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Adultery चुनौती... (Complete)
#11
मुझे अपने घर में अकेले में हल्का फुल्का गीला रहकर नंगी घूमना अच्छा लगता था। मैंने सीधे आधे गीले नंगे बदन पर ही अपनी नाइटी पहन ली और सोने के लिए बिस्तर के पास पहुँच ही रही थी की दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजे की घंटी क्या बजी, मेरे बदन में बिजली का जैसे करंट दौड़ गयी। मैं रोमांच और गुप्त भय से काँप उठी। इतनी रात गए कौन हो सकता है? कहीं अजित तो नहीं? मैंने भाग कर दरवाजा खोला और अजित को देख कर स्तब्ध हो गयी। यह महाराज तो बिन बुलाये मेहमान की तरह ही गए। अब मैं क्या करती? मैंने अजित का हाथ पकड़ कर उसे जल्दी से खिंच कर अंदर बुला लिया ताकि कोई पडोसी उसे देख ना पाए की इतनी रात गए अजित मेरे दरवाजे पर क्यों खड़ा था। मैंने उसे "हाय" कह कर सीधा ही पूछा, "आप कैसे घर में गए? मुझे कोई फ़ोन तक किया नहीं?"

अजित ने चारों और देख कर कहा, "प्रिया, आज मैं ऑफिस में ही काम में ज्यादा व्यस्त था। इस लिए फ़ोन भी नहीं कर पाया और लेट भी हो गया। आई एम् वैरी सॉरी।" उसकी आवाज में दर्द सा था। मुझे ऐसा लगा की कुछ तो गड़बड़ थी। मुझे ऐसा लगा जैसे वह गाँव जाकर ख़ुश होने की बजाय मायूस सा लग रहा था। मैंने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "चलो ठीक है। कुछ खाना खाये हो?" अजित ने कहा उसने खाना नहीं खाया था। मैंने फ़टाफ़ट खाना प्लेट में रख दिया और मैं एक कुर्सी खिंच कर उस पर अपने कूल्हे और दोनों पॉंव मोड़ कर उस पर टिका कर आधे पैर बैठ गयी और बड़े ध्यान से अजित को खाना खाते उसकी और देखने लगी। अजित ने मुझे ऐसी बैठे हुए देखा तो ऊपर से निचे तक मेरे आधे गीले बदन को ताकता ही रह गया। शायद मेरा पूरा बदन उस पतले गाउन में साफ़ दिख रहा होगा।


मैंने अपनी नजर नीची कर के अपने बदन की और देखा तो पाया की बिना ब्लाउज और ब्रा के मेरे गोल गुम्बज समान अल्लड़ और उद्दंड स्तन साफ़ दिखाई पड़ रहे थे। मेरी फूली हुई निप्पलेँ मेरे मन के हाल की चुगली खा रही होंगीं। शायद मेरे दोनों पॉंव के बिच बालों में घिरी हुई मेरी चूत की धुंधली झलक उसे नजर रही होगी। उसे मेरे चूतड़ भी दिख रहे होंगे। उसकी कामुकता भरी नजर देख कर मेरे पुरे बदन में जैसे एक बिजली का करंट दौड़ गया। मैं आनन फानन कपड़े नहीं बदलने और कोई चुन्नी बदन के ऊपर नहीं डालने के लिए अपने आप को कोस रही थी। जब मैंने गला साफ़ करने के बहाने उसे सावधान किया तो उसने अपनी नजरें फेर लीं।

मैंने अजित से पूछा, "तुम तो बीबी से मिलकर मौज मना कर आये होंगे। उसके साथ मस्ती की यादों में खोये हुए होंगे, इसी लिए तुमने इतने दिन मुझे फ़ोन तक नहीं किया। पर तुम इतनी जल्दी वापस कैसे गये? तुमने तो कहा था तुम बारह दिन के लिए जाओगे। अभी तो चार दिन ही दिन हुए हैं। और तुम्हारा मैसेज क्या था? मैं कुछ समझ नहीं पायी।" मैंने एक साथ सवालों की झड़ी लगा दी। उसके साथ ही साथ मुझे अपनी मानसिकता पर भी आश्चर्य हुआ। एक तरफ मैं नहीं चाहती थी की मैं अजित को कोई हमारे शारीरिक सम्बन्ध के बारे में गलत फहमी में रखूं और वह मेरी और सेक्स की नजर से देखे। दूसरी तरफ मैं बार बार उसे ऐसे सवाल पूछ रही थी की बरबस ही उसके मन में यही ख़याल आएगा की मैं जरूर उसको उकसा रही थी। अजित ने मेरे सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं दिया। अजित ने खाना खाया और मैंने उसे एक कटोरे में ही निम्बू डाल कर हाथ साफ़ करवा दिए।

मैंने अजित का हाथ पकड़ा और पूछा, "अजित क्या बात है? तुम कुछ मायूस लग रहे हो।" अजित चुप था। वह मेरी और सुनी नज़रों से देखने लगा। मुझे लगा की हो ना हो कुछ गंभीर बात है। मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें मिलाकर पूछा की क्या बात थी? तो उसने कहा, "कुछ नहीं बस वैसे ही।" पर यह कहते कहते उसकी आँखें झलझला उठीं। मुझे उसकी आवाज में भारीपन लगा। ऐसा लगा की जैसे उसका गला रुंध गया था। जब मैंने बार बार पूछा की, "अजित क्या बात है, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो?" तब अजित अपने आँसू रोक नहीं पाया। उसकी आँखों में से जैसे गंगा जमुना बहने लगी। मैं स्तब्ध हो गयी। इतना बड़ा हट्टाकट्टा पुरुष एक औरत के सामने क्यों रो रहा था? मैंने एकदम शान्ति से और बड़ी संवेदना के साथ उसे पूछा, "अजित सच बताओ, बात क्या है? तुम्हारे माँ बाप ठीक तो हैं? पत्नी तो ठीक है?" पहले तो उसने कहा, "सब ठीक हैं। कोई ख़ास बात नहीं है।" पर मैं समझ गयी की कुछ ना कुछ बात तो जरूर है। 

काफी समझाने के बाद और आग्रह करने के बाद उसने कहा, "प्रिया, मैं बहुत गुस्से में हूँ और दुखी भी हूँ। मैं हर औरत की इज्जत करता हूँ। पर यह साली राँड़ ने मुझे क्या सिला दिया? बात मेरी पत्नी की है। उसने मेरा भरोसा तोड़ दिया।" जब मैंने इतना सूना तो मुझे लगा जैसे मेरे ऊपर कोई पहाड़ टूट पड़ा था। मैं एकदम स्तब्ध हो गयी। एक साथ दो हादसे? अरे इस इंसान पर भी वही कहर टूट पड़ा जो मुझ पर टुटा था? अजित की समझ में नहीं रहा था की वह क्या कहे और क्या ना कहे। मैं समझ गयी की जो वह अब कहने जा रहा था वह इतना दिल दहलाना वाला होगा की उसे ना तो मैं ना तो वह आसानी से बर्दाश्त कर पाएंगे। मैंने अजित का हाथ मेरे हाथों में लिया और बोली, "अजित तुम मुझे खुल कर अपनी सारी बातें कहो, ताकि तुम्हारा बोझ हल्का हो जाए। फिर मैं भी तुमसे मेरी कहानी कहने वाली हूँ जो शायद तुम्हारी कहानी से काफी मिलती जुलती है।" मेरी बात सुनकर अजित अचंभित सा मुझे देखता ही रह गया। फिर अजित ने धीरे से कहा, "प्रिया, मैं जो कहने जा रहा हूँ वह बड़ी दर्दनाक कहानी है। मैं अगर उत्तेजना में कुछ अपशब्द बोल जाऊं तो प्लीज माफ़ कर देना।" मैंने बिना कुछ कहे मेरा सर हिलाकर इशारा किया की मुझे कोई आपत्ति नहीं
होगी।
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चुनौती... (Complete) - by usaiha2 - 16-08-2019, 12:23 PM
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RE: चुनौती... (Complete) - by usaiha2 - 01-08-2021, 03:53 PM



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