14-08-2019, 09:39 AM
हमारा समर वॅकेशन चल रहा था, छुट्टी के शुरु होते ही हम सब दोस्तों ने जंगल में पिकनिक का प्लान बनाया।
जिस दिन हम निकलने वाले थे, ठीक उसी दिन मेरे मामा की लड़की स्वीटी हमारे घर आ गयी। जैसे ही उसे पता चला कि मैं पिकनिक जाने वाला हूँ, वो भी साथ चलने की जिद करने लगी। मैंने बहुत मना किया, कहा- मेरे साथ सभी लड़के हैं, कोई लड़की नहीं है.
पर वो नहीं मानी।
ऊपर से मम्मी पप्पा ने भी उसी का साथ दिया तो मजबूरन मुझे उसे अपने साथ ले जाने के लिये हामी भरनी पड़ी।
लड़की हो चाहे औरत हो, बाहर जाते वक्त तैयारी करने में कितना समय लेती हैं ये तो आप सब जानते ही हो।
स्वीटी ने भी वही किया, तैयार होने में इतना समय लगाया कि जिस ट्रेन से हम लोग जाने वाले थे, वो ट्रेन छुट जाने वाली थी।
तो मैंने अपने दोस्तों को उसी ट्रेन से जाने के लिये कहा कि हम दोनों बाद में अगली ट्रेन से आ जायेंगे.
मेरे कहने पर वो लोग उसी ट्रेन से निकल गये।
दूसरी गाड़ी काफी समय बाद थी, मैंने और स्वीटी ने दूसरी गाड़ी पकड़ ली पर हुआ ये कि जो ट्रेन हमें मिली, वो रात को मंजिल पर पहुँची।
मेरे बाकी दोस्तों का ग्रुप जो आगे निकल चुका था, वो गहरे जंगल में पहुँच गया था जिसकी वजह से उनसे फोन पर सम्पर्क नहीं हो पा रहा था।
अब हम दोनों भाई बहन को या तो स्टेशन पर सुबह तक रुकना पड़ता या रातों रात उन्हें खोजना पड़ता।
हमने जंगल में जाने का फैसला कर लिया। काफी देर तक हम उन्हें खोजते रहे पर वे लोग नहीं मिले। आखिरकार थक हार कर हमने रात भर जहां थे, वहीं विश्राम करने का फैसला कर लिया।
मैंने जंगल में से कुछ लकड़ियाँ इकट्ठी करके आग सुलगा ली, कुछ खाना हम साथ लाये थे, उसी आग पर हम लोगों ने खाना गर्म किया और खाया.
जब खाना-वाना हो गया तो हम लोग आग के पास बैठ गपशप करने लगे।
कुछ देर बात करने के बाद स्वीटी को पेशाब का प्रेशर बना, जिसके चलते उसने अपनी सलवार उतार दी। उसका कुर्ता कमर तक दोनों तरफ से कटा हुआ था, जिसके चलते उसकी पैंटी उन कट से दिख रही थी। ऐसा लग रहा था मानो मेरे सामने कोई कॅबरे डान्सर खड़ी हो, और कैबरे डांसर की तो फिर भी पैंटी नहीं दिखती है, मुझे तो मेरी बहन की नंगी टाँगे और पैंटी दिख रही थी.
“कैसे कपड़े पहन रखे हैं तुमने स्वीटी? और ऊपर से ये सलवार भी उतार दी? शरम भी नहीं आ रही तुझे? नाराज होकर मैंने कहा।
“अरे भाई, तेरे सामने क्या शरमाना? तू और मैं बचपन से बिना कपड़ों के साथ रहे हुए हैं.” उसने बेशर्मी से मेरी बात का जवाब दिया।
“लेकिन अब हम छोटे बच्चे नहीं रहे!” मैंने टोका।
“तो क्या हुआ?” मेरी बहन ने लापरवाही से जवाब दिया.
“तो फिर ये बाकी कपड़े भी उतार दे ना, इन्हें ही क्यों पहन रखा है?”
“हाय भाई… तुम कहो तो मैं इन्हें भी उतार दूँ।” हंसती हुई वो बोली और झाड़ियों के पीछे पेशाब करने के लिये बैठ गयी।
जब वो वापस आयी तो मैंने उसे स्लिपिंग बॅग देते हुये कहा- यार स्वीटी, हमारे पास एक ही स्लीपिंग बैग है, हमें बारी बारी सोना और जागना पड़ेगा।
“तुम सो जाओ, मैं थोड़ी देर जागती हूँ.” कह कर वो आग के पास बैठ गयी।
उससे बहस करने का कोई मतलब नहीं था, मैं बॅग लेकर उसमें सो गया।
मुश्किल से बीस मिनट ही गुजरे होंगे कि वो मेरे पास आयी और कहने लगी- मुझे भी सोना है।
मैं हंसा और कहा- ठीक है, तू सो जा, मैं जागता हूँ।
“नहीं, क्या जरूरत है तुझे जागने की? हम दोनों एक साथ सो जाते हैं इस बैग में।”
“लेकिन इसमें जगह नहीं होगी हम दोनों के लिये।”
“हो जायेगी!” कहते हुये वो जबरदस्ती मेरे अंदर रहते स्लिपिंग बैग में घुसने की कोशिश करने लगी।
जैसे तैसे वो अंदर तो घुस गयी, पर जबरस्ती कम जगह में अंदर नीचे की तरफ खिसकते हुये उसका कुर्ता गले तक ऊपर खिसक गया।
जिस दिन हम निकलने वाले थे, ठीक उसी दिन मेरे मामा की लड़की स्वीटी हमारे घर आ गयी। जैसे ही उसे पता चला कि मैं पिकनिक जाने वाला हूँ, वो भी साथ चलने की जिद करने लगी। मैंने बहुत मना किया, कहा- मेरे साथ सभी लड़के हैं, कोई लड़की नहीं है.
पर वो नहीं मानी।
ऊपर से मम्मी पप्पा ने भी उसी का साथ दिया तो मजबूरन मुझे उसे अपने साथ ले जाने के लिये हामी भरनी पड़ी।
लड़की हो चाहे औरत हो, बाहर जाते वक्त तैयारी करने में कितना समय लेती हैं ये तो आप सब जानते ही हो।
स्वीटी ने भी वही किया, तैयार होने में इतना समय लगाया कि जिस ट्रेन से हम लोग जाने वाले थे, वो ट्रेन छुट जाने वाली थी।
तो मैंने अपने दोस्तों को उसी ट्रेन से जाने के लिये कहा कि हम दोनों बाद में अगली ट्रेन से आ जायेंगे.
मेरे कहने पर वो लोग उसी ट्रेन से निकल गये।
दूसरी गाड़ी काफी समय बाद थी, मैंने और स्वीटी ने दूसरी गाड़ी पकड़ ली पर हुआ ये कि जो ट्रेन हमें मिली, वो रात को मंजिल पर पहुँची।
मेरे बाकी दोस्तों का ग्रुप जो आगे निकल चुका था, वो गहरे जंगल में पहुँच गया था जिसकी वजह से उनसे फोन पर सम्पर्क नहीं हो पा रहा था।
अब हम दोनों भाई बहन को या तो स्टेशन पर सुबह तक रुकना पड़ता या रातों रात उन्हें खोजना पड़ता।
हमने जंगल में जाने का फैसला कर लिया। काफी देर तक हम उन्हें खोजते रहे पर वे लोग नहीं मिले। आखिरकार थक हार कर हमने रात भर जहां थे, वहीं विश्राम करने का फैसला कर लिया।
मैंने जंगल में से कुछ लकड़ियाँ इकट्ठी करके आग सुलगा ली, कुछ खाना हम साथ लाये थे, उसी आग पर हम लोगों ने खाना गर्म किया और खाया.
जब खाना-वाना हो गया तो हम लोग आग के पास बैठ गपशप करने लगे।
कुछ देर बात करने के बाद स्वीटी को पेशाब का प्रेशर बना, जिसके चलते उसने अपनी सलवार उतार दी। उसका कुर्ता कमर तक दोनों तरफ से कटा हुआ था, जिसके चलते उसकी पैंटी उन कट से दिख रही थी। ऐसा लग रहा था मानो मेरे सामने कोई कॅबरे डान्सर खड़ी हो, और कैबरे डांसर की तो फिर भी पैंटी नहीं दिखती है, मुझे तो मेरी बहन की नंगी टाँगे और पैंटी दिख रही थी.
“कैसे कपड़े पहन रखे हैं तुमने स्वीटी? और ऊपर से ये सलवार भी उतार दी? शरम भी नहीं आ रही तुझे? नाराज होकर मैंने कहा।
“अरे भाई, तेरे सामने क्या शरमाना? तू और मैं बचपन से बिना कपड़ों के साथ रहे हुए हैं.” उसने बेशर्मी से मेरी बात का जवाब दिया।
“लेकिन अब हम छोटे बच्चे नहीं रहे!” मैंने टोका।
“तो क्या हुआ?” मेरी बहन ने लापरवाही से जवाब दिया.
“तो फिर ये बाकी कपड़े भी उतार दे ना, इन्हें ही क्यों पहन रखा है?”
“हाय भाई… तुम कहो तो मैं इन्हें भी उतार दूँ।” हंसती हुई वो बोली और झाड़ियों के पीछे पेशाब करने के लिये बैठ गयी।
जब वो वापस आयी तो मैंने उसे स्लिपिंग बॅग देते हुये कहा- यार स्वीटी, हमारे पास एक ही स्लीपिंग बैग है, हमें बारी बारी सोना और जागना पड़ेगा।
“तुम सो जाओ, मैं थोड़ी देर जागती हूँ.” कह कर वो आग के पास बैठ गयी।
उससे बहस करने का कोई मतलब नहीं था, मैं बॅग लेकर उसमें सो गया।
मुश्किल से बीस मिनट ही गुजरे होंगे कि वो मेरे पास आयी और कहने लगी- मुझे भी सोना है।
मैं हंसा और कहा- ठीक है, तू सो जा, मैं जागता हूँ।
“नहीं, क्या जरूरत है तुझे जागने की? हम दोनों एक साथ सो जाते हैं इस बैग में।”
“लेकिन इसमें जगह नहीं होगी हम दोनों के लिये।”
“हो जायेगी!” कहते हुये वो जबरदस्ती मेरे अंदर रहते स्लिपिंग बैग में घुसने की कोशिश करने लगी।
जैसे तैसे वो अंदर तो घुस गयी, पर जबरस्ती कम जगह में अंदर नीचे की तरफ खिसकते हुये उसका कुर्ता गले तक ऊपर खिसक गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
