02-08-2019, 08:51 AM
जब दारोगा को काफी नशा चढ़ गया तो हुस्न अफरोज ने कहा कि अब अँधेरा डरावना लगता है, कहो तो शमादान (मोमबत्तियों के पात्र) जला दूँ। बूढ़े ने कहा, अच्छा, यही चाहती हो तो जला लो लेकिन दो-चार ही जलाना। किंतु हुस्न अफरोज ने वहाँ के सारे ही शमादान जला दिए।
बूढ़ा नशे में था और हुस्न अफरोज के सौंदर्य से मस्त भी। उससे हुस्न अफरोज ने पूछा, कहिए तो जीने के शमादान भी जला दूँ ताकि किसी आने-जानेवाले को कष्ट न हो। बूढ़े ने बगैर समझे-बूझे इस की भी अनुमति दे दी। वह इस समय हुस्न अफरोज की हर बात मानने को तैयार था।
खलीफा हारूँ रशीद उस दिन देर तक राज-काज में लगा रहा था। आधी रात को उसकी इच्छा हुई कि बाग में जा कर थकन मिटाए। महल से उसने देखा तो बाग की बारहदरी के ऊपर प्रकाश-पुंज दिखाई दिया क्योंकि हुस्न अफरोज ने सारे शमादान जला दिए थे। उसने अपने मंत्री जाफर से कहा, समझ में नहीं आता। मैं तो यहाँ हूँ, इस बाग की बारहदरी में रोशनी किसने करवाई है। जाफर की समझ में भी कुछ न आया लेकिन वह दिल का अच्छा आदमी था। बाग के दारोगा को बचाने के लिए झूठ बोल गया, बाग के दारोगा ने एक मानता मानी थी और कहा था कि यह पूरी होगी तो अपने मित्रों को दावत दूँगा। उसने आज दावत दी होगी।
बूढ़ा नशे में था और हुस्न अफरोज के सौंदर्य से मस्त भी। उससे हुस्न अफरोज ने पूछा, कहिए तो जीने के शमादान भी जला दूँ ताकि किसी आने-जानेवाले को कष्ट न हो। बूढ़े ने बगैर समझे-बूझे इस की भी अनुमति दे दी। वह इस समय हुस्न अफरोज की हर बात मानने को तैयार था।
खलीफा हारूँ रशीद उस दिन देर तक राज-काज में लगा रहा था। आधी रात को उसकी इच्छा हुई कि बाग में जा कर थकन मिटाए। महल से उसने देखा तो बाग की बारहदरी के ऊपर प्रकाश-पुंज दिखाई दिया क्योंकि हुस्न अफरोज ने सारे शमादान जला दिए थे। उसने अपने मंत्री जाफर से कहा, समझ में नहीं आता। मैं तो यहाँ हूँ, इस बाग की बारहदरी में रोशनी किसने करवाई है। जाफर की समझ में भी कुछ न आया लेकिन वह दिल का अच्छा आदमी था। बाग के दारोगा को बचाने के लिए झूठ बोल गया, बाग के दारोगा ने एक मानता मानी थी और कहा था कि यह पूरी होगी तो अपने मित्रों को दावत दूँगा। उसने आज दावत दी होगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.