08-08-2019, 10:52 AM
डिनर के बाद हम दोनों सोफ़े पर बैठकर गप्पें लगाते रहे. यहां-वहां की, न जाने कहां कहां की बातें. राहुल का विनोदी स्वभाव मुझे हंसा-हंसाकर लोटपोट करता रहा. मुझे याद नहीं, मैं कभी इतना खुलकर हंसी होऊं.
बातों में मशगूल न जाने कब राहुल की बांहें सोफ़े के पीछे से हौले-हौले मेरे कंधों को स्पर्श करने लगीं मालूम ही नहीं पड़ा. और झूठ क्या बोलूं, मुझे भी यह अच्छा ही लग रहा था. इस श्रावणी रात में मानों मैं स्वयंवरा बन गई थी. बस कल भैया-भाभी के आते ही इस संबंध पर रिश्ते की मुहर लगवाने में देर नहीं करूंगी. राहुल की आंखों में जो नशा उतर रहा था उससे लग रहा था कि मैं भी उसकी पसंद पर खरी उतरी हूं.
इधर मेरी ओर से कोई प्रतिकार न होता देख राहुल और क़रीब और क़रीब आता जा रहा था. पर तभी एक झटके से मानों नींद से जागी. मेरे संस्कारों में शादी से पहले इस तरह के संबंध बनाना गवारा नहीं था. मैंने उसे और आगे बढ़ने से रोकते हुए कहा,‘नहीं राहुल अभी नहीं. कल भैया-भाभी आ जाएं. पहले वे इस रिश्ते को ओके कर दें. फिर बारात लेकर आने में देर न करना, समझे?’ मैंने उसके कान खींचते हुए कहा.
राहुल को जैसे कोई करंट लगा हो. बग़ैर कुछ कहे वह एकदम से उठ खड़ा हुआ और दरवाज़ा खोलकर बालकनी में चला गया. मैंने सुखिया को गहरी नींद से जगाया और अपने कमरे में सुला लिया. राहुल बाद में वहीं ड्राइंग रूम में सोफ़े पर आकर सो गया.
पर मेरी आंखों में नींद कहां थी? मन ही मन राहुल को लेकर सपने बुन रही थी. लग रहा था मुझे मेरी मंज़िल मिल गई है. कुछ ही घंटों में राहुल मुझे कितना अपना-सा लगने लगा था. भैया-भाभी की ओर से इस रिश्ते को नकारने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. कल्पनाओं में मैं राहुल की परिणीता बनी इतराती रही.
बातों में मशगूल न जाने कब राहुल की बांहें सोफ़े के पीछे से हौले-हौले मेरे कंधों को स्पर्श करने लगीं मालूम ही नहीं पड़ा. और झूठ क्या बोलूं, मुझे भी यह अच्छा ही लग रहा था. इस श्रावणी रात में मानों मैं स्वयंवरा बन गई थी. बस कल भैया-भाभी के आते ही इस संबंध पर रिश्ते की मुहर लगवाने में देर नहीं करूंगी. राहुल की आंखों में जो नशा उतर रहा था उससे लग रहा था कि मैं भी उसकी पसंद पर खरी उतरी हूं.
इधर मेरी ओर से कोई प्रतिकार न होता देख राहुल और क़रीब और क़रीब आता जा रहा था. पर तभी एक झटके से मानों नींद से जागी. मेरे संस्कारों में शादी से पहले इस तरह के संबंध बनाना गवारा नहीं था. मैंने उसे और आगे बढ़ने से रोकते हुए कहा,‘नहीं राहुल अभी नहीं. कल भैया-भाभी आ जाएं. पहले वे इस रिश्ते को ओके कर दें. फिर बारात लेकर आने में देर न करना, समझे?’ मैंने उसके कान खींचते हुए कहा.
राहुल को जैसे कोई करंट लगा हो. बग़ैर कुछ कहे वह एकदम से उठ खड़ा हुआ और दरवाज़ा खोलकर बालकनी में चला गया. मैंने सुखिया को गहरी नींद से जगाया और अपने कमरे में सुला लिया. राहुल बाद में वहीं ड्राइंग रूम में सोफ़े पर आकर सो गया.
पर मेरी आंखों में नींद कहां थी? मन ही मन राहुल को लेकर सपने बुन रही थी. लग रहा था मुझे मेरी मंज़िल मिल गई है. कुछ ही घंटों में राहुल मुझे कितना अपना-सा लगने लगा था. भैया-भाभी की ओर से इस रिश्ते को नकारने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. कल्पनाओं में मैं राहुल की परिणीता बनी इतराती रही.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
