06-08-2019, 05:28 AM
था?
मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।
मैंने दीदी से पूछा- क्यों?
दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
“हाँ सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।
दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- सोनू, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- सोनू, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
क्रमश:
मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।
मैंने दीदी से पूछा- क्यों?
दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
“हाँ सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।
दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- सोनू, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- सोनू, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
क्रमश:
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.