14-08-2019, 03:04 PM
प्रेरणा: "इसलिए मैं तुम्हे पूरी बात नहीं बता रही थी। अभी तुम कुछ मत करो। आगे देखते हैं, अगर उसकी नीयत ख़राब हुई तो फिर पता चल ही जाएगा"
पराग: "सच में ग़लतफ़हमी भी हो सकती है। तुम्हे बच्चा होने के बाद से पिछले एक साल में तुमने मुश्किल से मुझे २-३ बार अपने मुम्मो पर हाथ लगाने दिया होगा। इतने टाइम में तो आदमी भूजल ही जाता हैं की उसकी बीवी के मुम्मो का क्या साइज है। उसके साथ भी ऐसा कुछ हुआ होगा"
प्रेरणा: "मैंने तुम्हे सिर्फ २-३ बार हाथ लगाने दिया? आये दिन तो तुम मेरी छति को दबाते रहते हो!"
पराग: "सिर्फ एक ऊँगली लगाने को मुम्मा दबाना नहीं कहते हैं"
प्रेरणा: "बच्चा होने के बाद मेरे मुम्मो में दूध था, तुम्हे हाथ कैसे लगाने दू? मेरा दूध निकल जाता हैं और फिर कपड़ो पर दूध का दाग लग जाता हैं"
पराग: "दूध तो कुछ महीने बाद ख़त्म हो गया था, फिर भी तुमने मुझे अपने मुम्मे चुस्ने देना तो दूर की बाट, हाथ तक नहीं लगाने दिया"
प्रेरणा: "मुम्मो को हाथ लगाने से तुम्हे क्या मिल जायेगा! तुम्हारा जो मैं काम हैं चुदाई का वो तो तुम करते ही हो, उसमें तो कभी कोई कमी नहीं आयी न?"
पराग: "बात अभी मुम्मो को दबाने की हो रही है। एक साल में सिर्फ दो बार मुम्मो को दबाने दिया!"
प्रेरणा: "ठीक हैं, जब मेरा मूड होगा तब मैं तुम्हे हाथ लगाने दूंगी पर तुम ज्यादा नोचोगे नाहि, प्यार से पेश आओगे तभी हाथ लगाने दूंगी"
पराग: "और मुह से भी चुसने दोगी?"
प्रेरणा: "चूस भी लेना पर जब मैं बोलू तभी"
कब मेरा दिमाग रह रह कर वो मंजर बनाने लगा की कैसे मिहिर ने प्रेरणा को दबोचा होगा और इतनी देर तक मेरी बीवी के मुम्मो को मसला होगा। इस हक़ से तो काफी हद तक मैं भी मरहूम हूं। नैना के मुम्मे प्रेरणा जितने बड़े नहीं हैं तो मिहिर ने जरूर जान बूझकर यह ग़लतफ़हमी का खेल खेला होगा ताकि वो प्रेरणा के बड़े मुम्मो के मजे ले पाये और बच भी
जाये l फिर मैं खुद सोचने लगा की अगर मैं नैना के मुम्मे दबाऊंगा तो क्या मुझे नैना और प्रेरणा के मुम्मो में फर्क महसूस हो पायेगा या नहीं?
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इस तरह कुछ महीने निकल गए और नैना और प्रेरणा की दोस्ती इसी तरह चालती राहि। मुझे भी नैना के बारे में थोड़ा बहुत प्रेरणा से पता चल ही जात। प्रेरणा का भी सामना उसके बाद कभी मिहिर से नहीं हुआ। इस घटना का एक फायदा यह हुआ की अब हफ्ते में एक बार प्रेरणा मुझे अपने मुम्मो को दबाने देती मगर उसके गाउन और ब्रा सहित ही हाथ लगा पता था। कम से कम थोड़ी प्रोग्रेस तो हुई थी।
मैन कभी कभार सोसाइटी कंपाउंड में आते जाते मिहिर से मिल लेता था या बाहर वाक करते वक़्त वो मिल जाता तो थोड़ी बात हो जाया करती थी। उसने खुद थोड़े मजे लेकर मेरा थोड़ा फायदा तो कर ही दिया था, क्यों की प्रेरणा मुझे अब मुम्मे दबाने देती थी। दोपाहर में ऑफिस से जब भी मैं प्रेरणा को फ़ोन करता तो वो अधिकतर नैना के साथ ही पायी जाती। उन दोनों की दोस्ती बरकारार थी, एक बार मैंने प्रेरणा से बात करते हुए बैकग्राउंड में नैना के गाना गाने की आवाज भी सुनी। वो बहुत अच्छा गा रही थी तो मैंने प्रेरणा से पुछ ही लिया था की वो कौन गा रहा हैं, बहुत अच्छा गा रही है।
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पराग: "सच में ग़लतफ़हमी भी हो सकती है। तुम्हे बच्चा होने के बाद से पिछले एक साल में तुमने मुश्किल से मुझे २-३ बार अपने मुम्मो पर हाथ लगाने दिया होगा। इतने टाइम में तो आदमी भूजल ही जाता हैं की उसकी बीवी के मुम्मो का क्या साइज है। उसके साथ भी ऐसा कुछ हुआ होगा"
प्रेरणा: "मैंने तुम्हे सिर्फ २-३ बार हाथ लगाने दिया? आये दिन तो तुम मेरी छति को दबाते रहते हो!"
पराग: "सिर्फ एक ऊँगली लगाने को मुम्मा दबाना नहीं कहते हैं"
प्रेरणा: "बच्चा होने के बाद मेरे मुम्मो में दूध था, तुम्हे हाथ कैसे लगाने दू? मेरा दूध निकल जाता हैं और फिर कपड़ो पर दूध का दाग लग जाता हैं"
पराग: "दूध तो कुछ महीने बाद ख़त्म हो गया था, फिर भी तुमने मुझे अपने मुम्मे चुस्ने देना तो दूर की बाट, हाथ तक नहीं लगाने दिया"
प्रेरणा: "मुम्मो को हाथ लगाने से तुम्हे क्या मिल जायेगा! तुम्हारा जो मैं काम हैं चुदाई का वो तो तुम करते ही हो, उसमें तो कभी कोई कमी नहीं आयी न?"
पराग: "बात अभी मुम्मो को दबाने की हो रही है। एक साल में सिर्फ दो बार मुम्मो को दबाने दिया!"
प्रेरणा: "ठीक हैं, जब मेरा मूड होगा तब मैं तुम्हे हाथ लगाने दूंगी पर तुम ज्यादा नोचोगे नाहि, प्यार से पेश आओगे तभी हाथ लगाने दूंगी"
पराग: "और मुह से भी चुसने दोगी?"
प्रेरणा: "चूस भी लेना पर जब मैं बोलू तभी"
कब मेरा दिमाग रह रह कर वो मंजर बनाने लगा की कैसे मिहिर ने प्रेरणा को दबोचा होगा और इतनी देर तक मेरी बीवी के मुम्मो को मसला होगा। इस हक़ से तो काफी हद तक मैं भी मरहूम हूं। नैना के मुम्मे प्रेरणा जितने बड़े नहीं हैं तो मिहिर ने जरूर जान बूझकर यह ग़लतफ़हमी का खेल खेला होगा ताकि वो प्रेरणा के बड़े मुम्मो के मजे ले पाये और बच भी
जाये l फिर मैं खुद सोचने लगा की अगर मैं नैना के मुम्मे दबाऊंगा तो क्या मुझे नैना और प्रेरणा के मुम्मो में फर्क महसूस हो पायेगा या नहीं?
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इस तरह कुछ महीने निकल गए और नैना और प्रेरणा की दोस्ती इसी तरह चालती राहि। मुझे भी नैना के बारे में थोड़ा बहुत प्रेरणा से पता चल ही जात। प्रेरणा का भी सामना उसके बाद कभी मिहिर से नहीं हुआ। इस घटना का एक फायदा यह हुआ की अब हफ्ते में एक बार प्रेरणा मुझे अपने मुम्मो को दबाने देती मगर उसके गाउन और ब्रा सहित ही हाथ लगा पता था। कम से कम थोड़ी प्रोग्रेस तो हुई थी।
मैन कभी कभार सोसाइटी कंपाउंड में आते जाते मिहिर से मिल लेता था या बाहर वाक करते वक़्त वो मिल जाता तो थोड़ी बात हो जाया करती थी। उसने खुद थोड़े मजे लेकर मेरा थोड़ा फायदा तो कर ही दिया था, क्यों की प्रेरणा मुझे अब मुम्मे दबाने देती थी। दोपाहर में ऑफिस से जब भी मैं प्रेरणा को फ़ोन करता तो वो अधिकतर नैना के साथ ही पायी जाती। उन दोनों की दोस्ती बरकारार थी, एक बार मैंने प्रेरणा से बात करते हुए बैकग्राउंड में नैना के गाना गाने की आवाज भी सुनी। वो बहुत अच्छा गा रही थी तो मैंने प्रेरणा से पुछ ही लिया था की वो कौन गा रहा हैं, बहुत अच्छा गा रही है।
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