05-08-2019, 10:51 PM
'ऊँ!'' मैं भुनभुनाायी।
''ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!''
मैं कुलबुलाने लगी।
''कितनी पसलियाँ होती हैं?'' उन्होंने बात बदली।
''एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस।''
मैंने कॉलेज में याद की हुई हाइजिन की मदद ली। वह भी ऊटपटाँग।
''हटाओ तो हाथ ...हाँ, एक ...दो ..तीन ..''
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ ...और उन्होंने जोर से भींचा।
''ऊँ!'' मैं मचल गयी।
बेगम जान जोर-जोर से हँसने लगीं।
अब भी जब कभी मैं उनका उस वक्त का चेहरा याद करती हूँ तो दिल घबराने लगता है। उनकी आँखों के पपोटे और वजनी हो गये। ऊपर के होंठ पर सियाही घिरी हुई थी। बावजूद सर्दी के, पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूँदें होंठों और नाक पर चमक रहीं थीं। उनके हाथ ठण्डे थे, मगर नरम-नरम जैसे उन पर की खाल उतर गयी हो। उन्होंने शाल उतार दी थी और कारगे के महीन कुर्तो में उनका जिस्म आटे की लोई की तरह चमक रहा था। भारी जडाऊ सोने के बटन गरेबान के एक तरफ झूल रहे थे। शाम हो गयी थी और कमरे में अँधेरा घुप हो रहा था। मुझे एक नामालूम डर से दहशत-सी होने लगी। बेगम जान की गहरी-गहरी आँखें!
''ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!''
मैं कुलबुलाने लगी।
''कितनी पसलियाँ होती हैं?'' उन्होंने बात बदली।
''एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस।''
मैंने कॉलेज में याद की हुई हाइजिन की मदद ली। वह भी ऊटपटाँग।
''हटाओ तो हाथ ...हाँ, एक ...दो ..तीन ..''
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ ...और उन्होंने जोर से भींचा।
''ऊँ!'' मैं मचल गयी।
बेगम जान जोर-जोर से हँसने लगीं।
अब भी जब कभी मैं उनका उस वक्त का चेहरा याद करती हूँ तो दिल घबराने लगता है। उनकी आँखों के पपोटे और वजनी हो गये। ऊपर के होंठ पर सियाही घिरी हुई थी। बावजूद सर्दी के, पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूँदें होंठों और नाक पर चमक रहीं थीं। उनके हाथ ठण्डे थे, मगर नरम-नरम जैसे उन पर की खाल उतर गयी हो। उन्होंने शाल उतार दी थी और कारगे के महीन कुर्तो में उनका जिस्म आटे की लोई की तरह चमक रहा था। भारी जडाऊ सोने के बटन गरेबान के एक तरफ झूल रहे थे। शाम हो गयी थी और कमरे में अँधेरा घुप हो रहा था। मुझे एक नामालूम डर से दहशत-सी होने लगी। बेगम जान की गहरी-गहरी आँखें!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
