09-08-2019, 03:10 PM
शुरुआत में सीमा और मुझ में इसके लिए थोड़ा गुस्सा था लेकिन गुस्से की जगह धीरे-धीरे हवस ने ले ली कि किस तरह श्लोक ने मुझे देखकर कमरे में मुठ मारी। यह देख कर कभी-कभी मुझे उत्तेजना होने लगती। उस वीडियो को मैंने कई बार देखा और उसके बहुत देर तक स्खलित न होने वाले लिंग को देख देखकर अपने मन में गुदगुदी पैदा की। किस तरह एक भाई अपनी बहन को नग्न देखकर मुट्ठ मार रहा है।
अब हम दोनों सहेलियां बन गई थी, एक दूसरी से गंदी गंदी बातें करने लगी थी। एक दूसरे के पति से चोदम चोद की बातें करने लगी थी। जब सीमा को मेरी किसी बात पर गुस्सा आता तो वह कहती आपको तो देखना एक दिन अपने पति से इतना बुरा चुदवाऊंगी कि आपकी हड्डियां टूट जाएगी। उसकी इस धमकी से में उत्तेजना में पागल हो जाती थी। फिर एक दिन सीमा ने मुझसे कहा कि हमें क्या करना चाहिए कि हमारे पतियों का काम आसान हो जाए और अदला बदली करके वह हमें और हम भी उन्हें भोग लें। इस पर मैंने सीमा से कहा- मेरी प्यारी भाभी सीमा, हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। हमारी तरफ से करने वाला, सबकी तरफ से करने वाला, हमारा प्यारा राजवीर यह सब करने के बारे में सोच ही रहा होगा।
उसके कुछ दिनों बाद राजवीर ने हमें अनंत बाबा की कही हुई समस्या बताई। जब हमने सोचने का वक्त मांगा और आप दोनों छत से नीचे चले गए तब हम राजवीर की बातों पर बहुत हंसी। राजवीर ने आनंद बाबा का सहारा लेकर क्या बहाना बनाया है। हम दोनों खुशी से झूम उठी और एक दूसरी के गले लगी। आखिर लिंग बदलकर स्वाद चखने का समय आ गया था। अब जब भाई ही बुरा है तो बहन सुधर कर क्या करेगी. शायद मैं श्लोक को करने भी ना दूं लेकिन श्लोक तो मुझे देख कर मुठ मारता ही रहेगा। इतना कहकर तृप्ति हंसने लगी।
सीमा ने आगे बताया- नीचे आकर हमने असहाय औरतों के तरह नाटक किया कि हां हमें आपका किया हुआ फैसला मंजूर है हम बदलकर बच्चे पैदा करेंगी। उसके बाद हमने सच का सामना तो किया लेकिन हमारा पूरा सच आप को नहीं बताया। हमने इसके लिए आज का दिन चुना था क्योंकि आज 1 अप्रैल है ... मूर्ख दिवस! मूर्खों का दिवस! ताकि मूर्ख बनने पर आपको बुरा भी ना लगे और जब भी अप्रैल फूल आए तो हम सबके चेहरे पर एक मुस्कान हो और इस दिन की याद हो!
श्लोक को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था वह तो हक्का-बक्का होकर अपनी बहन और बीवी दोनों की तरफ देखे जा रहा था। सच बताऊं तो मेरे पास भी उस वक्त शब्द नहीं थे कि मैं क्या बोलूं! शेर को वास्तव में सवा शेरनियां मिल गई थी। तब मैं केक के पास गया और उसमें से एक टुकड़ा काटकर खुद खाया और बोला- अगर तुम दोनों को सब पता था इसका मतलब तो ये हुआ कि तुम दोनों इस स्वैपिंग में खुद की खुशी से शामिल थी।
सीमा- हम कब तक आपकी वासना भरी नजरों से बच पाती, वैसे भी हमारे पतियों को खुश रखना हमारी जिम्मेदारी है तो हम आपको निराश कैसे कर सकती हैं। और वैसे भी इस जिम्मेदारी को निभाने में तो हमारी वासना का भी समाधान है।
मैं- तो अब क्या?
सीमा- अब जब हमने एक दूसरे को भोग ही लिया है और हम अब सब भ्रष्ट हो ही चुके हैं तो क्यों ना इस भ्रष्टाचार को भ्रष्ट होने की हद तक निभाया जाए।
तृप्ति- प्यारे राज! बिगाड़ा तो आपने ही है हमें। तो फिर बिगड़ेपन का एक बार खुलकर फायदा उठाना है।
सीमा- ऐसा फायदा उठाने की आप भी सोच रहे होंगे प्यारे जीजू और श्लोक।
श्लोक- कैसा फायदा?
तृप्ति- भाई अदला-बदली तो कर ली। लिंग बदलकर स्वाद भी चख लिया अब तो मन में एक ही इच्छा है सामूहिक सेक्स की इच्छा। बड़ी फिल्में देखी है ग्रुप सेक्स की। जब चार लोगों को साथ में सेक्स करते हुए देखती हूं तो मन में अजीब सी गुदगुदी होने लगती है। दो मखमली लिंग जब एक शरीर पर रेंगते होंगे तो कितना रोमांच आता होगा।
मैं- समझ नहीं आ रहा है कि कल जो बीता वो सपना था या अभी जो मैं देख और सुन रहा हूँ वो सपना है।
श्लोक- जिस चीज़ के लिए हम कबसे पापड़ बेल रहे हैं आज वो हमें सामने से परोसी जा रही है। यह अविश्वसनीय है।
मैं- तो कब रखा जाए सामूहिक चुदाई का कार्यक्रम?
सीमा- सेक्स कार्य में देरी कैसी? अगर तृप्ति दीदी की चूत कल की चढ़ाई से सूजी नहीं है तो मैं तो आज ही तैयार हूँ।
तृप्ति- अरे आने दो, दो दो लन्ड का वार ... एक है भाई और एक है यार!
तृप्ति और सीमा बेशर्मों की तरह हंसने लगी। आज उनकी बातें कुछ ज्यादा ही वासना भरी हुई थी और कल की चुदाई से वो दोनों कुछ ज्यादा ही खुल गयी थीं। यह खुलापन, ये बिगड़ी बातें ... यही तो याराना था और यही तो हमें चाहिए था।
अब हम दोनों सहेलियां बन गई थी, एक दूसरी से गंदी गंदी बातें करने लगी थी। एक दूसरे के पति से चोदम चोद की बातें करने लगी थी। जब सीमा को मेरी किसी बात पर गुस्सा आता तो वह कहती आपको तो देखना एक दिन अपने पति से इतना बुरा चुदवाऊंगी कि आपकी हड्डियां टूट जाएगी। उसकी इस धमकी से में उत्तेजना में पागल हो जाती थी। फिर एक दिन सीमा ने मुझसे कहा कि हमें क्या करना चाहिए कि हमारे पतियों का काम आसान हो जाए और अदला बदली करके वह हमें और हम भी उन्हें भोग लें। इस पर मैंने सीमा से कहा- मेरी प्यारी भाभी सीमा, हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। हमारी तरफ से करने वाला, सबकी तरफ से करने वाला, हमारा प्यारा राजवीर यह सब करने के बारे में सोच ही रहा होगा।
उसके कुछ दिनों बाद राजवीर ने हमें अनंत बाबा की कही हुई समस्या बताई। जब हमने सोचने का वक्त मांगा और आप दोनों छत से नीचे चले गए तब हम राजवीर की बातों पर बहुत हंसी। राजवीर ने आनंद बाबा का सहारा लेकर क्या बहाना बनाया है। हम दोनों खुशी से झूम उठी और एक दूसरी के गले लगी। आखिर लिंग बदलकर स्वाद चखने का समय आ गया था। अब जब भाई ही बुरा है तो बहन सुधर कर क्या करेगी. शायद मैं श्लोक को करने भी ना दूं लेकिन श्लोक तो मुझे देख कर मुठ मारता ही रहेगा। इतना कहकर तृप्ति हंसने लगी।
सीमा ने आगे बताया- नीचे आकर हमने असहाय औरतों के तरह नाटक किया कि हां हमें आपका किया हुआ फैसला मंजूर है हम बदलकर बच्चे पैदा करेंगी। उसके बाद हमने सच का सामना तो किया लेकिन हमारा पूरा सच आप को नहीं बताया। हमने इसके लिए आज का दिन चुना था क्योंकि आज 1 अप्रैल है ... मूर्ख दिवस! मूर्खों का दिवस! ताकि मूर्ख बनने पर आपको बुरा भी ना लगे और जब भी अप्रैल फूल आए तो हम सबके चेहरे पर एक मुस्कान हो और इस दिन की याद हो!
श्लोक को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था वह तो हक्का-बक्का होकर अपनी बहन और बीवी दोनों की तरफ देखे जा रहा था। सच बताऊं तो मेरे पास भी उस वक्त शब्द नहीं थे कि मैं क्या बोलूं! शेर को वास्तव में सवा शेरनियां मिल गई थी। तब मैं केक के पास गया और उसमें से एक टुकड़ा काटकर खुद खाया और बोला- अगर तुम दोनों को सब पता था इसका मतलब तो ये हुआ कि तुम दोनों इस स्वैपिंग में खुद की खुशी से शामिल थी।
सीमा- हम कब तक आपकी वासना भरी नजरों से बच पाती, वैसे भी हमारे पतियों को खुश रखना हमारी जिम्मेदारी है तो हम आपको निराश कैसे कर सकती हैं। और वैसे भी इस जिम्मेदारी को निभाने में तो हमारी वासना का भी समाधान है।
मैं- तो अब क्या?
सीमा- अब जब हमने एक दूसरे को भोग ही लिया है और हम अब सब भ्रष्ट हो ही चुके हैं तो क्यों ना इस भ्रष्टाचार को भ्रष्ट होने की हद तक निभाया जाए।
तृप्ति- प्यारे राज! बिगाड़ा तो आपने ही है हमें। तो फिर बिगड़ेपन का एक बार खुलकर फायदा उठाना है।
सीमा- ऐसा फायदा उठाने की आप भी सोच रहे होंगे प्यारे जीजू और श्लोक।
श्लोक- कैसा फायदा?
तृप्ति- भाई अदला-बदली तो कर ली। लिंग बदलकर स्वाद भी चख लिया अब तो मन में एक ही इच्छा है सामूहिक सेक्स की इच्छा। बड़ी फिल्में देखी है ग्रुप सेक्स की। जब चार लोगों को साथ में सेक्स करते हुए देखती हूं तो मन में अजीब सी गुदगुदी होने लगती है। दो मखमली लिंग जब एक शरीर पर रेंगते होंगे तो कितना रोमांच आता होगा।
मैं- समझ नहीं आ रहा है कि कल जो बीता वो सपना था या अभी जो मैं देख और सुन रहा हूँ वो सपना है।
श्लोक- जिस चीज़ के लिए हम कबसे पापड़ बेल रहे हैं आज वो हमें सामने से परोसी जा रही है। यह अविश्वसनीय है।
मैं- तो कब रखा जाए सामूहिक चुदाई का कार्यक्रम?
सीमा- सेक्स कार्य में देरी कैसी? अगर तृप्ति दीदी की चूत कल की चढ़ाई से सूजी नहीं है तो मैं तो आज ही तैयार हूँ।
तृप्ति- अरे आने दो, दो दो लन्ड का वार ... एक है भाई और एक है यार!
तृप्ति और सीमा बेशर्मों की तरह हंसने लगी। आज उनकी बातें कुछ ज्यादा ही वासना भरी हुई थी और कल की चुदाई से वो दोनों कुछ ज्यादा ही खुल गयी थीं। यह खुलापन, ये बिगड़ी बातें ... यही तो याराना था और यही तो हमें चाहिए था।