05-08-2019, 10:53 PM
''हाय अम्माँ!'' मेरे दिल ने बेकसी से पुकारा, ''आखिर ऐसा मैं भाइयों से क्या लडती हूँ जो तुम मेरी मुसीबत ..''
अम्माँ को हमेशा से मेरा लडक़ों के साथ खेलना नापसन्द है। कहो भला लडक़े क्या शेर-चीते हैं जो निगल जायेंगे उनकी लाडली को? और लडक़े भी कौन, खुद भाई और दो-चार सडे-सडाये जरा-जरा-से उनके दोस्त! मगर नहीं, वह तो औरत जात को सात तालों में रखने की कायल और यहाँ बेगम जान की वह दहशत, कि दुनिया-भर के गुण्डों से नहीं।
बस चलता तो उस वक्त सड़क़ पर भाग जाती, पर वहाँ न टिकती। मगर लाचार थी। मजबूरन कलेजे पर पत्थर रखे बैठी रही।
कपडे बदल, सोलह सिंगार हुए, और गरम-गरम खुशबुओं के अतर ने और भी उन्हें अंगार बना दिया। और वह चलीं मुझ पर लाड उतारने।
''घर जाऊँगी।''
मैं उनकी हर राय के जवाब में कहा और रोने लगी।
''मेरे पास तो आओ, मैं तुम्हें बाजार ले चलँूगी, सुनो तो।''
मगर मैं खली की तरह फैल गयी। सारे खिलौने, मिठाइयाँ एक तरफ और घर जाने की रट एक तरफ।
''वहाँ भैया मारेंगे चुडैल!'' उन्होंने प्यार से मुझे थप्पड लगाया।
''पडे मारे भैया,'' मैंने दिल में सोचा और रूठी, अकडी बैठी रही।
''कच्ची अमियाँ खट्टी होती हैं बेगम जान!''
जली-कटी रब्बों ने राय दी।
अम्माँ को हमेशा से मेरा लडक़ों के साथ खेलना नापसन्द है। कहो भला लडक़े क्या शेर-चीते हैं जो निगल जायेंगे उनकी लाडली को? और लडक़े भी कौन, खुद भाई और दो-चार सडे-सडाये जरा-जरा-से उनके दोस्त! मगर नहीं, वह तो औरत जात को सात तालों में रखने की कायल और यहाँ बेगम जान की वह दहशत, कि दुनिया-भर के गुण्डों से नहीं।
बस चलता तो उस वक्त सड़क़ पर भाग जाती, पर वहाँ न टिकती। मगर लाचार थी। मजबूरन कलेजे पर पत्थर रखे बैठी रही।
कपडे बदल, सोलह सिंगार हुए, और गरम-गरम खुशबुओं के अतर ने और भी उन्हें अंगार बना दिया। और वह चलीं मुझ पर लाड उतारने।
''घर जाऊँगी।''
मैं उनकी हर राय के जवाब में कहा और रोने लगी।
''मेरे पास तो आओ, मैं तुम्हें बाजार ले चलँूगी, सुनो तो।''
मगर मैं खली की तरह फैल गयी। सारे खिलौने, मिठाइयाँ एक तरफ और घर जाने की रट एक तरफ।
''वहाँ भैया मारेंगे चुडैल!'' उन्होंने प्यार से मुझे थप्पड लगाया।
''पडे मारे भैया,'' मैंने दिल में सोचा और रूठी, अकडी बैठी रही।
''कच्ची अमियाँ खट्टी होती हैं बेगम जान!''
जली-कटी रब्बों ने राय दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
