04-08-2019, 01:30 AM
सुगंधा खेतो पर से अपने घर पर लौट चुकी थी,,।
रास्ते भर वह टूटे हुए मकान के अंदर के दृश्य के बारे में सोचती रही ना जाने क्यों उसका नाम आज उस दृश्य से हट नहीं रहा था यकीन नहीं हो रहा कि जो उसने देखी वह सच है।,, उस आदमी का खड़ा लंड अभी भी ऊसकी आंखों के सामने घूम रहा था।,,
टूटी हुई झोपड़ी के उस कामोत्तेजक नजारे ने सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल मचा रखी थी।
जांघो के बीच की सुरसुराहट ऊसे साफ महसूस हो रही थी। बरसों बाद उसने इस तरह की हलचल को अपने अंदर महसूस की थी,,,, बार बार दोनों के बीच की गर्म वार्तालाप उसके कानों में अथड़ा रहे थे।
उसे सोच कर अजीब लग रहा था कि औरत एक मर्द से इस तरह की अश्लील बातें कैसे कर सकती है। लेकिन यह एक सच था अगर किसी दूसरे ने उसे यह बात कही होती तो शायद उसे यकीन नहीं होता लेकिन यह तो वह अपनी आंखों से देख रही थी अपने कानों से सुन रही थी इसलिए इसे झुठलाना भी उसके लिए मुमकिन नहीं था।,,,
वह घर पर पहुंच चुकी थी जानू के बीच हो रहे गुदगुदी को अपने अंदर महसूस करके अनायास ही उसके हाथ साड़ी के ऊपर से ही बुर वाले स्थान पर चले गए जिससे उसे साफ आभास हुआ कि उस स्थान पर गीलेपन का संचार हो रहा था जोंकि उसका काम रस ही था। पहली बार सुगंधा की बुर गीली हुई थी,,, इस गीलेपन के एहसास से उसे घ्रणा भी हो रही थी तो अदृश्य कामोन्माद से आनंद की अनुभूति भी हो रही थी।,,, सुगंधा की पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली महसूस हो रही थी जिसकी वजह से वह असहज महसूस कर रही थी,,,। इसलिए वह अपनी पैंटी को बदलने के लिए कमरे में दाखिल होने जा रही थी कि तभी पीछे से आवाज आई।
मम्मी कहां चली गई थी तुम मैं कब से तुम्हें ढूंढ रहा हूं।
जरा खेतों पर चली गई थी बेटा वहां का काम देखना था।,,,, अब तुम तो ना जाने कब अपनी जिम्मेदारी समझोगे इसलिए मुझे ही सारा काम करना पड़ता है अगर तुम खेतों का काम देख लेते तो मैं घर पर ही रहती।,,,
मम्मी ने अभी इस लायक नहीं हूं कि सारा काम संभाल सको अभी तो मेरे खेलने कूदने के दिन है।
( इतना कहते हुए रोहन आगे बढ़कर सुगंधा के गले लग गया,,, , सुगंधा भी स्नेह बरसाते हुए रोहन को गले से लगा ली लेकिन गले लगते ही,, शुभम को अपने छातियों पर नरम गरम एहसास होने लगा जोकि अच्छी तरह से जानता था कि यह एहसास उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोलाईयो का था,,, पल भर में ही उसे इस एहसास ने कामोत्तेजना से भर दिया,,,, रोहन को सुबह वाला दृश्य आंखों के सामने नजर आने लगा,,, जब बेला उसे जगाने आई थी और उसकी ब्लाउज से झांकते हुए उसकी बड़ी बड़ी चूचियां वह प्यासी आंखों से घूर रहा था उस पल को याद करते ही रोहन का लंड खड़ा हो गया क्योंकि इस समय बेला से भी बेहद खूबसूरत स्तनों की गोलाईयां उसके छातियों से रगड़ खा रही थी,,,,। रोहन तो अपनी मां को अपनी बाहों से अलग नहीं होने दे रहा था वह कुछ देर तक ऐसे ही खड़ा रहा सुगंधा भी कुछ पल तक ऐसे ही अपनी बाहों में भरे हुए अपने बेटे को दुलारती रही,,,,,
लेकिन बुर से बह रहे कामरस की वजह से उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली हो चुकी थी जिसकी वजह से वह अपने आप को असहज महसूस कर रही थी।
इसलिए बार रोहन को अपने आप से अलग करते हुए बोली तुम यहीं रुको में आती हूं,,, इतना कहकर सुगंधा कमरे के अंदर चली गई और रोहन उसे जाता हुआ देखता रहा लेकिन आज पहली बार उसका नजरिया बदला था जिसकी वजह बेलाही थी आज पहली बार उसका ध्यान सुगंधा को जाते हुए देख कर उसकी मदद की हुई गांड पर पड़ी थी और रोहन अपनी मां की भारी-भरकम सुडोल गांड को देखकर एक अजीब से आकर्षण में बँधता चला जा रहा था। हालांकि रोहन कि मैं तेरे से पहले भी अपनी मां की खूबसूरत बदन पर पड़ी हो चुकी थी लेकिन जिस तरह के नजरिए से आज वह अपनी मां को देख रहा था उस तरह से उसने कभी नहीं देखा था।
दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर जैसे उसकी तंद्रा भंग हुई और वह अपनी इस नजरिए को लेकर अपने आप को ही कोसने लगा,,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि जिस नजरिए से वह अपनी मां को देख रहा था वह गलत है इसलिए वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर-उधर चहल कदमी करने लगा लेकिन सुबह का नजारा और अभी अभी जो उसके सीने पर उसकी मां की नरम नरम गोल गोल चुचियों का स्पर्श हुआ था,,,, उसके चलते उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी और तो और अपनी मां को जाते हुए उसके नितंबों को देख कर और उन नितंबो का साड़ी के अंदर से ही दाएं बाएं मटकना देख कर उसका मन मस्तिष्क अजीब सी हलचल मैं धँशा चला जा रहा था।,,,,,, ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसी और आकर्षित हो रहा था और वह बार बार मुड़ मुड़कर बंद दरवाजे की तरफ देख रहा था तभी उसे अपने बदन में एक हरकत के बारे में पता चला,,,, तो उसकी सांसे भारी हो चली उसकी नजर अपनी पेंट की तरफ पड़ी तो उसका हाल बेहाल होने लगा उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और पेंट में तंबू बनाए हुए था।
अपनी हालत पर उसे गुस्सा आने लगा की आखिरकार अपनी ही मां को देखकर उसका लंड क्यो खड़ा हो गया,,,,
अब रोहन का दिमाग दोनों तरफ घूमने लगा था एक मन कह रहा था कि यह सब बिल्कुल गलत है पैसा उसे सोचना ही नहीं चाहिए लेकिन दूसरी तरफ उसका मन अपनी जवान हो रही है उम्र को देखते हुए शारीरिक आकर्षण की तरफ झुकता चला जा रहा था उसका यह मन उसे बिल्कुल भी दोषी नहीं मान रहा था बल्कि उसे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था बार बार रोहन की आंखों के सामने भी अपनी मां की मटकती हुई गांड तो बेला की ब्लाउज में से झांकती हुई चुची नजर आ रही थी।,,,, लंड का कठोर पन बिल्कुल भी कम नहीं हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी युद्ध पर जाने के लिए एक योद्धा अपना हथियार तैयार कर रहा हो लेकिन यहां किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं था।ना तो यहा मैदान मे होने वाले युद्ध की गुंजाइश थी और ना ही पलंग पर यहां पर युद्ध हो रहा था तो अपने मन से ही,,, रोहन अपने मन से लड़ रहा था किसकी सुने उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था दोनों तरफ मन थे और एक तरफ वह था। एक तरफ मन की बात सुनकर वह अपने आप को शांत तो जरूर कर लेता,,, लेकिन थोड़ी देर के लिए,, इसके बाद फिर दूसरा मन ऊस पर भारी पड़ जाता,,,, अपने आपको लाख समझाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसका मन नहीं माना,,, और वह विवश हो गया,,, अपनी मां के कमरे के अंदर झांकने के लिए,,,,
रास्ते भर वह टूटे हुए मकान के अंदर के दृश्य के बारे में सोचती रही ना जाने क्यों उसका नाम आज उस दृश्य से हट नहीं रहा था यकीन नहीं हो रहा कि जो उसने देखी वह सच है।,, उस आदमी का खड़ा लंड अभी भी ऊसकी आंखों के सामने घूम रहा था।,,
टूटी हुई झोपड़ी के उस कामोत्तेजक नजारे ने सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल मचा रखी थी।
जांघो के बीच की सुरसुराहट ऊसे साफ महसूस हो रही थी। बरसों बाद उसने इस तरह की हलचल को अपने अंदर महसूस की थी,,,, बार बार दोनों के बीच की गर्म वार्तालाप उसके कानों में अथड़ा रहे थे।
उसे सोच कर अजीब लग रहा था कि औरत एक मर्द से इस तरह की अश्लील बातें कैसे कर सकती है। लेकिन यह एक सच था अगर किसी दूसरे ने उसे यह बात कही होती तो शायद उसे यकीन नहीं होता लेकिन यह तो वह अपनी आंखों से देख रही थी अपने कानों से सुन रही थी इसलिए इसे झुठलाना भी उसके लिए मुमकिन नहीं था।,,,
वह घर पर पहुंच चुकी थी जानू के बीच हो रहे गुदगुदी को अपने अंदर महसूस करके अनायास ही उसके हाथ साड़ी के ऊपर से ही बुर वाले स्थान पर चले गए जिससे उसे साफ आभास हुआ कि उस स्थान पर गीलेपन का संचार हो रहा था जोंकि उसका काम रस ही था। पहली बार सुगंधा की बुर गीली हुई थी,,, इस गीलेपन के एहसास से उसे घ्रणा भी हो रही थी तो अदृश्य कामोन्माद से आनंद की अनुभूति भी हो रही थी।,,, सुगंधा की पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली महसूस हो रही थी जिसकी वजह से वह असहज महसूस कर रही थी,,,। इसलिए वह अपनी पैंटी को बदलने के लिए कमरे में दाखिल होने जा रही थी कि तभी पीछे से आवाज आई।
मम्मी कहां चली गई थी तुम मैं कब से तुम्हें ढूंढ रहा हूं।
जरा खेतों पर चली गई थी बेटा वहां का काम देखना था।,,,, अब तुम तो ना जाने कब अपनी जिम्मेदारी समझोगे इसलिए मुझे ही सारा काम करना पड़ता है अगर तुम खेतों का काम देख लेते तो मैं घर पर ही रहती।,,,
मम्मी ने अभी इस लायक नहीं हूं कि सारा काम संभाल सको अभी तो मेरे खेलने कूदने के दिन है।
( इतना कहते हुए रोहन आगे बढ़कर सुगंधा के गले लग गया,,, , सुगंधा भी स्नेह बरसाते हुए रोहन को गले से लगा ली लेकिन गले लगते ही,, शुभम को अपने छातियों पर नरम गरम एहसास होने लगा जोकि अच्छी तरह से जानता था कि यह एहसास उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोलाईयो का था,,, पल भर में ही उसे इस एहसास ने कामोत्तेजना से भर दिया,,,, रोहन को सुबह वाला दृश्य आंखों के सामने नजर आने लगा,,, जब बेला उसे जगाने आई थी और उसकी ब्लाउज से झांकते हुए उसकी बड़ी बड़ी चूचियां वह प्यासी आंखों से घूर रहा था उस पल को याद करते ही रोहन का लंड खड़ा हो गया क्योंकि इस समय बेला से भी बेहद खूबसूरत स्तनों की गोलाईयां उसके छातियों से रगड़ खा रही थी,,,,। रोहन तो अपनी मां को अपनी बाहों से अलग नहीं होने दे रहा था वह कुछ देर तक ऐसे ही खड़ा रहा सुगंधा भी कुछ पल तक ऐसे ही अपनी बाहों में भरे हुए अपने बेटे को दुलारती रही,,,,,
लेकिन बुर से बह रहे कामरस की वजह से उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली हो चुकी थी जिसकी वजह से वह अपने आप को असहज महसूस कर रही थी।
इसलिए बार रोहन को अपने आप से अलग करते हुए बोली तुम यहीं रुको में आती हूं,,, इतना कहकर सुगंधा कमरे के अंदर चली गई और रोहन उसे जाता हुआ देखता रहा लेकिन आज पहली बार उसका नजरिया बदला था जिसकी वजह बेलाही थी आज पहली बार उसका ध्यान सुगंधा को जाते हुए देख कर उसकी मदद की हुई गांड पर पड़ी थी और रोहन अपनी मां की भारी-भरकम सुडोल गांड को देखकर एक अजीब से आकर्षण में बँधता चला जा रहा था। हालांकि रोहन कि मैं तेरे से पहले भी अपनी मां की खूबसूरत बदन पर पड़ी हो चुकी थी लेकिन जिस तरह के नजरिए से आज वह अपनी मां को देख रहा था उस तरह से उसने कभी नहीं देखा था।
दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर जैसे उसकी तंद्रा भंग हुई और वह अपनी इस नजरिए को लेकर अपने आप को ही कोसने लगा,,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि जिस नजरिए से वह अपनी मां को देख रहा था वह गलत है इसलिए वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर-उधर चहल कदमी करने लगा लेकिन सुबह का नजारा और अभी अभी जो उसके सीने पर उसकी मां की नरम नरम गोल गोल चुचियों का स्पर्श हुआ था,,,, उसके चलते उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी और तो और अपनी मां को जाते हुए उसके नितंबों को देख कर और उन नितंबो का साड़ी के अंदर से ही दाएं बाएं मटकना देख कर उसका मन मस्तिष्क अजीब सी हलचल मैं धँशा चला जा रहा था।,,,,,, ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसी और आकर्षित हो रहा था और वह बार बार मुड़ मुड़कर बंद दरवाजे की तरफ देख रहा था तभी उसे अपने बदन में एक हरकत के बारे में पता चला,,,, तो उसकी सांसे भारी हो चली उसकी नजर अपनी पेंट की तरफ पड़ी तो उसका हाल बेहाल होने लगा उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और पेंट में तंबू बनाए हुए था।
अपनी हालत पर उसे गुस्सा आने लगा की आखिरकार अपनी ही मां को देखकर उसका लंड क्यो खड़ा हो गया,,,,
अब रोहन का दिमाग दोनों तरफ घूमने लगा था एक मन कह रहा था कि यह सब बिल्कुल गलत है पैसा उसे सोचना ही नहीं चाहिए लेकिन दूसरी तरफ उसका मन अपनी जवान हो रही है उम्र को देखते हुए शारीरिक आकर्षण की तरफ झुकता चला जा रहा था उसका यह मन उसे बिल्कुल भी दोषी नहीं मान रहा था बल्कि उसे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था बार बार रोहन की आंखों के सामने भी अपनी मां की मटकती हुई गांड तो बेला की ब्लाउज में से झांकती हुई चुची नजर आ रही थी।,,,, लंड का कठोर पन बिल्कुल भी कम नहीं हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी युद्ध पर जाने के लिए एक योद्धा अपना हथियार तैयार कर रहा हो लेकिन यहां किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं था।ना तो यहा मैदान मे होने वाले युद्ध की गुंजाइश थी और ना ही पलंग पर यहां पर युद्ध हो रहा था तो अपने मन से ही,,, रोहन अपने मन से लड़ रहा था किसकी सुने उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था दोनों तरफ मन थे और एक तरफ वह था। एक तरफ मन की बात सुनकर वह अपने आप को शांत तो जरूर कर लेता,,, लेकिन थोड़ी देर के लिए,, इसके बाद फिर दूसरा मन ऊस पर भारी पड़ जाता,,,, अपने आपको लाख समझाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसका मन नहीं माना,,, और वह विवश हो गया,,, अपनी मां के कमरे के अंदर झांकने के लिए,,,,