16-08-2019, 12:38 PM
मेरे पति को मेरी खुली चुनौती Ch. 02
उस दिन के बाद जब मेरे पति कुछ दिनों के लिए फिर टूर पर जाने के लिये निकले तो मेरी सम्भोग की कामना को मैं दमन कर नहीं पायी। अब मैं अपनी चूत की भूख मिटाने के लिए कुछ आज़ाद महसूस कर रही थी। मुझे सबसे पहले अजित की याद आयी। वह गाँव तो जरूर पहुंचा होगा और अपनी बीबी की अच्छी तरह चुदाई कर रहा होगा। मैंने सोचा क्यों ना मैं उससे थोड़ा मजाक करूँ? मैंने उसे मैसेज किया, "ठीक हो? सब कुछ ठीक तो चल रहा है? दर्द का इलाज तो हो गया होगा। दर्द कुछ कम हुआ की नहीं?" ऐसा करना मेरे लिए शायद सही नहीं था। ऐसा करने से मैंने अनजाने में ही अजित को अपने मन की गहराई में झाँकने का मौक़ा दे दिया। मेरे पास उसका फ़ौरन मैसेज आया, "मैं वापस आ गया हूँ। दर्द वही का वहीँ है। पर तुम स्त्रियां हम पुरुषों का फ़ायदा क्यों उठाती हैं? क्या तुम लोग हमें बेवकूफ समझती हो?" मेरा दिमाग चकरा गया। मुझे मैसेज में कुछ गड़बड़ी लगी। अजित के व्यक्तित्व में कुछ कर्कशता तो थी पर ऐसे शब्द तो उन्होंने कभी नहीं कहे। क्या मतलब था इस मैसेज का?
शायद जैसा की अक्सर होता है, जरूर कोई बटन की दबाने में गलती हो गयी। मैंने मैसेज लिया, "मैं समझी नहीं। खुलकर बताओ।" अजित ने मैसेज किया, "मेरा मानस ठीक नहीं है। मेरे शब्दों का बुरा मत मानना। मिलकर बात करेंगे। बात कुछ सीरियस है। अगर आपके पास समय हो तो शाम को कहीं मिलकर बात करेंगे।" इसका मतलब यह था की मैं अजित से सुबह मिल नहीं सकती थी। मेरा मन किया की मैं अजित को दिन में ही कहीं मिलूं। पर मुझे ऑफिस में जरुरी काम था। शाम को कहाँ मिलूं? तो मैंने सोचा क्यों ना उसे घर बुला लूँ? वह अकेला है। बाहर का खाना खाता है। आज मैं उसे घर का खाना ही खिला दूंगी। तो बात भी आराम से हो जायेगी। पर मुझे उसे घर बुलाना ठीक नहीं लगा। हालांकि मैं अजित से आकर्षित तो थी, पर फिर भी मुझे उस पर शत प्रतिशत भरोसा अब भी नहीं था। मुझे डर था की यदि मैंने उसे घर बुलाया तो कहीं वह उसका गलत मतलब ना निकाले। कहीं उसे मेरी उससे चुदवाने की इच्छा समझ कर उसका फ़ायदा ना उठा ले। मेरा हाल भी ठीक नहीं था।
उन दिनों मैं चुदवाने के लिए बेताब हो रही थी। घर में हम दोनों अकेले होने के कारण कहीं वह मुझे मेरे ही घर में चोद ना डाले। अगर ऐसा कुछ हुआ तो मुझे डर था की मैं उसे रोक नहीं पाउंगी। मैं सच में इस उधेड़बुनमें थी की अगर ऐसा मौक़ा आये की अजित मुझे चोदने पर आमादा हो जाए तो क्या मुझे उससे चुदवाना चाहिए या नहीं? जब तक मेरा मन अजित से चुदवाने के लिए राजी न हो जाए तब तक मुझे उसे घर बुलाना ठीक नहीं लगा। अजित ने मैसेज किया, "ठीक है शाम को मिलेंगे। कहाँ और कितने बजे?" मैंने जवाब दिया, "मेरे घर के सामने रेस्टोरेंट है, वहीँ मिलेंगे। जब तुम काम से फारिग हो जाओ तो फ़ोन कर लेना और आ जाना। हम शाम का खाना वहीँ खा लेंगे।" उसके मैसेज की कर्कश भाषा मैं समझ नहीं पा रही थी। मैने ऐसा क्या किया की अजित का मेरे प्रति इतना कडुआहट भरा रवैया हो गया? कहीं उस दिन ट्रैन में जो मैंने अजित के लण्ड को मुठ मारी थी उसके बारेमें तो अजित यह नहीं कह रहा था? क्या वह मुझसे नाराज था या वह मुझ पर अपना गुस्सा निकाल रहा था? उस ट्रैन में हुए वाकये के बारेमें वह क्या सोच रहा होगा? क्या मैं उसके मन की बात जान पाउंगी? क्या वह मेरे मन की इच्छा जान गया था? क्या वह उसे पूरी करेगा? मैं मेरे मन में खड़े हुए इन सारे सवालों से परेशान थी। दिन में ऑफिस में मेरा मन नहीं लगा। मैं शाम का बेसब्री से इंतजार करने लगी।
मैं ऑफिस से घर वापस आयी तब तक अजित कोई फ़ोन नहीं आया था। मेरा मन किया की मैं फ़ोन करूँ, पर फिर सोचा जब मैं घर वापस आ ही गयी थी तो फिर निचे उतरने में आलस आ गया। यदि मैंने फ़ोन किया तो चूँकि बात ज्यादा लम्बी ही होगी तो फिर वह कहीं मेरे घर ही ना पहुँच जाए। मैंने सोचा छोडो अब कल बात करेंगे। शायद तनाव या गबराहट के कारण मैं समझ नहीं पा रही थी मैं क्या करूँ। मैंने आनन फानन में खाना कुछ ज्यादा ही बनाया और डाइनिंग टेबल पर सजा कर रखा। फिर मैं नहाने चली गयी। दूसरे दिन छुट्टी होने के कारण मैं एकदम रिलैक्स्ड थी।
मैं अजितके फ़ोन का इंतजार करने लगी। इंतजार करते करते दस बज गए। मैं समझ गयी की कोई न कोई कारण वश अजित फ़ोन नहीं कर पाया। इतनी रात हो गयी, चलो अब तो अजित अपने घर चला गया होगा। और आज की मुलाक़ात कैंसिल। यह सोच कर मैंने खाना खाया। अब तो मुझे कहीं जाना नहीं था और मैं पूरी तरह आजाद थी। सो मैं सारे कपडे निकाल कर नहाने चली गयी। बाथरूम में मैं थोड़ी देर आयने के सामने खड़ी रही और अपने नंगे बदन का मुआइना करने लगी। मैंने देखा की शादी के इतने साल बाद भी मैं कोई भी जवान या बुड्ढे का लण्ड खड़ा कर सकती थी। मेरे दोनों चुस्त कसे हुए स्तन काफी बड़े, सख्ती से फूली हुई निप्पलोँ के निचे कोई भी मर्द को चुनौती देने के काबिल थे। मेरी पतली कमर देखते ही बनती थी। कोकाकोला की काँच वाली बोतल के समान मेरी पतली कमर, उसके बीचो बीच नाभि और उसके निचे मेरी फैली हुई जाँघें, कूल्हे देख कर एकबार तो नामर्द का लण्ड भी मुझे चोदने के लिए तैयार हो जाए। और सबसे ज्यादा तो झाँट के बालों की बड़ी सतर्कता से छंटाई से सजी हुई, रस चुती हुई, मेरी तिकोनी खूबसूरत चूत कोई अच्छे खासे लण्ड को अपने अंदर लेने के लिए बेताब थी। आनन फानन में मैं बाथरूम में तौलिया ले जाना भूल गयी थी। सो मैं नहा कर थोड़ी देर नंगी ही बाथरूम में खड़ी रही। मैंने बदन से पानी को गिरने दिया। फिर थोड़ा कम गीला होने के बाद बाहर आ कर अपना गीला बदन तौलिये से पोंछने के बजाय बिस्तर गीला ना हो इस लिए मैं थोड़ी देर नंगी ही पंखे के निचे खड़ी हुई।
उस दिन के बाद जब मेरे पति कुछ दिनों के लिए फिर टूर पर जाने के लिये निकले तो मेरी सम्भोग की कामना को मैं दमन कर नहीं पायी। अब मैं अपनी चूत की भूख मिटाने के लिए कुछ आज़ाद महसूस कर रही थी। मुझे सबसे पहले अजित की याद आयी। वह गाँव तो जरूर पहुंचा होगा और अपनी बीबी की अच्छी तरह चुदाई कर रहा होगा। मैंने सोचा क्यों ना मैं उससे थोड़ा मजाक करूँ? मैंने उसे मैसेज किया, "ठीक हो? सब कुछ ठीक तो चल रहा है? दर्द का इलाज तो हो गया होगा। दर्द कुछ कम हुआ की नहीं?" ऐसा करना मेरे लिए शायद सही नहीं था। ऐसा करने से मैंने अनजाने में ही अजित को अपने मन की गहराई में झाँकने का मौक़ा दे दिया। मेरे पास उसका फ़ौरन मैसेज आया, "मैं वापस आ गया हूँ। दर्द वही का वहीँ है। पर तुम स्त्रियां हम पुरुषों का फ़ायदा क्यों उठाती हैं? क्या तुम लोग हमें बेवकूफ समझती हो?" मेरा दिमाग चकरा गया। मुझे मैसेज में कुछ गड़बड़ी लगी। अजित के व्यक्तित्व में कुछ कर्कशता तो थी पर ऐसे शब्द तो उन्होंने कभी नहीं कहे। क्या मतलब था इस मैसेज का?
शायद जैसा की अक्सर होता है, जरूर कोई बटन की दबाने में गलती हो गयी। मैंने मैसेज लिया, "मैं समझी नहीं। खुलकर बताओ।" अजित ने मैसेज किया, "मेरा मानस ठीक नहीं है। मेरे शब्दों का बुरा मत मानना। मिलकर बात करेंगे। बात कुछ सीरियस है। अगर आपके पास समय हो तो शाम को कहीं मिलकर बात करेंगे।" इसका मतलब यह था की मैं अजित से सुबह मिल नहीं सकती थी। मेरा मन किया की मैं अजित को दिन में ही कहीं मिलूं। पर मुझे ऑफिस में जरुरी काम था। शाम को कहाँ मिलूं? तो मैंने सोचा क्यों ना उसे घर बुला लूँ? वह अकेला है। बाहर का खाना खाता है। आज मैं उसे घर का खाना ही खिला दूंगी। तो बात भी आराम से हो जायेगी। पर मुझे उसे घर बुलाना ठीक नहीं लगा। हालांकि मैं अजित से आकर्षित तो थी, पर फिर भी मुझे उस पर शत प्रतिशत भरोसा अब भी नहीं था। मुझे डर था की यदि मैंने उसे घर बुलाया तो कहीं वह उसका गलत मतलब ना निकाले। कहीं उसे मेरी उससे चुदवाने की इच्छा समझ कर उसका फ़ायदा ना उठा ले। मेरा हाल भी ठीक नहीं था।
उन दिनों मैं चुदवाने के लिए बेताब हो रही थी। घर में हम दोनों अकेले होने के कारण कहीं वह मुझे मेरे ही घर में चोद ना डाले। अगर ऐसा कुछ हुआ तो मुझे डर था की मैं उसे रोक नहीं पाउंगी। मैं सच में इस उधेड़बुनमें थी की अगर ऐसा मौक़ा आये की अजित मुझे चोदने पर आमादा हो जाए तो क्या मुझे उससे चुदवाना चाहिए या नहीं? जब तक मेरा मन अजित से चुदवाने के लिए राजी न हो जाए तब तक मुझे उसे घर बुलाना ठीक नहीं लगा। अजित ने मैसेज किया, "ठीक है शाम को मिलेंगे। कहाँ और कितने बजे?" मैंने जवाब दिया, "मेरे घर के सामने रेस्टोरेंट है, वहीँ मिलेंगे। जब तुम काम से फारिग हो जाओ तो फ़ोन कर लेना और आ जाना। हम शाम का खाना वहीँ खा लेंगे।" उसके मैसेज की कर्कश भाषा मैं समझ नहीं पा रही थी। मैने ऐसा क्या किया की अजित का मेरे प्रति इतना कडुआहट भरा रवैया हो गया? कहीं उस दिन ट्रैन में जो मैंने अजित के लण्ड को मुठ मारी थी उसके बारेमें तो अजित यह नहीं कह रहा था? क्या वह मुझसे नाराज था या वह मुझ पर अपना गुस्सा निकाल रहा था? उस ट्रैन में हुए वाकये के बारेमें वह क्या सोच रहा होगा? क्या मैं उसके मन की बात जान पाउंगी? क्या वह मेरे मन की इच्छा जान गया था? क्या वह उसे पूरी करेगा? मैं मेरे मन में खड़े हुए इन सारे सवालों से परेशान थी। दिन में ऑफिस में मेरा मन नहीं लगा। मैं शाम का बेसब्री से इंतजार करने लगी।
मैं ऑफिस से घर वापस आयी तब तक अजित कोई फ़ोन नहीं आया था। मेरा मन किया की मैं फ़ोन करूँ, पर फिर सोचा जब मैं घर वापस आ ही गयी थी तो फिर निचे उतरने में आलस आ गया। यदि मैंने फ़ोन किया तो चूँकि बात ज्यादा लम्बी ही होगी तो फिर वह कहीं मेरे घर ही ना पहुँच जाए। मैंने सोचा छोडो अब कल बात करेंगे। शायद तनाव या गबराहट के कारण मैं समझ नहीं पा रही थी मैं क्या करूँ। मैंने आनन फानन में खाना कुछ ज्यादा ही बनाया और डाइनिंग टेबल पर सजा कर रखा। फिर मैं नहाने चली गयी। दूसरे दिन छुट्टी होने के कारण मैं एकदम रिलैक्स्ड थी।
मैं अजितके फ़ोन का इंतजार करने लगी। इंतजार करते करते दस बज गए। मैं समझ गयी की कोई न कोई कारण वश अजित फ़ोन नहीं कर पाया। इतनी रात हो गयी, चलो अब तो अजित अपने घर चला गया होगा। और आज की मुलाक़ात कैंसिल। यह सोच कर मैंने खाना खाया। अब तो मुझे कहीं जाना नहीं था और मैं पूरी तरह आजाद थी। सो मैं सारे कपडे निकाल कर नहाने चली गयी। बाथरूम में मैं थोड़ी देर आयने के सामने खड़ी रही और अपने नंगे बदन का मुआइना करने लगी। मैंने देखा की शादी के इतने साल बाद भी मैं कोई भी जवान या बुड्ढे का लण्ड खड़ा कर सकती थी। मेरे दोनों चुस्त कसे हुए स्तन काफी बड़े, सख्ती से फूली हुई निप्पलोँ के निचे कोई भी मर्द को चुनौती देने के काबिल थे। मेरी पतली कमर देखते ही बनती थी। कोकाकोला की काँच वाली बोतल के समान मेरी पतली कमर, उसके बीचो बीच नाभि और उसके निचे मेरी फैली हुई जाँघें, कूल्हे देख कर एकबार तो नामर्द का लण्ड भी मुझे चोदने के लिए तैयार हो जाए। और सबसे ज्यादा तो झाँट के बालों की बड़ी सतर्कता से छंटाई से सजी हुई, रस चुती हुई, मेरी तिकोनी खूबसूरत चूत कोई अच्छे खासे लण्ड को अपने अंदर लेने के लिए बेताब थी। आनन फानन में मैं बाथरूम में तौलिया ले जाना भूल गयी थी। सो मैं नहा कर थोड़ी देर नंगी ही बाथरूम में खड़ी रही। मैंने बदन से पानी को गिरने दिया। फिर थोड़ा कम गीला होने के बाद बाहर आ कर अपना गीला बदन तौलिये से पोंछने के बजाय बिस्तर गीला ना हो इस लिए मैं थोड़ी देर नंगी ही पंखे के निचे खड़ी हुई।