16-08-2019, 12:29 PM
मैंने जैसे ही मेरा हाथ निचे किया की सीधा अजित के खड़े हुए लौड़े पर जा पहुंचा। बापरे! अजित का लण्ड उसकी पतलून में होते हुए भी बड़ा ही कडा और भारी भरखम लग रहा था। काफी लंबा और मोटा भी था। मेरे ना चाहते हुए भी उसका लण्ड मेरी मुठी में आ ही गया। अब मेरा हाथ तो उसके लण्ड को पकड़ कर वहीँ थम गया। मैं अपने हाथ को ना इधर ना उधर कर पा रही थी। मेरा अजित का लण्ड पकड़ ने से अजित की हालत तो मुझसे भी ज्यादा पतली हो रही थी। मैंने उसकी और देखा तो वह मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। मुझे महसूस हुआ की उसकी पतलून गीली हो रही थी। उसके लण्ड में से उसका पूर्व स्राव भी रिस रहा था। वह इतना ज्यादा था की उसकी पतलून गीली हो गयी थी और चिकनाहट मेरे हाथों में महसूस हो रही थी। मैं गयी थी अपना गीलापन चेक करने और पाया की अजित मुझसे भी ज्यादा गीला हो रहा था। मैंने हाथ हटाने की बड़ी कोशिश की पर हटा नहीं पायी। आखिर मजबूर होकर मुझे मेरा हाथ अजित के लण्ड को पकडे हुए ही रखना पड़ा। अजित का लण्ड हर मिनिट में बड़ा और कड़क ही होता जा रहा था।
मैं डर गयी की कहीं ऐसा ना हो की अजित का लण्ड धीरे धीरे उसकी पतलून में से निकल कर मेरी जीन्स ही ना फाड़ डाले और मेरी चूत में घुस जाए। जब मैंने मेरा हाथ हटाने की ताकत लगा कर कोशिश की तो नतीजा उलटा ही हुआ। मेरा हाथ ऐसे चलता रहा की जैसे शायद उसे ऐसा लगा होगा की मैं उसके लण्ड की मुठ मार रही हूँ। क्यूंकि मैंने देखा की वह मचल रहा था। मैं अजित के मचल ने को देखकर अनायास ही उत्तेजित हो रही थी। अब मुझसे भी नियत्रण नहीं रखा जा रहा था। आखिर में मैंने सोचा ऐसी की तैसी। जो होगा देखा जाएगा। मुझे अजित के लण्ड को हाथ में लेने की ललक उठी। मैंने उसके लण्ड को उसकी पतलून के उपरसे सहलाना शुरू किया। ट्रैन में कोई भी यह हलचल देख नहीं सकता था क्यूंकि पूरा डिब्बा लोगोँ से ऐसे ख़चाख़च भरा हुआ था, जैसे एक डिब्बे में बहुत सारी मछलियाँ भर दी जाएँ, यहां तक की सब के बदन एकदूसरे से सख्ती से भींच कर जुड़े हुए थे। मेरे और अजित के बिच कोई थोड़ी सी भी जगह नहीं थी जिसमें से किसी और इंसान को हमारी कमर के निचे क्या हो रहा था वह नजर आये।
उतनी ही देर में मेरे हाथों में अनायास ही उसकी ज़िप आयी। पता नहीं मुझे क्या हो रहा था। मेरी उंगलियां ऐसे चल गयीं की उसकी ज़िप निचे की और सरक गयीं और अजित के अंडर वियर में एक कट था (जिसमें से मर्द लोग पेशाब के लिए लण्ड बाहर निकालते हैं) उसमें मेरी उंगलियां चली गयीं। और क्या था? मेरी उँगलियाँ अजित के खड़े, चिकनाहट से सराबोर मोटे लण्ड के इर्दगिर्द घूमने लगीं। मुझे पता ही नहीं लगा की कितनी देर हो गयी। मैं अजित के चिकनाई से लथपथ लण्ड को सहलाती ही रही। मैंने अजित की और देखा तो वह आँखें मूंदे चुपचाप मेरे उसके लण्ड सहलाने का आनंद ले रहा था। उसके चेहरे से ऐसे लग रहा था जैसे कई महीनों के बाद किसी स्त्री ने उसका लण्ड का स्पर्श किया होगा। जैसे ही मैंने उसका लण्ड सहलाना शुरू किया की अजित भी अपनी कमर आगे पीछे कर के जैसे मेरी मुट्ठी को चोदने लगा। कुछ देर बाद अचानक मैंने महसूस किया की अजित के बदन में एक झटका सा महसूस हुआ, उसके लण्ड में से तेज धमाकेदार गति से गरम गरम फव्वारा छूटा और मेरी मुट्ठी और पूरी हथेली अजित के लण्ड में से निकली हुई चिकने चिकने, गरम प्रवाही की मलाई से भर गयी। मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या करूँ। मैंने फ़टाफ़ट अपना हाथ अजित के पतलून से बाहर निकाल ने की लिए जोर लगाया। बड़ी मुश्किल से हाथ बाहर निकला। इस आनन-फानन में मेरा हाथ भी अजित की पतलून से रगड़ कर साफ़ हो गया। अचानक ही एक धक्का लगा और मेट्रो झटके के साथ रुकी। मैं अजित की और देखने लायक नहीं थी और अजित मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। हमारा स्टेशन आ गया था। धक्कामुक्की करते हुए हम बड़ी मुश्किल से निचे उतरे। उतरते ही अजित कहाँ गायब हो गया, मैंने नहीं देखा।
वह मेरा मेरे पति से बेवफाई का पहला मौक़ा था। पर तबसे मैंने तय किया की मुझसे बड़ी भूल हो गयी थी और अब मैं ऐसा कभी नहीं करुँगी और पति की वफादार रहूंगी।
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अगली सुबह अजित मेरे इंतजार में वहीँ खड़ा था। हम लोग साथ साथ चलने लगे पर शायद वह भी पछतावे से सहमा हुआ था और शर्म से मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं करता था। मैंने भी चुप रहना ठीक समझा। अगर वह कुछ बोलता तो मेरे लिए एक अजीब परिस्थिति हो जाती, क्यूंकि मैं उन दिनों चुदाई करवाने के लिए तो बेताब रहती थी, पर पति से बेवफाई करना नहीं चाहती थी।
मेरे मन में एक अजीब सी गुत्थमगुत्थी चल रही थी। तब शायद चुप्पी तोड़ने के लिए उसने आगे आकर मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "प्रिया, मुझे माफ़ कर दो। ऐसे गुस्सा करके मुझ से बोलना बंद मत करो प्लीज?"
मैं डर गयी की कहीं ऐसा ना हो की अजित का लण्ड धीरे धीरे उसकी पतलून में से निकल कर मेरी जीन्स ही ना फाड़ डाले और मेरी चूत में घुस जाए। जब मैंने मेरा हाथ हटाने की ताकत लगा कर कोशिश की तो नतीजा उलटा ही हुआ। मेरा हाथ ऐसे चलता रहा की जैसे शायद उसे ऐसा लगा होगा की मैं उसके लण्ड की मुठ मार रही हूँ। क्यूंकि मैंने देखा की वह मचल रहा था। मैं अजित के मचल ने को देखकर अनायास ही उत्तेजित हो रही थी। अब मुझसे भी नियत्रण नहीं रखा जा रहा था। आखिर में मैंने सोचा ऐसी की तैसी। जो होगा देखा जाएगा। मुझे अजित के लण्ड को हाथ में लेने की ललक उठी। मैंने उसके लण्ड को उसकी पतलून के उपरसे सहलाना शुरू किया। ट्रैन में कोई भी यह हलचल देख नहीं सकता था क्यूंकि पूरा डिब्बा लोगोँ से ऐसे ख़चाख़च भरा हुआ था, जैसे एक डिब्बे में बहुत सारी मछलियाँ भर दी जाएँ, यहां तक की सब के बदन एकदूसरे से सख्ती से भींच कर जुड़े हुए थे। मेरे और अजित के बिच कोई थोड़ी सी भी जगह नहीं थी जिसमें से किसी और इंसान को हमारी कमर के निचे क्या हो रहा था वह नजर आये।
उतनी ही देर में मेरे हाथों में अनायास ही उसकी ज़िप आयी। पता नहीं मुझे क्या हो रहा था। मेरी उंगलियां ऐसे चल गयीं की उसकी ज़िप निचे की और सरक गयीं और अजित के अंडर वियर में एक कट था (जिसमें से मर्द लोग पेशाब के लिए लण्ड बाहर निकालते हैं) उसमें मेरी उंगलियां चली गयीं। और क्या था? मेरी उँगलियाँ अजित के खड़े, चिकनाहट से सराबोर मोटे लण्ड के इर्दगिर्द घूमने लगीं। मुझे पता ही नहीं लगा की कितनी देर हो गयी। मैं अजित के चिकनाई से लथपथ लण्ड को सहलाती ही रही। मैंने अजित की और देखा तो वह आँखें मूंदे चुपचाप मेरे उसके लण्ड सहलाने का आनंद ले रहा था। उसके चेहरे से ऐसे लग रहा था जैसे कई महीनों के बाद किसी स्त्री ने उसका लण्ड का स्पर्श किया होगा। जैसे ही मैंने उसका लण्ड सहलाना शुरू किया की अजित भी अपनी कमर आगे पीछे कर के जैसे मेरी मुट्ठी को चोदने लगा। कुछ देर बाद अचानक मैंने महसूस किया की अजित के बदन में एक झटका सा महसूस हुआ, उसके लण्ड में से तेज धमाकेदार गति से गरम गरम फव्वारा छूटा और मेरी मुट्ठी और पूरी हथेली अजित के लण्ड में से निकली हुई चिकने चिकने, गरम प्रवाही की मलाई से भर गयी। मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या करूँ। मैंने फ़टाफ़ट अपना हाथ अजित के पतलून से बाहर निकाल ने की लिए जोर लगाया। बड़ी मुश्किल से हाथ बाहर निकला। इस आनन-फानन में मेरा हाथ भी अजित की पतलून से रगड़ कर साफ़ हो गया। अचानक ही एक धक्का लगा और मेट्रो झटके के साथ रुकी। मैं अजित की और देखने लायक नहीं थी और अजित मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। हमारा स्टेशन आ गया था। धक्कामुक्की करते हुए हम बड़ी मुश्किल से निचे उतरे। उतरते ही अजित कहाँ गायब हो गया, मैंने नहीं देखा।
वह मेरा मेरे पति से बेवफाई का पहला मौक़ा था। पर तबसे मैंने तय किया की मुझसे बड़ी भूल हो गयी थी और अब मैं ऐसा कभी नहीं करुँगी और पति की वफादार रहूंगी।
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अगली सुबह अजित मेरे इंतजार में वहीँ खड़ा था। हम लोग साथ साथ चलने लगे पर शायद वह भी पछतावे से सहमा हुआ था और शर्म से मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं करता था। मैंने भी चुप रहना ठीक समझा। अगर वह कुछ बोलता तो मेरे लिए एक अजीब परिस्थिति हो जाती, क्यूंकि मैं उन दिनों चुदाई करवाने के लिए तो बेताब रहती थी, पर पति से बेवफाई करना नहीं चाहती थी।
मेरे मन में एक अजीब सी गुत्थमगुत्थी चल रही थी। तब शायद चुप्पी तोड़ने के लिए उसने आगे आकर मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "प्रिया, मुझे माफ़ कर दो। ऐसे गुस्सा करके मुझ से बोलना बंद मत करो प्लीज?"