09-08-2019, 03:00 PM
सुबह 9 बजे जब मेरी नींद खुली तो देखा कि सीमा पास में नहीं थी। मैंने अपने कपड़ों को सम्भाला और कमरे से बाहर आया। हाल में भी सीमा नजर नहीं आई तो सोचा कि ऊपर छत का बाथरूम इस्तेमाल करने ऊपर गयी होगी। अतः मेरे कदम तृप्ति और श्लोक के कमरे की तरफ बढ़ने लगे। दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि शायद दोनों नंगे बेड पर सो रहे होंगे। मैंने दरवाजे पर हाथ दिया तो दरवाजा खुला हुआ था। तेज धड़कन के साथ मैंने पलंग पर नजर दौड़ाई तो देखा कि श्लोक अकेला बिस्तर पर नग्न चादर में लिपटे हुए गहरी नींद में सोया हुआ था.
मैं श्लोक के पास गया और उसे जगाया। होश आते ही उसने एक मुस्कान के साथ मुझे देखा और कहा- अरे जीजू, आप यहाँ? दीदी कहाँ है?
मैं- कैसी रही रात?
श्लोक- जीजू, जीवन का सुख पा लिया बस शब्दों में बयान नहीं हो पाएगा। आप बताओ?
मै- अभी शब्दों में बयान नहीं कर पाऊंगा। किंतु जब मैं उठा तो सीमा मेरे साथ बिस्तर पर नहीं थी। उसे ढूंढते हुए मैं यहां आया तो देखा कि तृप्ति भी तुम्हारे साथ बिस्तर पर नहीं है। दोनों कहां जा सकती हैं?
श्लोक- क्या सीमा भी बिस्तर पर नहीं है?
श्लोक ने अपने कपड़े संभाले और दोनों को ढूंढते हुए हम हॉल में आ गए। दोनों वहां भी नहीं थी। फ्लैट के ऊपरी हिस्से में एक शानदार शो पीस रूम बना हुआ था। नीचे उन्हें ना पाकर हम दोनों ऊपर की तरफ बढ़े। मन में एक अजीब सा डर बैठ गया था कि दोनों एक साथ कहां जा सकती हैं? वह भी एक असाधारण रात बीतने के बाद कहीं उन्हें अब अपने किए पर पछतावा तो नहीं हो रहा है जिसका शोक मनाने साथ में कहीं चली गई हैं। ऊपरी कमरे का दरवाजा मैंने खोला, श्लोक भी मेरे साथ था। तो जो देखा उसे देख कर मैं हैरान रह गया और शायद श्लोक भी।
कमरे के बीचोंबीच टेबल पर एक बड़ा केक रखा हुआ था। कमरे को कुछ मोमबत्तियों से सजाया हुआ था और दोनों अप्सराएं नहा धोकर सज संवर कर हमारा इंतजार कर रही थी। जैसे ही हम जीजू साले कमरे में प्रविष्ट हुए, तृप्ति और सीमा दोनों ने एक साथ गाना शुरू कर दिया- अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया ... अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया। और दोनों जोर-जोर से हंसने लगी। उनकी इस हंसी ठिठोली का कारण हम समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि जहां तक हमें पता था फूल तो हमने उन्हें बनाया था। इस तरह हैरान हुए श्लोक और मैं एक दूसरे को देखते रह गए और एक दूसरे से समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है?
सीमा- क्या हुआ श्लोक बाबू? कुछ समझ में नहीं आ रहा है? समझने की कोशिश भी मत कीजिए। यह आपके बस का नहीं है।
और हंसने लगी।
मैं- यह सब क्या है तृप्ति?
तृप्ति- मेरे प्यारे राजवीर! बड़ी मेहनत से केक बनाया है पहले केक खा लीजिए अपने मूर्ख बनने की खुशी में।
मैं- मूर्ख बनने की खुशी? मैं कुछ समझा नहीं?
सीमा- अरे प्यारे जीजू, कहा ना ... आपको कुछ समझ नहीं आएगा। पहले केक तो खाइए।
दोनों ने केक काटा, एक एक टुकड़ा लेकर हमारी तरफ बढ़ी। तृप्ति ने मुझे तथा सीमा ने श्लोक को खिलाया तथा थोड़ा थोड़ा खुद खाया और दोनों सामने वाले सोफे पर बैठ गई।
हम दोनों हैरान चकित होकर अब भी उनकी तरफ देख रहे थे। मैं सोच रहा था शायद तृप्ति और सीमा ने कुछ गलत समझ लिया है।
तब तृप्ति बोली- मेरे प्यारे भाई श्लोक तथा मेरे प्यारे पति राजवीर ... अब यह बताइए कि हमें गर्भनिरोधक गोली कौन लाकर देगा? आप हमें खिलाएंगे या हमें खुद ही खरीदनी पड़ेगी? और दोनों हंसने लगी।
मैं श्लोक के पास गया और उसे जगाया। होश आते ही उसने एक मुस्कान के साथ मुझे देखा और कहा- अरे जीजू, आप यहाँ? दीदी कहाँ है?
मैं- कैसी रही रात?
श्लोक- जीजू, जीवन का सुख पा लिया बस शब्दों में बयान नहीं हो पाएगा। आप बताओ?
मै- अभी शब्दों में बयान नहीं कर पाऊंगा। किंतु जब मैं उठा तो सीमा मेरे साथ बिस्तर पर नहीं थी। उसे ढूंढते हुए मैं यहां आया तो देखा कि तृप्ति भी तुम्हारे साथ बिस्तर पर नहीं है। दोनों कहां जा सकती हैं?
श्लोक- क्या सीमा भी बिस्तर पर नहीं है?
श्लोक ने अपने कपड़े संभाले और दोनों को ढूंढते हुए हम हॉल में आ गए। दोनों वहां भी नहीं थी। फ्लैट के ऊपरी हिस्से में एक शानदार शो पीस रूम बना हुआ था। नीचे उन्हें ना पाकर हम दोनों ऊपर की तरफ बढ़े। मन में एक अजीब सा डर बैठ गया था कि दोनों एक साथ कहां जा सकती हैं? वह भी एक असाधारण रात बीतने के बाद कहीं उन्हें अब अपने किए पर पछतावा तो नहीं हो रहा है जिसका शोक मनाने साथ में कहीं चली गई हैं। ऊपरी कमरे का दरवाजा मैंने खोला, श्लोक भी मेरे साथ था। तो जो देखा उसे देख कर मैं हैरान रह गया और शायद श्लोक भी।
कमरे के बीचोंबीच टेबल पर एक बड़ा केक रखा हुआ था। कमरे को कुछ मोमबत्तियों से सजाया हुआ था और दोनों अप्सराएं नहा धोकर सज संवर कर हमारा इंतजार कर रही थी। जैसे ही हम जीजू साले कमरे में प्रविष्ट हुए, तृप्ति और सीमा दोनों ने एक साथ गाना शुरू कर दिया- अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया ... अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया। और दोनों जोर-जोर से हंसने लगी। उनकी इस हंसी ठिठोली का कारण हम समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि जहां तक हमें पता था फूल तो हमने उन्हें बनाया था। इस तरह हैरान हुए श्लोक और मैं एक दूसरे को देखते रह गए और एक दूसरे से समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है?
सीमा- क्या हुआ श्लोक बाबू? कुछ समझ में नहीं आ रहा है? समझने की कोशिश भी मत कीजिए। यह आपके बस का नहीं है।
और हंसने लगी।
मैं- यह सब क्या है तृप्ति?
तृप्ति- मेरे प्यारे राजवीर! बड़ी मेहनत से केक बनाया है पहले केक खा लीजिए अपने मूर्ख बनने की खुशी में।
मैं- मूर्ख बनने की खुशी? मैं कुछ समझा नहीं?
सीमा- अरे प्यारे जीजू, कहा ना ... आपको कुछ समझ नहीं आएगा। पहले केक तो खाइए।
दोनों ने केक काटा, एक एक टुकड़ा लेकर हमारी तरफ बढ़ी। तृप्ति ने मुझे तथा सीमा ने श्लोक को खिलाया तथा थोड़ा थोड़ा खुद खाया और दोनों सामने वाले सोफे पर बैठ गई।
हम दोनों हैरान चकित होकर अब भी उनकी तरफ देख रहे थे। मैं सोच रहा था शायद तृप्ति और सीमा ने कुछ गलत समझ लिया है।
तब तृप्ति बोली- मेरे प्यारे भाई श्लोक तथा मेरे प्यारे पति राजवीर ... अब यह बताइए कि हमें गर्भनिरोधक गोली कौन लाकर देगा? आप हमें खिलाएंगे या हमें खुद ही खरीदनी पड़ेगी? और दोनों हंसने लगी।