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अलिफ लैला
#43
जहाज ने किनारे पर लंगर डाला और उसमें से बूढ़ा जौहरी अपने नौकरों के साथ निकल कर हँसी-खुशी किनारे पर आया। तहखाने के पास जाकर उन लोगों ने पत्थर हटा कर जीने का रास्ता खोला लेकिन अब बूढ़े की प्रसन्नता गायब हो गई और उसके मुँह पर झाईं-सी फिर गई। कारण यह था कि उसने अपने पुत्र का नाम लेकर पुकारा तो अंदर से कोई उत्तर न आया। जब वे लोग अंदर गए तो देखा कि लड़का मरा पड़ा है और उसके हृदय में छुरी घुसी है, क्योंकि मुझे छुरी निकालने का ध्यान नहीं रहा। लाश को देखकर उन लोगों में अचानक रोना-चिल्लाना शुरू हो गया।

उन लोगों का विलाप और मृत बालक का उनके मुँह से गुणानुवाद सुनकर मुझे भी रोना आ रहा था। बूढ़ा जौहरी तो बेचारा अपने पुत्र का शव देखकर अचेत ही हो गया। उसके सेवकों ने उसे तहखाने से बाहर निकाल कर उसी पेड़ के नीचे बिठाया जिसके ऊपर मैं छुपा बैठा था। फिर वे लड़के की लाश को बाहर लाए, उसे नहलाया और सफेद कफन पहनाया और कब्र खोदकर उसमें लाश उतार दी। लड़के के पिता ने जो इस बीच बराबर रोता रहा था तीन बार कब्र में मिट्टी डाली और फिर उसके सेवकों ने कब्र को मिट्टी से ऊपर तक भर के बराबर कर दिया।

इसके बाद वे लोग तहखाने में गए और वहाँ से बची हुई खाद्य वस्तुएँ और वस्त्र बाहर लाकर जहाज पर ले गए। कुछ ही देर में उनका जहाज उन सबको लेकर देश को चल दिया। उसके बाद देर बाद मैं पेड़ से उतरा और उसी तहखाने में चला गया। अब मेरा नियम यह हो गया था कि रात मैं उसी घर में रहता और दिन में इधर-उधर घूमकर वहाँ से निकलने के लिए रास्ते की खोज करता रहता। भूख लगने पर जंगली फलों आदि से पेट भरता रहता। इसी प्रकार लगभग एक महीना और बीत गया।

फिर मैंने देखा कि समुद्र का जल धीरे-धीरे घट रहा है। समुद्र के घटने से द्वीप का विस्तार बहुत बढ़ गया। समुद्र इतना घटा कि जहाँ सब से गहरा था वहाँ भी कमर के बराबर पानी रह गया और किनारे से दूसरी ओर की भूमि दिखाई देने लगी। कुछ समय के बाद पानी और घटा और पिंडलियों के बराबर हो गया। अब मैंने उसे पार करने की सोची। समुद्र सूखने से मीलों तक बालू निकल आई थी। बड़ी कठिनाई से वह बालू भूमि पार करके समुद्र तट पर पहुँचा और पानी लाँघ करके दूसरी भूमि पर पहुँचा। वहाँ दूर पर आग जलती दिखाई दी। मैंने सोचा यहाँ पर मनुष्य रहते होंगे क्योंकि बगैर मनुष्यों के आग कैसे जलेगी। पास जाने पर पता चला कि वह आग नहीं है बल्कि ताँबे का बना एक घर है जिस पर सूर्य की किरणें पड़ रही हैं। मैं सोच ही रहा था कि यह मकान किसका हो सकता है कि उसमें से दस नौजवान बाहर निकले और उनके साथ लंबे कद का एक वृद्ध मनुष्य भी था। सारे जवान दाहिनी आँख से काने थे। मैं सोच ही रहा था कि ये लोग कौन हैं, इतने में उन्होंने स्वयं ही आकर मुझ से नम्रतापूर्वक पूछा कि आप कौन हैं और कहाँ से आए हैं।

मैंने कहा कि मेरी कहानी बड़ी विचित्र और बड़ी लंबी है। यदि आप धैर्यपूर्वक सुन सकें तो मैं सुनाऊँ। वे सब सुनने को बैठ गए और मैंने अपना वृत्तांत आद्योपांत सुना दिया। उन्हें यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर वे लोग मुझे उस मकान के अंदर ले गए। उस मकान में कई बड़ी-बड़ी दालानें और बारह दरियाँ पार करके फिर एक बड़ा-सा नीला घर दिखाई दिया। उसके चारों ओर दस कमरे नीले रंग के बने हुए थे जिनमें एक- एक मनुष्य आराम से रह सकता था। कमरों के घेरे के बीच में एक दालान था जो उससे कुछ ऊँचा था। वृद्ध मनुष्य दालान में जा बैठा और चारों ओर के कमरों में दसों जवान कालीनों पर बैठ गए। एक जवान ने मुझ से कहा, ‘हे मित्र, तुम भी घर के बीच में बिछे हुए कालीन पर बैठ जाओ लेकिन हम कुछ भी करें उसका कारण न पूछना, न यह पूछना कि तुम लोग दाहिनी आँख से काने क्यों हो।’

कुछ देर में वह बूढ़ा उठा और दसों काने जवानों के लिए खाना लाया। उसने हर एक को खाने में से उसका भाग दिया और एक भाग मुझे भी दिया जिसे मैंने खा लिया। भोजनोपरांत वृद्ध पुरुष ने हम लोगों को एक-एक प्याला सुगंधित मदिरा का दिया। फिर उन लोगों ने मेरे वृत्तांत को जो उन्हें अद्भुत और रोचक लगा था दुबारा सुना। इसके बाद हम इधर-उधर की बहुत-सी बातें करते रहे।

जब काफी रात बीत गई तो एक जवान ने बूढ़े से कहा कि हमारे सोने का समय हो गया है, अभी तुम हमारे दैनिक नियम की चीजें नहीं लाए। बूढ़ा एक कोठरी के अंदर जाकर वहाँ से दस थाल नीले ढक्कनों से ढके हुए लाया और हर जवान के सामने उसने एक-एक थाल रख दिया। ढक्कन खोलने पर हर थाल में राख और काली स्याही थी। उन्होंने राख और स्याही को मिलाकर अपने-अपने चेहरे पर मल लिया जिससे वे सब कुरूप ही नहीं भयानक भी दिखाई देने लगें। फिर वे सब चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगे और मुँह और सीना पीट-पीट कर कहने लगे कि हाय, हमने कैसी भयानक मूर्खता की है और उसका हमें कैसा कुफल मिला है। बहुत देर तक वे जवान इसी प्रकार रोते-पीटते रहे। जब उन्होंने विलाप बंद किया तो वही बूढ़ा एक-एक करके सभी के पास पानी और चिलमची ले गया। सभी ने अपना मुँह धोया और जो कपड़े फाड़ डाले थे उन्हें उतार कर बदला और अपने-अपने कक्ष में जाकर सो रहे।

उन लोगों की यह दशा देखकर मैं अत्यंत उत्कंठित हुआ। मैंने वचन दिया था कि उनसे कुछ न पूछूँगा किंतु मुझे उत्सुकता के कारण रात भर नींद न आई। दूसरे दिन सुबह हम सभी लोग सैर के लिए बाहर निकले तो मैंने उनसे कहा, ‘सज्जनो, आप लोग हर तरह ज्ञानवान और बुद्धिमान हैं किंतु कल रात आप लोगों ने जो कुछ किया वह उन्मत्तों के अलावा कोई भी नहीं करेगा। मैं बड़ा परेशान हूँ। मैंने आपको वचन दिया है कि मैं आपके कार्य कलाप के बारे में या आपके काने होने का कारण न पूछूँगा किंतु यह भी सत्य है कि अब यह बातें पूछे बगैर मुझसे रहा नहीं जाता है। इसलिए मैं आप से पूछता हूँ कि आप लोगों ने अपना मुँह क्यों काला किया और क्यों मातम किया और यह भी कि आप सभी दाहिनी आँख से काने क्यों हैं। किंतु उन्होंने कहा कि हम तुम्हें यह सब बातें नहीं बता सकते, अगर तुम्हें हमारे साथ रहना हो तो इन प्रश्नों को भूल जाओ।

वह दिन भी बीता। रात को हम लोगों ने फिर अलग-अलग भोजन किया। उसके बाद बूढ़े ने फिर उन लोगों के सामने स्याही और राख से भरे थाल रखे और उन्होंने रोज की रस्म के तौर पर अपने मुँह काले किए और वही रोना-पीटना शुरू किया। दूसरी बार यह सब देखकर मेरी उत्सुकता और बढ़ गई। अगले दिन मैंने उनसे कहा, ‘हे मित्रो, अब मुझे आप लोगों की यह दशा चुपचाप बैठकर नहीं देखी जाती। आप कृपया अपनी बातें मुझे बताएँ और कोई ऐसा भी उपाय बताएँ जिससे मैं अपने देश में पहुँच जाऊँ।’

उनमें से एक जवान ने मुझ से कहा, ‘तुम हमारी दशा देखकर दुखी न हो। हम लोग तुम्हारे मित्र और हितचिंतक हैं इसीलिए हम तुम्हें यह बातें नहीं बताते, कही ऐसा न हो कि तुम्हारी दशा भी हम लोगों जैसी हो जाए। वैसे तुम बहुत जोर देते हो तो हम बता भी सकते हैं किंतु उसका फल अच्छा नहीं होगा।’ मैंने कहा, मैं यह सब जानना चाहता हूँ, फल चाहे जो कुछ हो। वह जवान बोला, ‘देखो, हम तुम्हें एक बार फिर समझाते हैं कि इन बातों को जानने की जिद छोड़ दो। हमारा कहना मानो और इस बारे में कुछ न पूछो वरना हमारी तरह तुम भी काने हो जाओगे।’ मैंने कहा, इस बात के फलस्वरूप मुझे जो भी दुख पहुँचे मैं उसे सहने के लिए तैयार हूँ, मैं इसे अपना ही दुर्भाग्य समझूँगा और आप लोगों में से किसी को इसके लिए दोष नहीं दूँगा। उस जवान ने कहा, ‘देखो, अगर किसी कारणवश तुम्हारी दाहिनी आँख फूटी और तुम हमारे पास वापस आए तो तुम हमारे साथ नहीं रह पाओगे। तुम देख रहे हो कि यहाँ दस ही कक्ष हैं और दसों भरे हुए हैं। यहाँ अब ग्यारहवें आदमी के रहने की गुंजाइश नहीं है।’ मैंने कहा, मुझे यह भी स्वीकार है कि आप मुझे यहाँ न रहने दें, लेकिन अपना भेद जरूर बताएँ।

जब उन दस जवानों ने देखा कि मैं अपनी बात पर अड़ा हुआ हूँ तो उन्होंने एक भेड़ का वध किया और उसकी खाल उतारी। फिर छुरी मुझे दे दी और कहा, ‘इसे होशियारी से रखो, यह तुम्हारे बहुत काम आएगी। हम लोग तुम्हें इस भेड़ की खाल में सी देंगे और यहाँ से हट जाएँगे। फिर यहाँ एक अति विशालकाय पक्षी जिसे रुख कहते हैं आएगा और तुम्हें भेड़ समझ कर झपट्टा मार कर उठा लेगा और एक बहुत ऊँचे पहाड़ की चोटी पर रखकर तुम्हें खाना चाहेगा। हम पहले से होशियार किए देते हैं। ज्यों ही तुम्हें मालूम हो कि जमीन पर रखे गए हो, इसी छुरी से खाल को चीरकर बाहर निकल आना और जोर से चीखना। रुख पक्षी इससे डरकर भाग जाएगा।

‘इसके बाद तुम निर्भय होकर आगे बढ़ जाना। कुछ दूर चल कर तुम्हें आलीशान महल मिलेगा। उस महल पर ऊपर से नीचे तक हर जगह सोने के पत्तर मढ़े हैं और जगह-जगह पर बड़े सुंदर ढंग से हीरे और दूसरे रत्न जड़े हुए हैं। तुम निर्द्वंद्व रूप से मकान के दरवाजे से, जो हमेशा खुला रहता है, अंदर चले जाना। हम सभी एक-एक करके उस मकान में रहे हैं किंतु उसमें क्या होगा यह बताने की जरूरत हम नहीं समझते और जो कुछ हमारे साथ हुआ वह भी नहीं बताएँगे क्योंकि हमारी दशा ऐसी नहीं है कि उसके कहने-सुनने से खुशी हो। तुम स्वयं ही वह सब देख-सुन लोगे। यह जरूर कहते हैं कि हमारी तरह तुम भी दाहिनी आँख से काने हो जाओगे। वैसे तो तुम पर जो अभी तक बीता है और जो आगे बीतेगा वह सब लिखो तो पूरी पुस्तक तैयार हो जाएगी किंतु हम इससे अधिक कुछ न कहेंगे।’

जब जवान अपनी बात समाप्त कर चुका तो मैंने भेड़ की खाल को अपने चारों ओर लपेट लिया उन लोगों ने कुशलतापूर्वक मुझे इस तरह से सी दिया कि मेरे साँस लेने के लिए जगह रहे। मुझे इस प्रकार सीकर और जंगल में रख कर वे घर के अंदर चले गए। थोड़ी ही देर में रुख नामक विशाल पक्षी आया और भेड़ समझ कर मुझे झपट्टा मारकर पंजों में दबाकर ले उड़ा और एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर ले जाकर रख दिया। नीचे जमीन लगते ही मैं छुरी से खाल फाड़ कर बाहर आ गया और चीख मारी। पक्षी यह देखकर डरकर उड़ गया।

मैं वहाँ से बताए हुए मार्ग पर चल दिया और तीसरे पहर के लगभग महल तक पहुँच गया। जैसा सुना था उससे भी अधिक अच्छा उसे पाया। खुले दरवाजे से अंदर पहुँचा तो अंदर एक और शानदार चौकोर मकान देखा जिसके चारों ओर सौ द्वार थे, एक द्वार स्वर्ण का था और निन्यानबे चंदन की लकड़ी के थे। अंदर कई सुसज्जित वाटिकाएँ और गृह थे। सामने एक बड़ी बारहदरी थी जिसमें चालीस सुंदरी नवयौवनाएँ उत्तमोत्तम वस्त्रालंकारों से सुसज्जित बैठी थीं। मुझे देखकर वे उठ खड़ी हुई। उन्होंने हँस कर मेरा स्वागत किया और कहने लगीं कि हम बहुत देर से आप की प्रतीक्षा में थे। फिर मुझे उन्होंने कुछ ऊँचे स्थान पर बिठाया। मैंने बहुत कहा कि मैं आप लोगों से ऊँचे पर बैठने का अधिकारी नहीं हूँ किंतु वे नहीं मानीं। वे बोलीं, ‘आप हम सभी के पति और स्वामी हैं और हम सब आपकी पत्नियाँ और दासियाँ हैं।’

उन्हें देखकर और उनकी बातें सुनकर जो प्रसन्नता मुझे हुई उसका वर्णन संभव नहीं है। कोई सुंदरी मेरे पाँव धोने को गरम पानी लाई, किसी ने सुगंधित जल से मेरे हाथ धुलाए, किसी ने बहुमूल्य वस्त्र लाकर मुझे पहनाए, कोई नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मेरे सामने ले आई और उन्हें मेरे सामने सजा दिया। कोई नवयौवना सुगंधित मदिरा की सुराही और प्याला लेकर मुझे पिलाने के लिए आ गई। इसी प्रकार वे देर तक हँसी-खुशी तरह-तरह से मेरी सेवा करती रहीं। मैं यह सब देखकर इतना अभिभूत हुआ कि अब तक के अपने सारे दुख-दर्द भूल गया और स्वयं को सारे संसार का अधिपति समझने लगा।

मैंने उन सभी सुंदरियों के साथ बैठकर भोजन और मदिरा पान किया। भोजन के बाद वे मेरे चारों ओर बैठ गईं और उन्होंने मुझ से मेरी यात्रा का वृत्तांत पूछना आरंभ किया और मैंने बताना। इतने में रात हो गई। उन स्त्रियों ने मकान में बड़ी सुंदर रोशनी की और कुछ स्त्रियों ने मुझसे मनोहर ढंग से बातचीत करनी शुरू कर दी ।

फिर उन्होंने भोजन के पात्र हटाकर फल, मिठाई, शर्बत आदि शीशे के सुंदर पात्रों में लेकर सामने रख दिए और मुझे ऊँचे आसान पर बिठाकर मेरे चारों तरफ बैठ कर गाने-बजाने लगीं और उनमें जो नृत्य में प्रवीण थीं वे नृत्य भी करने लगीं। इसी में आधी रात बीत गई। फिर उनमें से एक ने कहा कि आज आप बहुत दूर से आए हैं, अब आराम करें। उसने कहा कि शयन कक्ष तैयार हैं, और सोने से पहले आप हममें से एक को चुन लें तो वह आपके साथ सो रहे। मैंने कहा, ‘यह काम तो बड़ा कठिन और अनुचित होगा क्योंकि सौंदर्य में तुम लोग एक से एक बढ़कर हो, मैं किसे चुनूँ। फिर जिसे चुनूँगा उसके अलावा क्या दूसरों को बुरा नहीं लगेगा और क्या वे मेरी धृष्टता पर क्रुद्ध नहीं होगी?’ उस सुंदरी ने कहा, ‘यह बात नहीं है। हम सब की हार्दिक इच्छा है कि आप को प्रसन्न करें। हममें परस्पर ईर्ष्या नहीं है। आप हम में से जिसका चाहे हाथ पकड़ कर ले जाएँ, कोई दूसरा बुरा नहीं मानेगा क्योंकि हम सभी चाहते हैं कि आप एक-एक करके हम सभी का भोग करें। आप हमसे प्रत्येक का आनंद उड़ाएँगे ही, किसी का आज तो किसी का कल। इसलिए हमें बुरा लगने का प्रश्न ही नहीं है। अब आप बगैर झिझक हम में से जिसे चाहें उसे अपने साथ ले जाएँ। हम सब शहजादियाँ हैं किंतु आपकी सेवा के लिए हैं।’

यह सुनकर मैंने उसी सुंदरी की ओर हाथ बढ़ाया जिसने मुझसे ऐसी बुद्धिमानी की बातें की थीं। उसने तुरंत अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया। मैं उसके साथ अपने शयन कक्ष में आ गया और अन्य उनतालिस स्त्रियाँ अपने-अपने शयनगार में चली गईं। दूसरे दिन सवेरे मैं अच्छी तरह उठ भी नहीं पाया था कि शेष उनतालिस स्त्रियों ने मेरे पास आकर अभिवादन किया और पूछा कि रात को आराम से तो सोए। हाँ, उनके आने के पहले मैंने वे सुंदर वस्त्र और रत्न पहन लिए थे जो मेरे सिरहाने रख दिए गए थे। कुछ देर बातचीत करने के बाद वे स्त्रियाँ मुझे स्नानागार में ले गईं और तरह-तरह की मालिश करके मुझे स्नान कराया। मेरे नहा चुकने के बाद उन्होंने दूसरे वस्त्राभूषण जो पहले वस्त्र आदि से भी उत्तम थे मुझे पहनाया। इसके बाद सारे दिन, बल्कि आधी रात तक पहले दिन की तरह हास-परिहास, किस्सा-कहानी, खाना-पीना और राग-रंग चलता रहा। आधी रात हुई तो उन्होंने कहा कि आप हममें से जिसे चाहें चुन लें कि वह आपके साथ जाकर सो जाए। मैंने एक और सुंदरी का हाथ पकड़ा और उसे लेकर अपने शयन कक्ष में चला गया। सुबह उठकर फिर उन लोगों के साथ स्नानागार में चला गया।

फकीर ने जुबैदा से कहा कि हे सुंदरी, मैं तुमसे किस प्रकार और कहाँ तक बताऊँ कि कैसे आनंद और संतोष में मेरा समय बीतता रहा। दिन भर नाना प्रकार की खाने- पीने और अन्य विलास सामग्री का उपभोग करता और रात को उन चालीस में से किसी एक सुंदरी को अपने शयन कक्ष में ले जाता। इसी प्रकार लगभग एक वर्ष आनंदपूर्वक उस राजमहल में बीत गया। जब वर्ष पूरा होने में एक दिन रह गया तो सुबह को वे सुंदरियाँ जो हमेशा प्रसन्नवदन होकर मुझसे मेरा रात का हाल पूछने आया करती थीं, आँखों में आँसू भरे हुए आईं और कहने लगी कि ऐ शहजादे, हम सब आपसे विदा होने के लिए आए हैं, आपको हम भगवान को सौंपते हैं, वही आपकी रक्षा करेगा।

मुझे उनकी इस बात से बड़ा आश्चर्य और दुख हुआ। मैंने उनसे पूछा, ‘ऐसा क्या हो गया कि तुम लोग इतनी दुखी हो और यहाँ से विदा होने की बात क्यों कर रही हो? तुम्हें कहाँ जाना है और क्यों जाना है? भगवान के लिए मुझ से सारी बातें कहो। अगर तुम किसी संकट में हो और तुम्हें मेरी सहायता की आवश्यकता हो तो मुझ से जो भी सहायता बन पड़ेगी वह मैं करूँगा।’ उन्होंने कहा, ‘कुछ नहीं हो सकता। भगवान की यही इच्छा है कि हम लोग हमेशा के लिए अलग हो जाएँ और आज के बाद न आप कभी हमें देखें न हम आपको देखें। आपकी तरह पहले भी यहाँ कई लोग आए और फिर ऐसे अलग हुए कि हमें आज तक उनका कोई हाल मालूम नहीं हुआ। वही बात आपके साथ होने वाली है।’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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अलिफ लैला - by neerathemall - 02-08-2019, 08:26 AM
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RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:35 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:42 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:43 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:43 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:43 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:44 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:44 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:45 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 05-08-2019, 10:45 PM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 06-08-2019, 01:04 AM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 06-08-2019, 01:05 AM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 06-08-2019, 01:06 AM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 06-08-2019, 01:13 AM
RE: अलिफ लैला - by neerathemall - 06-08-2019, 03:17 AM
RE: अलिफ लैला - by sri7869 - 14-05-2024, 12:28 PM



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