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एक आदिम रात्रि की महक
#2
न ...करमा को नींद नहीं आएगी।
नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने 'इस्टिसन' सब हजार पुराने हों, वहाँ नींद तो आती है।...ले, नाक के अंदर फिर सुड़सुड़ी जगी ससुरी...!

करमा छींकने लगा। नए मकान में उसकी छींक गूँज उठी।

'करमा, नींद नहीं आती?' 'बाबू' ने कैंप-खाट पर करवट लेते हुए पूछा।

गमछे से नथुने को साफ करते हुए करमा ने कहा - 'यहाँ नींद कभी नहीं आएगी, मैं जानता था, बाबू!'

'मुझे भी नींद नहीं आएगी,' बाबू ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा - 'नई जगह में पहली रात मुझे नींद नहीं आती।'

करमा पूछना चाहता था कि नए 'पोख्ता' मकान में बाबू को भी चूने की गंध लगती है क्या? कनपटी के पास दर्द रहता है हमेशा क्या?...बाबू कोई गीत गुनगुनाने लगे। एक कुत्ता गश्त लगाता हुआ सिगनल-केबिन की ओर से आया और बरामदे के पास आ कर रुक गया। करमा चुपचाप कुत्ते की नीयत को ताड़ने लगा। कुत्ते ने बाबू की खटिया की ओर थुथना ऊँचा करके हवा में सूँघा। आगे बढ़ा। करमा समझ गया - जरूर जूता-खोर कुत्ता है, साला!... नहीं, सिर्फ सूँघ रहा था। कुत्ता अब करमा की ओर मुड़ा। हवा सूँघने लगा। फिर मुसाफिरखाने की ओर दुलकी चाल से चला गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: एक आदिम रात्रि की महक - by neerathemall - 06-08-2019, 03:01 AM



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