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अलिफ लैला
#42
(05-08-2019, 09:44 PM)neerathemall Wrote:
Heart Heart Heart  अलिफ लैला Heart Heart Heart  -








Heart Heart तीसरे फ़कीर की कहानी  Heart Heart






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हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी आँख मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा नाम अजब है और मैं महा ऐश्वर्यशाली बादशाह किसब का बेटा हूँ। पिता के स्वर्गवास के बाद मैं सिंहासनारूढ़ हुआ और उसी नगर में रहने लगा जिसे मेरे पिता ने अपनी राजधानी बनाया था। मेरी राजधानी समुद्र के किनारे बसी थी। उसकी रक्षा के लिए डेढ़ सौ युद्ध पोत तैयार रहते थे। इसके अलावा दूरस्थ व्यापार के लिए पचास जहाज थे और बहुत-से दूसरे जहाज भी लंगर डाले रहते थे कि लोग उन पर बैठकर समुद्र में सैर-सपाटा किया करें। मेरे राज्य में कई अन्य नगर और द्वीप भी थे।
एक बार मेरी इच्छा हुई कि मैं अपने राज्य के नगरों और द्वीपों को जाकर देखूँ, वहाँ के निवासियों को, जो मेरे पिता की मृत्यु से शोकाकुल थे, सांत्वना दूँ और उन्हें आदेश दूँ कि वे नागरिक कार्यों और व्यापार में तत्परता से लगे रहें। साथ ही मुझे यह शौक हुआ कि मैं जहाज चलाना सीखूँ। इस उद्देश्य से मैं एक बड़े जहाज पर सवार होकर चला। मेरे जहाज के साथ दस जहाज और चल रहे थे। चालीस दिन तक वायु हमारे अनुकूल रही किंतु फिर ऐसा तूफान आया कि हम जीवन की आशा खो बैठे। दूसरे दिन आकाश साफ हो गया। हम लोग एक द्वीप पर उतर पड़े। दो दिन आराम करने और जहाज के भंडार भरने के बाद हम फिर चले। आशा थी कि दस दिन में हम अपने देश को वापस पहुँच जाएँगे। किंतु ऐसा न हुआ। कारण यह था कि जहाज एक अन्य तूफान में रास्ते से भटक गए थे। हमारे कप्तान ने एक आदमी को मस्तूल पर चढ़ाया कि शायद कहीं जमीन दिखाई दे। उसने बताया कि दाईं तरफ कोई काली-सी वस्तु दिखाई दे रही है, शायद भूमि हो। लेकिन यह सुनकर कप्तान सिर पीटने और बाल नोचने लगा और बोला, ‘हे स्वामी, अब हम सब खत्म हो जाएँगे। हमारे बचने का कोई उपाय नहीं है।’ यह कहकर वह और बुरी तरह रोने-पीटने लगा। उसकी यह दशा देखकर अन्य माँझी भी घबरा गए।
मैंने हैरान होकर कप्तान से पूछा कि हम क्यों समाप्त हो जाएँगे। उसने बताया कि ‘तूफान के कारण हमें दिशा ज्ञान नहीं रहा और हम मार्ग से भटक गए और अब हवा के कारण हमारा जहाज उस काली वस्तु के पास जा पहुँचेगा। वह एक चुंबक का पहाड़ है। जहाज वहाँ पहुँचेगा तो उसकी सारी कीलें और लौह पट्टिकाएँ लकड़ी से अलग होकर उससे जा चिपकेंगी और जहाज टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। चुंबक पत्थर में यह गुण होता है कि वह लोहे को आकृष्ट करता है और जैसे-जैसे लोहा उसके समीप आता है कि चुंबक की आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है। सैकड़ों जहाजों के लोहे के टुकड़े इस पर्वत में जा चिपके हैं जिनके कारण वह ऊपर से नीचे तक लोहे के टुकड़ों से ढँक गया है और रंग में काला दिखाई देता है। कहते हैं यह पहाड़ बहुत ऊँचा है। उसके सभी किनारे ढलवाँ हैं। उसकी चोटी पर एक बहुत बड़ी पीतल की गोल और मोटी चादर है जो पीतल के खंभों पर टिकी हुई है। उस चादर पर एक घुड़सवार की मूर्ति पीतल की बनी हुई है। सवार की छाती पर एक सीसे की तख्ती लगी है जिस पर कुछ जादू के अक्षर खुदे हैं। कहते हैं कि पहाड़ की आकर्षण शक्ति का कारण वही मूर्ति है।’
यह कहकर कप्तान फिर रोने-पीटने लगा और उसके साथ जहाज के दूसरे माँझी भी रोने-चिल्लाने लगे। मुझे भी लगने लगा कि मेरी उम्र अब खत्म होने को है और मेरी मौत मुझे खींच कर यहाँ लाई है। सभी लोग इस चिंता में पड़े कि कैसे अपने प्राणों की रक्षा करें। वह लोग यह भी कहने लगे कि जो कोई हमारे प्राण बचाए हम सदा के लिए उसके गुलाम हो जाएँगे। सब ने कोई न कोई उपाय सोच लिया। सुबह को हमारा जहाज उस काले पहाड़ के सामने जा पहुँचा। उसे देखकर सबके छक्के छूट गए और जो उपाय लोगों ने बचाव के लिए सोचे थे सब भूल गए और जहाज में ऐसा करुण क्रंदन होने लगा जिसका ठिकाना न था।
दोपहर को वही हुआ जो अनुभवी कप्तान ने कहा था यानी पहाड़ ने जहाजों को इतनी जोर से खींचा कि उनकी कीलें और लोहे की दूसरी चीजें उड़-उड़ कर पहाड़ से चिपकने लगीं। जहाजों के टूटने से महा भयानक शब्द होने लगा और कुछ ही क्षणों में ग्यारहों जहाज सागर तल में समा गए। उन जहाजों की किसी वस्तु और किसी मनुष्य का पता न लगा। एक मैं ही भगवान की दया से जीता रहा। संयोग से एक जहाज का टुकड़ा मेरे हाथ आ गया और मैं उसी के सहारे तैरने लगा। कुछ ही देर में मैं किनारे पर पहाड़ के नीचे पहुँचा। मैं पहाड़ पर चढ़कर सुरक्षित होना चाहता था लेकिन वह ऐसी खड़ी ढलान का पहाड़ था कि कहीं ऊपर जाने की गुंजाइश ही नहीं मालूम होती थी।
अचानक मुझे एक ओर नीचे से ऊपर जाते हुए मानव पदचिह्न गहरे खुदे हुए दिखाई दिए जिनसे ऊपर तक सीढ़ियाँ-सी बन गई थीं। मैंने भगवान का नाम लेकर चढ़ना शुरू किया। चढ़ने की जगह बड़ी तंग थी और कहीं भी दूसरा मार्ग नहीं दिखाई देता था। साथ ही हवा इतने वेग से चल रही थी कि प्रतिक्षण गिरने का भय था। लेकिन भगवान की कृपा से मैं धीरे-धीरे ऊपर तक जा पहुँचा और पीतल के गोले के अंदर जाकर भगवान को धन्यवाद देने लगा कि उसने इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मुझे जीवित रखा। रात हो गई थी इसलिए उसी वृत्त के अंदर लेट कर सो गया।
स्वप्न में देखा, मुझ से एक बूढ़ा कह रहा है, ‘ऐ अजब, जागने पर अपने पाँवों के नीचे की भूमि खोदना। तुम्हें एक पीतल का धनुष और सीसे के तीन बाण मिलेंगे। वे तीनों तीर घोड़े पर सवार मूर्ति को मारना, इससे मूर्ति समुद्र में जा गिरेगी और घोड़ा तेरे पैरों के पास आ गिरेगा। तुम घोड़े को वहीं भूमि में गाड़ देना। इसके बाद समुद्र में तूफान आएगा और वह चढ़ने लगेगा – यहाँ तक कि तुम्हारे पास आ जाएगा और एक छोटी नाव से तुम एक अन्य समुद्र में पहुँच जाओगे और फिर अपने नगर को पहुँच जाओगे। लेकिन खबरदार, इस सारे समय में भगवान का नाम बिल्कुल नहीं लेना।’
इसके बाद मेरी आँख खुल गई। मैं अपने छुटकारे का उपाय जान कर अति प्रसन्न हुआ। बूढ़े के कहने के अनुसार धरती को खोदा तो उसमें से तीन बाण और धनुष निकले। मैंने कमान से तीनों तीर पीतल के घुड़सवार पर छोड़े। तीसरे तीर के लगते ही सवार की मूर्ति समुद्र में गिर गई और घोड़े की मूर्ति मेरे पाँवों के पास आ गिरी। मैंने उसे उसी जमीन में गाड़ दिया जहाँ से धनुष और बाण निकाले थे। अब समुद्र चढ़ने लगा और चढ़ते-चढ़ते पीतल के घेरे के पास आ गया। जहाँ मैं था वहाँ एक नाव भी आ लगी जिसमें पीतल का माँझी बैठा था। मैं नाव पर बैठ गया।
वृद्ध पुरुष की हिदायत को ध्यान में रखकर मैंने भगवान का नाम न लिया, बल्कि अपना मुँह बंद ही रखा। पीतल का माँझी नौ दिन तक नाव चलाता रहा और ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ आसपास कई द्वीप दिखाई दे रहे थे। मैं बहुत खुश हुआ कि अब कठिनाइयों से उबर जाऊँगा और इसी दशा में भगवान को धन्यवाद दे बैठा। तुरंत ही माँझी समेत वह नाव समुद्र में डूब गई।
अब मैं फिर तैरने लगा और एक द्वीप की ओर जाने लगा। कई घंटे तक तैरता रहा। यहाँ तक कि शाम होने लगी और मेरे हाथ-पाँव भी थकन से ऐसे भारी हो गए कि तैरा ही नहीं जाता था। ऐसे ही में एक बड़ी भारी लहर आई और उसने मुझे तट पर ला फेंका। मैं दौड़कर आगे चला गया कि कहीं दूसरी लहर आकर मुझे वापस समुद्र में न खींच ले जाए। मैंने अपने कपड़े उतार कर निचोड़ा और हवा में हिलाकर सुखाए। फिर मैं इधर-उधर घूमकर देखने लगा। कई फल वाले पेड़ दिखाई दिए लेकिन वहाँ आदमी कोई नहीं दिखाई दिया। मैंने कई फल खाए और इस तरह अपनी भूख और थकान दूर की। इसके बाद मैंने अपनी चिंता छोड़ दी और सोचा कि जो भगवान करेगा ठीक ही होगा।
थोड़ी देर बाद देखा कि एक छोटा-सा जहाज पाल उड़ाता हुआ उस द्वीप की ओर आ रहा है। पहले मैंने सोचा कि वह तट पर आए तो मैं उसके पास जाऊँ। फिर सोचा कि अच्छी तरह देख लेना चाहिए, ऐसा तो नहीं कि उसमे लुटेरे हों या मेरे शत्रु हों। इसलिए मैं एक घने और ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और छुपकर बैठ गया और ध्यानपूर्वक देखने लगा कि जहाज के लोग क्या करते हैं।
कुछ ही देर में जहाज किनारे पर रुका और उसमें से बहुत-से आदमी फावड़े और दूसरे औजार लेकर निकले। फिर वे कुछ दूर जाकर भूमि खोदने लगे। खोदते-खोदते वे एक दरवाजे तक पहुँच गए। फिर वे जहाज में वापस गए और उसमें से बहुत-सी खाद्य वस्तुएँ और बिस्तर, फर्श आदि के बोझों को लादे हुए उसी दरवाजे को उठाकर नीचे चले गए। फिर वे लोग जो नौकर-चाकर ज्ञात होते थे जहाज में जाकर एक वृद्ध पुरुष और चौदह पंद्रह वर्ष के अति सुंदर बालक को लाए और सब के सब दरवाजे से नीचे उतर गए जहाँ स्पष्टतः ही कोई मकान बना हुआ था। वहाँ से लौटकर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया और उस पर मिट्टी डाल कर बराबर कर दी। लेकिन वे वापस हुए तो वह सुंदर बालक उनके साथ नहीं था।
मुझे यह सब बातें देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ। मैं कुछ देर और देखता रहा। वह जहाज फिर चल पड़ा और जब मैंने देखा कि वहाँ कोई नहीं है तो पेड़ से उतर कर उस स्थान पर गया जहाँ पर उन्होंने भूमि खोदी थी। मैंने वहाँ की मिट्टी हटाई तो देखा कि एक बड़ा चौकोर पत्थर रखा है। उसे उठाया तो दिखाई दिया कि नीचे तक सीढ़ियाँ गई हैं। मैं उतरकर नीचे गया तो देखा कि बहुत बड़ा मकान है जहाँ हर तरफ कालीन बिछे हैं। दालान में कालीन पर सुंदर गद्दे पड़े हैं जिन पर सुनहरे गिलाफ चढ़े हैं। वहाँ पर बालक बैठा था। वह एक हलका-सा पंखा झल रहा था, उसके पास दो बड़ी मोमबत्तियाँ जल रही थीं, कई गुलदस्ते और खाने-पीने की बहुत-सी चीजें उसके पास रखी थीं।
मुझे वहाँ देखकर वह बालक घबरा गया। मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा कि ‘तुम मुझसे डरो नहीं। तुम तो राजकुमारों जैसे लगते हो। मैं तुम्हारे जैसे बच्चों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाना चाहता। मुझे यह देखकर दुख हुआ कि तुम्हारे साथी तुम्हें जीते जी ही इस कब्र में गाड़ गए हैं। खैर, अब तुम चिंता न करो, मैं तुम्हें इस कब्र से निकाल दूँगा। लेकिन पहले तुम अपना किस्सा तो बताओ कि वे लोग तुम्हें यहाँ क्यों गाड़ गए हैं। देखो, सब कुछ निडर होकर सच-सच बताना। कुछ छुपाना नहीं। यह तो मैं देख चुका हूँ कि उन सब लोगों ने मिलकर तुम्हें यहाँ दफन किया है और शायद तुम यहाँ पर जबर्दस्ती लाए गए हो। लेकिन मैं यह जानना चाहता हूँ कि उन लोगों ने ऐसा क्यों किया।’
मेरी बातों से लड़के को तसल्ली हुई। उसने मुझे अपने पास बैठने को कहा और जब मैं बैठ गया तो उसे अपना वृत्तांत आरंभ किया, ‘हे महानुभाव, मेरी कहानी बड़ी आश्चर्यजनक है, आप उसे सुनकर स्तंभित रह जाएँगे। मेरा पिता एक जौहरी है। उसने अपनी लगन और बुद्धिमानी से बहुत साधन एकत्रित किया है। उसके सैकड़ों नौकर-चाकर और बहुत-सी कोठियाँ हैं। वह अपने जहाजों पर सवार होकर देश-देश घूमता है। हर स्थान पर उसके गुमाश्ते हैं जो उसकी ओर से रत्नों का क्रय-विक्रय करते हैं।
‘इतना प्रचुर धन होने पर भी मेरे पिता के यहाँ बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई। एक रात उसने स्वप्न में देखा, कोई कह रहा है कि तुम्हारे यहाँ एक पुत्र होगा किंतु उसकी आयु बहुत कम होगी। यह स्वप्न देख कर मेरे पिता को बड़ा दुख और चिंता व्याप्त हुई। उसके कुछ दिनों बाद मेरी माता ने मेरे पिता को बताया कि मुझे गर्भ रह गया है। उसके नौ महीने बाद मैं पैदा हुआ। मेरे जन्म पर सारे परिवार वालों और नातेदारों को अतीव प्रसन्नता हुई किंतु मेरे पिता को अपना स्वप्न याद करके दुख ही बना रहता था। अतएव उसने ज्योतिषी लोगों से सलाह ली। उन्होंने कहा, इस बालक को चौदहवें वर्ष में मृत्यु का भय है। अगर उस समय बच गया तो फिर यह बहुत दिन जिएगा और इसकी आयु काफी लंबी होगी।
‘उन्होंने कहा कि हमें ग्रहों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अजब नाम का बादशाह एक पीतल के घुड़सवार को, जो एक चुंबक के पर्वत की चोटी पर मौजूद हैं, समुद्र में गिरा देगा, उसके पचास दिन के बाद अजब बादशाह इस लड़के को मार डालेगा। मेरा पिता तो पहले ही से स्वप्न देखकर दुखी था, अब ज्योतिषियों से यह सुनकर और भी चिंता में पड़ गया और रात-दिन यह सोचता रहता कि इस लड़के की जान कैसे बचाई जाए। इसीलिए उसने यह तहखाने का मकान बनवाया। मुझे चौदहवाँ वर्ष लगा तो दूसरे ही दिन ज्योतिषियों ने आकर कहा कि दस दिन हुए बादशाह अजब ने पीतल के घुड़सवार को समुद्र में गिरा दिया है। यह सोचकर मेरे पिता की चिंता और बढ़ी और वह घंटों तक सोचता रहा कि मेरे सर से ग्रह कैसे टले। अंततः उसने इस निर्जन द्वीप में पहले से बनाए हुए भूमिगत आवास में मुझे बंद करने का निश्चय किया। उसने सोचा कि बादशाह अजब जैसा शक्तिशाली इस निर्जन द्वीप में क्यों आएगा और आएगा भी तो यह तहखाना कैसे पाएगा। इसलिए चालीस दिन तक मुझे इस मकान में बंद कर दिया जाए जिससे न मैं किसी को देखूँ न कोई मुझे देखे। यही कारण है मेरे इस स्थान पर लाए जाने का।’
जब वह बालक अपनी बात कह चुका तो मैं मन ही मन ज्योतिषियों को त्रिकालदर्शी होने के दावे पर हँसने लगा। मैं सोचने लगा ऐसे प्यारे निर्दोष बालक की मैं क्यों हत्या करने लगा। उसे दिलासा देने के खयाल से मैंने उसे अपना नाम तो न बताया किंतु उससे कहा, ‘तुम्हें अब डरने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है, मैं तुम्हारी रक्षा के लिए यहाँ आ गया हूँ। यह संयोग ही है कि तुम्हारा रक्षक मैं बना क्योंकि आज ही तट के निकट मेरा जहाज डूबा और मैं अकेला उसमें से बचा और तैरता हुआ इस द्वीप पर आया जहाँ पर मैंने तुम्हारा हाल देखा। तुम भगवान पर भरोसा रखो, किसी प्रकार की चिंता अपने मन में न लाओ। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी कभी सच्ची नहीं होगी। मैं यहाँ रह कर चालीस दिन तक तुम्हारी सेवा और रक्षा करूँगा और भगवान की दया से यह चालीस दिन की अवधि भी कुशलतापूर्वक बीत जाएगी। जब तुम्हारा पिता तुम्हें लेने के लिए आएगा तो मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारे देश चला जाऊँगा। और वहाँ से किसी जहाज पर अपने देश के लिए रवाना हो जाऊँगा। मैं आजीवन तुम्हारा उपकार न भूलूँगा।’
मैंने इस प्रकार उससे धैर्य देने वाली बहुत-सी बातें कीं। मैंने ध्यान रखा कि भूल से भी मेरी जिह्वा पर मेरा या मेरे पिता का नाम न आए क्योंकि इससे उस बालक के मन में अकारण भय उत्पन्न हो जाता। उसका जी बहलाने के लिए मैं तरह-तरह की कहानियाँ और अन्य प्रकार के वृत्तांत सुनाता रहा। वह बालक अत्यंत कुशाग्र-बुद्धि जान पड़ता था और इतने दिनों तक चुपचाप रहने के बाद मुझे उससे वार्तालाप कर के बड़ी प्रसन्नता हो रही थी। रात हुई तो हम दोनों ने मिलकर भोजन किया। उसका पिता इतनी खाद्य सामग्री रख गया था कि दो क्या तीन आदमियों तक को चालीस-इकतालीस दिन तक काफी होती।
रात होने पर हम लोग भोजन करने के उपरांत सो गए। दूसरे दिन सुबह जागने पर मैं उसके हाथ-मुँह धोने के लिए उसके पास जल ले गया, फिर हम लोगों ने स्वादिष्ट व्यंजनों का नाश्ता किया। दिन भर उसके साथ शतरंज और चौपड़ खेलकर उसका जी बहलाता रहा। रात को भोजन करके हम लोग फिर सो रहे। हम लोग इसी प्रकार दिन व्यतीत करने लगे और इसके कारण हम दोनों में एक-दूसरे के प्रति स्नेह बहुत बढ़ गया। विशेषतः मुझे तो वह बालक प्राणों से भी प्यारा लगने लगा।
मुझे विश्वास हो गया कि ज्योतिषियों का यह कथन सिर्फ बकवास था कि बालक अजब बादशाह के हाथ से मारा जाएगा क्योंकि अजब बादशाह को – यानी मुझे – तो यह जान से प्यारा है। मैं इसकी हत्या क्यों करूँगा।
इसी प्रकार उनतालीस दिन तक हम दोनों हँसी-खुशी उस घर में रहे। चालीसवें दिन वह सवेरे जागा तो बड़ा खुश था। कहने लगा, ‘देखिए महोदय, आज चालीसवाँ दिन है। भगवान की दया से और आपके अनुग्रह से मैं सही-सलामत हूँ। मेरा पिता जब सुनेगा कि आपने इस अवधि में मेरी कितनी सेवा की है और मेरा कितना उपकार किया है तो वह आपका अत्यंत कृतज्ञ होगा और आपको सुरक्षापूर्वक आपके देश में पहुँचा देगा।’
फिर उस लड़के ने मुझसे कहा कि मेरे लिए कुछ जल गर्म कर दीजिए ताकि मैं अच्छी तरह नहाकर नए कपड़े पहनूँ क्योंकि मेरा पिता आज मुझे लेने के लिए आएगा। मैंने पानी गर्म करके उसके नहाने-धोने का प्रबंध कर दिया। नहाने के बाद वह बिस्तर में आ लेटा। मैंने उसे लिहाफ उढ़ा दिया और वह कुछ देर के लिए सो गया। सोकर उठने पर उसने कहा कि महोदय, मेरा जी करता है कि खरबूजा खाऊँ, आप एक खरबूजा और थोड़ी-सी मिश्री मेरे लिए ले आइए। मैंने जाकर खरबूजों के ढेर में से एक अच्छा खरबूजा छाँटा और उसे चीनी की तश्तरी में रखकर उसके पास लाया। फिर मैंने उससे पूछा कि इसे काटने के लिए छुरी चाहिए, छुरी कहाँ है। उसने कहा, मेरे सिरहाने की तरफ जो आला है उसमें छुरी रखी है।
ताक ऊँचा था, मैं उस तक नहीं पहुँच सका। इसलिए मैंने उछलकर छुरी उठाना चाहा। फिर भी यह न हो सका। इसलिए मैं एक मोखे का सहारा लेकर ऊँचा हुआ और छुरी मेरे हाथ में आ गई। मैं चाहता था कि धीरे से उतर जाऊँ लेकिन संयोग से मेरा पाँव फिसल गया और मैं सँभल ही न सका। मैं उस जौहरी के बेटे के ऊपर ही गिरा और मेरे हाथ की छुरी उसके हृदय में घुस गई और वह तड़प कर वहीं ठंडा हो गया।
मुझे अत्यंत शोक हुआ। मैंने अपने कपड़े फाड़ डाले और सिर और छाती पीटने लगा और पछाड़ें खाकर जमीन पर गिरने लगा। मैं बराबर रो-रोकर कहता था कि इस अभागे दिन में कुछ घड़ियाँ रह गई थीं। यह समय भी टल जाता तो लड़के की जान बच जाती। ज्योतिषियों का कहना ठीक ही निकला और मैं अभागा ही इस प्यारे बच्चे की मृत्यु का कारण बना। मैंने आकाश की ओर मुख किया और दोनों हाथ उठाकर कहने लगा कि हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तू सब कुछ देख रहा हे और तू सब कुछ जानता है। तुझे ज्ञात है कि इस बालक को मैंने जानबूझकर नहीं मारा है, यदि इसकी मृत्यु में मेरा तनिक भी दोष हो तो तू इसी समय मेरे प्राण ले ले। इसी प्रकार मैं बहुत देर तक जौहरी के पुत्र की लाश के पास बैठकर रोता-कलपता रहा।
जब दिन थोड़ा-सा ही बाकी रहा तो मैंने सोचा कि अब इसका बाप इसे लेने को आता होगा। मेरी इतने दिनों की सेवा व्यर्थ गई। अब मैं क्या मुँह लेकर उससे मिलूँ। अब मेरा यहाँ ठहरना ठीक नहीं। यह सोचकर मैं मकान से निकला और जीने पर पत्थर रखकर उस पर मिट्टी डालकर बराबर कर दी। बाहर निकल कर देखा तो जौहरी का जहाज पाल उड़ाए चला आता है। मैंने सोचा जौहरी मुझे देखेगा तो अपने बेटे का हत्यारा समझ कर मुझे अपने नौकरों से मरवा डालेगा। कारण यह है कि मैं झूठ नहीं बोलता। इसलिए मैं एक ऊँचे और घने पेड़ पर चढ़ गया और देखने लगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: अलिफ लैला - by sri7869 - 14-05-2024, 12:28 PM



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