02-08-2019, 08:58 AM
खलीफा ने आश्चर्य से पूछा, यह स्त्री आपकी दासी है? उसके स्वर में सहानुभूति पाई तो नूरुद्दीन ठंडी साँस भर कर कहने लगा, करीम, तुम इतने पर क्या आश्चर्य करते हो। मेरी पूरी कहानी सुनो तो वास्तव में आश्चर्य में पड़ जाओगे। यह कह कर उसने सारा किस्सा उसे बताया।
मछवाहे बने हुए खलीफा ने कहा, अब आप कहाँ जाएँगे, क्या करेंगे? नूरुद्दीन ने कहा, जो भी भगवान चाहेगा वही होगा। खलीफा ने कहा, आप कहीं न जाएँ, वापस बसरा चले जाएँ। मैं वहाँ के हाकिम को एक छोटा-सा पत्र लिखे देता हूँ। वह जुबेनी को दे देना। इसके बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएँगे।
नूरुद्दीन ठठा कर हँस पड़ा। बोला, भाई, तेरा दिमाग तो ठीक है? कहाँकहाँ राजा और कहाँ रंक।। जुबैनी तेरे पत्र पर क्या ध्यान देगा? खलीफा ने कहा, आप जानते नहीं। जुबैनी मेरा बचपन का साथी है। वह कई बार मुझे मंत्री बनाने के लिए बुला चुका है किंतु मैं उसका अहसान लेने के बजाय पैत्रिक धंधा करना पसंद करता हूँ। नूरुद्दीन इस पर पत्र लेने को तैयार हो गया। खलीफा ने कलम और कागज ले कर इस प्रकार का पत्र लिखा :
मछवाहे बने हुए खलीफा ने कहा, अब आप कहाँ जाएँगे, क्या करेंगे? नूरुद्दीन ने कहा, जो भी भगवान चाहेगा वही होगा। खलीफा ने कहा, आप कहीं न जाएँ, वापस बसरा चले जाएँ। मैं वहाँ के हाकिम को एक छोटा-सा पत्र लिखे देता हूँ। वह जुबेनी को दे देना। इसके बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएँगे।
नूरुद्दीन ठठा कर हँस पड़ा। बोला, भाई, तेरा दिमाग तो ठीक है? कहाँकहाँ राजा और कहाँ रंक।। जुबैनी तेरे पत्र पर क्या ध्यान देगा? खलीफा ने कहा, आप जानते नहीं। जुबैनी मेरा बचपन का साथी है। वह कई बार मुझे मंत्री बनाने के लिए बुला चुका है किंतु मैं उसका अहसान लेने के बजाय पैत्रिक धंधा करना पसंद करता हूँ। नूरुद्दीन इस पर पत्र लेने को तैयार हो गया। खलीफा ने कलम और कागज ले कर इस प्रकार का पत्र लिखा :
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.