08-08-2019, 10:52 AM
सुबह-सुबह थोड़ी झपकी लगी होगी कि मैं अचकचाकर उठी. बारिश थम चुकी थी. सुखिया किचन में रात के बर्तन समेट रही थी. मैंने चारों ओर नज़र दौड़ाई. राहुल कहीं नज़र नहीं आया. मुझे लगा बाथरूम में होगा. बाथरूम में भैया का कुर्ता पायजामा टंगा था, जो राहुल ने रात को पहना था. इधर उसकी अटैची भी नहीं दिखाई दी.
मैंने सुखिया को पुकारा,‘सुखिया तुम्हारे मेहमान कहां गए? ज़रा चाय तो बना दो उनके लिए.’
‘दीदी वो तो मुंह अंधेरे ही उठकर चल दिए. मुझे कहा कि मेरी सुबह की ट्रेन है इसलिए चलता हूं. आपको उठाने लगी तो उन्होंने मना कर दिया कि रहने दो, मैं फिर आऊंगा.’
मैंने सुखिया को पुकारा,‘सुखिया तुम्हारे मेहमान कहां गए? ज़रा चाय तो बना दो उनके लिए.’
‘दीदी वो तो मुंह अंधेरे ही उठकर चल दिए. मुझे कहा कि मेरी सुबह की ट्रेन है इसलिए चलता हूं. आपको उठाने लगी तो उन्होंने मना कर दिया कि रहने दो, मैं फिर आऊंगा.’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
