02-08-2019, 08:58 AM
नूरुद्दीन उदारता की धुन में तो था ही। उसने हुस्न अफरोज से कहा, चलो इस बेचारे को भी कुछ सुना दो। इसे कहाँ गाना-बजाना सुनने को मिलता होगा। हुस्न अफरोज पर भी शराब का नशा खूब चढ़ा था, साथ ही सुस्वादु मछलियाँ खा कर वह भी बहुत प्रसन्न थी। उसने सोचा कि मैं अपना पूरा कमाल दिखाऊँ। उसने बाँसुरी उठाई और एक साथ ही बाँसुरी और मुँह से एक ही राग इस कौशल के साथ निकाला कि दोनों में एक स्वर का भी अंतर नहीं था। खलीफा ने बहुत प्रशंसा की। फिर उसने खाली बाँसुरी पर एक बड़ा कठिन राग निकाला।
खलीफा ने जी खोल कर प्रशंसा की। उसने कहा, मालिक, मैंने ऐसी गुणवंती नारी कभी नहीं देखी। इनमें संगीत निपुणता भी है और अमृत जैसा कंठ भी। ऐसा गुणज्ञ संसार भर में कोई न होगा। आप धन्य हैं कि आपको ऐसी अनिंद्य सुंदरी और ऐसी गुणवंती साथिन मिली है।
नूरुद्दीन की आदत थी कि अगर कोई उसकी चीज की बहुत प्रशंसा करता था तो वह चीज उसी को दे देता था। हुस्न अफरोज उसकी दासी थी। उसने कहा, अगर यह नारी तुम्हें ऐसी ही पसंद है तो इसे ले जा सकते हो। मैंने इसे तुम्हें दे डाला। तुम संगीत मर्मज्ञ जान पड़ते हो, इसकी अच्छी कद्र करोगे।
हुस्न अफरोज को बड़ी परेशानी हुई कि ऐसे सुंदर मालिक के बजाय मछवाहे के साथ रहना पड़ेगा। नूरुद्दीन उठ कर चलने लगा था। हुस्न अफरोज ने आँसू भर कर कहा, मालिक, चलते-चलते मेरा एक और गीत तो सुनते जाओ। नूरुद्दीन रुक गया। हुस्न अफरोज ने छुप कर आँसू पोंछे और एक सद्यःरचित वियोग गीत गाने लगी जिसका अर्थ यह था कि मुझे अपने पास ही रखो, मछवाहे के हाथ में न दो। नूरुद्दीन ने उसका भाव तो समझ लिया किंतु वह विवश हो कर चुप बैठा रहा, दी हुई चीज के लिए कैसे कहता कि मैं इसे नहीं दूँगा।
खलीफा ने जी खोल कर प्रशंसा की। उसने कहा, मालिक, मैंने ऐसी गुणवंती नारी कभी नहीं देखी। इनमें संगीत निपुणता भी है और अमृत जैसा कंठ भी। ऐसा गुणज्ञ संसार भर में कोई न होगा। आप धन्य हैं कि आपको ऐसी अनिंद्य सुंदरी और ऐसी गुणवंती साथिन मिली है।
नूरुद्दीन की आदत थी कि अगर कोई उसकी चीज की बहुत प्रशंसा करता था तो वह चीज उसी को दे देता था। हुस्न अफरोज उसकी दासी थी। उसने कहा, अगर यह नारी तुम्हें ऐसी ही पसंद है तो इसे ले जा सकते हो। मैंने इसे तुम्हें दे डाला। तुम संगीत मर्मज्ञ जान पड़ते हो, इसकी अच्छी कद्र करोगे।
हुस्न अफरोज को बड़ी परेशानी हुई कि ऐसे सुंदर मालिक के बजाय मछवाहे के साथ रहना पड़ेगा। नूरुद्दीन उठ कर चलने लगा था। हुस्न अफरोज ने आँसू भर कर कहा, मालिक, चलते-चलते मेरा एक और गीत तो सुनते जाओ। नूरुद्दीन रुक गया। हुस्न अफरोज ने छुप कर आँसू पोंछे और एक सद्यःरचित वियोग गीत गाने लगी जिसका अर्थ यह था कि मुझे अपने पास ही रखो, मछवाहे के हाथ में न दो। नूरुद्दीन ने उसका भाव तो समझ लिया किंतु वह विवश हो कर चुप बैठा रहा, दी हुई चीज के लिए कैसे कहता कि मैं इसे नहीं दूँगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.