14-08-2019, 09:41 AM
“क्या होता है? कम से कम ये तो ध्यान रहना चाहिये ना के, जिसके लिये बुरे खयाल आ रहे हैं, वो अपनी रिश्तेदार है।”
“अब उसे क्या पता कि तुम रिश्तेदार हो, उसके लिये तो सब एक समान।”
“गंदे कहीं के!”
“अच्छा मैं गंदा और तुम क्या?”
“मैंने क्या किया?”
“तू भी अंदर से उतावली हो गयी है।”
“नहीं, हम लड़कियाँ तुम लड़कों जैसी नहीं होती।”
“हम लड़कों के जज्बात बाहर नजर आते हैं, क्योंकि हमारा तन जाता है। तुम लड़कियाँ गीली होती हो, पर बाहर नजर नहीं आता।”
“ऐसा कुछ नहीं होता।”
“नहीं होता तो तुम गीली क्यों हो गयी हो?
“हट, कुछ भी बोल रहे हो, कुछ गीली वीली नहीं हुयी हूँ मै!”
“तेरा गीलापन मेरे जांघों को महसूस हो रहा है।”
“चुप करो, कुछ भी बोलते हो!” कह कर उसने हंसते हुये मेरे मुँह पर हाथ रख दिया।
मैंने उसके हाथ के ऊपर अपना हाथ रखा, और आहिस्ते से बड़े प्यार से उस हाथ को चूमा।
“कुछ ऐसी वैसी हरकत मत करो भाई।”
“क्यों क्या हुआ बहना?”
“मैं कुंवारी हूँ।”
“मैं कहां शादीशुदा हूँ?”
“हाँ, तो जिसके साथ शादी करोगे उसके साथ ये सब कर लेना।”
“तेरे साथ करुंगा।”
“तुझे पता है, हमारी शादी नहीं हो सकती। हम आपस में भाई बहन लगते हैं.”
“फिर इस अगन को ठण्डा कैसे किया जाये?”
“जा के मुठ मार के आ जाओ!” वो जोर से हंसते हुये बोली।
“तुम मार दो ना अपने हाथों से?”
“मुझे क्या जरूरत पड़ी हैं?
“मैं भी मदद करुंगा ना तुम्हारी।”
“तुम मेरी क्या मदद करोगे?”
“मैं तुम्हारी आग को अपने हाथ से ठण्डा कर दूँगा।”
“मुझे जरूरत नहीं हैं किसी के हाथ की।”
“अब उसे क्या पता कि तुम रिश्तेदार हो, उसके लिये तो सब एक समान।”
“गंदे कहीं के!”
“अच्छा मैं गंदा और तुम क्या?”
“मैंने क्या किया?”
“तू भी अंदर से उतावली हो गयी है।”
“नहीं, हम लड़कियाँ तुम लड़कों जैसी नहीं होती।”
“हम लड़कों के जज्बात बाहर नजर आते हैं, क्योंकि हमारा तन जाता है। तुम लड़कियाँ गीली होती हो, पर बाहर नजर नहीं आता।”
“ऐसा कुछ नहीं होता।”
“नहीं होता तो तुम गीली क्यों हो गयी हो?
“हट, कुछ भी बोल रहे हो, कुछ गीली वीली नहीं हुयी हूँ मै!”
“तेरा गीलापन मेरे जांघों को महसूस हो रहा है।”
“चुप करो, कुछ भी बोलते हो!” कह कर उसने हंसते हुये मेरे मुँह पर हाथ रख दिया।
मैंने उसके हाथ के ऊपर अपना हाथ रखा, और आहिस्ते से बड़े प्यार से उस हाथ को चूमा।
“कुछ ऐसी वैसी हरकत मत करो भाई।”
“क्यों क्या हुआ बहना?”
“मैं कुंवारी हूँ।”
“मैं कहां शादीशुदा हूँ?”
“हाँ, तो जिसके साथ शादी करोगे उसके साथ ये सब कर लेना।”
“तेरे साथ करुंगा।”
“तुझे पता है, हमारी शादी नहीं हो सकती। हम आपस में भाई बहन लगते हैं.”
“फिर इस अगन को ठण्डा कैसे किया जाये?”
“जा के मुठ मार के आ जाओ!” वो जोर से हंसते हुये बोली।
“तुम मार दो ना अपने हाथों से?”
“मुझे क्या जरूरत पड़ी हैं?
“मैं भी मदद करुंगा ना तुम्हारी।”
“तुम मेरी क्या मदद करोगे?”
“मैं तुम्हारी आग को अपने हाथ से ठण्डा कर दूँगा।”
“मुझे जरूरत नहीं हैं किसी के हाथ की।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
