05-08-2019, 10:44 PM
इतने में अमीना ने अपनी बाहर जाने वाली पोशाक उतार दी और तंग कपड़ों में कमर कसे हुए उसने नाना प्रकार के व्यंजन - कलिया, कीमा, कोफ्ता, कोरमा, कबाब और अन्य कई प्रकार के सामिष व्यंजन और उनके अलावा अन्य स्वादिष्ट वस्तुएँ और मदिरा की सुराही और प्याले लाकर उचित स्थानों पर रख दिए। फिर तीनों बहिनें वहाँ आकर बैठ गई और चौथी ओर मजदूर को भी बिठा लिया। मजदूर बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उसने थोड़ा-सा भोजन किया। फिर अमीना ने मदिरा की सुराही उठाकर प्याला भरा और अपने देश की रीति के अनुसार पहले स्वयं पिया, फिर अपनी बहनों को दे दिया और चौथा प्याला मजदूर को दिया।
मजदूर ने अमीना का आदरपूर्वक हाथ चूमकर प्याला ले लिया और उसे पीने के पहले इस आशय का एक गीत गाया कि जिस प्रकार इत्र से वायु सुगंधित हो जाती है उसी प्रकार अगर पिलाने वाला मनोरम हो तो मदिरा में नई सुगंध आ जाती है। यह गीत सुनकर तीनों स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने एक दूसरे के बाद कई गीत शराब के नशे में गाए। इस राग-रंग में बहुत देर हो गई और रात हो गई। साफी ने अपनी बहनों से कहा कि अब तो इस मजदूर को हमने खिला-पिला दिया है, अब इसका कोई काम नहीं, इससे कहो अपने घर जाए। मजदूर को ऐसा सुखद संग छोड़ने में बड़ा दुख हुआ। उसने कहा कि यह मेरे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी हालत में मुझे घर से निकाला जा रहा है, मैं इस नशे की दशा में किस प्रकार अपने घर पहुँच सकूँगा। कृपया रात भर मुझे यहाँ रहने की अनुमति दें, यहीं किसी कोने में पड़ा रहूँगा।
अमीना ने फिर उसकी वकालत की और कहा, यह बेचारा ठीक कहता है, कहाँ अँधेरे में ठोकरें खाता फिरेगा, हम लोगों ने पहले तो इसे अपने साथ खाने-पीने की अनुमति दे ही रखी है, अब इसे निराश न करो, यहीं पड़ा रहने दो। जुबैदा ने अमीना के कहने पर उसे रहने की अनुमति दे दी लेकिन फिर कहा कि शर्त यही है कि हम भला- बुरा जो भी करें तुम उसके बारे में कुछ पूछताछ नहीं करोगे। मजदूर ने कहा, आप मुझ पर जो भी शर्त लगाएँगी मैं मानूँगा। जुबैदा ने कहा कि हम तुम पर कोई नई शर्त नहीं लगा रहे हैं, उधर देखो क्या लिखा है। मजदूर ने एक दरवाजे के अंदर जाकर देखा तो मोटे-मोटे सुनहरे अक्षरों में लिखा था, 'इस भवन के अंदर जाने वाला कोई व्यक्ति यदि ऐसी बातों के बारे में पूछेगा जिनसे उसका कोई संबंध नहीं है तो उसे बड़ी क्लेशकारक बातें सुनने को मिलेंगी, उसे बड़ा कष्ट होगा और वह बहुत पछताएगा।' मजदूर ने कहा, आप चिंता न करें, मैं अपना मुँह बंद रखूँगा।
फिर अमीना रात का भोजन लाई और चारों ओर दीपक और सुगंधियाँ जलाईं। इससे सारा भवन आलोकित और सुवासित हो गया। इसके बाद तीनों स्त्रियाँ और मजदूर भोजन करने लगे और मदिरा पीकर अपने-अपने क्षेत्र की भाषाओं के गीत गाने लगे और राग-रागिनियाँ छेड़ने लगे। थोड़ी ही देर में ज्ञात हुआ जैसे कोई दरवाजा खोलने को कह रहा है। यह शब्द सुन कर साफी खड़ी हो गई क्योंकि दरवाजा खोलने वही जाती थी। उसने जाकर दरवाजा खोला और कुछ देर में वापस आकर कहा, 'दरवाजे पर एक ही जैसे लगने वाले तीन फकीर खड़े है जुबैदा, तुम उन्हें देख कर बहुत हँसोगी। वे तीनों ही दाहिनी आँख से काने हैं और सभी के सिर, दाढ़ी, मूछें यहाँ तक कि भवें भी मुड़ी हुई हैं। वे इसी समय बगदाद में प्रविष्ट हुए हैं और चाहते हैं कि उन्हें एक रात ठहरने के लिए जगह दे दी जाए, सुबह वे चले जाएँगे। बहन, मेरी प्रार्थना है कि उन्हें यहाँ रहने की अनुमति दे दो। वे रात को यहाँ रह कर हम लोगों का कुछ भला ही करेंगे, हमें किसी प्रकार कष्ट न पहुँचाएँगे।'
जुबैदा ने साफी से कहा, अगर तुम यही चाहती हो तो उन्हें ले आओ लेकिन उन्हें भी हमारे घर पर मेहमानी की शर्त बता देना और कह देना कि अंदर दीवार पर जो कुछ लिखा है उसे पढ़ लें। साफी बहन की अनुमति पाकर प्रसन्नतापूर्वक दौड़ी गई और तीनों फकीरों को लेकर अंदर आ गई। फकीरों ने जुबैदा और अमीना को झुककर सलाम किया। दोनों ने सलाम का जवाब देकर उनकी कुशल-क्षेम पूछी। इसके बाद उन्होंने फकीरों से भोजन करने को कहा।
फकीरों ने मजदूर को देखकर कहा कि यह तो अरब का * मालूम होता है। अरब के लोग धर्म के बड़े पक्के होते हैं किंतु यह तो धर्म-विरुद्ध मदिरा पान कर रहा है। मजदूर यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ और बोला, 'तुम लोग कौन बड़े धर्माचारी हो। तुम लोगों ने दाढ़ी-मूँछें मुड़ाकर इस्लाम के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? तुम्हें मेरे व्यवहार पर आपत्ति करने और मुझे नसीहत देने का क्या अधिकार है?' स्त्रियों ने कहा कि तुम लोग यह बेकार की बहस छोड़ो और रंग में भंग न करो; लो खाओ-पिओ। फकीर लोग नशे में आए तो बोले, यहाँ कोई बाजा हो तो हम लोग कुछ गाएँ-बजाएँ। साफी ने उन्हें वाद्य ला कर दिए और वे बजाने लगे और वाद्यों के सुरों से सुर मिलाकर गाना शुरू किया। वे लोग इस गाने-बजाने के दरम्यान हँसी-ठट्ठा भी करते और ऊँचे स्वर में वाह- वाह भी करते। इस सबसे बड़ा शोर होने लगा और सारा भवन गूँजने लगा। इसी बीच उन्होंने सुना कि दरवाजे पर फिर कोई ताली बजा रहा है। साफी सदा की भाँति दौड़कर गई कि देखें, अब कौन दरवाजे पर आया है।
मजदूर ने अमीना का आदरपूर्वक हाथ चूमकर प्याला ले लिया और उसे पीने के पहले इस आशय का एक गीत गाया कि जिस प्रकार इत्र से वायु सुगंधित हो जाती है उसी प्रकार अगर पिलाने वाला मनोरम हो तो मदिरा में नई सुगंध आ जाती है। यह गीत सुनकर तीनों स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने एक दूसरे के बाद कई गीत शराब के नशे में गाए। इस राग-रंग में बहुत देर हो गई और रात हो गई। साफी ने अपनी बहनों से कहा कि अब तो इस मजदूर को हमने खिला-पिला दिया है, अब इसका कोई काम नहीं, इससे कहो अपने घर जाए। मजदूर को ऐसा सुखद संग छोड़ने में बड़ा दुख हुआ। उसने कहा कि यह मेरे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी हालत में मुझे घर से निकाला जा रहा है, मैं इस नशे की दशा में किस प्रकार अपने घर पहुँच सकूँगा। कृपया रात भर मुझे यहाँ रहने की अनुमति दें, यहीं किसी कोने में पड़ा रहूँगा।
अमीना ने फिर उसकी वकालत की और कहा, यह बेचारा ठीक कहता है, कहाँ अँधेरे में ठोकरें खाता फिरेगा, हम लोगों ने पहले तो इसे अपने साथ खाने-पीने की अनुमति दे ही रखी है, अब इसे निराश न करो, यहीं पड़ा रहने दो। जुबैदा ने अमीना के कहने पर उसे रहने की अनुमति दे दी लेकिन फिर कहा कि शर्त यही है कि हम भला- बुरा जो भी करें तुम उसके बारे में कुछ पूछताछ नहीं करोगे। मजदूर ने कहा, आप मुझ पर जो भी शर्त लगाएँगी मैं मानूँगा। जुबैदा ने कहा कि हम तुम पर कोई नई शर्त नहीं लगा रहे हैं, उधर देखो क्या लिखा है। मजदूर ने एक दरवाजे के अंदर जाकर देखा तो मोटे-मोटे सुनहरे अक्षरों में लिखा था, 'इस भवन के अंदर जाने वाला कोई व्यक्ति यदि ऐसी बातों के बारे में पूछेगा जिनसे उसका कोई संबंध नहीं है तो उसे बड़ी क्लेशकारक बातें सुनने को मिलेंगी, उसे बड़ा कष्ट होगा और वह बहुत पछताएगा।' मजदूर ने कहा, आप चिंता न करें, मैं अपना मुँह बंद रखूँगा।
फिर अमीना रात का भोजन लाई और चारों ओर दीपक और सुगंधियाँ जलाईं। इससे सारा भवन आलोकित और सुवासित हो गया। इसके बाद तीनों स्त्रियाँ और मजदूर भोजन करने लगे और मदिरा पीकर अपने-अपने क्षेत्र की भाषाओं के गीत गाने लगे और राग-रागिनियाँ छेड़ने लगे। थोड़ी ही देर में ज्ञात हुआ जैसे कोई दरवाजा खोलने को कह रहा है। यह शब्द सुन कर साफी खड़ी हो गई क्योंकि दरवाजा खोलने वही जाती थी। उसने जाकर दरवाजा खोला और कुछ देर में वापस आकर कहा, 'दरवाजे पर एक ही जैसे लगने वाले तीन फकीर खड़े है जुबैदा, तुम उन्हें देख कर बहुत हँसोगी। वे तीनों ही दाहिनी आँख से काने हैं और सभी के सिर, दाढ़ी, मूछें यहाँ तक कि भवें भी मुड़ी हुई हैं। वे इसी समय बगदाद में प्रविष्ट हुए हैं और चाहते हैं कि उन्हें एक रात ठहरने के लिए जगह दे दी जाए, सुबह वे चले जाएँगे। बहन, मेरी प्रार्थना है कि उन्हें यहाँ रहने की अनुमति दे दो। वे रात को यहाँ रह कर हम लोगों का कुछ भला ही करेंगे, हमें किसी प्रकार कष्ट न पहुँचाएँगे।'
जुबैदा ने साफी से कहा, अगर तुम यही चाहती हो तो उन्हें ले आओ लेकिन उन्हें भी हमारे घर पर मेहमानी की शर्त बता देना और कह देना कि अंदर दीवार पर जो कुछ लिखा है उसे पढ़ लें। साफी बहन की अनुमति पाकर प्रसन्नतापूर्वक दौड़ी गई और तीनों फकीरों को लेकर अंदर आ गई। फकीरों ने जुबैदा और अमीना को झुककर सलाम किया। दोनों ने सलाम का जवाब देकर उनकी कुशल-क्षेम पूछी। इसके बाद उन्होंने फकीरों से भोजन करने को कहा।
फकीरों ने मजदूर को देखकर कहा कि यह तो अरब का * मालूम होता है। अरब के लोग धर्म के बड़े पक्के होते हैं किंतु यह तो धर्म-विरुद्ध मदिरा पान कर रहा है। मजदूर यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ और बोला, 'तुम लोग कौन बड़े धर्माचारी हो। तुम लोगों ने दाढ़ी-मूँछें मुड़ाकर इस्लाम के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? तुम्हें मेरे व्यवहार पर आपत्ति करने और मुझे नसीहत देने का क्या अधिकार है?' स्त्रियों ने कहा कि तुम लोग यह बेकार की बहस छोड़ो और रंग में भंग न करो; लो खाओ-पिओ। फकीर लोग नशे में आए तो बोले, यहाँ कोई बाजा हो तो हम लोग कुछ गाएँ-बजाएँ। साफी ने उन्हें वाद्य ला कर दिए और वे बजाने लगे और वाद्यों के सुरों से सुर मिलाकर गाना शुरू किया। वे लोग इस गाने-बजाने के दरम्यान हँसी-ठट्ठा भी करते और ऊँचे स्वर में वाह- वाह भी करते। इस सबसे बड़ा शोर होने लगा और सारा भवन गूँजने लगा। इसी बीच उन्होंने सुना कि दरवाजे पर फिर कोई ताली बजा रहा है। साफी सदा की भाँति दौड़कर गई कि देखें, अब कौन दरवाजे पर आया है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.