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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#57
भाग - 53

राजू ने अपने धक्कों को जारी रखा और कुछ पलों बाद उसके लण्ड ने भी दीपा की चूत को अपने वीर्य से भर दिया।


राजू के गरम वीर्य की बौछार को दीपा अपनी चूत की दीवारों पर महसूस करके.. एकदम मस्त हो गई। उसे अपना पूरा बदन एकदम हल्का महसूस हो रहा था। झड़ने के बाद राजू दीपा के ऊपर ही लुढ़क गया।

आज दीपा पहली बार झड़ी थी और उससे इस चरम आनन्द की अनुभूति आज अपनी जन्दगी में पहली बार हुई थी। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं।

राजू जो कि अपने सर को दीपा की चूची के ऊपर रखे हुए लेटा हुआ था.. उसने अपने सर को उठा कर दीपा की तरफ देखते हुए पूछा। “दीपा जी आपको अच्छा तो लगा ना ?”

राजू के इस सवाल से दीपा बुरी तरह झेंप गई। अब जब वासना का भूत दीपा के सर से उतर चुका था.. तो उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपनी आँखें खोल कर राजू की तरफ देखे।
राजू के सवाल के जबाव में उसने सिर्फ सहमति जताते हुए अपने चेहरे को एक तरफ घुमा कर मुस्कुरा दिया.. जिसे देख कर राजू के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।

राजू धीरे से दीपा के ऊपर से उठा और बिस्तर के नीचे उतर गया।

दीपा अभी भी आँखें बंद किए हुए बिस्तर पर लेटी हुई थी.. उसे अपना पूरा बदन फूल सा हल्का महसूस हो रहा था।

उसे बिस्तर के पास से कुछ सरसराहट सी आ रही थी.. पता नहीं राजू क्या कर रहा था और वो अपने आँखें खोल कर देखना नहीं चाहती थी। थोड़ी देर बाद दीपा को फिर से अहसास हुआ कि राजू बिस्तर पर चढ़ गया है।

राजू ने बिस्तर पर आते ही दीपा की टाँगों को खोल कर फैला दिया.. जिससे दीपा एकदम शर्मसार हो गई… उसने झट से अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर अपनी चूत के ऊपर रख लिया.. और काँपती हुई आवाज़ में बोली।

दीपा- नहीं राजू…

राजू- पर दीपा.. वो मैं तो बस.. साफ़ करने लगा था।

राजू की बात सुन कर दीपा ने अपनी आँखों को हिम्मत करके खोला और राजू की तरफ देखा।

राजू अपने हाथ मैं एक कपड़ा लिए हुए उसकी टाँगों के बीच में. चुदाई के काम-रस और उसकी चूत की सील टूटने से निकले खून को साफ़ करने के लिए बैठा था।

अगले ही पल उसकी नज़र राजू के टाँगों के बीच में झूल रहे लण्ड पर जा टिकी.. जो अब ढीला पड़ चुका था। राजू के लण्ड को देखते ही उसके चेहरे पर लाली छा गई और उसने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।

राजू ने अपने एक हाथ से दीपा के हाथों को पकड़ कर उसकी चूत की ऊपर से हटाना शुरू कर दिया.. दीपा भले ही शरम से गढ़ी जा रही थी.. पर उसने राजू का विरोध नहीं किया।

राजू ने दीपा के हाथों को चूत से हटा कर धीरे-धीरे उसकी चूत को उस कपड़े से साफ़ करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद राजू बिस्तर से नीचे से उतर गया। दीपा ने फिर से अपनी आँखों को खोल कर राजू की तरफ़ देखा।

राजू अपने कपड़े पहन रहा था। राजू ने नज़र घुमा कर बिस्तर पर लेटी दीपा की तरफ देखा.. जो उसे लेटे हुए देख रही थी।

राजू मुस्कुरा कर दीपा से बोला।

राजू- कपड़े पहन लीजिए दीपा जी.. मैं इस कपड़े को बाहर फेंकने जा रहा हूँ।

राजू उस कपड़े की बात कर रहा था.. जिससे उसने दीपा की चूत को साफ़ किया था। वो किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था।

राजू की बात सुन कर दीपा बिस्तर पर उठ कर बैठ गई और अपने कपड़े पहनने लगी। जब राजू ने देखा कि दीपा कपड़े पहन चुकी है.. तो उसने धीरे से कमरे का दरवाजा खोला और कमरे से बाहर चला गया।

राजू के जाने के बाद दीपा बिस्तर पर लेट गई और पता नहीं कब उसे नींद आ गई। सुबह के 4 बजे दीपा की आँख प्यास की वजह से खुली.. तो उसने कमरे में अंधेरा पाया…।

वो किसी तरह से उठी और लालटेन जला कर मेज पर रख दी।

राजू नीचे ज़मीन पर पड़े बिस्तर पर लेटा हुआ था। राजू को देखते ही कुछ घंटे पहले हुई उसकी पहली चुदाई का मंज़र उसकी आँखों के सामने घूम गया।

उसे अपने जाँघों के बीच में अभी भी काफ़ी गीलापन महसूस हो रहा था। उसने जल्दी से पानी पिया और अपनी सलवार के नाड़े को खोल कर थोड़ा सा नीचे सरका कर अपने एक हाथ अन्दर डाल कर अपनी चूत को छूकर देखने लगी। चूत पर अपना हाथ लगाते ही.. दीपा का पूरा बदन झनझना उठा।

उफ्फ.. ऐसी खुमारी उसने आज तक नहीं महसूस की थी…।

उसके हाथ की ऊँगलियाँ खुद ब खुद ही उसकी चूत की फांकों पर धीरे-धीरे चलने लगीं… उसकी आँखों में एक बार फिर से वासना का सागर उमड़ता हुआ नज़र आने लगा और वो अपनी वासना से भरी आँखों से नीचे लेटे हुए राजू को देखते हुए.. अपनी चूत को धीरे-धीरे सहलाने लगी।

दीपा अपनी चूत को सहलाते हुए बिस्तर पर बैठी हुई.. राजू की तरफ वासना से भरी नज़रों से देख रही थी।

अभी सुबह के 3 बज रहे थे और कुछ ही देर में भोर होने वाली थी।

दीपा का पूरा बदन काँप रहा था.. उसके मन में अजीब से हलचल मची हुई थी।

उसने राजू की तरफ एक बार फिर से देखा.. जो अभी भी घोड़े बेच कर सो रहा था। उसकी चूत एक बार फिर से राजू के लण्ड के लिए फड़फड़ाने लगी.. पर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।

आख़िर कुछ घंटों पहले ही तो उसने चुदाई का पहला स्वाद चखा था.. जवान और गरम खून होने के कारण उसका दिल एक बार फिर से बहकने लगा था।

पर जब काफ़ी देर तक राजू की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो उसने लालटेन बंद कर दी और बिस्तर पर लेट गई.. पर अब ना तो उसकी आँखों में नींद थी.. और ना ही वो सोना चाहती थी। चुदाई का वो दिलकश मंज़र बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था।

अगली सुबह चमेली के घर पर..

रतन और रज्जो घर जाने के तैयारी कर रहे थे। इस बात से चमेली उदास थी। राजू तो पहले से नहीं था और अब रतन भी जा रहा था.. पर वो चाह कर भी अब कुछ नहीं कर सकती थी। आख़िर बेटी और दामाद को कब तक घर में रोक कर रख सकती थी।

रतन और रज्जो दोनों तैयार होकर अपने घर के लिए निकल पड़े। रज्जो सारे रास्ते अपने आने वालों दिनों के बारे में सोच रही थी.. उसे अपना पूरा जीवन अंधेरे में डूबता हुआ महसूस हो रहा था।

दोपहर तक दोनों घर पहुँच गए। घर वालों ने रतन और अपनी बहू का खूब स्वागत किया.. दिन भर के सफ़र की थकान के कारण रज्जो अपने कमरे में जाते ही खाट पर लेट गई और सो गई।

शाम को उसकी सास ने रज्जो और रतन दोनों को उठाया और खाना खाने के लिए कहा।

रज्जो ने देखा उसकी सास और ससुर दोनों कहीं जाने के लिए तैयारी कर रहे थे.. जब रज्जो रसोईघर में पहुँची.. तो उसे पता चला कि उसकी सास और ससुर दोनों पास के ही गाँव में अपने किसी रिश्तेदार के घर पर जा रहे थे और कल सुबह ही घर वापिस आएँगे।

जैसे ही ये बात रतन की काकी शोभा को पता चली, उसका चेहरा एकदम से खिल गया और उसने बाहर आँगन में बैठे रतन की तरफ देखते हुए एक कामुक मुस्कान फेंकी.. बदले में रतन के होंठों पर भी वासना से भरी मुस्कान फ़ैल गई।

रज्जो दोनों की हरकतों को देख रही थी.. वो जानती थी कि दोनों के मन में क्या चल रहा है और अगले ही पल उसके दिल की धड़कनें एक बार फिर से बढ़ने लगीं।

थोड़ी देर बाद रतन के माँ-बाप अपने रिश्तेदार के घर जाने के लिए निकल पड़े। खाना खाने के बाद रतन टहलने के लिए बाहर निकल गया और रज्जो अपने कमरे में आकर चारपाई पर लेट गई।

अब अंधेरा ढलने लगा था और रज्जो अपने कमरे में अकेली बैठी थी.. उसे पास वाले कमरे से शोभा की आवाज़ आ रही थी.. वो अपने बच्चों को सुला रही थी।
रज्जो को लग रहा था, जैसे वो अपनी चूत को चुदवाने के तैयारी कर रही हो।

“रांड हरामजादी..” रज्जो बुदबुदाई और इससे ज्यादा वो कर भी क्या सकती थी।

रात काफ़ी ढल चुकी थी। रज्जो चारपाई पर लेटी हुई थी.. वो जानती थी कि आज रतन इस कमरे में नहीं आएगा और वो सोने की कोशिश करने लगी।

रतन घर वापिस आया और दरवाजा बंद करके वो सीधा अपनी काकी शोभा के कमरे में चला गया।

आज रतन दारू पीकर आया था.. शोभा रतन को देखते ही समझ गई कि.. रतन दारू पीकर आया है और जब रतन दारू पीकर आता है.. तो उसकी चूत को खूब चोदता है।

ये देखते ही, उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं.. वो पलंग पर से उठी और रतन को अपनी बाँहों में भरते हुए.. अपने होंठों को रतन के होंठों से बिंधा दिया।
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RE: गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार - by Starocks - 07-01-2019, 12:08 PM



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