07-01-2019, 12:11 PM
भाग = 54
रतन ने थोड़ी देर शोभा के होंठों को चूसे और फिर शोभा को पीछे कर दिया।
“क्या हुआ रतन..?” शोभा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
“कुछ नहीं.. तू चल मेरे साथ..” ये कहते हुए, उसने शोभा काकी का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से बाहर ले गया और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा।
शोभा- ये.. ये.. क्या कर रहा है.. कहाँ ले जा रहा है..?
शोभा ने परेशान होते हुए कहा।
रतन- अपने कमरे मैं लेजा रहा हूँ.. आज देखना उस साली रांड के सामने मैं तुझे कितने प्यार से चोदता हूँ.. तुम्हें डर लग रहा है क्या..?
शोभा- अरे क्या कह रहा है.. तेरा दिमाग़ तो सही है ?
रतन- हाँ बिल्कुल सही है.. काकी तू बोल.. तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती.. तू चल मेरे साथ..।
ये कहते हुए.. रतन शोभा का हाथ पकड़ कर खींचते हुए.. अपने कमरे में ले गया।
फिर जैसे ही दरवाजा खुला.. तो चारपाई पर लेटी.. रज्जो एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर बैठते हुए रतन की तरफ देखने लगी।
रतन शोभा काकी का हाथ पकड़े हुए.. दरवाजे पर खड़ा था।
“अए ऐसे क्या घूर कर देख रही है.. चल उठ.. और नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछा। ”
रज्जो को समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर अब रतन क्या चाहता है.. वो जस की तस चारपाई पर बैठी रही.. रतन ने शोभा का हाथ छोड़ा और कमरे का दरवाजा बंद करने लगा और जैसे ही कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद मुड़ा तो इस बार लगभग चिल्लाते हुए बोला- ओए सुना नहीं क्या ?
मैं क्या कह रहा हूँ.. चल नीचे बिस्तर बिछा..।
शोभा अपने हाथों को आपस में मसलते हुए नीचे नजरें करे खड़ी थी। रज्जो ने एक बार परेशान से खड़ी अपनी काकी सास के तरफ देखा और फिर चारपाई से नीचे उतर कर नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछाने लगी।
रतन- ओए जल्दी-जल्दी हाथ चला.. बहुत ऐश कर ली तूने.. अपनी माँ के घर पर..
रतन की कड़क आवाज़ सुन कर रज्जो डर से काँप गई और वो जल्दी से बिस्तर बिछाने लगी। बिस्तर बिछाने के बाद रज्जो चारपाई के पास खड़ी हो गई और परेशान सी रतन की तरफ देखने लगी।
रतन ने एक बार रज्जो की तरफ देखा और फिर पास खड़ी शोभा की तरफ घूमते हुए उसको.. उसके कंधों से पकड़ कर.. अपने होंठों को शोभा के होंठों पर सटा दिया।
रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया.. दिल की धड़कनें मानो जैसे बंद हो गई हों.. और अगले ही पल उसका सर नीचे झुकता चला गया।
शोभा रतन की बाँहों में कसमसा कर रह गई। वो जानती थी कि अब रतन उसकी एक नहीं सुनने वाला।
उसका दिल मारे डर और रोमांच के मारे तेज़ी से धड़क रहा था और ये सोच कर कि रतन अब खुल कर रज्जो के सामने उसको चोदने वाला है और कैसे वो अपना मूसल लण्ड रज्जो के सामने उसकी चूत में डालेगा।
ये सोचते हुए.. शोभा की चूत में सरसराहट बढ़ने लगी.. ये सोचने से उसको इतना मजा आ रहा था.. जितना उसे रतन से पहली बार चुदवाते हुए भी नहीं आया था।
कामवासना में जलती शोभा ने भी अपनी बाँहें रतन की कमर से कस लीं और अपने होंठों को हिलाते हुए रतन का साथ देने लगी।
जब दोनों के होंठ आपस मैं उलझते तो .. ‘ओह्ह.. पुच्छ’ की आवाज़ होती.. जिसे सुन कर रज्जो की हालत और भी खराब होने लगती।
वो चाह कर भी अपने नजरें उठा कर नहीं देख पा रही थी.. फिर मानो जैसे रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया हो।
रतन ने शोभा के कपड़े खोलने शुरू कर दिए। साड़ी शोभा के बदन से अलग होकर नीचे बिछे बिस्तर पर आ गिरी.. ठीक नीचे देख रही रज्जो के आँखों के सामने।
फिर ब्लाउज साड़ी के ऊपर आ गिरा।
इसका मतलब अब शोभा ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी थी और अगले ही पल मानो जैसे रज्जो के कानों में कोई खौफनाक आवाज़ गूँज उठी हो..
दरअसल वो कोई खौफनाक आवाज़ नहीं थी। वो तो शोभा की मस्ती से भरी सिसकारी थी.. जो अपने चूचकों पर रतन के होंठों को महसूस करते हुए.. उसके मुँह से निकली थी।
“अह रतन…”
और फिर क्या था.. शोभा की मदमस्त वासना से भरी ‘आहों’ से पूरा कमरा गूँज उठा.. रज्जो को लग रहा था.. जैसे उसके पैर अभी जवाब दे देंगे और वो वहीं ज़मीन गिर पड़ेगी।
उसके हाथ-पैर ऐसे काँप रहे थे.. मानो जैसे वो बर्फ की सिल्ली पर खड़ी हो।
शोभा- आह्ह.. रतनऊऊउ ओह.. चूस्स्स.. बेटा मेरे..ए.. चूचियों को.. आह.. और ज़ोर से चूस्स्स.. आह मेरे..ए..ए चूतततत्त कब से.. इईए तरस रही थी तेरे लण्ड के लिए आह्ह.. ओह्ह.. ।
रज्जो ऐसी बातें और कामुक ‘आहें’ सुनकर एकदम से पागल हुई जा रही थी और अगले ही पल रतन ने शोभा के पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया।
पेटीकोट अगले ही पल शोभा के पैरों के बीच में पड़ा था।
“चल लेट जा… ”
रतन ने अपनी काकी शोभा को कहा और जैसे ही शोभा नीचे बिस्तर पर लेटी.. तो उसकी नजरें रज्जो से जा टकराईं.. जो नीचे की तरफ सर झुकाए खड़ी थी।
शोभा ने बड़ी ही कामुक मुस्कान से रज्जो की तरफ देखा और अपनी पैरों को घुटनों से मोड़ कर अपनी दोनों जाँघें फैला दीं।
शोभा ने अपनी चूत के बाल एकदम साफ़ किए हुए थे.. जिससे उसकी चूत का गुलाबी छेद खुल कर रज्जो की आँखों के सामने आ गया।
रज्जो की साँसें अब इतनी तेज चलने लगीं.. जैसे वो मीलों दौड़ कर आई हो और अगले ही पल उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
अब रतन भी पूरा नंगा हो चुका था.. वो अपने एक हाथ से अपने लण्ड को हिलाते हुए बिस्तर पर आया और पास खड़ी.. रज्जो का हाथ पकड़ खींचते हुए शोभा की टाँगों के बीच में बैठ गया।
रज्जो लड़खड़ाते हुए.. रतन के पास लगभग गिरते हुए.. नीचे बैठ गई।
“ओए चल इधर.. देख.. आज मैं तुझे दिखाता हूँ कि चुदाई किसे कहते हैं।”
रतन ने रज्जो का हाथ छोड़ कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए.. रज्जो को अपने साथ चिपका लिया.. रज्जो शरम के मारे मरी जा रही थी। वो अभी भी सर झुकाए हुए बैठी थी।
“देख.. अब चूत.. मेरे लण्ड को कैसे लेती है.. और जब लण्ड चूत में जाता है.. तो एक औरत को कितना मज़ा आता है।”
ये कहते हुए, रतन ने शोभा की तरफ देखा और शोभा ने अपने दोनों हाथ चूत की ऊपर ले जाते हुए.. चूत की फांकों को खोल कर फैला दिया.. जिससे शोभा की चूत का गुलाबी छेद खुल कर उन दोनों के आँखों के सामने आ गया।
शोभा की चूत का छेद कामरस से भीगा हुआ था.. जिसे देख कर रज्जो की साँसें और तेज चलने लगीं।
“देख साली की चूत कैसे पनिया रही है.. और तू साली चिल्लाने लगती है..।”
ये कहते हुए रतन ने अपने लण्ड के सुपारे को शोभा की चूत के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का मारा.. रतन का आधे से ज्यादा लण्ड शोभा की चूत में समा गया.. शोभा एकदम से सिसक उठी।
“आह्ह.. रतन.. चोद रेई मुझे.. रुक क्यों गया.. हरामी।”
रज्जो हैरान से रतन के मोटे और लम्बे लण्ड को शोभा की चूत के छेद में फँसा हुआ देख रही थी। उसने हिम्मत करके.. एक बार नज़र थोड़ा सा उठा कर शोभा के चेहरे की तरफ देखा..
शोभा की आँखें अधखुली हुई थीं और वो अपने होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए.. बड़ी मादक अदा के साथ अपने हाथों से अपनी चूचियों को मसल रही थी।
शोभा- ओह्ह रतनऊऊउ तेरेई लण्ड के बिना मेरी चूत का बुरा हाल था.. आग लगी हुई थी मेरी चूत में..ओह्ह.. रतनऊऊउउ.. आहह हाँ.. चोद मुझे.. ठंडा कर दे मेरा भोसड़ा..।”
तभी रतन रज्जो के गालों पर अपने होंठों को रगड़ देता है.. जिससे रज्जो का पूरा बदन झनझना जाता है।
रतन ने कहा- देखा.. कैसे लौड़े के लिए भीख माँग रही है।
“ले रांड मेरा लण्ड..”
रतन ने रज्जो को घूरते हुए एक और जोरदार धक्का मारा और अपना पूरा लण्ड शोभा की चूत की गहराईयों में उतार दिया।
जैसे ही रतन के लण्ड का सुपारा शोभा की चूत की गहराईयों में उतर कर उसकी बच्चेदानी से टकराया। शोभा का बदन आनन्द से ऐंठ गया।
रतन ने थोड़ी देर शोभा के होंठों को चूसे और फिर शोभा को पीछे कर दिया।
“क्या हुआ रतन..?” शोभा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
“कुछ नहीं.. तू चल मेरे साथ..” ये कहते हुए, उसने शोभा काकी का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से बाहर ले गया और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा।
शोभा- ये.. ये.. क्या कर रहा है.. कहाँ ले जा रहा है..?
शोभा ने परेशान होते हुए कहा।
रतन- अपने कमरे मैं लेजा रहा हूँ.. आज देखना उस साली रांड के सामने मैं तुझे कितने प्यार से चोदता हूँ.. तुम्हें डर लग रहा है क्या..?
शोभा- अरे क्या कह रहा है.. तेरा दिमाग़ तो सही है ?
रतन- हाँ बिल्कुल सही है.. काकी तू बोल.. तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती.. तू चल मेरे साथ..।
ये कहते हुए.. रतन शोभा का हाथ पकड़ कर खींचते हुए.. अपने कमरे में ले गया।
फिर जैसे ही दरवाजा खुला.. तो चारपाई पर लेटी.. रज्जो एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर बैठते हुए रतन की तरफ देखने लगी।
रतन शोभा काकी का हाथ पकड़े हुए.. दरवाजे पर खड़ा था।
“अए ऐसे क्या घूर कर देख रही है.. चल उठ.. और नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछा। ”
रज्जो को समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर अब रतन क्या चाहता है.. वो जस की तस चारपाई पर बैठी रही.. रतन ने शोभा का हाथ छोड़ा और कमरे का दरवाजा बंद करने लगा और जैसे ही कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद मुड़ा तो इस बार लगभग चिल्लाते हुए बोला- ओए सुना नहीं क्या ?
मैं क्या कह रहा हूँ.. चल नीचे बिस्तर बिछा..।
शोभा अपने हाथों को आपस में मसलते हुए नीचे नजरें करे खड़ी थी। रज्जो ने एक बार परेशान से खड़ी अपनी काकी सास के तरफ देखा और फिर चारपाई से नीचे उतर कर नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछाने लगी।
रतन- ओए जल्दी-जल्दी हाथ चला.. बहुत ऐश कर ली तूने.. अपनी माँ के घर पर..
रतन की कड़क आवाज़ सुन कर रज्जो डर से काँप गई और वो जल्दी से बिस्तर बिछाने लगी। बिस्तर बिछाने के बाद रज्जो चारपाई के पास खड़ी हो गई और परेशान सी रतन की तरफ देखने लगी।
रतन ने एक बार रज्जो की तरफ देखा और फिर पास खड़ी शोभा की तरफ घूमते हुए उसको.. उसके कंधों से पकड़ कर.. अपने होंठों को शोभा के होंठों पर सटा दिया।
रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया.. दिल की धड़कनें मानो जैसे बंद हो गई हों.. और अगले ही पल उसका सर नीचे झुकता चला गया।
शोभा रतन की बाँहों में कसमसा कर रह गई। वो जानती थी कि अब रतन उसकी एक नहीं सुनने वाला।
उसका दिल मारे डर और रोमांच के मारे तेज़ी से धड़क रहा था और ये सोच कर कि रतन अब खुल कर रज्जो के सामने उसको चोदने वाला है और कैसे वो अपना मूसल लण्ड रज्जो के सामने उसकी चूत में डालेगा।
ये सोचते हुए.. शोभा की चूत में सरसराहट बढ़ने लगी.. ये सोचने से उसको इतना मजा आ रहा था.. जितना उसे रतन से पहली बार चुदवाते हुए भी नहीं आया था।
कामवासना में जलती शोभा ने भी अपनी बाँहें रतन की कमर से कस लीं और अपने होंठों को हिलाते हुए रतन का साथ देने लगी।
जब दोनों के होंठ आपस मैं उलझते तो .. ‘ओह्ह.. पुच्छ’ की आवाज़ होती.. जिसे सुन कर रज्जो की हालत और भी खराब होने लगती।
वो चाह कर भी अपने नजरें उठा कर नहीं देख पा रही थी.. फिर मानो जैसे रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया हो।
रतन ने शोभा के कपड़े खोलने शुरू कर दिए। साड़ी शोभा के बदन से अलग होकर नीचे बिछे बिस्तर पर आ गिरी.. ठीक नीचे देख रही रज्जो के आँखों के सामने।
फिर ब्लाउज साड़ी के ऊपर आ गिरा।
इसका मतलब अब शोभा ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी थी और अगले ही पल मानो जैसे रज्जो के कानों में कोई खौफनाक आवाज़ गूँज उठी हो..
दरअसल वो कोई खौफनाक आवाज़ नहीं थी। वो तो शोभा की मस्ती से भरी सिसकारी थी.. जो अपने चूचकों पर रतन के होंठों को महसूस करते हुए.. उसके मुँह से निकली थी।
“अह रतन…”
और फिर क्या था.. शोभा की मदमस्त वासना से भरी ‘आहों’ से पूरा कमरा गूँज उठा.. रज्जो को लग रहा था.. जैसे उसके पैर अभी जवाब दे देंगे और वो वहीं ज़मीन गिर पड़ेगी।
उसके हाथ-पैर ऐसे काँप रहे थे.. मानो जैसे वो बर्फ की सिल्ली पर खड़ी हो।
शोभा- आह्ह.. रतनऊऊउ ओह.. चूस्स्स.. बेटा मेरे..ए.. चूचियों को.. आह.. और ज़ोर से चूस्स्स.. आह मेरे..ए..ए चूतततत्त कब से.. इईए तरस रही थी तेरे लण्ड के लिए आह्ह.. ओह्ह.. ।
रज्जो ऐसी बातें और कामुक ‘आहें’ सुनकर एकदम से पागल हुई जा रही थी और अगले ही पल रतन ने शोभा के पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया।
पेटीकोट अगले ही पल शोभा के पैरों के बीच में पड़ा था।
“चल लेट जा… ”
रतन ने अपनी काकी शोभा को कहा और जैसे ही शोभा नीचे बिस्तर पर लेटी.. तो उसकी नजरें रज्जो से जा टकराईं.. जो नीचे की तरफ सर झुकाए खड़ी थी।
शोभा ने बड़ी ही कामुक मुस्कान से रज्जो की तरफ देखा और अपनी पैरों को घुटनों से मोड़ कर अपनी दोनों जाँघें फैला दीं।
शोभा ने अपनी चूत के बाल एकदम साफ़ किए हुए थे.. जिससे उसकी चूत का गुलाबी छेद खुल कर रज्जो की आँखों के सामने आ गया।
रज्जो की साँसें अब इतनी तेज चलने लगीं.. जैसे वो मीलों दौड़ कर आई हो और अगले ही पल उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
अब रतन भी पूरा नंगा हो चुका था.. वो अपने एक हाथ से अपने लण्ड को हिलाते हुए बिस्तर पर आया और पास खड़ी.. रज्जो का हाथ पकड़ खींचते हुए शोभा की टाँगों के बीच में बैठ गया।
रज्जो लड़खड़ाते हुए.. रतन के पास लगभग गिरते हुए.. नीचे बैठ गई।
“ओए चल इधर.. देख.. आज मैं तुझे दिखाता हूँ कि चुदाई किसे कहते हैं।”
रतन ने रज्जो का हाथ छोड़ कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए.. रज्जो को अपने साथ चिपका लिया.. रज्जो शरम के मारे मरी जा रही थी। वो अभी भी सर झुकाए हुए बैठी थी।
“देख.. अब चूत.. मेरे लण्ड को कैसे लेती है.. और जब लण्ड चूत में जाता है.. तो एक औरत को कितना मज़ा आता है।”
ये कहते हुए, रतन ने शोभा की तरफ देखा और शोभा ने अपने दोनों हाथ चूत की ऊपर ले जाते हुए.. चूत की फांकों को खोल कर फैला दिया.. जिससे शोभा की चूत का गुलाबी छेद खुल कर उन दोनों के आँखों के सामने आ गया।
शोभा की चूत का छेद कामरस से भीगा हुआ था.. जिसे देख कर रज्जो की साँसें और तेज चलने लगीं।
“देख साली की चूत कैसे पनिया रही है.. और तू साली चिल्लाने लगती है..।”
ये कहते हुए रतन ने अपने लण्ड के सुपारे को शोभा की चूत के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का मारा.. रतन का आधे से ज्यादा लण्ड शोभा की चूत में समा गया.. शोभा एकदम से सिसक उठी।
“आह्ह.. रतन.. चोद रेई मुझे.. रुक क्यों गया.. हरामी।”
रज्जो हैरान से रतन के मोटे और लम्बे लण्ड को शोभा की चूत के छेद में फँसा हुआ देख रही थी। उसने हिम्मत करके.. एक बार नज़र थोड़ा सा उठा कर शोभा के चेहरे की तरफ देखा..
शोभा की आँखें अधखुली हुई थीं और वो अपने होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए.. बड़ी मादक अदा के साथ अपने हाथों से अपनी चूचियों को मसल रही थी।
शोभा- ओह्ह रतनऊऊउ तेरेई लण्ड के बिना मेरी चूत का बुरा हाल था.. आग लगी हुई थी मेरी चूत में..ओह्ह.. रतनऊऊउउ.. आहह हाँ.. चोद मुझे.. ठंडा कर दे मेरा भोसड़ा..।”
तभी रतन रज्जो के गालों पर अपने होंठों को रगड़ देता है.. जिससे रज्जो का पूरा बदन झनझना जाता है।
रतन ने कहा- देखा.. कैसे लौड़े के लिए भीख माँग रही है।
“ले रांड मेरा लण्ड..”
रतन ने रज्जो को घूरते हुए एक और जोरदार धक्का मारा और अपना पूरा लण्ड शोभा की चूत की गहराईयों में उतार दिया।
जैसे ही रतन के लण्ड का सुपारा शोभा की चूत की गहराईयों में उतर कर उसकी बच्चेदानी से टकराया। शोभा का बदन आनन्द से ऐंठ गया।