08-08-2019, 10:34 AM
‘‘मैं उसे समझाना चाहता हूं,’’ अनिमेष ने धीरे से कहा.
‘‘यानी तुम्हारे दिल में अभी भी उस के लिए थोड़ी जगह है?’’भैया कुटिलता से मुसकराए.
अनिमेष सिर झुका कर नीचे देखने लगा.
‘‘सुनो दामाद बाबू, सिम्मी तुम से न तो मिलेगी और न ही यहां से जाएगी,’’ भैया ने दृढ़ता से कहा, ‘‘तुम जा सकते हो.’’ अनिमेष ने भी उतनी ही दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘‘भैया, स्मिता से बिना मिले मैं यहां से नहीं जाऊंगा, पतिपत्नी के बीच में आप क्यों आते हो? मुझे एक मौका दीजिए.’’
‘‘कैसा पति, कैसी पत्नी,’’ बड़े भैया ने कटुता से, ऊंचे स्वर में कहा ताकि स्मिता भी साफसाफ सुन ले, ‘‘सिम्मी तुम्हारा घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई है. यह अच्छी तरह समझ लो.’’ स्मिता के कलेजे पर सांप लोट रहे थे. उसे ऐसी आशा न थी कि बड़े भैया अनिमेष का इतना अपमान करेंगे. उसे अनिमेष पर न जाने क्यों तरस आने लगा.
‘‘जो भी हो, मैं मिल कर ही जाऊंगा,’’ अनिमेष ने स्मिता के कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा.
‘‘ठहर जाओ,’’ बड़े भैया ने डांट कर कहा, ‘‘मैं इतना कमीना तो नहीं हूं कि तुम्हें घर से बाहर उठा कर फेंक दूं, पर सिम्मी से मिलने की आज्ञा कभी नहीं दूंगा. इधर वाला कमरा खाली है. वहां जब तक मरजी हो रहो, पर सिम्मी से मिलने की कोशिश मत करना.’’ अनिमेष लाचारी से कमरे में चला गया. स्मिता थोड़ी देर में बाहर आई तो चेहरे पर परेशानी झलक रही थी. बड़े भैया ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने अनिमेष को डांट दिया है. अगर अपनी और मेरी इज्जत प्यारी है तो उस से बात मत करना. अब तुम हमेशाहमेशा के लिए यहां रहो. हां, नौकर के हाथ नाश्ता और खाना कमरे में ही भिजवा देना. मैं बाहर उस की सूरत भी नहीं देखना चाहता, समझी?’’ बड़े भैया 2 दिनों तक दीवार बने बीच के कमरे में आरामकुरसी लगा कर बैठे रहे. दफ्तर से भी छुट्टी ले ली थी. स्मिता पर पूरा विश्वास था कि वह अनिमेष से बात नहीं करेगी. अनिमेष के ऊपर ही पहरा लगाया हुआ था कि वह उकता कर चला जाएगा. बड़े भैया अपनी कूटनीति पर मुसकरा रहे थे.
वे पहले ही जानते थे कि इस तरह की शादी में कोई दम नहीं होता, पर पागलों को भला कोई समझा सकता है क्या? 3 दिन हो गए. बड़े भैया ने हड़बड़ा कर आंखें खोलीं. न जाने कब आंख लग गई थी. दिन चढ़ आया था. अखबार वाला कभी का अखबार बालकनी में फेंक कर चला गया था. अजीब सा सूनापन था.
‘‘सिम्मी,’’ बड़े भैया ने पुकारा, ‘‘अरे, चायवाय मिलेगी या नहीं?’’ कोई उत्तर नहीं. सिम्मी के कमरे में झांका. कमरा खाली था. ध्यान से देखा तो उस का सूटकेस भी नदारद था. अनिमेष भी गायब था. कहां गए? और तब बड़े भैया ठठा कर हंस पड़े. आखिर उन की तरकीब काम कर ही गई. अगले साल स्मिता गोद में अपना बच्चा ले कर बड़े भैया के पास आई. अनिमेष साथ में था. बड़े भैया खिलखिला कर हंस पड़े, ‘‘अब तुम दोनों उस चैक के हकदार हो जो मैं ने तुम्हारी शादी के लिए रखा हुआ था. बच्चा भी है, इसलिए सूद के साथ बोनस भी दे रहा हूं. अब आशा करता हूं कि तुम दोनों हमेशाहमेशा एकदूसरे के साथ रहोगे.’’ दोनों ने शरमा कर मुंह नीचे कर लिया.
‘‘यानी तुम्हारे दिल में अभी भी उस के लिए थोड़ी जगह है?’’भैया कुटिलता से मुसकराए.
अनिमेष सिर झुका कर नीचे देखने लगा.
‘‘सुनो दामाद बाबू, सिम्मी तुम से न तो मिलेगी और न ही यहां से जाएगी,’’ भैया ने दृढ़ता से कहा, ‘‘तुम जा सकते हो.’’ अनिमेष ने भी उतनी ही दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘‘भैया, स्मिता से बिना मिले मैं यहां से नहीं जाऊंगा, पतिपत्नी के बीच में आप क्यों आते हो? मुझे एक मौका दीजिए.’’
‘‘कैसा पति, कैसी पत्नी,’’ बड़े भैया ने कटुता से, ऊंचे स्वर में कहा ताकि स्मिता भी साफसाफ सुन ले, ‘‘सिम्मी तुम्हारा घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई है. यह अच्छी तरह समझ लो.’’ स्मिता के कलेजे पर सांप लोट रहे थे. उसे ऐसी आशा न थी कि बड़े भैया अनिमेष का इतना अपमान करेंगे. उसे अनिमेष पर न जाने क्यों तरस आने लगा.
‘‘जो भी हो, मैं मिल कर ही जाऊंगा,’’ अनिमेष ने स्मिता के कमरे की ओर बढ़ते हुए कहा.
‘‘ठहर जाओ,’’ बड़े भैया ने डांट कर कहा, ‘‘मैं इतना कमीना तो नहीं हूं कि तुम्हें घर से बाहर उठा कर फेंक दूं, पर सिम्मी से मिलने की आज्ञा कभी नहीं दूंगा. इधर वाला कमरा खाली है. वहां जब तक मरजी हो रहो, पर सिम्मी से मिलने की कोशिश मत करना.’’ अनिमेष लाचारी से कमरे में चला गया. स्मिता थोड़ी देर में बाहर आई तो चेहरे पर परेशानी झलक रही थी. बड़े भैया ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने अनिमेष को डांट दिया है. अगर अपनी और मेरी इज्जत प्यारी है तो उस से बात मत करना. अब तुम हमेशाहमेशा के लिए यहां रहो. हां, नौकर के हाथ नाश्ता और खाना कमरे में ही भिजवा देना. मैं बाहर उस की सूरत भी नहीं देखना चाहता, समझी?’’ बड़े भैया 2 दिनों तक दीवार बने बीच के कमरे में आरामकुरसी लगा कर बैठे रहे. दफ्तर से भी छुट्टी ले ली थी. स्मिता पर पूरा विश्वास था कि वह अनिमेष से बात नहीं करेगी. अनिमेष के ऊपर ही पहरा लगाया हुआ था कि वह उकता कर चला जाएगा. बड़े भैया अपनी कूटनीति पर मुसकरा रहे थे.
वे पहले ही जानते थे कि इस तरह की शादी में कोई दम नहीं होता, पर पागलों को भला कोई समझा सकता है क्या? 3 दिन हो गए. बड़े भैया ने हड़बड़ा कर आंखें खोलीं. न जाने कब आंख लग गई थी. दिन चढ़ आया था. अखबार वाला कभी का अखबार बालकनी में फेंक कर चला गया था. अजीब सा सूनापन था.
‘‘सिम्मी,’’ बड़े भैया ने पुकारा, ‘‘अरे, चायवाय मिलेगी या नहीं?’’ कोई उत्तर नहीं. सिम्मी के कमरे में झांका. कमरा खाली था. ध्यान से देखा तो उस का सूटकेस भी नदारद था. अनिमेष भी गायब था. कहां गए? और तब बड़े भैया ठठा कर हंस पड़े. आखिर उन की तरकीब काम कर ही गई. अगले साल स्मिता गोद में अपना बच्चा ले कर बड़े भैया के पास आई. अनिमेष साथ में था. बड़े भैया खिलखिला कर हंस पड़े, ‘‘अब तुम दोनों उस चैक के हकदार हो जो मैं ने तुम्हारी शादी के लिए रखा हुआ था. बच्चा भी है, इसलिए सूद के साथ बोनस भी दे रहा हूं. अब आशा करता हूं कि तुम दोनों हमेशाहमेशा एकदूसरे के साथ रहोगे.’’ दोनों ने शरमा कर मुंह नीचे कर लिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.