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नैना जोगिन
#2
रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को 'कोंचा' की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका 'आँचर' भी उड़ गया।

उस सँकरी पगडंडी पर, जिसके दोनों और झरबेरी के काँटेदार बाड़े लगे हों, अपनी 'भलमनसाहत' दिखलाने के लिए गरदन झुका कर, आँख मूँद लेने के अलावा बस एक ही उपाय था। मैंने वही किया। अर्थात पलट गया। मेरे पीछे-पीछे रतनी ने अपने उघड़े हुए 'तन-बदन' को ढँक लिया और उसके कंठ में लटकी हुई एक उग्र-अश्लील गाली पटाके की तरह फूट पड़ी।

मैं लौट कर अपने दरवाजे पर आ गया और बैठ कर रतनी की गालियाँ सुनने लगा।

नहीं, वह मुझे गाली नहीं दे रही थी। जिसकी बकरियों ने उसके 'पाट' का सत्यानाश किया है, उन बकरीवालियों को गालियाँ दे रही है वह। सारा गाँव, गाँव के बूढ़े-बच्चे-जवान, औरत-मर्द उसकी गालियाँ सुन रहे हैं। लेकिन... लेकिन क्यों, शायद सच ही, उनके सुनने और मेरे सुनने में फर्क है। मैं 'सचेतन रुपेण' अर्थात जिस तरह रेडियो से प्रसारित महत्वपूर्ण वार्ताएँ सुनता हूँ, इन गालियों को सुन रहा हूँ। कान में उँगली डालने के ठीक विपरीत... एक-एक गाली को कान में डाल रहा हूँ। उसकी एक-एक गाली नंगी, अश्लील तसवीर बनाती है - 'ब्लू फिल्मों' के दृश्य।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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नैना जोगिन - by neerathemall - 06-08-2019, 02:58 AM
RE: नैना जोगिन - by neerathemall - 06-08-2019, 02:58 AM



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