05-08-2019, 09:57 PM
मैं ने अपने सामान में से कुछ सुंदर और बहुमूल्य वस्तुएँ बादशाह को भेंट कीं। उसने पूछा, तुझे यह मूल्यवान वस्तुएँ कहाँ से मिलीं? मैंने उसे पूरा हाल सुनाया। वह यह सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने मेरी भेंट सहर्ष स्वीकार कर ली और उसके बदले में उनसे कहीं अधिक मूल्यवान वस्तुएँ मुझे दे दीं। मैं उससे विदा होकर फिर जहाज पर आया और अपना माल बेचकर उस देश की पैदावार यथा चंदन, आबनूस, कपूर, जायफल, लौंग, काली मिर्च आदि ली और फिर जहाज पर सवार हो गया। कई देशों और टापुओं से होता हुआ हमारा जहाज बसरा के बंदरगाह पर पहुँचा। वहाँ से स्थल मार्ग से बगदाद आया। इस व्यापार में मुझे एक लाख दीनार का लाभ हुआ। मैं अपने परिवार वालों और बंधु-बांधवों से मिलकर बड़ा प्रसन्न हुआ। मैं ने एक विशाल भवन बनवाया और कई दास और दासियाँ खरीदीं और आनंद से रहने लगा। कुछ ही दिनों में मैं अपनी यात्रा के कष्टों को भूल गया।
सिंदबाद ने अपनी कहानी पूरी करके गाने-बजाने वालों से, जो उसके यात्रा वर्णन के समय चुप हो गए थे, दुबारा गाना-बजाना शुरू करने को कहा। इन्हीं बातों में रात हो गई। सिंदबाद ने चार सौ दीनारों की एक थैली मँगाकर हिंदबाद को दी और कहा कि अब तुम अपने घर जाओ, कल फिर इसी समय आना तो मैं तुम्हें अपनी यात्राओं की और कहानियाँ सुनाऊँगा। हिंदबाद ने इतना धन पहले कभी देखा न था। उसने सिंदबाद को बहुत धन्यवाद दिया। उसके आदेश के अनुसार हिंदबाद दूसरे अच्छे और नए वस्त्र पहन कर उसके घर आया। सिंदबाद उसे देखकर प्रसन्न हुआ और उसने मुस्कराकर हिंदबाद से उसकी कुशल-क्षेम पूछी।
कुछ देर में सिंदबाद के अन्य मित्र भी आ गए और नित्य के नियम के अनुसार स्वादिष्ट व्यंजन सामने लाए गए। जब सब लोग खा-पीकर तृप्त हो चुके तो सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, अब मैं तुम लोगों को अपनी दूसरी सागर यात्रा की कहानी सुनाता हूँ, यह पहली यात्रा से कम विचित्र नहीं है। सब लोग ध्यान से सुनने लगे और सिंदबाद ने कहना शुरू किया।
सिंदबाद ने अपनी कहानी पूरी करके गाने-बजाने वालों से, जो उसके यात्रा वर्णन के समय चुप हो गए थे, दुबारा गाना-बजाना शुरू करने को कहा। इन्हीं बातों में रात हो गई। सिंदबाद ने चार सौ दीनारों की एक थैली मँगाकर हिंदबाद को दी और कहा कि अब तुम अपने घर जाओ, कल फिर इसी समय आना तो मैं तुम्हें अपनी यात्राओं की और कहानियाँ सुनाऊँगा। हिंदबाद ने इतना धन पहले कभी देखा न था। उसने सिंदबाद को बहुत धन्यवाद दिया। उसके आदेश के अनुसार हिंदबाद दूसरे अच्छे और नए वस्त्र पहन कर उसके घर आया। सिंदबाद उसे देखकर प्रसन्न हुआ और उसने मुस्कराकर हिंदबाद से उसकी कुशल-क्षेम पूछी।
कुछ देर में सिंदबाद के अन्य मित्र भी आ गए और नित्य के नियम के अनुसार स्वादिष्ट व्यंजन सामने लाए गए। जब सब लोग खा-पीकर तृप्त हो चुके तो सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, अब मैं तुम लोगों को अपनी दूसरी सागर यात्रा की कहानी सुनाता हूँ, यह पहली यात्रा से कम विचित्र नहीं है। सब लोग ध्यान से सुनने लगे और सिंदबाद ने कहना शुरू किया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.