16-08-2019, 12:31 PM
पता नहीं क्यों उस की बात सुनकर मैं गुस्सा हो गयी। मैंने उसका हाथ झटक दिया और बोली, "मेरा हाथ छोडो। तुमने मुझे कोई चालु औरत समझ रखा है क्या? मुझसे दूर रहो।" ऐसा बोल कर मैं उससे दूर हो गयी। हम स्टेशन पहुंचे तो मैंने देखा की वह काफी पीछे हो गया था और धीरे धीरे चल रहा था। वह बड़ा दुखी लग रहा था। मैं मन ही मन अपने आप पर गुस्सा हुई। यह क्या बेहूदगी भरा वर्ताव मैंने अजित के साथ किया। उस बेचारे का क्या दोष? गलती तो मेरी थी। मैंने ही तो उसका लण्ड हिला हिला कर उसका वीर्य निकाला था। मुझे बड़ा पछतावा हुआ। पर औरत मानिनी होती है। मैं भी अपनी गलती आसानी से स्वीकार नहीं करती। पर मेरा मन अजित के लिए मसोस रहा था।
खैर मैंने उससे ट्रैन में सफर के दरम्यान भी बात नहीं की। मैं अपने स्टेशन पर उतर गयी तब मेरे पास अजित का मैसेज आया। "प्रिया प्लीज मुझे माफ़ कर दो। गलती हो गयी। आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा।"
मैं बरबस हँस पड़ी। मैंने उसे मैसेज किया, "ठीक है। जाओ माफ़ किया। पर तुम्हें सजा मिलेगी। शाम को मेरे ऑफिस के सामने मेरा इंतजार करना। मैं आकर तुम्हें सजा सुनाऊँगी।"
जाहिर था मेरा मैसेज पढ़ कर अजित उछल पड़ा होगा। उसने जवाब दिया, "आपकी हर कोई सजा सर आँखों पर।"
मैं सोचने लगी, किस मिट्टी से बना है यह आदमी? उसकी गलती ना होने पर मेरे इतने डाँटने के बाद भी वह माफ़ी माँग रहा था? मुझे अच्छा लगा। मैंने तय किया की जो हो गया सो हो गया।
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शाम को अजित मेरा इंतजार कर रहा था। उसने मिलते ही पूछा, "प्रिया आप मुझे क्या सजा देना चाहती हो?"
तब मैंने कहा, "तुम्हें मुझे कॉफी पिलानी पड़ेगी।"
हम रास्ते में कॉफी हाउस में बैठे तब उसने कहा की वह अगले बारह दिन तक नहीं मिलेगा। वह अपने गाँव जा रहा था। वह बीबी को मिलने जा रहा था और खुश था।
मेरे दिमाग में पता नहीं क्या बात आयी की मैंने उसका हाथ पकड़ कर पूछा, "अजित तुम अपनी बीबी से मिलकर मुझे भूल तो नहीं जाओगे?" बड़ा अजीब सा सवाल था।
मेरे सवाल का अजित कुछ भी मतलब निकाल सकता था। शायद वह मेरी सबसे बड़ी गलती थी। मैंने सीधे सीधे अपनी तुलना उसकी बीबी के साथ कर दी थी। वह मेरी और ताकता रहा। शायद उसे मेरे अकेलेपन का एहसास हो रहा था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर दबाया और बोला, "देखो प्रिया, बीबी तो ज्यादा से ज्यादा दस दिन का साथ देगी। पर तुम तो मेरी रोज की साथीदार हो। मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ? कई बार पराये अपनों से ज्यादा अपने हो जाते हैं। जो दुःख में साथ दे और दुःख दूर करने की कोशिश करे वह अपना है l
अभी तो हमारी दोस्ती की शुरुआत है। और उतनी देर में पराये होते हुए भी तुमसे मुझे शकुन मिला है। आगे चलकर यदि हम एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे का दुःख बाँटते हैं और एक दूसरे का दुःख दूर करने की कोशिश करते हैं तो फिर तुम्हें भूलने का तो सवाल ही नहीं। सवाल यह नहीं की बीबी से मिलकर मैं तुम्हें भूल जाऊँगा। सवाल यह है की कहीं तुम्हें मिल कर मैं बीबी को ना भूल जाऊं।" अजित ने कुछ भी ना कहते हुए सब कुछ कह दिया। बात बात में उसने इशारा किया की मैंने उसे उस दिन ट्रैन में उसका माल निकाल कर उसको बहुत शकुन दिया था। अब आगे चल कर हम दोनों को एक दूसरे का दुःख दूर करना चाहिए। उसका दुःख क्या था? उसको चोदने के लिए एक औरत की चूत चाहिए थी। और मेरा दर्द क्या था? मेरी चूत को एक मर्द का मोटा लंबा लण्ड चाहिए था। उसने इशारा किया की हमारी चुदाईही हमारा दुःख दूर कर सकती थी। उसकी आवाज में मुझे आने वाले कल की रणकार सुनाई दी। मुझे उसकी आवाज में कुछ दर्द भी महसूस हुआ। उस सुबह पुरे मेट्रो के एक घंटे के सफर में मैंने अजित का हाथ नहीं छोड़ा और ना ही उसने।
खैर मैंने उससे ट्रैन में सफर के दरम्यान भी बात नहीं की। मैं अपने स्टेशन पर उतर गयी तब मेरे पास अजित का मैसेज आया। "प्रिया प्लीज मुझे माफ़ कर दो। गलती हो गयी। आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा।"
मैं बरबस हँस पड़ी। मैंने उसे मैसेज किया, "ठीक है। जाओ माफ़ किया। पर तुम्हें सजा मिलेगी। शाम को मेरे ऑफिस के सामने मेरा इंतजार करना। मैं आकर तुम्हें सजा सुनाऊँगी।"
जाहिर था मेरा मैसेज पढ़ कर अजित उछल पड़ा होगा। उसने जवाब दिया, "आपकी हर कोई सजा सर आँखों पर।"
मैं सोचने लगी, किस मिट्टी से बना है यह आदमी? उसकी गलती ना होने पर मेरे इतने डाँटने के बाद भी वह माफ़ी माँग रहा था? मुझे अच्छा लगा। मैंने तय किया की जो हो गया सो हो गया।
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शाम को अजित मेरा इंतजार कर रहा था। उसने मिलते ही पूछा, "प्रिया आप मुझे क्या सजा देना चाहती हो?"
तब मैंने कहा, "तुम्हें मुझे कॉफी पिलानी पड़ेगी।"
हम रास्ते में कॉफी हाउस में बैठे तब उसने कहा की वह अगले बारह दिन तक नहीं मिलेगा। वह अपने गाँव जा रहा था। वह बीबी को मिलने जा रहा था और खुश था।
मेरे दिमाग में पता नहीं क्या बात आयी की मैंने उसका हाथ पकड़ कर पूछा, "अजित तुम अपनी बीबी से मिलकर मुझे भूल तो नहीं जाओगे?" बड़ा अजीब सा सवाल था।
मेरे सवाल का अजित कुछ भी मतलब निकाल सकता था। शायद वह मेरी सबसे बड़ी गलती थी। मैंने सीधे सीधे अपनी तुलना उसकी बीबी के साथ कर दी थी। वह मेरी और ताकता रहा। शायद उसे मेरे अकेलेपन का एहसास हो रहा था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर दबाया और बोला, "देखो प्रिया, बीबी तो ज्यादा से ज्यादा दस दिन का साथ देगी। पर तुम तो मेरी रोज की साथीदार हो। मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ? कई बार पराये अपनों से ज्यादा अपने हो जाते हैं। जो दुःख में साथ दे और दुःख दूर करने की कोशिश करे वह अपना है l
अभी तो हमारी दोस्ती की शुरुआत है। और उतनी देर में पराये होते हुए भी तुमसे मुझे शकुन मिला है। आगे चलकर यदि हम एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे का दुःख बाँटते हैं और एक दूसरे का दुःख दूर करने की कोशिश करते हैं तो फिर तुम्हें भूलने का तो सवाल ही नहीं। सवाल यह नहीं की बीबी से मिलकर मैं तुम्हें भूल जाऊँगा। सवाल यह है की कहीं तुम्हें मिल कर मैं बीबी को ना भूल जाऊं।" अजित ने कुछ भी ना कहते हुए सब कुछ कह दिया। बात बात में उसने इशारा किया की मैंने उसे उस दिन ट्रैन में उसका माल निकाल कर उसको बहुत शकुन दिया था। अब आगे चल कर हम दोनों को एक दूसरे का दुःख दूर करना चाहिए। उसका दुःख क्या था? उसको चोदने के लिए एक औरत की चूत चाहिए थी। और मेरा दर्द क्या था? मेरी चूत को एक मर्द का मोटा लंबा लण्ड चाहिए था। उसने इशारा किया की हमारी चुदाईही हमारा दुःख दूर कर सकती थी। उसकी आवाज में मुझे आने वाले कल की रणकार सुनाई दी। मुझे उसकी आवाज में कुछ दर्द भी महसूस हुआ। उस सुबह पुरे मेट्रो के एक घंटे के सफर में मैंने अजित का हाथ नहीं छोड़ा और ना ही उसने।