02-08-2019, 09:05 AM
उसने यह भी कहा कि आप नूरुद्दीन को मेरे सुपुर्द कर दीजिए, मैं खोज कर के असल तथ्य का पता लगाऊँगा। जुबैनी भी क्यों आसानी से अपना पद देता। उसने सूएखाकान की बात मंजूर कर ली। सूएखाकान नूरुद्दीन को अपने भवन में लाया। वह उसकी जान का प्यासा हो ही रहा था। चुनांचे उसने नूरुद्दीन को इतना पिटवाया कि वह बेहोश हो कर गिर गया और मरने के समीप हो गया। फिर उसने उसे एक तंग कोठरी में बंद कर दिया और उस पर कड़ा पहरा बिठा दिया और आदेश दिया कि इसे दिन में सिर्फ एक बार कुछ रोटी के टुकड़े और पानी दिया जाए, इससे अधिक कुछ न दिया जाए।
नूरुद्दीन को होश आया तो देखा कि उसे एक सीली, दुर्गंधपूर्ण और ऐसी तंग कोठरी में बंद किया गया है जिसमें वह हिल-डुल भी नहीं सकता। उसे यह तो मालूम ही नहीं था कि जुबैनी के नाम पत्र में क्या लिखा था। वह रो-रो कर कहने लगा, वाह रे मछवाहे! मैंने तो तुझे अपना सब कुछ दे डाला। अशर्फियों के साथ अपनी प्राणों से भी प्यारी दासी भी दे डाली। और तूने मेरे इस उपकार का बदला इस प्रकार दिया। भगवान तुझे तेरी इस दुष्टता के लिए कभी क्षमा नहीं करेगा। मैं भी कैसा नादान हूँ कि उस मछवाहे के कहने में आ गया।
सूएखाकान ने नूरुद्दीन को छह दिन तक ऐसे ही कष्ट में रखा। वह चाहता तो था कि नूरुद्दीन का प्राणांत हो जाए किंतु उसकी हिम्मत उसे अपने घर में मारने की नहीं हो रही थी, वह उसे हाकिम ही से मृत्युदंड दिलाना चाहता था। सातवें दिन उसने अच्छी-अच्छी चीजों की टोकरियाँ नौकरों के सिर पर लदवाईं और जुबैनी के सामने पेश कीं। उसने पूछा यह क्या है, तो सूएखाकान ने कुटिलतापूर्वक कहा, यह बसरे के नए हाकिम ने आप के पास भेजा है ताकि इनके बदले आप उसे बसरे का हाकिम बनाएँ। इससे जुबैनी को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, वह अभी जिंदा है? मैंने समझा था कि तुमने उसे मार डाला होगा। मंत्री ने कहा, मुझे किसी को प्राणदंड देने का अधिकार नहीं है। जुबैनी ने कहा, मैं आज्ञा देता हूँ कि तुम उसकी गर्दन उतारो। कमबख्त मुझसे मजाक करता है? सूएखाकान ने कहा, आपकी आज्ञा सिर-आँखों पर किंतु मैं चाहता हूँ कि वह सर्वसाधारण के सामने मारा जाए, तभी मैं उससे उस सार्वजनिक अपमान का बदला लूँगा जो उसने किया है।
नूरुद्दीन को होश आया तो देखा कि उसे एक सीली, दुर्गंधपूर्ण और ऐसी तंग कोठरी में बंद किया गया है जिसमें वह हिल-डुल भी नहीं सकता। उसे यह तो मालूम ही नहीं था कि जुबैनी के नाम पत्र में क्या लिखा था। वह रो-रो कर कहने लगा, वाह रे मछवाहे! मैंने तो तुझे अपना सब कुछ दे डाला। अशर्फियों के साथ अपनी प्राणों से भी प्यारी दासी भी दे डाली। और तूने मेरे इस उपकार का बदला इस प्रकार दिया। भगवान तुझे तेरी इस दुष्टता के लिए कभी क्षमा नहीं करेगा। मैं भी कैसा नादान हूँ कि उस मछवाहे के कहने में आ गया।
सूएखाकान ने नूरुद्दीन को छह दिन तक ऐसे ही कष्ट में रखा। वह चाहता तो था कि नूरुद्दीन का प्राणांत हो जाए किंतु उसकी हिम्मत उसे अपने घर में मारने की नहीं हो रही थी, वह उसे हाकिम ही से मृत्युदंड दिलाना चाहता था। सातवें दिन उसने अच्छी-अच्छी चीजों की टोकरियाँ नौकरों के सिर पर लदवाईं और जुबैनी के सामने पेश कीं। उसने पूछा यह क्या है, तो सूएखाकान ने कुटिलतापूर्वक कहा, यह बसरे के नए हाकिम ने आप के पास भेजा है ताकि इनके बदले आप उसे बसरे का हाकिम बनाएँ। इससे जुबैनी को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, वह अभी जिंदा है? मैंने समझा था कि तुमने उसे मार डाला होगा। मंत्री ने कहा, मुझे किसी को प्राणदंड देने का अधिकार नहीं है। जुबैनी ने कहा, मैं आज्ञा देता हूँ कि तुम उसकी गर्दन उतारो। कमबख्त मुझसे मजाक करता है? सूएखाकान ने कहा, आपकी आज्ञा सिर-आँखों पर किंतु मैं चाहता हूँ कि वह सर्वसाधारण के सामने मारा जाए, तभी मैं उससे उस सार्वजनिक अपमान का बदला लूँगा जो उसने किया है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.