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Incest भैया ने बालकनी में चोदा
#13
‘‘हां, नाराज होने की बात ही है. अच्छी तरह से फै सला कर लिया है न? ऊंचनीच सब सोच लिया है न?’’ भैया ने कहा, ‘‘बाद में पछताएगी तो नहीं?’’

‘‘जी नहीं,’’ संक्षिप्त उत्तर दिया.

‘‘तो जाओ, कोर्ट में शादी कर आओ. मैं तुम दोनों को आशीर्वाद दे दूंगा,’’ बड़े भैया ने भी अपना निर्णय सुना दिया. स्मिता का दिल डूब गया. स्वीकृति पा कर वह प्रसन्न नहीं हुई. हर लड़की की तरह वह भी वधू बन कर पूरी साजसज्जा और शृंगार के साथ विदा होने की अभिलाषा रखती थी. यह तो बिलकुल ऐसा ही होगा कि टिकट ले कर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर पहुंच गई. जब तक विद्रोह की स्थिति में थी, बहुत ऊंचाऊंचा सोचती थी और अब असलियत सामने आई तो दिल बैठ गया. सारे सपनों का रंग फीका पड़ने लगा. बड़े भैया 7 भाईबहनों में सब से बड़े थे और शायद इसीलिए यह नाम उन के व्यक्तित्व और ऊंचे दरजे के कारण उन के चेहरे पर चिपक गया था. मातापिता के गुजर जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उन के कंधों पर आ गई थी. 2 भाइयों की शादी तो पिता ने ही कर दी थी. मरने से पहले 2 बहनों की शादी तय कर दी थी. ये सब काम बड़े भैया ने ही किए हैं. इस बात की उन्हें प्रशंसा भी मिली. समय से तीसरी बहन की भी शादी कर दी. इसी समय उन की पत्नी का देहांत हो गया. उन की अपनी कोई संतान न थी. अब रह गई सब से छोटी बहन स्मिता, जो उन से 15 वर्ष छोटी थी. उन के बीच भाईबहन का नहीं, एक पितापुत्री का रिश्ता था. दोनों घर में अकेले थे क्योंकि अन्य बहनें ससुराल चली गई थीं और भाई अपनीअपनी नौकरियों पर अन्य शहरों में थे. स्मिता बड़े भैया से जितनी डांट खाती थी, उतना ही वह उन के सिरचढ़ी भी थी.

कोर्ट की शादी से स्मिता धूमधाम की शादी से वंचित रही जबकि अनिमेष के परिवार वालों को लगा जैसे वे लोग धोखा खा गए. खाली हाथ, बिना दहेज की बहू के आने से उन की नाराजगी चेहरे पर एक बहुत बड़े मस्से की तरह दिखाई देने लगी. चूंकि अनिमेष ही अपनी कमाई से घर चला रहा था, इस कारण कुछ कहने का साहस किसी को न हुआ.

‘‘भाईसाहब,’’ एक परिचित ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘यह बेमेल शादी आप ने स्वीकार कैसे कर ली? कहां हम उत्तर भारत के, कहां वह बंगाली?’’बडे़ भैया ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा, ‘‘भई, मेरी स्वीकृति का प्रश्न ही कहां उठता है? उन दोनों ने अपनी मरजी से कोर्ट में शादी कर ली तो मैं क्या कर सकता था? हां, आप को एक दावत न मिलने का दुख अवश्य होगा.’’ परिचित महोदय ने झेंप कर कहा, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था. पता नहीं कैसे निर्वाह करेंगे. आखिर उन दोनों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तो बिलकुल अलग है न?’’

‘‘सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो पर संस्कार तो सब के भारतीय ही हैं न. और फिर सारे विद्वान, जिस में आप भी हैं, कहते हैं न कि विवाह तो जन्म के साथ ही निर्धारित हो जाते हैं,’’ बड़े भैया ने हंसते हुए आगे कहा, ‘‘मैं और आप क्या कर सकते हैं.’’ उन सज्जन का मुंह बंद हो गया. स्मिता ने दर्शनशास्त्र में एमए किया था और साथ ही बीएड भी कर लिया था. पहले एक स्कूल में और फिर एक अच्छे नामी कालेज में व्याख्याता के पद पर काम कर रही थी. अनिमेष दूसरे कालेज में वरिष्ठ व्याख्याता था. अकसर मिलतेजुलते रहते थे. एकदूसरे के प्रति आकर्षण ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया. अंत में शादी करने का भी इरादा कर लिया. दोनों परिवारों के विरोध का भी उन्हें आभास था, पर कोशिश यही थी कि शादी बिना किसी झंझट के हो जाए. बाकी देख लेंगे. आशा के विपरीत बड़े भैया ने कुछ नहीं कहा जबकि अनिमेष ने घर वालों ने कुछ समय तक असहयोग आंदोलन किया. शादी को लगभग 7 महीने हो चुके थे और ऊपरी तौर से सब की जीवनयात्रा सुचारु रूप से चल रही थी.

रात्रि के 11 बजे होंगे. बड़े भैया टीवी पर एक रोचक धारावाहिक देख रहे थे. तभी अचानक दरवाजे पर घंटी तो बजी ही, साथ ही कोई धड़ाधड़ बड़बड़ा भी रहा था. बड़े भैया को दहशत हुई कि कहीं कोई लुटेरा या आतंकवादी तो नहीं. धीरेधीरे सोचते हुए दरवाजे तक आए. दरवाजे में लगे शीशे में झांक कर देखा, पर अंधेरे में कुछ समझ में नहीं आया.

‘‘कौन है?’’ उन्होंने धमकाते हुए पूछा.

‘‘मैं हूं,’’ एक मिमियाता स्वर आया, ‘‘दरवाजा खोलिए.’’ आवाज कुछ परिचित सी लगी, पर धोखा भी तो हो सकता है. सोच कर बड़े भैया ने कड़क कर पूछा, ‘‘मैं कौन?’’

‘‘सिम्मी,’’ लगा कि आवाज में जान ही न थी. बड़े भैया प्यार से उसे सिम्मी बुलाते थे. बड़े भैया ने झट से दरवाजा खोला. स्मिता हाथ में एक छोटा सूटकेस लिए खड़ी थी, ठीक किसी फिल्मी नायिका की तरह. पहले तो बड़े भैया की छाती से चिपट कर रोई और फिर सीधे अपने कमरे में चली गई. बड़े भैया ने कुछ नहीं कहा. केवल गंभीरता से सोचते रहे कि सुबह होने पर ही पूछेंगे. वैसे पूछने की आवश्यकता भी क्या है?

सवेरे वे अखबार पढ़ रहे थे. स्मिता सामने बैठी बेचैनी से प्याले, प्लेट इधरउधर करते हुए सोच रही थी कि ये बड़े भैया हैं कैसे? कोई चिंता ही नहीं… अंत में जब सब्र का बांध टूट गया तो उस ने भैया के हाथों से अखबार छीनते हुए कहा, ‘‘पूछोगे नहीं, मैं क्यों आई हूं?’’

शरारतभरी मुसकाराहट से उन्होंने कहा, ‘‘पूछने की क्या जरूरत है? पतिपत्नी में तकरार तो होती ही रहती है. सब ठीक हो जाएगा.’’ स्मिता ने क्रोध से कहा, ‘‘यह तकरार नहीं है, बड़े भैया. मैं वह घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ आई हूं.’’

बड़े भैया ने हंस कर कहा, ‘‘शाबाश बेटी, यह तू ने बड़ा अच्छा किया. इस घर में तेरी बड़ी कमी महसूस होती थी. आज लौकी के कोफ्ते बनाना बहुत दिन हो गए खाए हुए.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बड़े भैया - by neerathemall - 08-08-2019, 10:16 AM
RE: भैया ने बालकनी में चोदा - by neerathemall - 08-08-2019, 10:33 AM



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