण्ड लेना चाहती हूँ। कई महीनों से मैं चुदी नहीं। मुझे अब तुम्हारे इस मोटे लम्बे लण्ड से मेरी चूत की भूख और प्यास मिटानी है। तुम जल्दी ही मेरे ऊपर चढ़ जाओ और तुम्हारा लण्ड मेरी चूत में पेलना शुरू करो। अब अगर देर करोगे तो मैं तो तुम्हारी उँगलियों की चुदाई से ही ढेर हो जाउंगी। फिर पता नहीं तुमसे चुदवाने की ताकत रहेगी या नहीं।"
पर अजित ने मेरी एक ना सुनी। वह उँगलियों से तेज रफ़्तार से मेरी चुदाई करता रहा। मैं अपने आप को रोक पाने में असमर्थ थी। मैं कामाग्नि से जल रही थी और अपनी उत्तेजना के चरम पर पहुँच रही थी। अजित ने थोड़ी देर और उँगलियों से मुझे चोदना जारी रखा तो मैं अजित का हाथ पकड़ कर, "अजित, गजब हो गया यार, आह... उफ़.... ओह... कराहते हुए मैं लुढ़क गयी और मेरी चूत मैं ऐसी मौजों की पुरजोश उठी की मेरा रोम रोम अकड़ गया और एक बड़ी आह के साथ मेरा छूट गया। मैं बिस्तर पर ही ढेर हो गयी। मुझे लुढ़कते हुए देख कर अजित ने अपनी उंगलियां मेरी चूत में से निकाल ली। उसकी उंगलियां मेरे स्त्री रस से पूरी तरह लबालब थीं। अजित ने एक उंगली खुद चाटी और एक उंगली मेरे मुंह में डाली। मैंने अपनी ही चूत के रस को चाट लिया। मेरी साँसे फूल रही थी। मेरी छाती तेजी से ऊपर निचे हो रही थी जिससे मेरे दोनों स्तन इधरउधर हिल रहे थे। अजित ने उन्हें अपनी हथेलियों में दबोच लिया और उन्हें कस के दबाने और मसलने लगा।
थोड़ी देर बिस्तर पर पड़े रहने के बाद मेरी साँसों की तेज रफ़्तार थोड़ी धीमी हुई। मैं अजित का लंबा और मोटा लण्ड मेरी चूत में डलवाने के लिए बेकरार थी। मैंने अजित को धक्का मार कर कहा, "चल साले चढ़ जा और दिखा अपनी मर्दानगी। मैं भी देखूं की आज तुझ में कितना दम है। देखती हूँ तेरा लण्ड कितनी देर मुझे चोद सकता है। जल्दी ढेर मत हो जाना। आज मैं पूरी रात तुझ से चुदवाना चाहती हूँ। तेरे में जितना दमखम है निकाल ले। पर हाँ, तु उस मेज के दराज में पीछे कण्डोम रखे हैं। उसमें से एक कंडोम अपने लंड पर लगा ले। मुझे डर है कहीं तू मुझे गर्भवती ना कर दे।" अजित ने फटाफट एक कंडोम निकाला और अपने लण्ड पर चढ़ा दिया। अब अजित का लण्ड उस प्लास्टिक की टोटी में अजीब सा लग रहा था। मैं अजित से कोई लंबा सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी की उस रात की चुदाई मेरी जिंदगी में कोई गजब ढाए। मैं अजित को चुदाई का आनंद देना चाहती थी। और कई महीनों से लण्ड की भूखी मेरी चूत की भूख मिटाना चाहती थी। बस इतनी ही बात थी। मुझ में और अजित के स्वभाव के बिच में बड़ा अंतर था। हमारी सोच अलग थी, हमारा रास्ता अलग था।
अजित मेरी दोनों टाँगों के बिच आ गया। उसने मेरी टाँगें अपने कंधे पे रखीं और अपना लण्ड मेरी चूत के छिद्र पर रख दिया। मैंने उसके लण्ड को अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगी ताकि मेरी चूत का द्वार और उसका लण्ड चिकनाहट से पूरी तरह स्निग्ध रहे जिससे अजित का लंड घुसने के समय मुझे ज्यादा तकलीफ ना हो। वैसे तो मेरी चूत में से मेरा स्त्री रस इतनी तेजी से रिस रहा था पर चूँकि अजित का लण्ड कंडोम में था इस लिए कंडोम को बाहर चिकना करना जरुरी था। मैंने अजित को इशारा किया की अपना लण्ड वह मेरी चूत में डाल दे। अजित ने एक धक्का मारा और उसका लण्ड मेरी फड़कती चूत में घुस गया।
इतनी सावधानी बरतने के बावजूद भी मेरी चूत में दर्द की टीस सी उठी। मेरी चूत का छिद्र छोटा होने के कारण मैं अक्सर चुदाई की शुरुआत में ऐसे ही परेशान रहती थी। मेरी दर्द भरी कराहट सुनकर अजित थोड़ी देर रुका। पर मैंने उसे चुदाई करने का इशारा किया तो उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और एक और धक्का दे कर उसे फिर मेरी चूत में घुसेड़ा। धीरे धीरे अजितने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ दिया। काफी महीनों के बाद मेरी चूत में लण्ड को पाकर मेरी चूत तेजी से फड़कने लगी। मेरी चूत के अंदर की नसें और स्नायु ने अजित को लण्ड को जकड लिया था। अजित के लण्ड को मेरी चूत की फड़कन शायद महसूस हो रही थी। यह उसे बता रही थी की मैं भी उससे चुदवाने के लिए कितनी बेताब थी। अजित के बड़े अंडकोष मेरी चूत और गाँड़ पर "छप छप" थपेड़ मार रहे थे। जैसे ही अजित ने चोदने के रफ़्तार तेज की, मेरा बदन अजित के धक्कों से पूरा इतनी तेजी से हिल रहा था की मेरा पलंग भी इधर उधर हो रहा था। अजित एक अच्छा चोदने वाला साबित हो रहा था। मुझे काफी अरसे के बाद इतनी बढिया चुदाई का अवसर मिला था।
मैंने उसे कहा, "अजित अब सब हो गया, अब मैं तुम्हारा यह लंबा लण्ड लेना चाहती हूँ। कई महीनों से मैं चुदी नहीं। मुझे अब तुम्हारे इस मोटे लम्बे लण्ड से मेरी चूत की भूख और प्यास मिटानी है। तुम जल्दी ही मेरे ऊपर चढ़ जाओ और तुम्हारा लण्ड मेरी चूत में पेलना शुरू करो। अब अगर देर करोगे तो मैं तो तुम्हारी उँगलियों की चुदाई से ही ढेर हो जाउंगी। फिर पता नहीं तुमसे चुदवाने की ताकत रहेगी या नहीं।"
पर अजित ने मेरी एक ना सुनी। वह उँगलियों से तेज रफ़्तार से मेरी चुदाई करता रहा। मैं अपने आप को रोक पाने में असमर्थ थी। मैं कामाग्नि से जल रही थी और अपनी उत्तेजना के चरम पर पहुँच रही थी। अजित ने थोड़ी देर और उँगलियों से मुझे चोदना जारी रखा तो मैं अजित का हाथ पकड़ कर, "अजित, गजब हो गया यार, आह... उफ़.... ओह... कराहते हुए मैं लुढ़क गयी और मेरी चूत मैं ऐसी मौजों की पुरजोश उठी की मेरा रोम रोम अकड़ गया और एक बड़ी आह के साथ मेरा छूट गया। मैं बिस्तर पर ही ढेर हो गयी। मुझे लुढ़कते हुए देख कर अजित ने अपनी उंगलियां मेरी चूत में से निकाल ली। उसकी उंगलियां मेरे स्त्री रस से पूरी तरह लबालब थीं। अजित ने एक उंगली खुद चाटी और एक उंगली मेरे मुंह में डाली। मैंने अपनी ही चूत के रस को चाट लिया। मेरी साँसे फूल रही थी। मेरी छाती तेजी से ऊपर निचे हो रही थी जिससे मेरे दोनों स्तन इधरउधर हिल रहे थे। अजित ने उन्हें अपनी हथेलियों में दबोच लिया और उन्हें कस के दबाने और मसलने लगा।
थोड़ी देर बिस्तर पर पड़े रहने के बाद मेरी साँसों की तेज रफ़्तार थोड़ी धीमी हुई। मैं अजित का लंबा और मोटा लण्ड मेरी चूत में डलवाने के लिए बेकरार थी। मैंने अजित को धक्का मार कर कहा, "चल साले चढ़ जा और दिखा अपनी मर्दानगी। मैं भी देखूं की आज तुझ में कितना दम है। देखती हूँ तेरा लण्ड कितनी देर मुझे चोद सकता है। जल्दी ढेर मत हो जाना। आज मैं पूरी रात तुझ से चुदवाना चाहती हूँ। तेरे में जितना दमखम है निकाल ले। पर हाँ, तु उस मेज के दराज में पीछे कण्डोम रखे हैं। उसमें से एक कंडोम अपने लंड पर लगा ले। मुझे डर है कहीं तू मुझे गर्भवती ना कर दे।" अजित ने फटाफट एक कंडोम निकाला और अपने लण्ड पर चढ़ा दिया। अब अजित का लण्ड उस प्लास्टिक की टोटी में अजीब सा लग रहा था। मैं अजित से कोई लंबा सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी की उस रात की चुदाई मेरी जिंदगी में कोई गजब ढाए। मैं अजित को चुदाई का आनंद देना चाहती थी। और कई महीनों से लण्ड की भूखी मेरी चूत की भूख मिटाना चाहती थी। बस इतनी ही बात थी। मुझ में और अजित के स्वभाव के बिच में बड़ा अंतर था। हमारी सोच अलग थी, हमारा रास्ता अलग था।
अजित मेरी दोनों टाँगों के बिच आ गया। उसने मेरी टाँगें अपने कंधे पे रखीं और अपना लण्ड मेरी चूत के छिद्र पर रख दिया। मैंने उसके लण्ड को अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगी ताकि मेरी चूत का द्वार और उसका लण्ड चिकनाहट से पूरी तरह स्निग्ध रहे जिससे अजित का लंड घुसने के समय मुझे ज्यादा तकलीफ ना हो। वैसे तो मेरी चूत में से मेरा स्त्री रस इतनी तेजी से रिस रहा था पर चूँकि अजित का लण्ड कंडोम में था इस लिए कंडोम को बाहर चिकना करना जरुरी था। मैंने अजित को इशारा किया की अपना लण्ड वह मेरी चूत में डाल दे। अजित ने एक धक्का मारा और उसका लण्ड मेरी फड़कती चूत में घुस गया।
इतनी सावधानी बरतने के बावजूद भी मेरी चूत में दर्द की टीस सी उठी। मेरी चूत का छिद्र छोटा होने के कारण मैं अक्सर चुदाई की शुरुआत में ऐसे ही परेशान रहती थी। मेरी दर्द भरी कराहट सुनकर अजित थोड़ी देर रुका। पर मैंने उसे चुदाई करने का इशारा किया तो उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और एक और धक्का दे कर उसे फिर मेरी चूत में घुसेड़ा। धीरे धीरे अजितने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ दिया। काफी महीनों के बाद मेरी चूत में लण्ड को पाकर मेरी चूत तेजी से फड़कने लगी। मेरी चूत के अंदर की नसें और स्नायु ने अजित को लण्ड को जकड लिया था। अजित के लण्ड को मेरी चूत की फड़कन शायद महसूस हो रही थी। यह उसे बता रही थी की मैं भी उससे चुदवाने के लिए कितनी बेताब थी। अजित के बड़े अंडकोष मेरी चूत और गाँड़ पर "छप छप" थपेड़ मार रहे थे। जैसे ही अजित ने चोदने के रफ़्तार तेज की, मेरा बदन अजित के धक्कों से पूरा इतनी तेजी से हिल रहा था की मेरा पलंग भी इधर उधर हो रहा था। अजित एक अच्छा चोदने वाला साबित हो रहा था। मुझे काफी अरसे के बाद इतनी बढिया चुदाई का अवसर मिला था।