08-08-2019, 10:53 AM
तभी दरवाज़े पर भैया-भाभी के आने की आहट आई. वादे के मुताबिक़ वे पहली बस से ही दौड़े चले आए थे. बहुत ख़ुश नजर आ रहे थे. आते ही भाभी ने उत्साह में भरकर कहा,‘रानू, जल्दी से नहाकर तैयार हो जाओ. लड़केवाले आज ही तुम्हें देखने आ रहे हैं. मैंने उन्हें लंच पर बुला लिया है. सब साथ ही मिलकर खाना खाएंगे.’
फिर भाभी मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बग़ैर किचन में घुस गई और सुखिया को बताने लगी कि आज खाने में क्या-क्या बनेगा. मेरी बात सुनने की भाभी को फ़ुरसत ही नहीं थी. मैं अपनी बात कहने के लिए उनके पीछे-पीछे घूमने लगी. पर भैया के सामने कहने की हिम्मत नहीं हुई.
फिर भाभी मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बग़ैर किचन में घुस गई और सुखिया को बताने लगी कि आज खाने में क्या-क्या बनेगा. मेरी बात सुनने की भाभी को फ़ुरसत ही नहीं थी. मैं अपनी बात कहने के लिए उनके पीछे-पीछे घूमने लगी. पर भैया के सामने कहने की हिम्मत नहीं हुई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
