05-08-2019, 10:44 PM
शहरजाद ने शहरयार से कहा कि इस जगह कहानी रोक कर मैं आप को यह बताना चाहती हूँ कि इस बार ताली बजाने वाला स्वयं खलीफा हारूँ रशीद था। खलीफा का यह नियम था कि अक्सर रात को वेष बदलकर शहर में निकलता था कि प्रजा का हाल खुद अपनी आँखों से देखे। उस रात को वह अपने महामंत्री जाफर और जासूसों के सरदार मसरूर के साथ बगदाद की गलियों में घूम रहा था। वे तीनों व्यापारियों जैसे वस्त्र पहने हुए थे। जब वे लोग उन स्त्रियों के मकान के पास से गुजरे तो उन्होंने हँसी की ध्वनि और गाने-बजाने का स्वर सुना। खलीफा ने कहा कि घर का दरवाजा खुलवाओ, मैं देखूँ तो कि यहाँ क्या हो रहा है। जाफर ने कहा कि यहाँ कुछ स्त्रियाँ शराब पीकर हँसी- दिल्लगी कर रही हैं, गा-बजा रही हैं, आपका अंदर जाना शोभनीय नहीं है। यह भी हो सकता है कि वे अपने राग-रंग में विघ्न पड़ते देखकर नशे की हालत में आप का कुछ अपमान कर बैठें। किंतु खलीफा ने उसकी सलाह न मानी और आदेश दिया कि तुम जाकर दरवाजा खुलवाओ।
अतएव जाफर ने दरवाजा खुलवाया। साफी ने दरवाजा खोला तो जाफर उसके रूप को देखता रह गया, फिर उसने जल्दी से एक कहानी गढी। उसने कहा, 'सुंदरी, हम तीनों व्यापारी मोसिल नगर के निवासी हैं। हम व्यापार की वस्तुएँ लेकर यहाँ आए हैं और एक सराय में ठहरे हैं। आज की रात को यहाँ के एक व्यापारी ने हमें दावत दी थी। हम उसके घर गए। उसने हमें बड़ा स्वादिष्ट भोजन कराया और उत्तम मदिरा पीने को दी। हम लोग नशे में आ गए तो उसने नृत्यांगनाओं को बुलाकर नाचने की आज्ञा दी। इस राग-रंग में काफी समय हो गया और नशे की हँसी और नाच-गाने से बाहर काफी आवाज जाने लगी। उसी समय संयोगवश शहर का कोतवाल गश्त लेकर उधर से निकला और उसने उस घर पर छापा मार दिया। दरवाजा खुलवा कर उसने सब उलट-पलटकर दिया और कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया। हम लोग जान बचाकर एक दीवार से बाहर कूद गए।'
यह कहकर जाफर ने कहा, 'हम लोग इस शहर में किसी को नहीं जानते, न यहाँ के मार्ग पहचानते हैं। हमें डर लग रहा है कि हम इधर-उधर भटकते हुए सराय पर कैसे पहुँचेंगे। फिर संभव है सराय का दरवाजा बंद हो गया हो और हम रात भर गलियों में भटकते रहें। यह भी संभव है कि वही कोतवाल गश्त लगाता हुआ आ निकले और हम लोगों को बंद कर दे। हमारी दशा बड़ी दयनीय है। सुंदरी, तुम दया करके अनुमति दो तो हम रात भर के लिए तुम्हारे मकान में किसी जगह पड़े रहें। अगर तुम हमें अपनी संगति के योग्य समझो तो हमें अपने गाने-बजाने में शामिल कर लो। हम लोग यह तो समझ गए हैं कि तुम लोग गाने-बजाने में अति निपुण हो। हमें भी संगीत में रुचि है और हम भी अपनी कला से तुम्हारे आमोद-प्रमोद में योग दे सकते हैं।'
साफी ने कहा, मैं इस घर की मालकिन नहीं हूँ; तुम लोग जरा देर यहीं ठहरो, मैं मालकिन से तुम्हारी बात करती हूँ; अगर उसने अनुमति दे दी तो फिर कोई दिक्कत नहीं रहेगी और तुम लोग आराम से यहाँ रात बिता सकोगे। यह कह कर साफी अंदर गई और अपनी बहनों से नए व्यापारियों की दशा और उनकी प्रार्थना की बात की। उन दोनों ने आपस में और साफी के साथ मंत्रणा की और साफी से कहा कि उन्हें भी अंदर ले आओ।
अतएव साफी वहाँ जाकर खलीफा, जाफर और मसरूर को अंदर ले आई। तीनों ने बड़ी शिष्टता और सम्मान से स्त्रियों और फकीरों को प्रणाम किया। उन सब ने उन्हें व्यापारी समझ कर उनके अभिवादन का यथायोग्य उत्तर दिया। जुबैदा ने, जो तीनों बहनों में सब से बड़ी और सब से बुद्धिमान थी, उनसे उनकी कुशल-क्षेम पूछी और कहा कि हम लोग जो कुछ कहें उसका तुम लोग बुरा न मानना। जाफर ने कहा, तुम सुंदरियों के मुँह से ऐसी कौन-सी बात निकल सकती है जिसका किसी को भी बुरा लगे? जुबैदा ने कहा, 'मुझे यह कहना है कि तुम जहाँ तक हो सके चुप रहना और जिस बात का तुम से सीधा संबंध न हो उसके बारे में कोई प्रश्न न करना। अगर तुमने ऐसा न किया तो हम तुमसे क्रुद्ध हो जाएँगे और इसका फल तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।' मंत्री ने कहा कि अगर तुम्हारा यही आदेश है तो हम ऐसा ही करेंगे और किसी बात के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे। यह वादा लेकर जुबैदा ने उन सब के आगे खाद्य सामग्री रखी और मदिरा पिलाई।
जब मंत्री जुबैदा से बातें कर रहा था उस समय खलीफा आश्चर्यचकित होकर उन स्त्रियों के सौंदर्य और तीक्ष्ण बुद्धि को देख रहा था। उसे इस बात से भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि तीनों फकीर दाहिनी आँख से क्यों काने हैं। उसकी उत्कट इच्छा थी कि वह फकीरों से इस बात का रहस्य पूछे किंतु उसके दोनों साथियों ने इशारों ही में उसे ऐसा न करने के लिए कहा। मकान के अंदर की सारी रुपहली और सुनहरी सजावट को देखकर वह मन ही मन कह रहा था कि यह चीजें जादू ही की हो सकती हैं, वास्तविक नहीं हो सकतीं। इतने में एक फकीर ने उठकर अपने देश के ढंग पर नाचना शुरू कर दिया। स्त्रियों को वह नाच पसंद आया और सबने उसकी नृत्य कला की प्रशंसा की।
जब फकीरों का नाच हो चुका तो जुबैदा अपने स्थान से उठी और अमीना का हाथ पकड़ कर बोली, 'बहन, यह तो तुम जानती ही हो कि यहाँ पर उपस्थित सब लोग हमारे अधीन हैं और इनकी उपस्थिति हमें हमारे रोज के काम से नहीं रोक सकती।' अमीना ने उसका अभिप्राय समझ कर उस जगह की सफाई शुरू कर दी। उसने भोजन के पात्र और मदिरा की सुराहियाँ और प्याले उठाकर बावर्चीखाने में रख दिए और गाने बजाने का सामान हटाकर फर्श पर झाड़ू लगाई। इसके बाद उसने सारे दियों की बत्तियों के गुल काटे और कुछ और भी सुगंधित तेल के दिए जलाए और कमरे को नए ढंग से सजा दिया।
अमीना ने अब फकीरों और खलीफा तथा उसके साथियों को दालान में बिठाया। फिर मजदूर से कहा कि तुझ जैसे हट्टे-कट्टे आदमी को इन लोगों की तरह बैठना नहीं चाहिए, तू उठ कर हमारे काम में हाथ बँटा। मजदूर अभी तक ऊँघ-सा रहा था। वह अपनी हैसियत का खयाल करके रास-रंग में शामिल नहीं हुआ था। वह फौरन उठ खड़ा हुआ और अपने चोगे को कस कर कमर से बाँधने के बाद बोला कि बताओ क्या काम है, जो तुम कहोगी मैं करूँगा। साफी ने कहा, तुम कुर्ते की आस्तीन भी चढ़ा लो क्योंकि हाथों से काम करना है।
कुछ देर बाद अमीना ने दालान में एक चौकी बिछाई और मजदूर को अपने साथ ले जाकर एक कोठरी से दो काली कुतियाँ खींचती हुई लाई। दोनों कुतियों के गले में पट्टे बँधे थे और पट्टों में जंजीरें बँधी थीं। मजदूर उसकी आज्ञा के अनुसार दोनों कुतियों को दालान में ले गया। अब जुबैदा गुस्से में झटके के साथ उठ खड़ी हुई। उसने एक ठंडी साँस भरी और आस्तीन ऊपर चढ़ाई। फिर उसने साफी के हाथ से एक चाबुक लिया और मजदूर से कहा कि एक कुतिया की जंजीर अमीना के हाथ में दे और दूसरी को मेरे पास ले आ।
मजदूर उसकी आज्ञानुसार एक कुतिया को खींच कर जुबैदा के पास लाया तो कुतिया बड़े आर्त स्वर में चिल्लाने लगी। वह दयनीय दृष्टि से जुबैदा की तरफ देखती जाती थी और उसके पैरों पर अपना सिर भी रगड़ती जाती थी। जुबैदा ने उसके इस अनुनय पर कुछ ध्यान न दिया और सड़ासड़ उसे चाबुक मारना शुरू किया। मारते-मारते जब जुबैदा का दम फूल गया तो उसने मारना बंद कर दिया। फिर मजदूर के हाथ से कुतिया की जंजीर लेकर उसके अगले पंजे पकड़ कर पिछले पैरों पर खड़ा किया। कुतिया और जुबैदा एक-दूसरे को देखकर बड़े दुख के साथ आँसू बहाने लगीं। फिर जुबैदा ने रूमाल से कुतिया के आँसू पोंछे और उसे प्यार करके उसका मुँह चूमा। फिर मजदूर को उसकी जंजीर थमाकर कहा कि इस कुतिया को दालान में ले जा और दूसरी को यहाँ ला। मजदूर ने इस कुतिया को ले जाकर दालान में बाँधा और अमीना के हाथ से दूसरी कुतिया लेकर जुबैदा के पास लाया। जुबैदा ने इस कुतिया को भी पहली कुतिया की भाँति खूब मारा, फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर रोई और उसके आँसू पोंछ कर और मुँह चूम कर प्यार किया। इसके बाद मजदूर ने इस कुतिया को भी दालान में ले जाकर बाँध दिया।
तीन फकीरों, खलीफा और उसके साथियों को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहले तो जुबैदा ने अत्यंत निर्दयता से कुतियों को पीटा फिर उनके साथ मिल कर रोई भी। इसके अलावा *ों के धर्म में कुत्ते अपवित्र जंतु माने जाते हैं। जुबैदा जैसी सुसंस्कृत महिला का कुतियों के आँसू पोंछकर उनका मुँह चूमना किसी की समझ में नहीं आ रहा था। विशेषतः खलीफा अपनी उत्सुकता नहीं रोक पा रहा था। उसने इशारे से मंत्री से कहा कि इस रहस्य को पूछना चाहिए। मंत्री ने पहले तो टाल-मटोल की और दूसरी ओर देखने लगा। लेकिन जब खलीफा संकेत से प्रश्न करता ही रहा तो उसने संकेत ही से विनय की कि इस समय इस बात को यहीं समाप्त कर दीजिए, कुछ पूछिए नहीं।
जुबैदा कुतियों को पीटने के बाद कुछ देर तक सुस्ताती रही। फिर साफी ने उससे कहा, बहन तुम अपने स्थान पर आ बैठो तो हम अगला काम करें। जुबैदा ने कहा, 'अच्छा।' फिर वह दालान में आकर एक पहले से बिछी हुई चौकी पर बैठ गई। उसने खलीफा और उसके साथियों को अपने दाईं ओर और फकीरों और मजदूरों को बाईं ओर बिठा लिया। चौकी पर बैठ कर वह कुछ देर और सुस्ताती रही। इसके बाद उसने अमीना से कहा कि बहन, उठो, तुम्हें मालूम है कि तुम्हें अब क्या करना है।
अतएव जाफर ने दरवाजा खुलवाया। साफी ने दरवाजा खोला तो जाफर उसके रूप को देखता रह गया, फिर उसने जल्दी से एक कहानी गढी। उसने कहा, 'सुंदरी, हम तीनों व्यापारी मोसिल नगर के निवासी हैं। हम व्यापार की वस्तुएँ लेकर यहाँ आए हैं और एक सराय में ठहरे हैं। आज की रात को यहाँ के एक व्यापारी ने हमें दावत दी थी। हम उसके घर गए। उसने हमें बड़ा स्वादिष्ट भोजन कराया और उत्तम मदिरा पीने को दी। हम लोग नशे में आ गए तो उसने नृत्यांगनाओं को बुलाकर नाचने की आज्ञा दी। इस राग-रंग में काफी समय हो गया और नशे की हँसी और नाच-गाने से बाहर काफी आवाज जाने लगी। उसी समय संयोगवश शहर का कोतवाल गश्त लेकर उधर से निकला और उसने उस घर पर छापा मार दिया। दरवाजा खुलवा कर उसने सब उलट-पलटकर दिया और कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया। हम लोग जान बचाकर एक दीवार से बाहर कूद गए।'
यह कहकर जाफर ने कहा, 'हम लोग इस शहर में किसी को नहीं जानते, न यहाँ के मार्ग पहचानते हैं। हमें डर लग रहा है कि हम इधर-उधर भटकते हुए सराय पर कैसे पहुँचेंगे। फिर संभव है सराय का दरवाजा बंद हो गया हो और हम रात भर गलियों में भटकते रहें। यह भी संभव है कि वही कोतवाल गश्त लगाता हुआ आ निकले और हम लोगों को बंद कर दे। हमारी दशा बड़ी दयनीय है। सुंदरी, तुम दया करके अनुमति दो तो हम रात भर के लिए तुम्हारे मकान में किसी जगह पड़े रहें। अगर तुम हमें अपनी संगति के योग्य समझो तो हमें अपने गाने-बजाने में शामिल कर लो। हम लोग यह तो समझ गए हैं कि तुम लोग गाने-बजाने में अति निपुण हो। हमें भी संगीत में रुचि है और हम भी अपनी कला से तुम्हारे आमोद-प्रमोद में योग दे सकते हैं।'
साफी ने कहा, मैं इस घर की मालकिन नहीं हूँ; तुम लोग जरा देर यहीं ठहरो, मैं मालकिन से तुम्हारी बात करती हूँ; अगर उसने अनुमति दे दी तो फिर कोई दिक्कत नहीं रहेगी और तुम लोग आराम से यहाँ रात बिता सकोगे। यह कह कर साफी अंदर गई और अपनी बहनों से नए व्यापारियों की दशा और उनकी प्रार्थना की बात की। उन दोनों ने आपस में और साफी के साथ मंत्रणा की और साफी से कहा कि उन्हें भी अंदर ले आओ।
अतएव साफी वहाँ जाकर खलीफा, जाफर और मसरूर को अंदर ले आई। तीनों ने बड़ी शिष्टता और सम्मान से स्त्रियों और फकीरों को प्रणाम किया। उन सब ने उन्हें व्यापारी समझ कर उनके अभिवादन का यथायोग्य उत्तर दिया। जुबैदा ने, जो तीनों बहनों में सब से बड़ी और सब से बुद्धिमान थी, उनसे उनकी कुशल-क्षेम पूछी और कहा कि हम लोग जो कुछ कहें उसका तुम लोग बुरा न मानना। जाफर ने कहा, तुम सुंदरियों के मुँह से ऐसी कौन-सी बात निकल सकती है जिसका किसी को भी बुरा लगे? जुबैदा ने कहा, 'मुझे यह कहना है कि तुम जहाँ तक हो सके चुप रहना और जिस बात का तुम से सीधा संबंध न हो उसके बारे में कोई प्रश्न न करना। अगर तुमने ऐसा न किया तो हम तुमसे क्रुद्ध हो जाएँगे और इसका फल तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।' मंत्री ने कहा कि अगर तुम्हारा यही आदेश है तो हम ऐसा ही करेंगे और किसी बात के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे। यह वादा लेकर जुबैदा ने उन सब के आगे खाद्य सामग्री रखी और मदिरा पिलाई।
जब मंत्री जुबैदा से बातें कर रहा था उस समय खलीफा आश्चर्यचकित होकर उन स्त्रियों के सौंदर्य और तीक्ष्ण बुद्धि को देख रहा था। उसे इस बात से भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि तीनों फकीर दाहिनी आँख से क्यों काने हैं। उसकी उत्कट इच्छा थी कि वह फकीरों से इस बात का रहस्य पूछे किंतु उसके दोनों साथियों ने इशारों ही में उसे ऐसा न करने के लिए कहा। मकान के अंदर की सारी रुपहली और सुनहरी सजावट को देखकर वह मन ही मन कह रहा था कि यह चीजें जादू ही की हो सकती हैं, वास्तविक नहीं हो सकतीं। इतने में एक फकीर ने उठकर अपने देश के ढंग पर नाचना शुरू कर दिया। स्त्रियों को वह नाच पसंद आया और सबने उसकी नृत्य कला की प्रशंसा की।
जब फकीरों का नाच हो चुका तो जुबैदा अपने स्थान से उठी और अमीना का हाथ पकड़ कर बोली, 'बहन, यह तो तुम जानती ही हो कि यहाँ पर उपस्थित सब लोग हमारे अधीन हैं और इनकी उपस्थिति हमें हमारे रोज के काम से नहीं रोक सकती।' अमीना ने उसका अभिप्राय समझ कर उस जगह की सफाई शुरू कर दी। उसने भोजन के पात्र और मदिरा की सुराहियाँ और प्याले उठाकर बावर्चीखाने में रख दिए और गाने बजाने का सामान हटाकर फर्श पर झाड़ू लगाई। इसके बाद उसने सारे दियों की बत्तियों के गुल काटे और कुछ और भी सुगंधित तेल के दिए जलाए और कमरे को नए ढंग से सजा दिया।
अमीना ने अब फकीरों और खलीफा तथा उसके साथियों को दालान में बिठाया। फिर मजदूर से कहा कि तुझ जैसे हट्टे-कट्टे आदमी को इन लोगों की तरह बैठना नहीं चाहिए, तू उठ कर हमारे काम में हाथ बँटा। मजदूर अभी तक ऊँघ-सा रहा था। वह अपनी हैसियत का खयाल करके रास-रंग में शामिल नहीं हुआ था। वह फौरन उठ खड़ा हुआ और अपने चोगे को कस कर कमर से बाँधने के बाद बोला कि बताओ क्या काम है, जो तुम कहोगी मैं करूँगा। साफी ने कहा, तुम कुर्ते की आस्तीन भी चढ़ा लो क्योंकि हाथों से काम करना है।
कुछ देर बाद अमीना ने दालान में एक चौकी बिछाई और मजदूर को अपने साथ ले जाकर एक कोठरी से दो काली कुतियाँ खींचती हुई लाई। दोनों कुतियों के गले में पट्टे बँधे थे और पट्टों में जंजीरें बँधी थीं। मजदूर उसकी आज्ञा के अनुसार दोनों कुतियों को दालान में ले गया। अब जुबैदा गुस्से में झटके के साथ उठ खड़ी हुई। उसने एक ठंडी साँस भरी और आस्तीन ऊपर चढ़ाई। फिर उसने साफी के हाथ से एक चाबुक लिया और मजदूर से कहा कि एक कुतिया की जंजीर अमीना के हाथ में दे और दूसरी को मेरे पास ले आ।
मजदूर उसकी आज्ञानुसार एक कुतिया को खींच कर जुबैदा के पास लाया तो कुतिया बड़े आर्त स्वर में चिल्लाने लगी। वह दयनीय दृष्टि से जुबैदा की तरफ देखती जाती थी और उसके पैरों पर अपना सिर भी रगड़ती जाती थी। जुबैदा ने उसके इस अनुनय पर कुछ ध्यान न दिया और सड़ासड़ उसे चाबुक मारना शुरू किया। मारते-मारते जब जुबैदा का दम फूल गया तो उसने मारना बंद कर दिया। फिर मजदूर के हाथ से कुतिया की जंजीर लेकर उसके अगले पंजे पकड़ कर पिछले पैरों पर खड़ा किया। कुतिया और जुबैदा एक-दूसरे को देखकर बड़े दुख के साथ आँसू बहाने लगीं। फिर जुबैदा ने रूमाल से कुतिया के आँसू पोंछे और उसे प्यार करके उसका मुँह चूमा। फिर मजदूर को उसकी जंजीर थमाकर कहा कि इस कुतिया को दालान में ले जा और दूसरी को यहाँ ला। मजदूर ने इस कुतिया को ले जाकर दालान में बाँधा और अमीना के हाथ से दूसरी कुतिया लेकर जुबैदा के पास लाया। जुबैदा ने इस कुतिया को भी पहली कुतिया की भाँति खूब मारा, फिर उसकी आँखों में आँखें डाल कर रोई और उसके आँसू पोंछ कर और मुँह चूम कर प्यार किया। इसके बाद मजदूर ने इस कुतिया को भी दालान में ले जाकर बाँध दिया।
तीन फकीरों, खलीफा और उसके साथियों को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहले तो जुबैदा ने अत्यंत निर्दयता से कुतियों को पीटा फिर उनके साथ मिल कर रोई भी। इसके अलावा *ों के धर्म में कुत्ते अपवित्र जंतु माने जाते हैं। जुबैदा जैसी सुसंस्कृत महिला का कुतियों के आँसू पोंछकर उनका मुँह चूमना किसी की समझ में नहीं आ रहा था। विशेषतः खलीफा अपनी उत्सुकता नहीं रोक पा रहा था। उसने इशारे से मंत्री से कहा कि इस रहस्य को पूछना चाहिए। मंत्री ने पहले तो टाल-मटोल की और दूसरी ओर देखने लगा। लेकिन जब खलीफा संकेत से प्रश्न करता ही रहा तो उसने संकेत ही से विनय की कि इस समय इस बात को यहीं समाप्त कर दीजिए, कुछ पूछिए नहीं।
जुबैदा कुतियों को पीटने के बाद कुछ देर तक सुस्ताती रही। फिर साफी ने उससे कहा, बहन तुम अपने स्थान पर आ बैठो तो हम अगला काम करें। जुबैदा ने कहा, 'अच्छा।' फिर वह दालान में आकर एक पहले से बिछी हुई चौकी पर बैठ गई। उसने खलीफा और उसके साथियों को अपने दाईं ओर और फकीरों और मजदूरों को बाईं ओर बिठा लिया। चौकी पर बैठ कर वह कुछ देर और सुस्ताती रही। इसके बाद उसने अमीना से कहा कि बहन, उठो, तुम्हें मालूम है कि तुम्हें अब क्या करना है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.