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अलिफ लैला
#98
अमीना यह सुन कर उठी और बगल वाली कोठरी में जाकर वहाँ से एक संदूक उठा लाई जो पीले साटन में मढ़ा था और इसके ऊपर भी उस पर हरी कारचोबी का एक गिलाफ चढ़ा था। उसमें से एक बाँसुरी निकाल कर अमीना ने साफी को दी। साफी ने उस बाँसुरी से एक करुण वियोगात्मक राग निकाला और देर तक बजाती रही। खलीफा और अन्य उपस्थित लोग उस का कौशल देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। फिर साफी ने अमीना से कहा कि अब तुम बाँसुरी बजाओ, मैं बजाते-बजाते थक गई हूँ। अमीना ने बाँसुरी लेकर कुछ देर तक सुर मिलाया फिर एक बड़ा मधुर राग बजाना शुरू किया और बजाते-बजाते उसमें मग्न हो गई। जुबैदा ने उसके वादन की बड़ी प्रशंसा की और कहा कि अब बस करो, तुम्हारे दुख के कारण बड़ी दुखद दशा हो रही है। अमीना इतनी भाव-विह्वल हो गई कि जुबैदा की बात का कोई उत्तर न दे सकी बल्कि जान पड़ता था कि वह अपने होश-हवास खो बैठी थी क्योंकि उसने अपने ऊर्ध्व वस्त्र को उतार फेंका। अब सब लोगों ने देखा कि उस सुंदरी के दोनों कंधों पर काले-काले दाग पड़े हैं जैसे किसी ने उसे निर्दयता से मारा है।

दाग उसके कंधों ही पर नहीं, बाँहों पर भी पड़े थे। सब लोग इस कांड को देखकर और भी हैरान हुए। अमीना की हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह डगमगाने लगी और गिरने-गिरने को हुई और जुबैदा और साफी ने दौड़कर उसे सँभाला।

एक फकीर ने धीमे से कहा, कितने दुख की बात है कि हम इतनी अद्भुत घटनाएँ देख रहे हैं और उनके बारे में किसी से पूछ भी नहीं सकते। खलीफा ने यह बात सुन ली और उन फकीरों के पास आकर उनसे पूछा कि क्या तुम लोगों में किसी को इन स्त्रियों का और कुतियों को पीटने का रहस्य ज्ञात है? फकीरों ने कहा, हम में से कोई भी इन बातों को नहीं जानता, हम लोग आज ही रात को तुम्हारे यहाँ आने से कुछ ही पहले यहाँ पहुँचे हैं। खलीफा की उत्सुकता और बढ़ी। उसने कहा, हो सकता है कि यह आदमी जो तुम्हारे पास बैठा है इसे कुछ ज्ञात हो। फकीर ने इशारे से मजदूर को अपने और निकट बुलाया और पूछा कि क्या तुम्हें मालूम है कि जुबैदा ने दोनों कुतियों को क्यों पीटा और अमीना के कंधों और बाँह पर काले दाग कैसे हैं।

मजदूर ने कहा कि मैं भगवान की सौगंध खाकर कहता हूँ कि मुझे कुछ भी नहीं मालूम। मैं तो इस घर में आज ही आया हूँ और इस घर में यही तीन स्त्रियाँ रहती हैं। खलीफा और फकीरों ने सोचा था कि वह आदमी उन स्त्रियों का सेवक होगा। अब सबको विश्वास हो गया कि भेद खुलने की कोई संभावना नहीं है।

लेकिन खलीफा हार मानने को तैयार नहीं हुआ। उसने कहा, हम लोग सात मर्द हैं और यह सिर्फ तीन औरतें। हम सब मिलकर इनसे इस भेद को पूछें। अगर यह लोग खुशी-खुशी बता दें तो ठीक है नहीं तो हम जोर-जबर्दस्ती करके भी इनसे बात उगलवा लेंगें।

मंत्री की राय इसके विपरीत थी। उसने खलीफा के कान में कहा, 'हम सबका यहाँ पर बड़ा स्वागत-सत्कार किया गया है ओर गाने-बजाने से भी हमारा मनोरंजन हुआ है। ऐसी दशा में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं है। फिर आप यह भी देखें कि इन स्त्रियों ने किस शर्त पर हमें अपना अतिथि बनाया है; हमने भी उनकी यह शर्त मानी है कि हम कुछ पूछताछ नहीं करेंगे। अगर हम अपना यह वादा तोड़ेंगे तो यह लोग क्या हमें बेईमान नहीं कहेंगी? और उन्होंने हमारे लिए ऐसा कहा तो हमारे लिए डूब मरने की बात होगी।'

मंत्री ने आगे समझाया, 'आप यह भी विचार कर लें कि जब इन स्त्रियों ने हमारे सामने इतने आत्मविश्वास से चुप रहने की शर्त रखी है तो मालूम होता है कि इनके पास कोई ऐसी शक्ति है जिससे यह लोग शर्त तोड़ने वाले को दंड भी दे सकती हैं। ऐसा हुआ तो हमारे लिए और भी लज्जा की बात हो जाएगी चाहे हम बाद में इन्हें कितना भी दंड दे दें। ...मुझे यह भी कहना है कि अब रात बीता ही चाहती है। इस समय आप कुछ न कहें। सवेरा होने पर मैं इन सारी स्त्रियों को पकड़कर आपके दरबार में ले आऊँगा और आप जो चाहे इनसे पूछ लीजिएगा।'

खलीफा को ऐसी जिद सवार हुई कि उसने ऐसे सत्परामर्श पर कान न दिया और मंत्री को झिड़क दिया कि तुम चुप रहो, मैं सुबह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। उसने फकीरों से कहा कि तुम इस बात को जुबैदा से पूछो। उन्होंने इनकार कर दिया कि हमारा साहस नहीं है। फिर उन सबने जोर देकर मजदूर को यह पूछने पर राजी कर लिया।

जुबैदा ने इन लोगों को खुसर-पुसर करते देखा तो उनसे पूछा कि तुम लोग आपस में क्या बात कर रहे हो। मजदूर ने कहा, 'सुंदरी, मेरे साथी जानना चाहते हैं कि आप दोनों कुतियों को निर्दयतापूर्वक पीटकर क्यों रोई और जो स्त्री अपनी सुध-बुध खो बैठी उसके कंधों और बाँहों पर काले दाग कैसे हैं।' जुबैदा यह सुनकर आग-बबूला हो गई। उसने सब लोगों से पूछा कि क्या तुम सब ने मजदूर से कहा था कि यह बातें मुझसे पूछे। सबने एकमत होकर कहा कि जाफर को छोड़कर हम सभी यह बातें जानना चाहते थे और हमने मजदूर से कहा था कि आपसे यह बातें पूछे। जुबैदा ने कहा, 'तुम सभी लोग बेईमान हो। तुम सब ने प्रतिज्ञा की थी कि यहाँ की किसी बात के बारे में कुछ न पूछोगे और तुम अपनी उत्सुकता पर बिल्कुल संयम न कर सके। हमने दया करके तुम सबको रात का ठिकाना दिया और तुम एक साधारण-सी प्रतिज्ञा न निभा सके। अब तुम्हारा सत्कार मेरे लिए बिल्कुल आवश्यक नहीं है और तुम लोगों को अपने किए का फल भुगतना चाहिए।'

यह कह कर जुबैदा ने धरती पर पाँव पटक कर तीन बार ताली बजाई और जोर से कहा, 'तुरंत आओ।' उसके यह कहते ही एक द्वार खुल गया और उसमें से सात बलवान हब्शी नंगी तलवारें लिए निकले और एक-एक हब्शी ने एक-एक आदमी को जमीन पर पटक दिया और उनके सीने पर चढ़ बैठे और सब की तलवारें म्यान से बाहर निकल आईं। खलीफा क्षोभ और लज्जा के मारे मरा जा रहा था, उसे ऐसे व्यवहार की क्या आशा हो सकती थी।

हब्शियों के मुखिया ने जुबैदा से पूछा, 'श्रेष्ठ सुंदरी, आपकी क्या आज्ञा है? क्या हम इन लोगों को यहीं खत्म कर दें?' जुबैदा ने कहा, 'नहीं, कुछ देर ठहर जाओ। पहले इन लोगों से यह तो पूछ लें कि यह कौन हैं और क्यों आए थे।' यह कहकर उसने सातों मेहमानों से कहा कि तुम लोग अपना-अपना हाल बताओ।

मजदूर ने रो कर कहा, 'भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। मेरा कोई दोष नहीं है। मैं तो इन लोगों के बहकावे में आ गया। काने फकीर जहाँ जाएँगे वहीं दुर्भाग्य लाएँगे।' जुबैदा को यह सुनकर हँसी आ गई। वह बोली, 'ऐसे कोई नहीं छूटेगा। पहले हर आदमी अपना हाल बताए कि वह वास्तव में कौन है, कहाँ से आया है, उसमें क्या-क्या गुण हैं और यहाँ आने का क्या कारण है। इन बातों में जरा-सा भी झूठ हुआ तो फौरन उसकी गर्दन मारी जाएगी।'

परेशान तो सभी थे लेकिन खलीफा हारूँ की व्याकुलता स्वभावतः ही सबसे अधिक बढ़ी-चढ़ी थी। उसने एक बार सोचा कि वैसे तो इस स्त्री के पंजे से निकला नहीं जा सकता किंतु यदि वह अपना ठीक-ठीक परिचय तुरंत दे दे तो जरूर मेरा सम्मान करेगी। उसने धीमे से मंत्री से सलाह ली। उसने कहा कि आपके सम्मान की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि अभी हम लोग चुप रहें। जुबैदा ने तीनों फकीरों से पूछा कि क्या तुम तीनों भाई हो? एक ने उत्तर दिया कि हम भाई नहीं हैं; एक-से कपड़े जरूर पहनते हैं और साथ रहते हैं। जुबैदा ने फिर पूछा कि क्या तुम लोग जन्मतः ही एकाक्ष हो। उनमें से एक ने कहा कि ऐसा नहीं है; हम पर ऐसी विपत्तियाँ पड़ीं जो न केवल जानने बल्कि इतिहास में लिखे जाने योग्य हैं, उन्हीं से हमारी आँखें जाती रहीं और उन्हीं के कारण हमने अपनी दाढ़ी-मूँछ और भवें मुँडवा डाली और फकीर बन गए।

जुबैदा ने एक-एक करके शेष दो फकीरों से भी यही प्रश्न किए और दोनों ने वही उत्तर दिए जो पहले फकीर ने दिए थे। तीसरे ने यह भी कहा, 'आप अनुमति दें तो हम लोग अपना वृत्तांत विस्तृत रूप से कहें। हम तीनों की भेंट आज ही शाम को इस नगर में हुई है क्योंकि हम तीनों बाहर से आए हैं। विश्वास मानिए कि हम तीनों ही राजकुमार हैं और हमारे पिता बड़े और प्रख्यात बादशाह हैं। हम सब चाहते हैं कि अपना वृत्तांत विस्तृत रूप से कहें।'

उन लोगों की बातों से जुबैदा का क्रोध कम हुआ। उसने हब्शियों से कहा, 'तुम लोग इनके सीने से उतर आओ। यह लोग बैठकर अपना-अपना हाल कहेंगे। जो-जो अपना पूरा हाल और इस घर में आने का कारण बताता जाए उसे छोड़ते जाओ ताकि वह जहाँ चाहे चला जाए। जो ऐसा न करे तुम उसका सिर उड़ा दो। अभी तुम इन लोगों के पीछे नंगी तलवारें लिए खड़े रहो।' चुनांचे उसी दालान में खलीफा और अन्य 6 लोगों को एक कालीन पर बिठा दिया गया। हर आदमी के पीछे एक हब्शी नंगी तलवार लेकर खड़ा हो गया ताकि जुबैदा का इशारा होते ही उसका वध कर दे। सबसे पहले मजदूर ने अपनी बात कही।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: अलिफ लैला - by sri7869 - 14-05-2024, 12:28 PM



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