09-08-2019, 04:03 PM
विक्रम महंगी शराब का शौकीन था। उसकी इस आदत का पता मुझे उनके यहाँ शिफ्ट होने के बाद ही चला। एक बड़े भाई का लिहाज करके विक्रम मेरे सामने नहीं पीता था लेकिन जब मुझे इसका पता चला तो मैंने उसे इसकी अनुमति दे दी। विक्रम एक सभ्य शराबी था। जिसके पीने न पीने का कोई अंदाजा न लगा सकता था। उसको कभी-कभी पीने में मैंने भी कंपनी दी। मगर मैं शराब का ज्यादा शौकीन नहीं था।
बीती रात कुछ ऐसा हुआ था कि जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि जो अदला-बदली का खेल मैं दूसरों के साथ खेल रहा था क्या वही खेल नियति मेरे साथ खेलना चाहती थी? या जो बीती रात हुआ था वो एक सोची समझी साजिश थी?
वह तृप्ति के बिना मेरी पहली रात थी। इसलिए विक्रम ने शराब पार्टी का माहौल बना लिया। उपासना हमें जरूरी स्नैक्स परोस कर खाने का इंतजाम कर अपने कमरे में सोने चली गयी थी। विक्रम और मैंने हँसी-मजाक में शराब पार्टी पूरी की और कब नींद आ गई इसका पता भी न चला।
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सुबह नींद हल्की सी खुली तो अपने साथ बिस्तर पर नंगी सोई तृप्ति को मैंने अपनी तरफ खींचा और उससे चिपक कर सो गया। नींद में ही दिमाग की घँटी बजी और याद आया कि तृप्ति तो अहमदाबाद चली गयी है! फिर यहां मेरे साथ बिस्तर पर नंगी कैसे सो सकती है? मैं झटके से उठ गया और देखा तो चक्कर खा गया। उपासना मेरे कम्बल में पूरी तरह से नंगी गहरी नींद में सोई हुई है। ध्यान दिया तो पता चला कि कमरा भी मेरा नहीं बल्कि उपासना और विक्रम का है। बेशक उपासना का नंगा शरीर नजारे लूटने जैसा होगा पर मैं उस समय मजे लेने की हालत में बिल्कुल नहीं था।
मैं अपने कम्बल में न झांक कर, अपने कपड़े संभाल कर सीधा बाहर आया तो देखा कि विक्रम उसी सोफ़े पर गहरी नींद में सोया पड़ा है जहाँ हमने शराब पी थी। खाना वैसे का वैसे ही रखा है, मतलब हमने शराब के बाद खाना भी नहीं खाया था। मैं सीधे अपने कमरे में गया और तेज धड़कते हुए दिल के साथ शॉवर लेने लगा और तैयार होकर सीधे ऑफिस चला गया। दिमाग समझ नहीं पा रहा था कि कैसे, क्या हुआ, ये सब? मैंने मन में ही अंदाजा लगा लिया कि शायद शराब पीने के बाद जब विक्रम सो गया होगा तो मेरे अंदर का पाप जाग गया होगा और मैं विक्रम के कमरे में जाकर उपासना के पास सो गया होंगा। अंधरे के कारण उपासना ने भी मेरे साथ मुझे विक्रम समझकर सम्बंध बना लिए होंगे क्योंकि जब मैं उठा तो रोशनी तो खिड़की से आए उजाले की थी। लाइट्स तो सारी बन्द थीं।
या फिर क्या पता मैंने उसे सीमा-श्लोक का कमरा समझा हो, क्योंकि इतने दिनों से हम साथ थे और कभी भी किसी भी कमरे में जाकर चुदाई करके सो जाते थे। शायद मैंने उपासना को सीमा समझ कर ही शराब के नशे में चोद दिया हो और उपासना ने विक्रम समझकर मेरे साथ ये सब किया हो! तभी तो रात को कोई बवाल नहीं हुआ। या शायद तृप्ति समझ कर ही उपासना को चोद दिया हो। मेरा मन तरह-तरह के कयास लगाकर खुद ही अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रहा था। मगर यह सोचते-सोचते दिमाग के 12 बज गए थे। रात को हुई घटना समझ से परे थी। कैसे नजर मिलाऊँगा विक्की (विक्रम) और उपासना से, समझ नहीं आ रहा था।
मैंने अपनी सारी मीटिंग्स कैंसिल की और अपने केबिन में दुबक कर बैठा रहा। रोज समय पर आने वाला विक्रम आज ऑफिस नहीं आया था जिससे मैं समझ गया था कि विक्रम को भी इस बात का अब पता चल गया होगा। उस वक्त 'काटो तो खून नहीं' जैसी हालत थी।
सुबह से शाम हो गई लेकिन विक्रम आज ऑफिस नहीं आया था। अब तो उल्टा मेरे घर जाने का समय हो गया था लेकिन घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कैसे दोनों से नजरे मिलाऊंगा? तृप्ति को इस घटना के बारे में क्या बताऊंगा?
मुझे तो कल रात क्या हुआ था यह पता भी नहीं था। अतः ऑफिस से मैं सीधा होटल गया और वहां पर खाना खाया और देर रात 10:00 बजे घर की तरफ मेरे कदम बढ़े। घर जाते-जाते मैंने यह सोच लिया था कि कल रात जो भी हुआ है उसके लिए विक्रम को बुलाकर उससे बात करूंगा और अपने किए की माफी मांग लूंगा। अदला-बदली कर चुदाई का खेल मेरे, सीमा, श्लोक, तृप्ति के बीच ही सहज था लेकिन यह विक्रम था, जिसको कि हमारे इस तरह के अदला-बदली वाले जीवन के बारे में कुछ भी नहीं पता था। जब मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा तो गेट उपासना ने खोला। उसने मुझसे नजर नहीं मिलाई, न मैंने उससे। मैं सीधा अपने फ्लैट के ऊपर वाले कमरे में चला गया और विक्रम को ऊपर आने के लिए फोन किया।
तो दोस्तो, यह सब हुआ मेरे साथ बीती रात। रात की किताब में जो पन्ने अनपढ़े और अनसुलझे रह गए थे उन्हें खोलकर पढ़ने की कोशिश कर ही रहा था कि विक्रम की आवाज आई -- भैया!
बीती रात कुछ ऐसा हुआ था कि जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि जो अदला-बदली का खेल मैं दूसरों के साथ खेल रहा था क्या वही खेल नियति मेरे साथ खेलना चाहती थी? या जो बीती रात हुआ था वो एक सोची समझी साजिश थी?
वह तृप्ति के बिना मेरी पहली रात थी। इसलिए विक्रम ने शराब पार्टी का माहौल बना लिया। उपासना हमें जरूरी स्नैक्स परोस कर खाने का इंतजाम कर अपने कमरे में सोने चली गयी थी। विक्रम और मैंने हँसी-मजाक में शराब पार्टी पूरी की और कब नींद आ गई इसका पता भी न चला।
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सुबह नींद हल्की सी खुली तो अपने साथ बिस्तर पर नंगी सोई तृप्ति को मैंने अपनी तरफ खींचा और उससे चिपक कर सो गया। नींद में ही दिमाग की घँटी बजी और याद आया कि तृप्ति तो अहमदाबाद चली गयी है! फिर यहां मेरे साथ बिस्तर पर नंगी कैसे सो सकती है? मैं झटके से उठ गया और देखा तो चक्कर खा गया। उपासना मेरे कम्बल में पूरी तरह से नंगी गहरी नींद में सोई हुई है। ध्यान दिया तो पता चला कि कमरा भी मेरा नहीं बल्कि उपासना और विक्रम का है। बेशक उपासना का नंगा शरीर नजारे लूटने जैसा होगा पर मैं उस समय मजे लेने की हालत में बिल्कुल नहीं था।
मैं अपने कम्बल में न झांक कर, अपने कपड़े संभाल कर सीधा बाहर आया तो देखा कि विक्रम उसी सोफ़े पर गहरी नींद में सोया पड़ा है जहाँ हमने शराब पी थी। खाना वैसे का वैसे ही रखा है, मतलब हमने शराब के बाद खाना भी नहीं खाया था। मैं सीधे अपने कमरे में गया और तेज धड़कते हुए दिल के साथ शॉवर लेने लगा और तैयार होकर सीधे ऑफिस चला गया। दिमाग समझ नहीं पा रहा था कि कैसे, क्या हुआ, ये सब? मैंने मन में ही अंदाजा लगा लिया कि शायद शराब पीने के बाद जब विक्रम सो गया होगा तो मेरे अंदर का पाप जाग गया होगा और मैं विक्रम के कमरे में जाकर उपासना के पास सो गया होंगा। अंधरे के कारण उपासना ने भी मेरे साथ मुझे विक्रम समझकर सम्बंध बना लिए होंगे क्योंकि जब मैं उठा तो रोशनी तो खिड़की से आए उजाले की थी। लाइट्स तो सारी बन्द थीं।
या फिर क्या पता मैंने उसे सीमा-श्लोक का कमरा समझा हो, क्योंकि इतने दिनों से हम साथ थे और कभी भी किसी भी कमरे में जाकर चुदाई करके सो जाते थे। शायद मैंने उपासना को सीमा समझ कर ही शराब के नशे में चोद दिया हो और उपासना ने विक्रम समझकर मेरे साथ ये सब किया हो! तभी तो रात को कोई बवाल नहीं हुआ। या शायद तृप्ति समझ कर ही उपासना को चोद दिया हो। मेरा मन तरह-तरह के कयास लगाकर खुद ही अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रहा था। मगर यह सोचते-सोचते दिमाग के 12 बज गए थे। रात को हुई घटना समझ से परे थी। कैसे नजर मिलाऊँगा विक्की (विक्रम) और उपासना से, समझ नहीं आ रहा था।
मैंने अपनी सारी मीटिंग्स कैंसिल की और अपने केबिन में दुबक कर बैठा रहा। रोज समय पर आने वाला विक्रम आज ऑफिस नहीं आया था जिससे मैं समझ गया था कि विक्रम को भी इस बात का अब पता चल गया होगा। उस वक्त 'काटो तो खून नहीं' जैसी हालत थी।
सुबह से शाम हो गई लेकिन विक्रम आज ऑफिस नहीं आया था। अब तो उल्टा मेरे घर जाने का समय हो गया था लेकिन घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कैसे दोनों से नजरे मिलाऊंगा? तृप्ति को इस घटना के बारे में क्या बताऊंगा?
मुझे तो कल रात क्या हुआ था यह पता भी नहीं था। अतः ऑफिस से मैं सीधा होटल गया और वहां पर खाना खाया और देर रात 10:00 बजे घर की तरफ मेरे कदम बढ़े। घर जाते-जाते मैंने यह सोच लिया था कि कल रात जो भी हुआ है उसके लिए विक्रम को बुलाकर उससे बात करूंगा और अपने किए की माफी मांग लूंगा। अदला-बदली कर चुदाई का खेल मेरे, सीमा, श्लोक, तृप्ति के बीच ही सहज था लेकिन यह विक्रम था, जिसको कि हमारे इस तरह के अदला-बदली वाले जीवन के बारे में कुछ भी नहीं पता था। जब मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा तो गेट उपासना ने खोला। उसने मुझसे नजर नहीं मिलाई, न मैंने उससे। मैं सीधा अपने फ्लैट के ऊपर वाले कमरे में चला गया और विक्रम को ऊपर आने के लिए फोन किया।
तो दोस्तो, यह सब हुआ मेरे साथ बीती रात। रात की किताब में जो पन्ने अनपढ़े और अनसुलझे रह गए थे उन्हें खोलकर पढ़ने की कोशिश कर ही रहा था कि विक्रम की आवाज आई -- भैया!