08-08-2019, 10:54 AM
‘कोई बात नहीं. उससे तो मैं बाद में निबटूंगी. चल अब तू जल्दी से तैयार हो जा. आज मेरी यह गुलाबी सिल्क साड़ी पहन लेना. तुझपर बहुत खिलती है.’ कहते हुए भाभी ने पलंग पर साड़ी रख दी और कमरे से निकल गई.
मेरे सर पर हज़ारों हथौड़े बरस रहे थे. मुझे ग़ुस्सा आ रहा था कि राहुल ने मुझसे यह बात क्यों छुपाई कि वह शादीशुदा है? हां, पर मैंने ही उससे यह कब पूछा था? या उसे यह सब बताने का मौक़ा ही कहां दिया? यह भावनाओं का ज्वार था या मौसम का ख़ुमार? या अचानक मिले एकांत का लाभ उठा लेने का लोभ? या फिर मेरे अन्तर्मन में छुपी यह भावना कि जल्दी से जल्दी मेरी कहीं शादी तय हो जाए, ताकि भैया मेरी चिंता से मुक्त हो जाएं? क्या यही सोचकर मैं इस श्रावणी रात में स्वयंवरा बनने को आकुल हो गई थी?
मेरे सर पर हज़ारों हथौड़े बरस रहे थे. मुझे ग़ुस्सा आ रहा था कि राहुल ने मुझसे यह बात क्यों छुपाई कि वह शादीशुदा है? हां, पर मैंने ही उससे यह कब पूछा था? या उसे यह सब बताने का मौक़ा ही कहां दिया? यह भावनाओं का ज्वार था या मौसम का ख़ुमार? या अचानक मिले एकांत का लाभ उठा लेने का लोभ? या फिर मेरे अन्तर्मन में छुपी यह भावना कि जल्दी से जल्दी मेरी कहीं शादी तय हो जाए, ताकि भैया मेरी चिंता से मुक्त हो जाएं? क्या यही सोचकर मैं इस श्रावणी रात में स्वयंवरा बनने को आकुल हो गई थी?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
