02-08-2019, 08:53 AM
खलीफा को इस बात पर विश्वास न हुआ, उसने खुद भी साधारण नागरिक के वस्त्र पहने और जाफर तथा अपने प्रधान अंगरक्षक मसरूर को भी पहनवाए और उन दोनों को ले कर चुपके से बाग की ओर चला। वहाँ जा कर देखा कि बाग का बाहरी द्वार खुला है। उसे दारोगा की असावधानी पर रोष हुआ और वह कहने लगा कि यह दरवाजा क्यों खुला है? जाफर इसका क्या जवाब देता। फिर खलीफा इन लोगों को बाग में बिठा कर खुद चुपचाप जीने पर चढ़ कर छत का तमाशा देखने लगा। उसने देखा कि एक अति सुंदर युवक के साथ एक अनिंद्य सुंदरी बैठी है और दारोगा शराब का गिलास उस स्त्री को देते हुए कह रहा है, हे परमसुंदरी, मैंने अभी जी भर कर तुम्हारा गाना नहीं सुना। एक गाना सुनाओ। इसके बाद मैं भी तुम्हें गाना सुनाऊँगा। किंतु वह स्त्री का गाना सुनने के बजाय खुद गाने लगा। स्पष्ट था कि उसे गाना नहीं आता था, यूँ ही रेंक रहा था।
खलीफा को यह देख कर आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि इस दारोगा को क्या हो गया, यह तो बड़ा सदाचारी था। वह चुपके से उतरा और मंत्री जाफर को साथ ला कर उसे इशारे से दिखाया कि यहाँ क्या हो रहा है। उसने कहा, सरकार, मैं तो कुछ समझ नहीं पाया। खलीफा ने कहा, मैं इन सब को कड़ा दंड दूँगा किंतु यदि इस सुंदरी ने अच्छा गाया तो क्षमा कर दूँगा। वे दोनों छुप कर सुनने लगे। बूढ़े ने कहा, कुछ ऐसा गाओ कि जी खुश हो जाए। हुस्न अफरोज बोली, यहाँ बाँसुरी होती तो मैं वह गाना सुनाती कि तुम भी याद करते। अगर मिल सके तो बाँसुरी लाओ।
खलीफा को यह देख कर आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि इस दारोगा को क्या हो गया, यह तो बड़ा सदाचारी था। वह चुपके से उतरा और मंत्री जाफर को साथ ला कर उसे इशारे से दिखाया कि यहाँ क्या हो रहा है। उसने कहा, सरकार, मैं तो कुछ समझ नहीं पाया। खलीफा ने कहा, मैं इन सब को कड़ा दंड दूँगा किंतु यदि इस सुंदरी ने अच्छा गाया तो क्षमा कर दूँगा। वे दोनों छुप कर सुनने लगे। बूढ़े ने कहा, कुछ ऐसा गाओ कि जी खुश हो जाए। हुस्न अफरोज बोली, यहाँ बाँसुरी होती तो मैं वह गाना सुनाती कि तुम भी याद करते। अगर मिल सके तो बाँसुरी लाओ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.